सूर्य के घोड़ों को क्या नाम दिया गया है? - soory ke ghodon ko kya naam diya gaya hai?

जीवन मंत्र डेस्क. माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को रथ सप्तमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भगवान सूर्य की विशेष पूजा की जाती है। इस बार रथ सप्तमी 1 फरवरी को है। मत्स्य पुराण के 59 वें अध्याय में सप्तमी तिथि पर सूर्य व्रत करने का महत्व बताया गया है। इस तिथि पर सुबह भगवान भास्कर को अर्घ्य दिया जाता है। इसके बाद पूरे दिन श्रद्धा अनुसार व्रत या उपवास किया जाता है। इसके साथ ही भगवान सूर्य की पूजा एवं दान दिया जाता है।

  • श्रीमदभागवत, मत्स्य पुराण, गरुड़ एवं विष्णु पुराण में पाराशर मुनि ने भगवान सूर्य के रथ की लंबाई, उसके पहिए, घोड़े और उनके नाम एवं रथ के चलने की गति बताई गई है। विष्णु पुराण के आठवें अध्याय के दूसरे श्लोक से लेकर 9वें श्लोक तक सूर्य के रथ का वर्णन किया गया है।

विष्णु पुराण के अनुसार भगवान सूर्य और उनके रथ का वर्णन

  • श्रीमदभागवत पुराण में शुकदेव जी कहते हैं कि सूर्य की परिक्रमा का मार्ग मानुषोत्तर पर्वत पर इक्यावन लाख योजन है। वराह मिहीर के ग्रंथ के अनुसार एक योजन में 8 किलोमीटर होते हैं। मेरु पर्वत के पूर्व की ओर इन्द्रपुरी है, दक्षिण की ओर यमपुरी है, पश्चिम की ओर वरुणपुरी है और उत्तर की ओर चन्द्रपुरी है।
  • मेरु पर्वत के चारों ओर सूर्य परिक्रमा करते हैं इसलिए इन पुरियों में कभी दिन, कभी रात्रि, कभी मध्याह्न और कभी मध्यरात्रि होता है। सूर्य भगवान जिस पुरी में उदय होते हैं उसके ठीक सामने अस्त होते प्रतीत होते हैं। जिस पुरी में मध्याह्न होता है उसके ठीक सामने अर्ध रात्रि होती है।

  1. सूर्य का रथ एक मुहूर्त यानी 48 मिनिट में चौंतीस लाख आठ सौ योजन चलता है। इसे किलोमीटर में गिना जाए तो करीब 27,206,400 किमी होते हैं।
  2. इस रथ का संवत्सर नाम का एक पहिया है जिसके बारह अरे (मास), छः नेम, छः ऋतु और तीन चौमासे हैं।
  3. इस रथ की एक धुरी मानुषोत्तर पर्वत पर तथा दूसरा सिरा मेरु पर्वत पर स्थित है।
  4. इस रथ में बैठने का स्थान छत्तीस लाख योजन लम्बा है तथा अरुण नाम के सारथी इसे चलाते हैं।
  5. भगवान सूर्य इस प्रकार नौ करोड़ इक्यावन लाख योजन लंबी परिधि को एक क्षण में दो हजार योजन के हिसाब से तय करते हैं। यानी सूर्य का रथ एक क्षण में करीब 16000 किलोमीटर चलता है
  6. इस रथ का विस्तार नौ हजार योजन है। इससे दोगुना इसका ईषा-दण्ड (जूआ और रथ के बीच का भाग) है।
  7. इसका धुरा डेढ़ करोड़ सात लाख योजन लंबा है, जिसमें पहिया लगा हुआ है।
  8. इस रथ में 7 छंद रूपी घोड़े हैं जिनका नाम गायत्री, वृहति, उष्णिक, जगती, त्रिष्टुप, अनुष्टुप और पंक्ति हैं।

देव सूर्य मंदिर - विश्व का सर्वाधिक पूजे जाने वाली मंदिर जो सूर्य देव का अदभुत और विचित्र दर्शन कराती है।

