18 वर्ष से कम उम्र का व्यक्ति एक बालक है - 18 varsh se kam umr ka vyakti ek baalak hai

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18 वर्ष से कम उम्र का व्यक्ति एक बालक है - 18 varsh se kam umr ka vyakti ek baalak hai

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  • नाबालिग की आयु 16 वर्ष और महिलाओं की सुरक्षा

हाल ही में राज्यसभा ने भी जुवेनाइल जस्टिस विधेयक पर मोहर लगा दी है। राष्ट्रपति की मोहर लगने के बाद यह लागू हो जाएगा। नाबालिग की आयु को 16 कर दिया गया है। अायु घटाने के विरोध में पूर्व सीजेआई केजी बालकृष्णन ने अपना पक्ष रखा था। जानिए, कानून और उसके अन्य पहलुओं के बारे में-

राज्यसभा में पिछले दिनों किशोर न्याय विधेयक 2015 को पारित कर दिया गया। लोकसभा में मई 2015 में यह विधेयक पहले ही पारित हो गया था। राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए इसे भेजा गया है, तत्पश्चात इसकी अधिसूचना जारी हो जाएगी।

दिसंबर 2012 में दिल्ली में ‘निर्भया’ हत्याकांड के बाद नाबालिगों को कड़ी सजा की मांग एक तबके ने उठाई और इस पूरे मामले में उठे जनांदोलन के बाद गठित जस्टिस जेएस वर्मा आयोग ने भारतीय दंड संहिता में महिलाओं से अभद्र व्यवहार तथा दुष्कर्म की व्यापक परिभाषा तथा सजा में बदलाव के कड़े प्रावधानों की सिफारिश की। उनके पास सुझाव आए कि नाबालिग की उम्र 18 वर्ष से 16 वर्ष की जाए, लेकिन आयोग ने ऐसे सभी सुझावों को नकार दिया और साथ ही कहा कि ऐसा करना न्यायोचित नहीं है।

देश में बाल अपराध के संदर्भ में सबसे पहला कानून 1850 में आया, जब प्रशिक्षु कानून में लिखा गया कि 10-18 वर्ष के दोषियों को व्यावसायिक प्रशिक्षण दिया जाएगा। 1897 में इस संदर्भ में रिफॉर्मेट्री स्कूल अधिनियम आया। ब्रिटिश सरकार के काल में 1920 में 10 से 18 साल के बच्चों को वयस्कों की जेल में रखा जाता था। 1960 में बाल अधिकार अधिनियम आया तथा जुवेनाइल जस्टिस एक्ट 1986 में आया। इसमें किशोर की उम्र 16 वर्ष तय की गई थी।

1992 में अंतरराष्ट्रीय बाल समझौते को भारत सरकार ने मंजूर किया था। इस समझौते के तहत अपना दायित्व पूरा करते हुए जुवेनाइल जस्टिस एक्ट 2000 आया। इस कानून के तहत किशोर की उम्र 18 वर्ष की थी। 2015 में राजग की ही सरकार ने इसे फिर बदला। जुवेनाइल जस्टिस विधेयक के अनुसार गंभीर अपराध के मामलों में कोई भी बालक, जिसकी उम्र 16 वर्ष से अधिक हो, उसके संबंध में एक बोर्ड फैसला लेगा। यही बोर्ड इस प्रकार के अपराध करने के संदर्भ में बालक की शारीरिक और मानसिक क्षमताओं की प्रारंभिक जांच करेगा तथा ऐसे अपराध के परिणाम समझने की क्षमताओं तथा वो परिस्थितियां, जिसमें अपराध हुआ है कि पड़ताल करेगा।

मनोचिकित्सकों की राय लेकर आदेश दे सकता है कि ऐसे बच्चे का मुकदमा वयस्क के रूप में चलाया जाए। बोर्ड ही किशोर का मामला सामान्य अदालत में चलाने के निर्देश दे सकता है। 21 की उम्र तक यदि वह दोषी सिद्ध होता है, तो उसे वयस्कों की जेल में भेजा जा सकता है।

