रूस की नई आर्थिक नीति क्या है - roos kee naee aarthik neeti kya hai

2016 से संबंधित मुख्य पाठय सामग्री (मोटे शब्दों में लिखी गई पाठय सामग्री किए गए परिवर्तनों को इंगित करती है ।)  

सिंहावलोकन

आधुनिक विश्व और रूसी परिसंघ की विदेश नीति तथा शस्त्रीकरण का आधुनिक रूप

नाभिकीय युद्ध सहित बड़े पैमाने पर युद्ध का खतरा कम होने के कारण देशों और देशों के समूहों के बीच सैन्य शक्ति का संतुलन बदल रहा है। आक्रामक युद्धों को आधुनिकीकृत करने और नए किस्म के शस्त्रों को प्रयोग में लाने संबंधी प्रकरण को दृष्टिगत रखते हुए शस्त्र नियंत्रण क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय संधियों और करारों के जरिए वैश्विक सुरक्षा को सुनिश्चित करने के प्रयास किए जा रहे हैं ।

बल बढ़ते हुए राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक अंतर्विरोधों तथा वैश्विक राजनीतिक व्यवस्था के दायरे में बढ़ती हुई अनिश्चितता के बीच अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में एक महत्वपूर्ण कारक बनता जा रहा है । सैनिक क्षमताओं को विस्तारित एवं उन्नयनकृत करने और नए प्रकार के शस्त्रों को बनाने तथा प्रतिष्ठापित करने संबंधी प्रयासों से रणनीतिक स्थिरता असंतुलित होकर वैश्विक सुरक्षा के लिए खतरा बनती जा रही है जिसे शस्त्र नियंत्रण संधियों और करारों के द्वारा नियंत्रित किए जाने की कोशिश हो रही है । बड़ी ताकतों के बीच नाभिकीय युद्ध सहित उच्च स्तरीय युद्ध से क्षेत्रीय विवादों का जोखिम बढ्ने के साथ-साथ संकटों का आविर्भाव हो रहा है ।

नई पाठय सामग्री में रूस बल के प्रयोग शब्द का उल्लेख किए बिना अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में अनवरत परिवर्तन के लिए बल के महत्व पर ज़ोर देता है । 

यूक्रेन और सीरिया के संकट के कारण रूस और पश्चिमी देशों विशेषकर संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच बड़ी कठोर परिस्थितियां खड़ी हो गई थीं । दोनों पक्षों में रक्षा व्यवस्था का उन्नयन और आधुनिकीकरण हुआ है । रूस ने 2014 और 2015 में अपने अंतर्महाद्वीपीय महाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइलों, पनडुब्बी संचालित बैलिस्टिक मिसाइलों (एसएलवीएम) की संख्या बढ़ाने के साथ-साथ नाभिकीय शस्त्रों से सुसज्जित अपने भारी-भरकम युद्धक विमानों को तैनात किया था । तथापि 2016 में रूस ने आईसीबीएम, एसएलबीएम और भारी बम वर्षकों  में कमी करने के साथ-साथ अपने नाभिकीय वारहैडों में वृद्धि की थी ।

(ख) परिवर्तन       

सीमापार से उत्पन्न नए खतरे और चुनौतियाँ निरंतर बढ़ रही हैं जिसके कारण भौगोलिक आधार पर अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा अनुसूची में समानुपातिक उतार-चढ़ाव आ रहा है । इन चुनौतियों में विध्वंसकारी हथियारों का ध्रुवीकरण और उनकी प्राप्ति के स्रोत, अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद शस्त्रों और युद्धों की बाबत हथियारों की तस्करी के जरिए अनियंत्रित आपूर्ति, लोगों में बढ़ती हुई कट्टरता जिसके फलस्वरूप धार्मिक उग्रवाद उत्पन्न हो रहा है, नस्लीय तनाव, गैर कानूनी पलायन, समुद्रीय डाकाजनी, नशीले ओषधों की तस्करी, भ्रष्टाचार, महामारी, जलवायु परिवर्तन, सूचना और खाद्य सुरक्षा को खतरा आदि शामिल हैं ।