सूर्य देवता अपने परिचारकों के साथ

सूर्य को वेदों में जगत की आत्मा कहा गया है।[1] समस्त चराचर जगत की आत्मा सूर्य ही है। सूर्य से ही इस पृथ्वी पर जीवन है, यह आज एक सर्वमान्य सत्य है। वैदिक काल में आर्य सूर्य को ही सारे जगत का कर्ता धर्ता मानते थे।[2] सूर्य का शब्दार्थ है सर्व प्रेरक.यह सर्व प्रकाशक, सर्व प्रवर्तक होने से सर्व कल्याणकारी है। ऋग्वेद के देवताओं में सूर्यदेव का महत्वपूर्ण स्थान है। यजुर्वेद ने "चक्षो सूर्यो जायत" कह कर सूर्य को भगवान का नेत्र माना है। छान्दोग्यपनिषद में सूर्य को प्रणव निरूपित कर उनकी ध्यान साधना से पुत्र प्राप्ति का लाभ बताया गया है। ब्रह्मवैर्वत पुराण तो सूर्य को परमात्मा स्वरूप मानता है। प्रसिद्ध गायत्री मंत्र सूर्य परक ही है। सूर्योपनिषद में सूर्य को ही संपूर्ण जगत की उतपत्ति का एक मात्र कारण निरूपित किया गया है। और उन्ही को संपूर्ण जगत की आत्मा तथा ब्रह्म बताया गया है। सूर्योपनिषद की श्रुति के अनुसार संपूर्ण जगत की सृष्टि तथा उसका पालन सूर्य ही करते है। सूर्य ही संपूर्ण जगत की अंतरात्मा हैं। अत: कोई आश्चर्य नहीं कि वैदिक काल से ही भारत में सूर्योपासना का प्रचलन रहा है। पहले यह सूर्योपासना मंत्रों से होती थी। बाद में मूर्ति पूजा का प्रचलन हुआ तो यत्र तत्र सूर्य मन्दिरों का नैर्माण हुआ। भविष्य पुराण में ब्रह्मा विष्णु के मध्य एक संवाद में सूर्य पूजा एवं मन्दिर निर्माण का महत्व समझाया गया है। अनेक पुराणों में यह आख्यान भी मिलता है, कि ऋषि दुर्वासा के शाप से कुष्ठ रोग ग्रस्त श्री कृष्ण पुत्र साम्ब ने सूर्य की आराधना कर इस भयंकर रोग से मुक्ति पायी थी। प्राचीन काल में भगवान सूर्य के अनेक मन्दिर भारत में बने हुए थे। उनमे आज तो कुछ विश्व प्रसिद्ध हैं। वैदिक साहित्य में ही नहीं आयुर्वेद, ज्योतिष, हस्तरेखा शास्त्रों में सूर्य का महत्व प्रतिपादित किया गया है।

एक समय की बात है दैत्यों और देवताओं में बहुत दुश्मनी बढ़ गई। दैत्यों ने सभी देवताओं को स्वर्ग से निकाल दिया और स्वयं स्वर्ग पर शासन करने लगे। देवराज इन्द्र ने ये बात अपनी माता अदिति को बताई। अदिति ने भगवान सूर्य को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान सूर्य ने उनसे वरदान मांगने को कहा। अदिति ने उनसे कहा कि "आप मेरे पुत्र के रूप में उत्पन्न होंवें। सूर्य भगवान ने तथास्तु कह दिया और अंतर्ध्यान हो गए। एक बार अदिति और उनके पति प्रजापति कश्यप में किसी बात को लेकर कलेह हो गई। अदिति उस समय गर्भवती थीं। प्रजापति कश्यप ने उनके गर्भ में पल रहे बालक को मृत कह दिया उसी समय अदिति के गर्भ से एक तेज़ पूंज निकला और भगवान सूर्य प्रकट हुए और कहा कि आप दोनों इस पूंज का प्रतिदिन करें समय आने पर इस पूंज से एक पुत्र रत्न जन्म लेगा और आपके दुखों को दूर करेगा। अदिति और प्रजापति कश्यप ने उस पूंज का पूजन प्रतिदिन किया और उस पूंज से एक पुत्र ने जन्म लिया। प्रजापति कश्यप ने अपने उस पुत्र को विवस्वान् नाम दिया। देवासुर संग्राम में सभी दैत्य विवस्वान् के तेज़ को देखकर भाग खड़े हुए।

ब्रह्मवैवर्त पुराण में वर्णित एक कथा के अनुसार कश्यप प्रजापति के प्रपौत्र माली और सुमाली थे। सुमाली ही रावण का नाना हुआ। दोनों ने महादेव की तपस्या की और उनसे वर मांगा कि वे सदा उनकी रक्षा करेंगे। इस पर महादेव ने उन्हें ये वर दे दिया। एक बार उन्होंने सूर्यदेव को युद्ध के लिए ललकारा। सूर्य उन्हें परास्त करने लगे किन्तु उन दोनों राक्षसों ने महादेव का स्मरण किया तो भगवान शंकर वहां प्रकट हुए और अपने त्रिशूल से सूर्यदेव पर प्रहार किया जिससे सूर्यदेव अपनी चेतना खो बैठे। कश्यप प्रजापति को जब इस बात का पता चला तो अपने पुत्र को चेतनाहीन देखकर उन्होंने भगवान शंकर को श्राप दिया कि "तुमने आज जिस तरह मेरे पुत्र को चेतनाहीन किया है एक दिन तुम अपने इसी त्रिशूल से अपने ही पुत्र का मस्तक काट दोगे।" इसी श्राप ने भगवान शिव से उनके पुत्र गणेश का मनुष्य रूप वाला मस्तक कटवाया।