आंकड़ों के अनुसार बच्चों की अपराधों में संलिप्तता केवल 1.2 फीसद है। 2004 में लगभग 42 करोड़ बालकों में से 19229 बच्चे गिरफ्तार किए गए तथा 2014 में 44 करोड़ बालकों में से 33562 गिरफ्तार हुए।

गंभीर अपराध से अभिप्राय उन अपराधों से है, जिनकी सजा 7 वर्ष की कैद से अधिक है। इसमें हत्या, अपहरण, डकैती तथा दुष्कर्म शामिल है। गंभीर अपराध पर कड़ी सजा के सिद्धांत से प्रेरित मौजूदा विधेयक के प्रावधान इस तथ्य को नकारते हैं कि अपराध पर रोक सजा की सुनिश्चितता से ही लगाई जा सकती है, न कि सजा की कठोरता से।

संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार समझौता पत्र के तहत 18 वर्ष से कम की उम्र के बालक को किशोर माना जाएगा। 1992 में देश में इसका अनुमोदन किया गया। दुनिया के दूसरे देशों और अमेरिका तथा ब्रिटेन में किशोर की उम्र 18 वर्ष है। दोनों ही देशों के कानून के अनुसार यदि किशोर न्याय बोर्ड यह सही समझता है तभी गंभीर अपराध के मामलों में वयस्क के तौर पर ही मुकदमा चलेगा। ब्रिटेन में यदि नाबालिग के साथ वयस्क भी आरोपी है तो मुकदमा वयस्क की अदालत में चलाया जाएगा। इन दोनों देशों में नाबालिग की अधिकतम सजा उम्रकैद है।

फैक्ट : जर्मनी में 18 वर्ष से अधिक व 21 से कम पर युवा अदालतों में मुकदमा चलता है। फिलीपींस में 21 से कम के दोषियों को कम सजा देते हैं।

पूनम कौशिक
हाईकोर्ट अधिवक्ता, दिल्ली

राजेश चौधरी।

गुड़गांव के रायन इंटरनैशन स्कूल में 7 साल के प्रद्युम्न की हत्या का केस अब नए ट्रैक पर दौड़ रहा है। सीबीआई ने मामले में रायन के ही 11वीं कक्षा के स्टूडेंट को आरोपी बनाया है। हालांकि वह नाबालिग है और उसे कानूनन कई तरह के संरक्षण मिलेंगे। ये संरक्षण जेजे एक्ट के तहत दिए जाएंगे। इसमें नाबालिग (जूवेनाइल) के खिलाफ अलग से मामला चलता है और उसे जूवेनाइल होम यानी बाल सुधार गृह में रखा जाता है। ऐसे बच्चों को सुधारने के लिए जेजे एक्ट के तहत तमाम कानूनी रास्ते बताए गए हैं। आज बच्चों के इन्हीं अधिकारों को समझते हैं और जानते हैं कि उन्हें संविधान और कानून से किस तरह का संरक्षण मिला हुआ है।

18 साल से कम उम्र, तो आरोपी 'बच्चा'

कानूनी जानकार व सीन के मुताबिक, जूवेनाइल जस्टिस एक्ट में प्रावधान है कि नाबालिग को अधिकतम 3 साल तक जूवेनाइल होम (सुधार गृह) में रखा जा सकता है। सीनियर एडवोकेट रमेश गुप्ता बताते हैं कि साल 2000 में यह कानून बना। 2005 में जूवेनाइल जस्टिस केयर एंड प्रोटेक्शन एक्ट में संशोधन कर कहा गया कि अगर किसी शख्स की उम्र 18 साल से कम है तो उसे बच्चा ही कहा जाएगा। उसे पुलिस रिमांड पर नहीं ले सकती। जूवेनाइल का मामला जूवेनाइल जस्टिस बोर्ड को रेफर कर दिया जाता है। ट्रायल जेजे बोर्ड के सामने चलता है।

तभी रिहाई असंभव जब मनोवैज्ञानिक तौर पर हो खतरा

वकील अजय दिग्पाल के मुताबिक, जूवेनाइल जस्टिस एक्ट-12 कहता है कि चाहे मामला जमानती हो या गैर जमानती, दोनों ही स्थिति में नाबालिग को जमानत देनी होती है। तभी जमानत नहीं दी जाती जब यह आशंका हो कि नाबालिग किसी क्रिमिनल गैंग में शामिल हो सकता है या फिर उसे मनोवैज्ञानिक तौर पर खतरा है। संगीन आरोप साबित होने पर भी जूवेनाइल को अधिकतम 3 साल ही बाल सुधार गृह में रखा जा सकता है। भविष्य में उसे सजायाफ्ता भी नहीं कहा जाता। उसकी पहचान भी छुपाई जाती है।