वैश्वीकरण प्रक्रिया से संगठित अंतर्राष्ट्रीय अपराध उत्पन्न हुआ है जिसे सूक्ष्म आर्थिक आयाम के जरिए एक नई दिशा मिलने के साथ-साथ नवीन आपराधिक शक्तियों का आविर्भाव हुआ है । ये शक्तियाँ विश्व के संसाधनों पर पर्याप्त रूप से कब्जा करने के साथ-साथ धीरे-धीरे अपना प्रभाव बढ़ा रही है । वे विभिन्न देशों के सरकारी अभिकरणों, वित्तीय और आर्थिक संसाधनों में घुसपैठ करने के साथ-साथ आतंकवादी और उग्रवादी संगठनों से भी संबंध बनाकर अपना लक्ष्य साध रहें हैं ।

इस्लामिक स्टेट (आईएस) और ऐसे ही समूहों के आविर्भाव के कारण विश्व एक अभूतपूर्व स्तर के वैश्विक खतरे का सामना कर रहा है । इस अनुक्रम में महत्वपूर्ण सवाल यह है कि आईएस और ऐसे ही अन्य समूह अपने ऐसे राज्य की स्थापना कैसे करेंगे और अटलांटिक महासागर से लेकर पाकिस्तान तक अपने प्रभुत्व को कैसे स्थापित करेंगे । रूस चाहता है कि आतंकवाद, उग्रवाद को रोकने तथा कट्टरवादी लोगों से निपटने के लिए बिना किसी राजनीतिक छलकपट अथवा दोहरी नीतियों की बजाय प्रभावी और सुसंगत अंतर्राज्य सहयोग पर आधारित एक वृहद अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद रोधी गठबंधन बनाया जाए ।

पारराष्ट्रीय संगठित आपराधिक शक्तियों से जुड़े केन्द्रों में ज़ोर पकड़ता जा रहा है । इन केन्द्रों में पर्याप्त संसाधन मौजूद हैं जो विभिन्न देशों के सरकारी निकायों में घुसपैठ करके उनके वित्तीय और आर्थिक संगठनों में तोड़फोड़ और आतंकवादी तथा उग्रवादी संगठनों के साथ संबंध स्थापित करने सहित अपने कार्यक्षेत्र को लगातार बढ़ा रहे हैं ।

रूस ने अपनी नई विदेश नीति में अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद को विशेष महत्व दिया है । आतंकवादी समूहों के कार्यकलापों से संबंधित भौगोलिक दृशव्य मानचित्र का निर्धारण किया गया है (जो अटलांटिक महासागर से पाकिस्तान तक है) । अतएव इस खतरे का सामना करने के लिए रूस बिना किसी दोहरी नीति के अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद का सामना करने के प्रयोजनार्थ एक गठबंधन बनाना चाहता है ।

इस संदर्भ में यह उल्लेख करना बेहतर होगा की रूस ने इस मामले में स्वयं अफगानिस्तान, के तालिबान, के साथ बातचीत, चीन के साथ क्रेमलिन संवाद और आतंकवादी समूहों को सुरक्षित पनाह देने में इस्लामाबाद की भूमिका पर गहन नजर रखी है । इस अनुक्रम में रूस ने भारत के विरुद्ध सीमापार के आतंकवाद का भी विरोध किया है । रूस ने अच्छे और बुरे आतंकवाद के बीच भेद करने का कार्य पहले ही शुरू कर दिया है जो 27 दिसंबर 2016 को मास्को में आयोजित चीन और पाकिस्तान के साथ बैठक से स्पष्ट है जिसमें से उन्होंने अफगानिस्तान को बाहर निकाल दिया था । वे अफगानिस्तान में एक नई धुरी स्थापित करना चाहते हैं । रूस ने तर्क देते हुए कहा कि तालिबान तथाकथित इस्लामी स्टेट के खिलाफ युद्ध में आवश्यक भूमिका निभा रहे हैं । इस तथ्य को दृष्टिगत रखते हुए रूस और चीन के यूएनएससी के स्थायी सदस्यों के रूप में तालिबान के कुछ नेताओं को संयुक्त राष्ट्र संघ की पाबंदी सूची से अलग करना चाहते हैं ।