सूर्य की स्थिति

श्रीमदभागवत पुराण में श्री शुकदेव जी के अनुसार:- भूलोक तथा द्युलोक के मध्य में अन्तरिक्ष लोक है। इस द्युलोक में सूर्य भगवान नक्षत्र तारों के मध्य में विराजमान रह कर तीनों लोकों को प्रकाशित करते हैं। उत्तरायण, दक्षिणायन तथा विषुक्त नामक तीन मार्गों से चलने के कारण कर्क, मकर तथा समान गतियों के छोटे, बड़े तथा समान दिन रात्रि बनाते हैं। जब भगवान सूर्य मेष तथा तुला राशि पर रहते हैं तब दिन रात्रि समान रहते हैं। जब वे वृष, मिथुन, कर्क, सिंह और कन्या राशियों में रहते हैं तब क्रमशः रात्रि एक-एक मास में एक-एक घड़ी बढ़ती जाती है और दिन घटते जाते हैं। जब सूर्य वृश्चिक, मकर, कुम्भ, मीन ओर मेष राशि में रहते हैं तब क्रमशः दिन प्रति मास एक-एक घड़ी बढ़ता जाता है तथा रात्रि कम होती जाती है।

सूर्य के पास

"हे राजन्! सूर्य की परिक्रमा का मार्ग मानसोत्तर पर्वत पर इंक्यावन लाख योजन है। मेरु पर्वत के पूर्व की ओर इन्द्रपुरी है, दक्षिण की ओर यमपुरी है, पश्चिम की ओर वरुणपुरी है और उत्तर की ओर चन्द्रपुरी है। मेरु पर्वत के चारों ओर सूर्य परिक्रमा करते हैं इस लिये इन पुरियों में कभी दिन, कभी रात्रि, कभी मध्याह्न और कभी मध्यरात्रि होता है। सूर्य भगवान जिस पुरी में उदय होते हैं उसके ठीक सामने अस्त होते प्रतीत होते हैं। जिस पुरी में मध्याह्न होता है उसके ठीक सामने अर्ध रात्रि होती है।

सूर्य की चाल

सूर्य भगवान की चाल पन्द्रह घड़ी में सवा सौ करोड़ साढ़े बारह लाख योजन से कुछ अधिक है। उनके साथ-साथ चन्द्रमा तथा अन्य नक्षत्र भी घूमते रहते हैं। सूर्य का रथ एक मुहूर्त (दो घड़ी) में चौंतीस लाख आठ सौ योजन चलता है। इस रथ का संवत्सर नाम का एक पहिया है जिसके बारह अरे (मास), छः नेम, छः ऋतु और तीन चौमासे हैं। इस रथ की एक धुरी मानसोत्तर पर्वत पर तथा दूसरा सिरा मेरु पर्वत पर स्थित है। इस रथ में बैठने का स्थान छत्तीस लाख योजन लम्बा है तथा अरुण नाम के सारथी इसे चलाते हैं। हे राजन्! भगवान भुवन भास्कर इस प्रकार नौ करोड़ इंक्यावन लाख योजन लम्बे परिधि को एक क्षण में दो सहस्त्र योजन के हिसाब से तह करते हैं।"

सूर्य का रथ

इस रथ का विस्तार नौ हजार योजन है। इससे दुगुना इसका ईषा-दण्ड (जूआ और रथ के बीच का भाग) है। इसका धुरा डेड़ करोड़ सात लाख योजन लम्बा है, जिसमें पहिया लगा हुआ है। उस पूर्वाह्न, मध्याह्न और पराह्न रूप तीन नाभि, परिवत्सर आदि पांच अरे और षड ऋतु रूप छः नेमि वाले अक्षस्वरूप संवत्सरात्मक चक्र में सम्पूर्ण कालचक्र स्थित है। सात छन्द इसके घोड़े हैं: गायत्री, वृहति, उष्णिक, जगती, त्रिष्टुप, अनुष्टुप और पंक्ति। इस रथ का दूसरा धुरा साढ़े पैंतालीस सहस्र योजन लम्बा है। इसके दोनों जुओं के परिमाण के तुल्य ही इसके युगार्द्धों (जूओं) का परिमाण है। इनमें से छोटा धुरा उस रथ के जूए के सहित ध्रुव के आधार पर स्थित है और दूसरे धुरे का चक्र मानसोत्तर पर्वत पर स्थित है।

मानसोत्तर पर्वत
  • इस पर्वत के पूर्व में इन्द्र की वस्वौकसारा स्थित है।
  • इस पर्वत के पश्चिम में वरुण की संयमनी स्थित है।
  • इस पर्वत के उत्तर में चंद्रमा की सुखा स्थित है।
  • इस पर्वत के दक्षिण में यम की विभावरी स्थित है।

ज्योतिष शास्त्र में सूर्य[संपादित करें]

