द इम्पीरियल बैंक ऑफ इंडिया की स्थापना 28 जनवरी 1921 को हुई थी। उस समय यह भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे पुराना और सबसे बड़ा कमर्शियल बैंक था। इस बैंक की स्थापना जे एम केंस ने की थी। इसे बैंक ऑफ बंगाल, बैंक ऑफ बॉम्बे और बैंक ऑफ मद्रास को मिला कर बनाया गया था, लेकिन यह एक तरह से अंग्रेजों का ही बैंक था। वर्ष 1955 को भारतीय रिजर्व बैंक ने इम्पीरियल बैंक ऑफ इंडिया में कंट्रोलिंग इंस्ट्रस्ट हासिल किया और 30 अप्रेल 1955 को इसका नाम बदल कर स्टेट बैंक ऑफ इंडिया कर दिया। Show
द हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 आजाद भारत के रचे जा रहे नए इतिहास में साल 1955 हिंदू मैरिज एक्ट का भी जन्मदाता बना। पार्लियामेंट ऑफ इंडिया ने वर्ष 1955 को इस एक्ट को मान्यता दी। उस समय हिंदू कोड बिल्स के तीन और कानून लागू हुए - हिंदू सक्सेशन एक्ट 1956, हिंदू माइनॉरिटी एंड गार्डियनशिप एक्ट 1956 और हिंदु एडॉप्शंस एंड मेंटेनेंस एक्ट 1956. द हिंदू मैरिज एक्ट बनाने के पीछे मकसद था हिंदू व अन्य धर्म के लोगों की शादी को कानूनी मान्यता देना। इस कानून को बनाने के लिए सास्त्रिक लॉ को
संशोधित किया गया और इसमें अलगाव व तलाक को भी जोड़ा गया। यह पहले सास्त्रिक लॉ में शामिल नहीं थे। इससे हिंदू धर्म के सभी तबकों के लिए कानून एक समान हो गया। यह कानून हर उस व्यक्ति पर लागू होता है जो- श्री 420 बनी सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्म यह लेख नोएडा के एमिटी लॉ स्कूल की 5वें वर्ष की छात्रा Pooja Kapoor ने लिखा है। उन्होंने प्रावधानों (प्रोविजन्स) और केस कानूनों के साथ मेंटेनेंस की अवधारणा (कॉन्सेप्ट) पर चर्चा की है। इस लेख का अनुवाद Divyansha Saluja द्वारा किया गया है।
परिचय (इंट्रोडक्शन)कानून के दृष्टिकोण (व्यू) से देखा जाये तो मेंटेनेंस की अवधारणा का मतलब यह है की, किसी भी पक्ष द्वारा, दूसरे पक्ष के आवेदन (एप्लीकेशन) पर दी गई वित्तीय (फाइनेंशियल) सहायता, जो केवल उस अधिकार क्षेत्र (ज्यूरिस्डिक्शन) में होने वाले कोर्ट द्वारा पास किये आदेश के माध्यम से दी जाती है और डिक्री के द्वारा इसे दोनों पक्षों पर लागू किया जाता है। इसे अक्सर “एलिमनी” या पति या पत्नी से एक प्रकार की वित्तीय सहायता के रूप में जाना जाता है। दूसरी ओर मेंटेनेंस, वित्तीय खर्चों को वहन करने या जीवनसाथी के बोझ को कम करने का एक कार्य है, जिसका बोझ बढ़ता है और आर्थिक (इकोनॉमिक) स्थिति तलाक की डिक्री पर भौतिक (मटीरिअली) रूप से बदल जाती है। इसके अलावा, मेंटेनेंस देने का मुख्य उद्देश्य एक पक्ष के जीवन स्तर (स्टैंडर्ड) को दूसरे पक्ष के बराबर और सेप्रेशन से पहले की स्थिति के अनुसार बनाए रखना है। यह, डिक्री की कार्यवाही (प्रोसीडिंग) के दौरान या तलाक की डिक्री के बाद दिया जाता है और एलिमनी धारक (होल्डर) की मृत्यु या पुनर्विवाह पर इसका अस्तित्व समाप्त हो जाता है। पति-पत्नी को मेंटेनेंस, कोर्ट द्वारा विभिन्न कारणों के अस्तित्व पर दिया जाता है, जो निम्नानुसार है :
मेंटेनेंस के प्रकारसक्षम (कंपीटेंट) कोर्ट द्वारा कारकों (फैक्टर्स) पर विचार करने पर निम्नलिखित आधार पर मेंटेनेंस प्रदान की जा सकती है-