(ग) साइबर क्राइम

सीमापार से उत्पन्न नए खतरे और चुनौतियाँ निरंतर बढ़ रही हैं जिसके कारण भौगोलिक आधार पर अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा अनुसूची में समानुपातिक उतार-चढ़ाव आ रहा है । इन चुनौतियों में विध्वंसकारी हथियारों का ध्रुवीकरण और उनकी प्राप्ति के स्रोत, अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद शस्त्रों और युद्धों की बाबत हथियारों की तस्करी के जरिए अनियंत्रित आपूर्ति, लोगों में बढ़ती हुई कट्टरता जिसके फलस्वरूप धार्मिक उग्रवाद उत्पन्न हो रहा है, नस्लीय तनाव, गैर कानूनी पलायन, समुद्रीय डाकाजनी, नशीले ओषधों की तस्करी, भ्रष्टाचार, महामारी, जलवायु परिवर्तन, सूचना और खाद्य सुरक्षा को खतरा आदि शामिल हैं ।

इस समय विश्व में सीमापार की चुनौतियां और खतरे नरसंहार वाले शस्त्रों के गैरकानूनी समूहीकरण, उनकी प्राप्ति स्रोतों, हथियारों की गैर नियंत्रित तस्करी, गैरकानूनी पालयन, इनसानों की तस्करी, नशीले ओषधों का गैरकानूनी व्यापार, भ्रष्टाचार, समुद्री डाकुओं का आतंक, साइबर क्राइम, वैश्विक गरीबी, जलवायु परिवर्तन, खाद्य समस्या, पर्यावरण, स्वच्छता और महामारी सहित प्रकृति और भौगोलिक कार्यक्षेत्र के परिदृश्य पर तेजी से परिवर्तन हो रहे हैं ।

रूसी इलेक्ट्रोनिक संचार संगठन की स्थापना 2006 में इस आशय के साथ की गई थी ताकि रूस को वैश्विक इंटरनेट अर्थव्यवस्था9 के साथ जोड़ा जा सके । रूस एक विधिसम्मत आईटी उद्योग स्थापित करने की कोशिश कर रहा है जिसके जरिए साइबर अपराधों से निपटने में सहायता मिलेगी । माना जाता है कि कुछ लोग स्केयरवियर, स्पैमिंग के विक्रय और ऑनलाइन बैंकिंग धोखाधड़ी में सहायता देने सहित बड़े पैमाने पर गैरकानूनी कार्यकलापों में संलिप्त है ।

(घ) विदेश नीति अवधारणा की

 भाषा    

रूस की विदेश नीति पारदर्शी, स्पष्ट और सुव्यवस्थित है । यह अनुकूल और अनवरत है । रूस की विदेश नीति हमारे देश की नीति को परिलक्षित करती है जिसके तहत हम अंतर्राष्ट्रीय मामलों और वैश्विक सभ्यता के विकास में शताब्दियों से सारगर्भित भूमिका निभाते रहे हैं ।

रूस वैश्विक और क्षेत्रीय स्तर पर विश्व की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अपने विशेष दायित्वों से पूरी तरह अवगत होने के साथ-साथ आम चुनौतियों का समाधान करने के प्रयोजनार्थ सभी इच्छित देशों के साथ मिलकर कार्य करने के लिए दृढ़ संकल्प है । रूस वैश्विक समस्याओं पर नियंत्रण पाने तथा वैश्विक आधार पर उत्पन्न किसी भी खतरे से निपटने के लिए तैयार है ।

रूस एक सकारात्मक और स्वतंत्र विदेश नीति पर अमल करता है जो उसके राष्ट्रीय हितों और अंतर्राष्ट्रीय कानून की बिना शर्त सम्मान पर आधारित है ।

रूस अपनी ज़िम्मेदारी को पूरी तरह समझता है कि वैश्विक और क्षेत्रीय स्तर पर विश्व में शांति और सुरक्षा को कैसे कायम किया जाए । वह सभी इच्छुक देशों के समक्ष प्रस्तुत चुनौतियों का समाधान करना चाहता है । उसकी विदेश नीति पारदर्शी और स्पष्ट है । रूस की विदेश नीति युक्तियुक्त होने के साथ निरंतरता लिए हुए है । इसकी विदेश नीति उस अभिनव भूमिका को परिलक्षित करती है जो वह अंतर्राष्ट्रीय और वैश्विक सभ्यता के मामले में शताब्दियों से शक्ति संतुलन स्थापित करती आई है ।

वर्ष 2016 की अवधारणा में रूस ने घोषणा की थी कि वह स्वतंत्र विदेश नीति चलाता है जो 2013 की अवधारणा में विद्यमान नहीं थी ।  इसमें शांति समर्थन संबंधी दायित्व और मुक्त जैसे शब्दों का भी प्रयोग किया गया है ताकि अंतर्राष्ट्रीय संबंधों और विदेश नीति को स्पष्ट किया जा सके । 2016 और 2013 की विदेश नीति के सामान्य उद्देश्य पारदर्शी, स्पष्ट, सुसंगत और अनवरत थे ।