भारतीय ज्योतिष में सूर्य को आत्मा का कारक माना गया है। सूर्य से सम्बन्धित नक्षत्र कृतिका उत्तराषाढा और उत्तराफ़ाल्गुनी हैं। यह भचक्र की पांचवीं राशि सिंह का स्वामी है। सूर्य पिता का प्रतिधिनित्व करता है, लकड़ी मिर्च घास हिरन शेर ऊन स्वर्ण आभूषण तांबा आदि का भी कारक है। मन्दिर सुन्दर महल जंगल किला एवं नदी का किनारा इसका निवास स्थान है। शरीर में पेट आंख ह्रदय चेहरा का प्रतिधिनित्व करता है। और इस ग्रह से आंख सिर रक्तचाप गंजापन एवं बुखार संबन्धी बीमारी होती हैं। सूर्य की जाति क्षत्रिय है। शरीर की बनाव सूर्य के अनुसार मानी जाती है। हड्डियों का ढांचा सूर्य के क्षेत्र में आता है। सूर्य का अयन ६ माह का होता है। ६ माह यह दक्षिणायन यानी भूमध्य रेखा के दक्षिण में मकर वृत पर रहता है, और ६ माह यह भूमध्य रेखा के उत्तर में कर्क वृत पर रहता है। इसका रंग केशरिया माना जाता है। धातु तांबा और रत्न माणिक उपरत्न लाडली है। यह पुरुष ग्रह है। इससे आयु की गणना ५० साल मानी जाती है। सूर्य अष्टम मृत्यु स्थान से सम्बन्धित होने पर मौत आग से मानी जाती है। सूर्य सप्तम द्रिष्टि से देखता है। सूर्य की दिशा पूर्व है। सबसे अधिक बली होने पर यह राजा का कारक माना जाता है। सूर्य के मित्र चन्द्र मंगल और गुरु हैं। शत्रु शनि और शुक्र हैं। समान देखने वाला ग्रह बुध है। सूर्य की विंशोत्तरी दशा ६ साल की होती है। सूर्य गेंहू घी पत्थर दवा और माणिक्य पदार्थो पर अपना असर डालता है। पित्त रोग का कारण सूर्य ही है। और वनस्पति जगत में लम्बे पेड का कारक सूर्य है। मेष के १० अंश पर उच्च और तुला के १० अंश पर नीच माना जाता है। सूर्य का भचक्र के अनुसार मूल त्रिकोण सिंह पर ० अंश से लेकर १० अंश तक शक्तिशाली फ़लदायी होता है। सूर्य के देवता भगवान शिव हैं। सूर्य का मौसम गर्मी की ऋतु है। सूर्य के नक्षत्र कृतिका का फ़ारसी नाम सुरैया है। और इस नक्षत्र से शुरु होने वाले नाम ’अ’ ई उ ए अक्षरों से चालू होते हैं। इस नक्षत्र के तारों की संख्या अनेक है। इसका एक दिन में भोगने का समय एक घंटा है।

दे्खें रविवार व्रत कथा

छठ महापर्व

सूर्य का अन्य ग्रहों से आपसी सम्बन्ध[संपादित करें]

  • चन्द्र के साथ इसकी मित्रता है।अमावस्या के दिन यह अपने आगोश में लेलेता है।
  • मंगल भी सूर्य का मित्र है।
  • बुध भी सूर्य का मित्र है तथा हमेशा सूर्य के आसपास घूमा करता है।
  • गुरु बृहस्पति यह सूर्य का परम मित्र है, दोनो के संयोग से जीवात्मा का संयोग माना जाता है। गुरु जीव है तो सूर्य आत्मा.
  • शनि सूर्य का पुत्र है लेकिन दोनो की आपसी दुश्मनी है, जहां से सूर्य की सीमा समाप्त होती है, वहीं से शनि की सीमा चालू हो जाती है।"छाया मर्तण्ड सम्भूतं" के अनुसार सूर्य की पत्नी छाया से शनि की उतपत्ति मानी जाती है। सूर्य और शनि के मिलन से जातक कार्यहीन हो जाता है, सूर्य आत्मा है तो शनि कार्य, आत्मा कोई काम नहीं करती है। इस युति से ही कर्म हीन विरोध देखने को मिलता है।
  • शुक्र रज है सूर्य गर्मी स्त्री जातक और पुरुष जातक के आमने सामने होने पर रज जल जाता है। सूर्य का शत्रु है।
  • राहु सूर्य का दुश्मन है। एक साथ होने पर जातक के पिता को विभिन्न समस्याओं से ग्रसित कर देता है।
  • केतु यह सूर्य से सम है।

सूर्य का अन्य ग्रहों के साथ होने पर ज्योतिष से किया जाने वाला फ़ल कथन[संपादित करें]