तब सुप्रीम कोर्ट ने जताई थी चिंता

एडवोकेट अमन सरीन बताते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने 6 अप्रैल 2015 को जूवेनाइल द्वारा किए जाने वाले गंभीर अपराध के मामले में चिंता जाहिए की थी। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा था वो उन मामलों में जहां गंभीर अपराध हुए हैं, जेजे एक्ट से संबंधित कानूनी प्रावधान को दोबारा देखे। 16 दिसंबर 2012 के निर्भया गैंगरेप और मर्डर मामले में एक जूवेनाइल भी आरोपी था घटना के बाद से ही इस बात को लेकर बहस चलती रही थी कि 16 से 18 साल के बीच के जो किशोर गंभीर अपराध में लिप्त हैं उनके खिलाफ सेशन कोर्ट में केस चलना चाहिए।

केंद्र सरकार ने कानून में किया बदलाव

हाई कोर्ट के वकील विराग गुप्ता के मुताबिक, केंद्र सरकार ने जनवरी 2016 में जेजे एक्ट में बदलाव कर नोटिफिकेशन जारी कर दिया। नए कानूनी बदलाव के तहत गंभीर अपराध (जैसे हत्या व बलात्कार) में लिप्त बच्चे जिनकी उम्र 16 से 18 साल के बीच हो उनके मामले को जेजे बोर्ड देखेगी। आकलन के बाद मामले को चिल्ड्रेन कोर्ट (कोर्ट ऑफ सेशंस) में भेजा जाएगा। लेकिन मामला चाहे कितना भी गंभीर क्यों न हो जूवेनाइल को फांसी या उम्रकैद की सजा नहीं दी जा सकती।

ये अधिकार भी दिए हैं कानून ने

- बाल मजदूरी कराना जुर्म है। 18 साल से कम उम्र के बच्चों से खतरनाक उद्योग में काम नहीं लिया जा सकता। बचपन बचाओ आंदोलन से जुड़े एडवोकेट भुवन रिभु ने बताया कि देशभर में 14 साल से कम उम्र के बच्चों से ढाबे व घर में भी काम नहीं लिया जा सकता।

- शिक्षा का अधिकार बच्चों का मूल अधिकार है। संविधान के अनुच्छेद 21 ए के तहत प्रावधान है कि 6 से 14 साल के बच्चों को अनिवार्य तौर पर शिक्षा दी जाए।

- नैशनल कमिशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स (एनसीपीसीआर) ने बच्चों के साथ की जाने वाली किसी भी तरह की प्रताड़ना को कॉरपोरल पनिशमेंट माना गया है।

- 18 साल से कम उम्र के बच्चों (लड़का और लड़की) संग किसी भी तरह का सेक्सुअल नेचर का किया गया अपराध पोक्सो कानून के दायरे में आता है।

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नाबालिक की उम्र क्या है?

राज्यसभा में पिछले दिनों किशोर न्याय विधेयक 2015 को पारित कर दिया गया।

बालक की उम्र कितनी होती है?

फ़ॉर्मैट.

किशोर की उम्र कितनी होती है?

किशोर वह व्यक्ति है जो अभी तक वयस्क नहीं हुआ है। अधिकांश राज्यों और कोलंबिया जिले में, 18 वर्ष से कम आयु के व्यक्तियों को किशोर माना जाता है।

क्या 16 साल के बच्चों को वयस्क माना जाना चाहिए?

आप 16 साल की उम्र में मुक्ति के लिए याचिका दायर कर सकते हैं - जिसका अर्थ है कि अपने लिए वयस्कता मान लेना । कानून के अनुसार आप 18 साल के वयस्क हैं, हालांकि हत्या जैसे अपराधों के लिए 16 और 17 साल के बच्चों पर वयस्कों के रूप में स्वत: मुकदमा चलाया जा सकता है।