भाषाविज्ञान में महाप्राण व्यंजन वह व्यंजन होतें हैं जिन्हें मुख से वायु-प्रवाह के साथ बोला जाता है, जैसे की 'ख', 'घ', 'झ' और 'फ'। अल्पप्राण व्यंजन वह व्यंजन होतें हैं जिन्हें बहुत कम वायु-प्रवाह से बोला जाता है जैसे कि 'क', 'ग', 'ज' और 'प'। जब अल्प प्राण ध्वनियाँ महा प्राण ध्वनियों में परिवर्तित हो जाती है, उसे महाप्रणिकरण कहतें है। अल्पप्राण व्यंजन ऐसे व्यंजन जिनको बोलने में कम समय लगता है और बोलते समय मुख से कम वायु निकलती है उन्हें अल्पप्राण व्यंजन कहते हैं। इनकी संख्या 20 होती है। क ग ङ च ज ञ ट ड ण ड़ त द न प ब म य र ल व इसमें क वर्ग का पहला, तीसरा, पाँचवा अक्षर च वर्ग का पहला, तीसरा, पाँचवा अक्षर ट वर्ग का पहला, तीसरा, पाँचवा अक्षर त वर्ग का पहला, तीसरा, पाँचवा अक्षर प वर्ग का पहला, तीसरा, पाँचवा अक्षर चारों अन्तस्थ व्यंजन - य र ल व एक उच्छिप्त व्यंजन - ङ याद रखने का आसान तरीका :- वर्ग का 1,3,5 अक्षर - अन्तस्थ - द्विगुण या उच्छिप्त महाप्राण व्यंजन ऐसे व्यंजन जिनको बोलने में अधिक प्रत्यन करना पड़ता है और बोलते समय मुख से अधिक वायु निकलती है। उन्हें महाप्राण व्यंजन (Mahapran) कहते हैं। इनकी संख्या 15 होती है। ख घ छ झ ठ ढ थ ध फ भ ढ़ श ष स ह इसमें क वर्ण का दूसरा, चौथा अक्षर च वर्ण का दूसरा, चौथा अक्षर ट वर्ण का दूसरा, चौथा अक्षर त वर्ण का दूसरा, चौथा अक्षर प वर्ण का दूसरा, चौथा अक्षर चारों उष्म व्यंजन - श ष स ह एक उच्छिप्त व्यंजन - ढ़ याद रखने का आसान तरीका :- वर्ग का 2, 4 अक्षर - उष्म व्यंजन - एक उच्छिप्त व्यंजन देवनागरी लिपि में बहुत से वर्णों में महाप्राण और अल्पप्राण के जोड़े होते हैं जैसे 'क' और 'ख', 'च' और 'छ' और 'ब' और 'भ'। कुछ भाषाएँ हैं, जैसे के तमिल, जिनमें महाप्राण व्यंजन होते ही नहीं और कुछ भाषाएँ ऐसी भी हैं जिनमें महाप्राण और अल्पप्राण व्यंजन दोनों प्रयोग तो होतें हैं लेकिन बोलने वालों को दोनों एक से प्रतीत होतें हैं, जैसे अंग्रेज़ी।[1][2] Show इन्हें भी देखें[संपादित करें]
सन्दर्भ[संपादित करें]
हिंदी वर्णमाला के समस्त वर्णों को व्याकरण में दो भागों में विभक्त किया गया है- स्वर और व्यंजन! स्वर: अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ व्यंजन:- अनुस्वार- अं विसर्ग: अ: क, ख, ग, घ, ङ (क़, ख़, ग़ ) च, छ, ज, झ, ञ (ज़, झ़) ट, ठ, ड, ढ, ण (ड़, ढ़) त, थ, द, ध, न प, फ, ब, भ, म (फ़) य, र, ल, व श, ष, स, ह संयुक्त व्यंजन- क्ष, त्र, ज्ञ, श्र स्वर : जिन वर्णों का उच्चारण करते समय साँस, कण्ठ, तालु आदि स्थानों से बिना रुके हुए निकलती है, उन्हें 'स्वर' कहा जाता है। व्यंजन : जिन वर्णों का उच्चारण करते समय साँस कण्ठ, तालु आदि स्थानों से रुककर निकलती है, उन्हें 'व्यंजन' कहा जाता है। प्राय: व्यंजनों का उच्चारण स्वर की सहायता से किया जाता है। हिन्दी वर्णमाला के समस्त वर्णों को व्याकरण में दो भागों में विभक्त किया गया है- स्वर और व्यंजन। पंचमाक्षर अर्थात वर्णमाला में किसी वर्ग का पाँचवाँ व्यंजन। जैसे- 'ङ', 'ञ', 'ण', 'न', 'म' आदि। आधुनिक हिन्दी में पंचमाक्षरों का प्रयोग बहुत कम हो गया है और इसके स्थान पर अब बिन्दी (ं) का प्रचलन बढ़ गया है। विशेष :- भाषा की सार्थक इकाई वाक्य हैं। वाक्य से छोटी इकाई उपवाक्य , उपवाक्य से छोटी इकाई पदबंध , पदबंध से छोटी इकाई पद , पद से छोटी इकाई अक्षर और अक्षर से छोटी इकाई ध्वनि होती है ध्वनि को वर्ण भी कहते हैं। जैसे :- पुन: = इसमें दो अक्षर हैं – पु , नः । लेकिन इसमें वर्ण ५ हैं = प् , उ , न्, अ, ह् । हिंदी भाषा की सबसे छोटी इकाई ध्वनि होती है। इसी ध्वनि को ही वर्ण कहा जाता है। वर्णों को व्यवस्थित करने के समूह को