  • सूर्य और चन्द्र दोनो के एक साथ होने पर सूर्य को पिता और चन्द्र को यात्रा मानने पर पिता की यात्रा के प्रति कहा जा सकता है। सूर्य राज्य है तो चन्द्र यात्रा , राजकीय यात्रा भी कही जा सकती है। एक संतान की उन्नति जन्म स्थान से बाहर होती है।
  • सूर्य और मंगल के साथ होने पर मंगल शक्ति है अभिमान है, इस प्रकार से पिता शक्तिशाली और प्रभावी होता है।मंगल भाई है तो वह सहयोग करेगा,मंगल रक्त है तो पिता और पुत्र दोनो में रक्त सम्बन्धी बीमारी होती है, ह्रदय रोग भी हो सकता है। दोनो ग्रह १-१२ या १७ में हो तो यह जरूरी हो जाता है। स्त्री चक्र में पति प्रभावी होता है, गुस्सा अधिक होता है, परन्तु आपस में प्रेम भी अधिक होता है,मंगल पति का कारक बन जाता है।
  • सूर्य और बुध में बुध ज्ञानी है, बली होने पर राजदूत जैसे पद मिलते है, पिता पुत्र दोनो ही ज्ञानी होते हैं।समाज में प्रतिष्ठा मिलती है। जातक के अन्दर वासना का भंडार होता है, दोनो मिलकर नकली मंगल का रूप भी धारण करलेता है। पिता के बहन हो और पिता के पास भूमि भी हो, पिता का सम्बन्ध किसी महिला से भी हो।
  • सूर्य और गुरु के साथ होने पर सूर्य आत्मा है,गुरु जीव है। इस प्रकार से यह संयोग एक जीवात्मा संयोग का रूप ले लेता है।जातक का जन्म ईश्वर अंश से हो, मतलब परिवार के किसी पूर्वज ने आकर जन्म लिया हो,जातक में दूसरों की सहायता करने का हमेशा मानस बना रहे, और जातक का यश चारो तरफ़ फ़ैलता रहे, सरकारी क्षेत्रों में जातक को पदवी भी मिले। जातक का पुत्र भी उपरोक्त कार्यों में संलग्न रहे, पिता के पास मंत्री जैसे काम हों, स्त्री चक्र में उसको सभी प्रकार के सुख मिलते रहें, वह आभूषणों आदि से कभी दुखी न रहे, उसे अपने घर और ससुराल में सभी प्रकार के मान सम्मान मिलते रहें.
  • सूर्य और शुक्र के साथ होने पर सूर्य पिता है और शुक्र भवन, वित्त है, अत: पिता के पास वित्त और भवन के साथ सभी प्रकार के भौतिक सुख हों, पुत्र के बारे में भी यह कह सकते हैं।शुक्र रज है और सूर्य गर्मी अत: पत्नी को गर्भपात होते रहें, संतान कम हों,१२ वें या दूसरे भाव में होने पर आंखों की बीमारी हो, एक आंख का भी हो सकता है। ६ या ८ में होने पर जीवन साथी के साथ भी यह हो सकता है। स्त्री चक्र में पत्नी के एक बहिन हो जो जातिका से बडी हो, जातक को राज्य से धन मिलता रहे, सूर्य जातक शुक्र पत्नी की सुन्दरता बहुत हो। शुक्र वीर्य है और सूर्य गर्मी जातक के संतान पैदा नहीं हो। स्त्री की कुन्डली में जातिका को मूत्र सम्बन्धी बीमारी देता है। अस्त शुक्र स्वास्थ्य खराब करता है।
  • सूर्य और शनि के साथ होने पर शनि कर्म है और सूर्य राज्य, अत: जातक के पिता का कार्य सरकारी हो, सूर्य पिता और शनि जातक के जन्म के समय काफ़ी परेशानी हुई हो। पिता के सामने रहने तक पुत्र आलसी हो, पिता और पुत्र के साथ रहने पर उन्नति नहीं हो। वैदिक ज्योतिष में इसे पितृ दोष माना जाता है। अत: जातक को रोजाना गायत्री का जाप २४ या १०८ बार करना चाहिये।
  • सूर्य और राहु के एक साथ होने पर सूचना मिलती है कि जातक के पितामह प्रतिष्ठित व्यक्ति होने चाहिये, एक पुत्र सूर्य अनैतिक राहु हो, कानून विरुद्ध जातक कार्य करता हो, पिता की मौत दुर्घटना में हो, जातक के जन्म के समय में पिता को चोट लगे,जातक को संतान कठिनाई से हो, पिता के किसी भाई को अनिष्ठ हो। शादी में अनबन हो।
  • सूर्य और केतु साथ होने पर पिता और पुत्र दोनों धार्मिक हों, कार्यों में कठिनाई हो, पिता के पास भूमि हो लेकिन किसी काम की नहीं हो।

सूर्य के साथ अन्य ग्रहों के अटल नियम जो कभी असफ़ल नही हुये[संपादित करें]

बारह भावों में सूर्य की स्थिति[संपादित करें]

जीवन में पडने वाले प्रभाव को हथेली में अनामिका उंगली की जड में सूर्य पर्वत और उस पर बनी रेखाओं को देख कर सूर्य की स्थिति का पता लगाया जा सकता है। सूर्य पर्वत पर बनी रेखायें ही सूर्य रेखा या सूर्य रेखायें कहलाती है।अनामिका उंगली के तर्जनी से लम्बी होने की स्थिति में ही व्यक्ति के राजकीय जीवन का फ़ल कथन किया जाता है। उन्नत पर्वत होने पर और पर्वत के मध्य सूक्ष्म गोल बिन्दु होने पर पर्वत के गुलाबी रंग का होने पर प्रतिष्ठ्त पद का कथन किया जाता है। इसी पर्वत के नीचे विवाह रेखा के उदय होने पर विवाह में राजनीति के चलते विवाह टूटने और अनैतिक सम्बन्धों की जानकारी मिलती है।[3]