वैश्विक परिवर्तनों पर नियंत्रण पाने के लिए रूसी परिसंघ की प्राथमिकताएं

रूस वैश्विक विकास की राह में संधारणीय प्रबंधन कार्यों को विशेष महत्व देता है जिसके तहत वह चाहता है कि विश्व के बड़े देश इसका सामूहिक नेतृत्व करें । इसके बदले में रूस संयुक्त राष्ट्र संघ केंद्रीय  और समन्वयक भूमिका अदा करने के साथ-साथ भौगोलिक और सभ्यतागत परिप्रेक्ष्य में अहम भूमिका निभाएगा । इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के प्रयोजनार्थ ग्रुप-20, ब्रिक्स (ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका), समूह-8, शंघाई सहयोग संगठन, आरआईसी (रूस, भारत और चीन), अन्य संगठनों और मंचों पर अपनी सहभागिता को बढ़ा रहा है ताकि संवाद के जरिए समस्याओं का समाधान किया जा सके ।

रूस वैश्विक विकास की राह में संधारणीय प्रबंधन कार्यों को विशेष महत्व देता है जिसके तहत वह चाहता है कि विश्व के बड़े देश इसका सामूहिक नेतृत्व करें । इसके बदले में रूस संयुक्त राष्ट्र संघ केंद्रीय  और समन्वयक भूमिका अदा करने के साथ-साथ भौगोलिक और सभ्यतागत परिप्रेक्ष्य में अहम भूमिका निभाएगा । इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के प्रयोजनार्थ ग्रुप-20, ब्रिक्स (ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका), समूह-8, शंघाई सहयोग संगठन, आरआईसी (रूस, भारत और चीन), अन्य संगठनों और मंचों पर अपनी सहभागिता को बढ़ा रहा है ताकि संवाद के जरिए समस्याओं का समाधान किया जा सके ।

अपनी नई अवधारणा में रूस ने अपनी कार्यसूची से जी-8 समूह को निकाल दिया है जबकि 2013 की नीति में जी-8 के साथ सहयोग का उल्लेख किया गया है ।

जी-8 से संबंध-विच्छेद होने का कारण यह था कि पश्चिमी देशों में यूक्रेन संकट में रूस की कथित संलिप्तता के बाद उसे ग्रुप से निकाल दिया था ।

अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में कानून का प्रतिपादन

रूस संयुक्त राष्ट्र संघ अधिकार पत्र, यूरोप में (हेलसिंकी, 1 अगस्त 1975) सुरक्षा और सहयोग पर आयोजित सम्मेलन के अंतिम अधिनियम के अनुसार विश्व के देशों के बीच सार्वभौमिक रूप से मान्यताकृत मानदंडों को संशोधित करने के बारे में कतिपय देशों अथवा देशों के समूहों के प्रयासों का प्रतिकार करेगा । आधारभूत अंतर्राष्ट्रीय विधिक मानदंडों और सिद्धांतों यथा शक्ति का गैर प्रयोग अथवा बल की धमकी, अंतर्राष्ट्रीय विवादों का शांतिपूर्ण समाधान, देशों की संप्रभुता और अखंडता का सम्मान, आत्मनिर्णय के संबंध में लोगों को अधिकार और कतिपय देशों के पक्ष में आचरण जैसे मध्यस्थ और राजनीति से प्रेरित व्याख्या के कारण अंतर्राष्ट्रीय शांति, कानून और व्यवस्था को विशेष रूप  से खतरा पैदा हो रहा है । इसी प्रकार अंतर्राष्ट्रीय क़ानूनों का उल्लंघन सृजनात्मक अनुप्रयोग के नाम पर करने से भी जोखिम उत्पन्न हो रहें हैं । इस बात को कदापि स्वीकार नहीं किया जा सकता है कि अंतर्राष्ट्रीय मामलों में सैनिक या अन्यथा हस्तक्षेप किए जाएं । यह भी स्वीकार नहीं किया जा सकता है कि विश्व की संरक्षा के नाम पर देशों की समान संप्रभुता के सिद्धान्त पर आधारित अंतर्राष्ट्रीय कानून को छिन्न-भिन्न किया जाए ।      