वर्णमाला कहते हैं। हिन्दी में उच्चारण के आधार पर 52 वर्ण होते हैं। इनमें 11 स्वर और 41 व्यंजन होते हैं। लेखन के आधार पर 56 वर्ण होते हैं इसमें 11 स्वर , 41 व्यंजन तथा 4 संयुक्त व्यंजन होते हैं। वर्णमाला के दो भाग होते हैं :- 1. स्वर 2. व्यंजन 1. स्वर क्या होता है :- जिन वर्णों को स्वतन्त्र रूप से बोला जा सके उसे स्वर कहते हैं। व्यंजन क्या होता है :- जो वर्ण स्वरों की सहायता से बोले जाते हैं उन्हें व्यंजन कहते हैं। हर व्यंजन के उच्चारण में अ स्वर लगा होता है। अ के बिना व्यंजन का उच्चारण नहीं हो सकता। वर्णमाला में कुल 45 व्यंजन होते हैं। क वर्ग : क , ख , ग , घ , ङ (क़, ख़, ग़) च वर्ग : च , छ , ज , झ , ञ (ज़) ट वर्ग : ट , ठ , ड , ढ , ण ( ड़,ढ़ ) त वर्ग : त , थ , द , ध , न प वर्ग : प , फ , ब , भ , म (फ़) अंतस्थ : य , र , ल , व उष्म : श , श़, ष , स , ह संयुक्त व्यंजन : क्ष , त्र , ज्ञ , श्र यह वर्णमाला देवनागरी लिपि में लिखी गई है। देवनागरी लिपि में संस्कृत , मराठी , कोंकणी , नेपाली , मैथिलि भाषाएँ लिखी जाती हैं। हिन्दी वर्णमाला में ॠ , ऌ , ॡ , ळ का प्रयोग नहीं किया जाता है। यह चीनी भाषा का एक चित्रलिपि-आधारित शब्द है, जिसका अर्थ 'किताब' या 'लेख' होता है - यह अक्षर नहीं है और इसका सम्बन्ध किसी ध्वनि से नहीं है - जापान में इसे "काकू" पढ़ा जाता है जबकि चीन में इसे "शू" पढ़ा जाता है किसी एक भाषा या अनेक भाषाओं को लिखने के लिए प्रयुक्त मानक प्रतीकों के क्रमबद्ध समूह को वर्णमाला (वर्णों की माला या समूह) कहते हैं। उदाहरण के लिए देवनागरी की वर्णमाला में अ आ इ ई उ ऊ ऋ ए ऐ ओ औ अं अः क ख ग घ ङ। च छ ज झ ञ। ट ठ ड ढ ण। त थ द ध न। प फ ब भ म। य र ल व। श ष स ह को 'देवनागरी वर्णमाला' कहते हैं और a b c d ... z को रोमन वर्णमाला (रोमन ऐल्फ़बेट) कहते हैं। वर्णमाला इस मान्यता पर आधारित है कि वर्ण, भाषा में आने वाली मूल ध्वनियों (स्वनिम या फ़ोनीम) का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये ध्वनियाँ या तो उन अक्षरों के वर्तमान उच्चारण पर आधारित होती हैं या फिर ऐतिहासिक उच्चारण पर। किन्तु वर्णमाला के अलावा लिखने के अन्य तरीके भी हैं जैसे शब्द-चिह्न (लोगोग्राफी), सिलैबरी आदि। शब्द-चिह्नन में प्रत्येक लिपि चिह्न पूरे-के-पूरे शब्द, रूपिम (morpheme) या सिमान्टिक इकाई को निरूपित करता है। इसी तरह सिलैबरी में प्रत्येक लिपि चिह्न किसी अक्षर (syllable (वर्ण नहीं)) को निरूपित करता है। वर्ण उस मूल ध्वनि को कहते हैं, जिसके खंड या टुकड़े नहीं किये जा सकते। जैसे- अ, ई, व्, च्, क्, ख् इत्यादि। वर्ण भाषा की सबसे छोटी इकाई है, इसके और खंड नहीं किये जा सकते। वर्णमाला- वर्णों के समूह को वर्णमाला कहते हैं। अन्य विधियों में भावचित्रों का इस्तेमाल होता है (जैसा की चीनी भावचित्रों में) या फिर चिह्न शब्दांशों को दर्शाते हैं। इसी तरह, प्राचीन मिस्री भाषा एक चित्रलिपि थी जिसमें किसी वर्णमाला का प्रयोग नहीं होता था क्योंकि उसकी लिपि का हर चिह्न एक शब्द या अवधारणा (Concept) दर्शाता था। प्रकार[संपादित करें]प्रत्येक वर्णमाला में दो प्रकार के वर्ण होते हैं स्वर वर्ण तथा व्यंजन वर्ण। व्यंजनों के साथ स्वर लगाने के भिन्न तरीक़ों के आधार पर वर्णमालाओं को तीन वर्गों में बांटा जाता हैं:[1]
अन्य भाषाओं में[संपादित करें]'वर्णमाला' को अंग्रेजी में 'ऐल्फ़बेट' (alphabet) कहते हैं। अरबी, फ़ारसी, कुर्दी और मध्य पूर्व की अन्य भाषाओं में इसे 'अलिफ़-बेई' या सिर्फ 'अलिफ़-बे' कहते हैं (जो अरबी-फ़ारसी लिपि के पहले दो अक्षरों का नाम है)। इन्हें भी देखें[संपादित करें]
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