ज्योतिष विद्याओं में अंक विद्या भी एक महत्वपूर्ण विद्या है। जिसके द्वारा हम थोडे समय में ही प्रश्न कर्ता के उत्तर दे सकते है।[4] अंक विद्या में "१" का अंक सूर्य को प्राप्त हुआ है। जिस तारीख को आपका जन्म हुआ है, उन तारीखों में अगर आपकी जन्म तारीख १,१०,१९,२८, है तो आपका भाग्यांक सूर्य का नम्बर "१" ही माना जायेगा.इसके अलावा जो आपका कार्मिक नम्बर होगा वह जन्म तारीख,महिना, और पूरा सन जोड़ने के बाद जो प्राप्त होगा, साथ ही कुल मिलाकर अकेले नम्बर को जब सामने लायेंगे, और वह नम्बर एक आता है तो कार्मिक नम्बर ही माना जायेगा।[5] जिन लोगों के जन्म तारीख के हिसाब से "१" नम्बर ही आता है उनके नाम अधिकतर ब, म, ट, और द से ही चालू होते देखे गये हैं। अम्क १ शुरुआती नम्बर है, इसके बिना कोई भी अंक चालू नहीं हो सकता है। इस अंक वाला जातक स्वाभिमानी होता है, उसके अन्दर केवल अपने ही अपने लिये सुनने की आदत होती है। जातक के अन्दर ईमानदारी भी होती है, और वह किसी के सामने झुकने के लिये कभी राजी नहीं होता है। वह किसी के अधीन नहीं रहना चाहता है और सभी को अपने अधीन रखना चाहता है। अगर अंक १ वाला जातक अपने ही अंक के अधीन होकर यानी अपने ही अंक की तारीखों में काम करता है तो उसको सफ़लता मिलती चली जाती है। सूर्य प्रधान जातक बहुत तेजस्वी सदगुणी विद्वान उदार स्वभाव दयालु, और मनोबल में आत्मबल से पूर्ण होता है। वह अपने कार्य स्वत: ही करता है किसी के भरोसे रह कर काम करना उसे नहीं आता है। वह सरकारी नौकरी और सरकारी कामकाज के प्रति समर्पित होता है। वह अपने को अल्प समय में ही कुशल प्रसाशक बनालेता है। सूर्य प्रधान जातक में कुछ बुराइयां भी होतीं हैं। जैसे अभिमान,लोभ,अविनय,आलस्य,बाह्य दिखावा,जल्दबाजी,अहंकार, आदि दुर्गुण उसके जीवन में भरे होते हैं। इन दुर्गुणों के कारण उसका विकाश सही तरीके से नहीं हो पाता है। साथ ही अपने दुश्मनो को नहीं पहिचान पाने के कारण उनसे परेशानी ही उठाता रहता है। हर काम में दखल देने की आदत भी जातक में होती है। और सब लोगों के काम के अन्दर टांग अडाने के कारण वह अधिक से अधिक दुश्मनी भी पैदा कर लेता है।

सूर्य ग्रह सम्बन्धी अन्य विवरण[संपादित करें]

सूर्य प्रत्यक्ष देवता है, सम्पूर्ण जगत के नेत्र हैं। इन्ही के द्वारा दिन और रात का सृजन होता है। इनसे अधिक निरन्तर साथ रहने वाला और कोई देवता नहीं है। इन्ही के उदय होने पर सम्पूर्ण जगत का उदय होता है, और इन्ही के अस्त होने पर समस्त जगत सो जाता है। इन्ही के उगने पर लोग अपने घरों के किवाड खोल कर आने वाले का स्वागत करते हैं, और अस्त होने पर अपने घरों के किवाड बन्द कर लेते हैं। सूर्य ही कालचक्र के प्रणेता है। सूर्य से ही दिन रात पल मास पक्ष तथा संवत आदि का विभाजन होता है। सूर्य सम्पूर्ण संसार के प्रकाशक हैं। इनके बिना अन्धकार के अलावा और कुछ नहीं है। सूर्य आत्माकारक ग्रह है, यह राज्य सुख,सत्ता,ऐश्वर्य,वैभव,अधिकार, आदि प्रदान करता है। यह सौरमंडल का प्रथम ग्रह है, कारण इसके बिना उसी प्रकार से हम सौरजगत को नहीं जान सकते थे, जिस प्रकार से माता के द्वारा पैदा नहीं करने पर हम संसार को नहीं जान सकते थे। सूर्य सम्पूर्ण सौर जगत का आधार स्तम्भ है। अर्थात सारा सौर मंडल,ग्रह,उपग्रह,नक्षत्र आदि सभी सूर्य से ही शक्ति पाकर इसके इर्द गिर्द घूमा करते है, यह सिंह राशि का स्वामी है,परमात्मा ने सूर्य को जगत में प्रकाश करने,संचालन करने, अपने तेज से शरीर में ज्योति प्रदान करने, तथा जठराग्नि के रूप में आमाशय में अन्न को पचाने का कार्य सौंपा है।<ज्योतिष< शास्त्र में सूर्य को मस्तिष्क का अधिपति बताया गया है,ब्रह्माण्ड में विद्यमान प्रज्ञा शक्ति और चेतना तरंगों के द्वारा मस्तिष्क की गतिशीलता उर्वरता और सूक्षमता के विकाश और विनाश का कार्य भी सूर्य के द्वारा ही होता है। यह संसार के सभी जीवों द्वारा किये गये सभी कार्यों का साक्षी है। और न्यायाधीश के सामने साक्ष्य प्रस्तुत करने जैसा काम करता है। यह जातक के ह्रदय के अन्दर उचित और अनुचित को बताने का काम करता है, किसी भी अनुचित कार्य को करने के पहले यह जातक को मना करता है, और अंदर की आत्मा से आवाज देता है। साथ ही जान बूझ कर गलत काम करने पर यह ह्रदय और हड्डियों में कम्पन भी प्रदान करता है। गलत काम को रोकने के लिये यह ह्रदय में साहस का संचार भी करता है।