रूस संयुक्त राष्ट्र संघ अधिकार पत्र में इंगित अंतर्राष्ट्रीय क़ानूनों के सामान्य रूप से स्वीकृत सिद्धांतों को संशोधित करने की बाबत कुछ देशों अथवा देशों के समूहों द्वारा किए जाने वाले प्रयासों, 24 अक्टूबर 1970 में संयुक्त राष्ट्र संघ के अधिकार पत्र के अनुसार देशों की बीच मैत्रीपूर्ण संबंधों और सहयोग की बाबत अंतर्राष्ट्रीय सिद्धांतों पर की गई घोषणा, 1 अगस्त 1975 को यूरोप में सुरक्षा और सहयोग पर सम्मेलन में किए गए अंतिम फैसले और आधारभूत अंतर्राष्ट्रीय विधिक मानदंडों यथा शक्ति का अनुप्रयोग अथवा बल प्रयोग करने की धमकी, अंतर्राष्ट्रीय विवादों का शांतिपूर्ण निपटान, देशों की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान, लोगों का आत्मनिर्णय संबंधी अधिकार जैसे मामलों का पक्षपातपूर्ण अर्थ निकालने की बाबत कुछ देशों द्वारा राजनीति आधारित एवं पक्षपातपूर्ण कोशिशों, ऐसे मानदंडों के सृजनात्मक अनुप्रयोगों के रूप में अंतर्राष्ट्रीय क़ानूनों के उल्लंघन का हवाला देने की कोशिश, किसी देश में गैर संविधानगत परिवर्तन के उद्देश्य से उसके घरेलू मामलों में दखल देने के प्रयास और आतंकवादी एवं उग्रवादी समूहों जैसे निजी तत्वों द्वारा समर्थन देने का प्रतिकार करेगा ।

गैर सरकारी व्यक्तियों यथा आतंकवादी, उग्रवादी समूहों को सहायता देने सहित गैर संविधानगत शासन परिवर्तन के उद्देश्य के साथ देशों के घरेलू मामलों में हस्तक्षेप करने वाले कुछ देशों अथवा देशों के समूहों द्वारा किए जाने वाले प्रयासों का प्रतीकार किया गया है ।

इससे सीरिया संकट में विरोधी समूहों को सहायता दिए जाने संबंधी अमेरिकी और तुर्की की भूमिका (राजनीतिक और सैनिक) परिलक्षित होती है । इसी प्रकार यूक्रेन में अमेरिका और यूरोपीय संघ की भूमिका के कारण रूस और पश्चिमी देशों के बीच अस्थिरता आई है ।

अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा का सुदृढ़ीकरण 

(क) (बाह्य अंतरिक्ष

बाह्य अंतरिक्ष में शस्त्रों को लगाने के विरुद्ध हस्तक्षेप, संबंधित अंतर्राष्ट्रीय संधि का निष्पादन, बाह्य कार्यकलापों में पारदर्शिता और विश्वास, समान आधार पर संभाव्य मिसाइल चुनौतियों के प्रति एक सामूहिक उत्तरदायी व्यवस्था और रणनीतिक स्थिरता एवं अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा को नष्ट करने वाले किसी देश अथवा देशों के समूह द्वारा मिसाइल रोधी सुरक्षा व्यवस्था कायम करने वाले मध्यस्थ एकपक्षीय कार्यों के खिलाफ खड़े होना ।

रूस अंतर्राष्ट्रीय संधि के जरिए अंतरिक्ष में हथियारों की दौड़ पर रोक लगाने के लिए लगातार कार्य करेगा और एक अंतरिम प्रयास के रूप में सभी देशों का आह्वान करेगा कि वे अंतरिक्ष में हथियारों की दौड़ से बचें ।

बाह्य अंतरिक्ष के मामले में 2013 और 2016 की नीतियों की बाबत गैर सैन्यकरण व्यवस्था के महत्व पर चर्चा की गई है । तथापि नई अवधारणा में एक खंड जोड़ा गया है,  इसमें एक ऐसे अंतरिम उपाय पर ज़ोर दिया गया है जिसके तहत विश्व के देशों से आह्वान किया गया है कि वे अंतरिक्ष में हथियारों की दौड़ में कदम न रखें ।