मेंटेनेंस के अधिकार की पूर्व स्थिति (प्रायर स्टेटस ऑफ़ राइट ऑफ़ मेंटेनेंस)हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 और हिंदू एडॉप्शन एंड मेंटेनेंस एक्ट, 1956, शुरू में मेंटेनेंस देने के प्रावधानों (प्रोविजन्स) से संबंधित थे। हिंदू मैरिज एक्ट वर्ष 1955 में बनाया गया था और यह विशेष रूप से उन व्यक्तियों पर लागू होता है जो सिख, जैन और बौद्ध हैं और वे व्यक्ति जो हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 की धारा 2 के दायरे में आते हैं। साथ ही वे बच्चे जिनके माता-पिता में से कोई एक हिंदू, सिख, जैन या बौद्ध है और वह एक ही धर्म के तहत पले-बढ़े है, तो वह भी हिंदू माने जाएंगे और मेंटेनेंस के हकदार होंगे। पुराने हिंदू कानून के तहत, एक हिंदू पुरुष निम्नलिखित व्यक्तियों को मेंटेनेंस देने के लिए बाध्य था:
इस प्रकार, केवल हिंदू (जिसकी प्रयोज्यता (ऍप्लिकेबिलिटी) को हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 की धारा 2 से देखा जा सकता है) इस एक्ट के अंदर आते हैं। प्राचीन काल से महिलाओं को एक वंचित (डिसएडवांटेज्ड) स्थिति में रखा गया है, जो न केवल समाज में उनकी हिस्सेदारी को कमजोर करता है, बल्कि उनके साथ असमान व्यवहार भी करती है। कोड ऑफ़ क्रिमिनल प्रोसीजर वर्ष 1973 में लागू हुई और इस कोड की धारा 125 के अनुसार, किसी भी धर्म या व्यक्तिगत (पर्सनल) कानूनों के बावजूद पत्नी, बच्चों और माता-पिता को मेंटेनेंस दिया जाता है। इसलिए, इसने सम्मानजनक (डिग्नीफाइड) तरीके से अधिकार देकर महिलाओं को बेहतर स्थिति प्रदान की है। भारत में पत्नी, बच्चों और माता-पिता को मेंटेन करने का दायित्वविभिन्न एक्ट्स और सी.आर.पी.सी के तहत निर्धारित वैधानिक (स्टेट्यूटरी) प्रावधान, भारत में आश्रित (डिपेंडेंट) जीवनसाथी और बच्चों को मेंटेनेंस देने को अनिवार्य बनाते है। पत्नी को मेंटेन करने का दायित्वउक्त एक्ट की धारा 24 और धारा 25, पेंडेंट लाइट और स्थायी मेंटेनेंस की अनुमति देने के प्रावधानों से संबंधित है। डॉ. कुलभूषण बनाम राज कुमारी एवं अन्य के मामले में कोर्ट ने मेंटेनेंस की राशि का निर्णय करते हुए पाया कि, यह प्रत्येक मामले के तथ्यों के आधार पर निर्धारित किया जाता है और घोषित किया जाता है कि यदि कोर्ट मेंटेनेंस की राशि को बढ़ाता या मोल्ड करता है, तो ऐसा निर्णय उचित होगा। इस मामले में यह भी कहा गया कि पत्नी को पति की सैलरी का 25%, मेंटेनेंस के रूप में देना उचित होगा।
दिल्ली हाई कोर्ट ने हाल ही में रानी सेठी बनाम सुनील सेठी के मामले में पत्नी (प्रतिवादी) को अपने पति (याचिकाकर्ता) को 20,000 रुपये और 10,000 रुपये मुकदमेबाजी (लिटिगेशन) खर्च के रूप में एलिमनी देने का आदेश दिया। इसके अलावा याचिकाकर्ता के उपयोग के लिए एक जेन कार देने का आदेश भी दिया गया था।
बच्चों और माता-पिता को मेंटेनेंस देने का दायित्वइसी एक्ट की धारा 26, नाबालिग बच्चों की कस्टडी, मेंटेनेंस और शिक्षा से संबंधित है। कोर्ट, जैसा कि वह आवश्यक और उचित समझे, समय-समय पर इस संबंध में अंतरिम (इंटरिम) आदेश पास कर सकता है और साथ ही इस तरह के आदेश को रद्द करने, निलंबित (सस्पेंड) करने या बदलने की शक्ति रखता है। कोर्ट के आदेश के अनुसार बच्चे के माता-पिता या उनमें से किसी एक पर उसे मेंटेन करने की बाध्यता है। हिंदू एडॉप्शन एंड मेंटेनेंस एक्ट, 1956 की धारा 20, एक हिंदू पुरुष या महिला पर अपने वैध/नाजायज नाबालिग बच्चों और वृद्ध/अशक्त (इन्फर्म) माता-पिता को मेंटेन करने के लिए एक दायित्व निर्धारित (डिटरमिन) करती है, जिसकी राशि निम्नलिखित कारकों पर सक्षम कोर्ट द्वारा निर्धारित की जाती है। -:
सुखजिंदर सिंह सैनी बनाम हरविंदर कौर के मामले में, दिल्ली हाई कोर्ट द्वारा एक बच्चे के लिए दिए जाने वाली मेंटेनेंस के सम्बन्ध में कुछ टिप्पणियां की गई:
धारा 125 सी.आर.पी.सी. के तहत मेंटेनेंसइस धारा के अनुसार फर्स्ट क्लास के मजिस्ट्रेट के पास निम्नलिखित व्यक्ति को मासिक भत्ता (अल्लॉवेंस) प्रदान करने का आदेश देने की शक्ति है:
आदेश का पालन न करने की स्थिति में मजिस्ट्रेट देय (ड्यू) राशि वसूल करने के लिए वारंट जारी कर सकते है। जिस तारीख को राशि देय थी, उस तारीख से एक वर्ष की अवधि के भीतर ऐसी राशि के लिए कोर्ट में एक आवेदन करना अनिवार्य है, अन्यथा वारंट जारी नहीं किया जा सकता है। यदि पत्नी बिना किसी पर्याप्त कारण के अलग रह रही है या अडल्ट्री में रह रही है या वे आपसी सहमति से अलग हो गए हैं, तो ऐसे मामलों में वह भत्ता पाने की हकदार नहीं है। धारा 125 सी.आर.पी.सी. के ऐतिहासिक निर्णयमोहम्मद अहमद खान वी. शाहबानो बेगम– यह एक ऐतिहासिक मामला रहा है जिसमें स्पष्ट रूप से धारा 125 के दायरे को स्पष्ट किया गया था और जो विशेष रूप से मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों के संघर्ष (स्ट्रगल) में एक अत्यंत महत्वपूर्ण मामला साबित हुआ था। मामले के तथ्य इस प्रकार हैं:
कोर्ट के सामने मुख्य मुद्दा यह था कि क्या धारा 125, मुस्लिम महिलाओं पर लागू होती है या नहीं और क्या यूनिफार्म सिविल कोड सभी धर्मों के व्यक्तियों पर लागू होती है या नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने निम्नलिखित कारणों से मोहम्मद अहमद को एलिमनी न देने की याचिका खारिज कर दी:
क्रिटिकल एनालिसिसइस मामले की विभिन्न मुस्लिम समुदायों (कम्युनिटी) ने इस आधार पर आलोचना (क्रिटिसाइज़) की कि यह मुस्लिम कानून और कुरान के प्रावधानों के खिलाफ है। इस प्रकार, वर्ष 1986 में कांग्रेस सरकार ने मुस्लिम वूमेन (प्रोटेक्शन ऑफ़ राइट्स ऑफ़ डाइवोर्स) एक्ट, 1986 को अधिनियमित (इनेक्टिड) करने का निर्णय लिया, जिसका उद्देश्य तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों को सुरक्षा प्रदान करना था। इस एक्ट को लागू करने का अन्य उद्देश्य देश में अन्य महिलाओं की तुलना में मुस्लिम महिलाओं की पिछड़ी स्थिति के कारण था। इस प्रकार, उन्हें अन्य धर्म की महिलाओं के समान दर्जा देने की मांग की थी। इस एक्ट का उद्देश्य पत्नी और उसके बच्चों को पर्याप्त सुरक्षा और अधिकारों की सुरक्षा और उचित मात्रा में मेंटेनेंस प्रदान करना है। यह एक्ट राजीव गांधी द्वारा अधिनियमित किया गया था। निष्कर्ष (कन्क्लूज़न)निर्णयों की अधिकता से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि सी.आर.पी.सी. की धारा 125 में मेंटेनेंस के प्रावधानों का पालन करने के लिए कड़े साधन उपलब्ध हैं। यह न केवल धर्म की बाधा को तोड़ता है जो लोगों को न्याय प्रदान करने में बाधा के रूप में कार्य करता है बल्कि किसी व्यक्ति द्वारा धर्म के बावजूद सभी के लिए कानून और न्याय की समान सुरक्षा प्रदान करता है। धर्म, “न्याय” और “समानता” के सिद्धांतों को दूर नहीं कर सकता। मेंटेनेंस की अवधारणा की व्याख्या विभिन्न वैधानिक प्रावधानों के तहत अलग-अलग तरीकों से की जाती है, फिर भी इसका उद्देश्य समर्थन देना है। इस प्रकार, धारा 125 के माध्यम से कोड ऑफ़ क्रिमिनल प्रोसीजर का उद्देश्य विभिन्न धर्मों का पालन करने वाले व्यक्तियों को एक समान तरीके से एलिमनी प्रदान करना है।
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