  • जो जातक अपनी शक्ति और अंहकार से चूर होकर जानते हुए भी निन्दनीय कार्य करते हैं, दूसरों का शोषण करते हैं, और माता पिता की सेवा न करके उनको नाना प्रकार के कष्ट देते हैं, सूर्य उनके इस कार्य का भुगतान उसकी विद्या,यश, और धन पर पूर्णत: रोक लगाकर उसे बुद्धि से दीन हीन करके पग पग पर अपमानित करके उसके द्वारा किये गये कर्मों का भोग करवाता है। आंखों की रोशनी का अपने प्रकार से हरण करने के बाद भक्ष्य और अभक्ष्य का भोजन करवाता है, ऊंचे और नीचे स्थानों पर गिराता है, चोट देता है।
  • श्रेष्ठ कार्य करने वालों को सदबुद्धि,विद्या,धन, और यश देकर जगत में नाम देता है, लोगों के अन्दर इज्जत और मान सम्मान देता है। उन्हें उत्तम यश का भागी बना कर भोग करवाता है। जो लोग आध्यात्म में अपना मन लगाते हैं, उनके अन्दर भगवान की छवि का रसस्वादन करवाता है। सूर्य से लाल स्वर्ण रंग की किरणें न मिलें तो कोई भी वनस्पति उत्पन्न नहीं हो सकती है। इन्ही से यह जगत स्थिर रहता है,चेष्टाशील रहता है, और सामने दिखाई देता है।
  • जातक अपना हाथ देख कर अपने बारे में स्वयं निर्णय कर सकता है, यदि सूर्य रेखा हाथ में बिलकुल नहीं है, या मामूली सी है, तो उसके फ़लस्वरूप उसकी विद्या कम होगी, वह जो भी पढेगा वह कुछ कल बाद भूल जायेगा,धनवान धन को नहीं रोक पायेंगे, पिता पुत्र में विवाद होगा, और अगर इस रेखा में द्वीप आदि है तो निश्चित रूप से गलत इल्जाम लगेंगे.अपराध और कोई करेगा और सजा जातक को भुगतनी पडेगी.
  • सूर्य क्रूर ग्रह भी है, और जातक के स्वभाव में तीव्रता देता है। यदि ग्रह तुला राशि में नीच का है तो वह तीव्रता जातक के लिये घातक होगी, दुनियां की कोई औषिधि,यंत्र,जडी,बूटी नहीं है जो इस तीव्रता को कम कर सके। केवल सूर्य मंत्र में ही इतनी शक्ति है, कि जो इस तीव्रता को कम कर सकता है।
  • सूर्य जीव मात्र को प्रकाश देता है। जिन जातकों को सूर्य आत्मप्रकाश नहीं देता है, वे गलत से गलत औ निंदनीय कार्य क बैठते है। और यह भी याद रखना चाहिये कि जो कर्म कर दिया गया है, उसका भुगतान तो करना ही पडेगा.जिन जातकों के हाथ में सूर्य रेखा प्रबल और साफ़ होती है, उन्हे समझना चाहिये कि सूर्य उन्हें पूरा बल दे रहा है। इस प्रकार के जातक कभी गलत और निन्दनीय कार्य नहीं कर सकते हैं। उनका ओज और तेज सराहनीय होता है।

सूर्य ग्रह से प्रदान किये जाने वाले रोग[संपादित करें]

जातक के गल्ती करने और आत्म विश्लेषण के बाद जब निन्दनीय कार्य किये जाते हैं, तो सूर्य उन्हे बीमारियों और अन्य तरीके से प्रताडित करने का काम करता है, सबसे बड़ा रोग निवारण का उपाय है कि किये जाने वाले गलत और निन्दनीय कार्यों के प्रति पश्चाताप, और फ़िर से नहीं करने की कसम, और जब प्रायश्चित कर लिया जाय तो रोगों को निवारण के लिये रत्न,जडी, बूटियां, आदि धारण की जावें, और मंत्रों का नियमित जाप किया जावे.सूर्य ग्रह के द्वारा प्रदान कियेजाने वाले रोग है- सिर दर्द,बुखार, नेत्र विकार,मधुमेह,मोतीझारा,पित्त रोग,हैजा,हिचकी. यदि औषिधि सेवन से भी रोग ना जावे तो समझ लेना कि सूर्य की दशा या अंतर्दशा लगी हुई है। और बिना किसी से पूंछे ही मंत्र जाप,रत्न या जडी बूटी का प्रयोग कर लेना चाहिये। इससे रोग हल्का होगा और ठीक होने लगेगा।

सूर्य ग्रह के रत्न उपरत्न[संपादित करें]