सितंबर 2015 में संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा की 70वीं बैठक के दौरान अमेरिका ने उस मसौदा संकल्प के खिलाफ वोट डाला था जिसमें रूस11 द्वारा विकसित अन्य 26 मित्र देशों12 का भी विरोध दर्ज किया गया था । 10-12 अक्टूबर 2016 को आयोजित ज्यांगशान मंच की सातवीं बैठक में रूसी जनरल स्टाफ के लेफ्टिनेंट जनरल विक्टर पोजनिखिर ने कहा था कि अमेरिका की बैलिस्टिक मिसाइल रक्षा (बीएमबी) योजना अंतरिक्ष की खोज13करने वाले किसी भी देश के लिए एक खतरा है ।

(ख) नाभिकीय और नरसंहार से जुड़े शस्त्र

ऐसी प्रतिक्रियाओं में सहायता देना जिनके जरिए नाभिकीय एवं विध्वंसकरी अन्य शस्त्रों से मुक्त वातावरण उत्पन्न हो ।

रूस विशेष रूप से मध्यपूर्व में विध्वंसकारी हथियारों और नाभिकीय शस्त्रों से मुक्त क्षेत्रों के लिए सहायता देगा ।

विदेश नीति के नए खंड में रूस पश्चिम एशिया में नाभिकीय हथियारों और विध्वंसकारी शस्त्रों में मुक्त क्षेत्र के सृजन पर ज़ोर देता है ।

पश्चिम एशिया शांति स्थापना और मानव जाती की सुरक्षा के नाम पर बाह्य शक्तियों द्वारा बल के प्रयोग का सामना करता रहा है । इस क्षेत्र के कुछ देश जैसे इराक द्वारा कथित रूप से हथियारों का भंडारण करने जैसे मामले को उदाहरण स्वरूप प्रस्तुत किया जा सकता है । इराक युद्ध के कारण वहां तख्तापलट से क्षेत्र में विप्लव पैदा हुआ है । इस युद्ध से इस क्षेत्र के लीबिया, मिस्र और सीरिया आदि देशों में शासन और प्रजा के बीच टकराव से कठिनाइयां उत्पन्न हुई हैं । इस युद्ध के कारण इस्लामी कट्टरवाद और बुनियादपरस्ती मजबूत होने के साथअंतर्राष्ट्रीयआतंकवाद,अवसंरचनात्मक विध्वंसक कार्यों शरणार्थी संकट और पश्चिमी देशों के विरुद्ध भावनाओं में वृद्धि हुई है ।

(ग) नाभिकीय सुरक्षा           

नाभिकीय सुरक्षा के क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय विधिक कार्यतंत्र को सुदृढ़ करने में सहायता देने के प्रयोजनार्थ और नाभिकीय आतंकवादी हमलों को रोकने के लिए नाभिकीय सुरक्षा और रक्षा की विश्वव्यापी व्यवस्था को सुदृढ़ करना ।

रूस विश्वव्यापी आधार पर मजबूत तकनीकी और वास्तविक नाभिकीय सुरक्षा की हिमायत करने के साथ-साथ यह भी प्रयास करेगा कि अंतर्राष्ट्रीय आण्विक ऊर्जा अभिकरण (आईएईए) सहित प्रासंगिक अंतर्राष्ट्रीय विधिक कार्यतंत्र में सुधार लाकर बुनियादी तौर पर नाभिकीय आतंकवाद को रोके । दूसरी ओर वह सभी देशों के इस अधिकार का भी सम्मान करेगा कि वे अपनी राष्ट्रीय नीतियों को स्वयं बनाएं । रूस का विश्वास है कि विश्व के देश स्वयं ये सुनिश्चित करें कि राष्ट्रीय नाभिकीय सुरक्षा प्रणाली पर्याप्त और विश्वसनीय होने के साथ-साथ उनके ईष्टतम मानदंडों को उनके विवेक के आधार पर निर्धारित करती है । 

रूस नई अवधारणा में नाभिकीय सुरक्षा और नाभिकीय आतंकवाद की रोक के मामले में आईएईए की भूमिका पर ज़ोर देता है । इस अनुक्रम में वह यह भी चाहता है कि विश्व के देश अपनी सुरक्षा संबंधी जिम्मेदारियों को दृष्टिगत रखते हुए अपनी नाभिकीय नीति का स्वयं निर्धारण करें ।