सूर्य ग्रह के रत्नों में माणिक और उपरत्नो में लालडी, तामडा, और महसूरी.पांच रत्ती का रत्न या उपरत्न रविवार को कृत्तिका नक्षत्र में अनामिका उंगली में सोने में धारण करनी चाहिये। इससे इसका दुष्प्रभाव कम होना चालू हो जाता है। और अच्छा रत्न पहिनते ही चालीस प्रतिशत तक फ़ायदा होता देखा गया है। रत्न की विधि विधान पूर्वक उसकी ग्रहानुसार प्राण प्रतिष्ठा अगर नहीं की जाती है, तो वह रत्न प्रभाव नहीं दे सकता है। इसलिये रत्न पहिनने से पहले अर्थात अंगूठी में जडवाने से पहले इसकी प्राण प्रतिष्ठा करलेनी चाहिये। क्योंकि पत्थर तो अपने आप में पत्थर ही है, जिस प्रकार से मूर्तिकार मूर्ति को तो बना देता है, लेकिन जब उसे मन्दिर में स्थापित किया जाता है, तो उसकी विधि विधान पूर्वक प्राण प्रतिष्ठा करने के बाद ही वह मूर्ति अपना असर दे सकती है। इसी प्रकार से अंगूठी में रत्न तभी अपना असर देगा जब उसकी विधि विधान से प्राण प्रतिष्ठा की जायेगी.

सूर्य ग्रह की जडी बूटियां[संपादित करें]

बेल पत्र जो कि शिवजी पर चढाये जाते है, आपको पता होगा, उसकी जड रविवार को हस्त या कृत्तिका नक्षत्र में लाल धागे से पुरुष दाहिने बाजू में और स्त्रियां बायीं बाजू में बांध लें, इस के द्वारा जो रत्न और उपरत्न खरीदने में अस्मर्थ है, उनको भी फ़ायदा होगा।

सूर्य ग्रह के दुष्प्रभाव से बचने के लिये अपने बजन के बराबर के गेंहूं, लाल और पीले मिले हुए रंग के वस्त्र, लाल मिठाई, सोने के रबे, कपिला गाय, गुड और तांबा धातु, श्रद्धा पूर्वक किसी गरीब ब्राहमण को बुलाकर विधि विधान से संकल्प पूर्वक दान करना चाहिये।

सूर्य ग्रह से प्रदत्त व्यापार और नौकरी[संपादित करें]

स्वर्ण का व्यापार, हथियारों का निर्माण, ऊन का व्यापार, पर्वतारोहण प्रशिक्षण, औषधि विक्रय, जंगल की ठेकेदारी, लकड़ी या फ़र्नीचर बेचने का काम, बिजली वाले सामान का व्यापार आदि सूर्य ग्रह की सीमा रेखा में आते है। शनि के साथ मिलकर हार्डवेयर का काम, शुक्र के साथ मिलकर पेन्ट और रंगरोगन का काम, बुध के साथ मिलकर रुपया पैसा भेजने और मंगाने का काम, आदि हैं। सचिव, उच्च अधिकारी, मजिस्ट्रेट, साथ ही प्रबल राजयोग होने पर राष्ट्रपति, प्रधान मंत्री, राज्य मंत्री, संसद सदस्य, इन्जीनियर, न्याय सम्बन्धी कार्य, राजदूत, और व्यवस्थापक आदि के कार्य नौकरी के क्षेत्र में आते हैं। सूर्य की कमजोरी के लिये सूर्य के सामने खडे होकर नित्य सूर्य स्तोत्र, सूर्य गायत्री, सूर्य मंत्र आदि का जाप करना हितकर होता है।

7 सिर वाले घोड़े का नाम क्या है?

क्या है इन सात घोड़ों का इतिहास और ऐसा क्या है इस सात संख्या में खास जो सूर्य देव द्वारा इसका ही चुनाव किया गया। सूर्य भगवान के रथ को संभालने वाले इन सात घोड़ों के नाम हैं - गायत्री, भ्राति, उस्निक, जगति, त्रिस्तप, अनुस्तप और पंक्ति।

सात घोड़े किसका प्रतीक है?

सात घोड़ों वाली तस्वीर लगाने के नियम दौड़ते हुए घोड़ों को प्रगति और शक्ति का प्रतीक माना गया है. जिसकी नजर इन तस्वीरों पर पड़ती है, उसकी कार्यप्रणाली पर इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ता है. व्यापार स्थल पर केबिन में सात दौड़ते हुए घोड़ों की तस्वीर लगानी चाहिए.

सूर्य के अश्वों को क्या नाम दिया गया है?

पुराणों में उल्लेख मिलता है कि सूर्य के रथ में जुते हुए घोड़े के नाम हैं 'गायत्री, वृहति, उष्णिक, जगती, त्रिष्टुप, अनुष्टुप और पंक्ति।

सूर्य देव के रथ में कितने घोड़े हैं?

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सूर्य भगवान सात घोड़ों द्वारा चलाए जा रहे रथ पर सवार होते हैं। वे सात विशाल और मजबूत घोड़ों पर सवार होते हैं और इन घोड़ों की लगाम अरुण देव के हाथों में होती है।

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