इस मामले को ईरान के नाभिकीय मामले को सामने रखते हुए देखा जा सकता है । ईरान पर अमेरिका द्वारा आर्थिक पाबंदियां लगाई गईं थीं । इस समस्या का समाधान 2015 में बड़ी शक्तियों को साथ मिलाकर किया गया था (मध्यस्थों में रूस भी शामिल था) । इस अनुक्रम में काफी वर्षों के बाद ईरान और रूस एक साथ दिखाई दिए ।

(घ) साइबर सुरक्षा                      

रूस अंतर्राष्ट्रीय सूचना सुरक्षा को सुनिश्चित करने और सूचना क्षेत्र में उत्पन्न देश की सुरक्षा से संबंधित राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक खतरों को रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाएगा ताकि सूचना अनुप्रयोग, संचार प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आतंकवाद और अन्य आपराधिक खतरों से निपटने हेतु ऐसी व्यवस्था की जा सके ताकि उनका प्रयोग ऐसे सैन्य और राजनीतिक प्रयोजनों के लिए नहो जो अंतर्राष्ट्रीय शांति, सुरक्षा और स्थिरता के लिए खतरा बनने के साथ-साथ देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने सहित अंतर्राष्ट्रीय कानून के लिए चुनौती न बने । 

रूस ने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा को सुनिश्चित करने, राज्यों के समक्ष उत्पन्न खतरों का सामना करने, साइबर स्पेस से उत्पन्न आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा के जोखिम का प्रतिकार करने, सूचना और संचार प्रौद्योगिकी के प्रयोग द्वारा आतंकवाद और अन्य आपराधिक खतरों से जूझने, उन सैनिक और राजनीतिक उद्देश्यों के लिए उनके उपयोग का प्रतिकार करने जो देशों के घरेलू मामलों में हस्तक्षेप करने के लिए निष्पादित कार्यों अथवा अंतर्राष्ट्रीय शांति, सुरक्षा और स्थिरता के लिए खतरा बने तत्वों सहित अंतर्राष्ट्रीय कानून का प्रतिरोध करते हैं, के लिए आवश्यक कदम उठा रहा है । रूस संयुक्त राष्ट्र संघ के तत्वाधान में ऐसी युक्तियों पर अमल करना चाहता है जिनके तहत इंटरनेट व्यवस्था को ईमानदारी के साथ और अधिक अंतर्राष्ट्रीय रूप देकर अंतर्राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा के संबंध में जिम्मेदाराना व्यवहार की बाबत सार्वभौमिक नियम बनाए जा सकें ।

वर्ष 2013 की अवधारणा में सूचना सुरक्षा की बाबत केवल पासिंग अभियुक्ति दी गई थी । नीति के नए संस्करण में रूस को उत्पन्न होने वाले साइबर खतरों की किसी भी किस्म के खतरों से बचाने का आह्वान किया गया है ।

अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में हैकिंग के लिए मास्को पर लगाए गए आरोपों के कारण रूस और पश्चिमी देशों विशेष रूप से अमेरिका के बीच खुली दुश्मनी शुरू हो गई है ।

एक जनमत संग्रह प्रक्रिया के दौरान अमेरिका के नागरिकों से यह पूछा गया कि अमेरिका के चुनाव को प्रभावित करने वाले आसूचना अभिकरणों की सूचना सही थी अथवा नहीं । इस संबंध में 24% लोगों का मानना था कि रूस चुनावों को प्रभावित14 कर सकता है ।

रूसी सुरक्षा परिषद के प्रमुख निकोले पारट्रूशेव ने 15 फरवरी को दिए गए साक्षात्कार में कहा था कि रूस साइबर क्षेत्र में सभी देशों पर समान रूप से लागू जिम्मेदाराना व्यवहार से संबंधित सामान्य नियमों पर आधारित एक अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था स्थापित करना चाहता है ।उन्होंने यह भी कहा कि रूस साइबर सुरक्षा खतरों से निपटने के लिए अपने सिस्टम में लगातार सुधार कर रहा है । 

(ङ) आतंकवाद और उसका समाधान

रूस अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद को एक महत्वपूर्ण विदेश नीति के रूप में देखते हुए अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद के खिलाफ लड़ रहा है । वह राजनीतिक और विधिक संसाधनों के वृहद और व्यवस्थित उपयोग, जागरूकता निर्माण और वैश्विक एवं क्षेत्रीय आधार पर आतंकवाद विरोधी सम्मेलनों जैसी प्रतिकारी कार्रवाईयों के जरिए उसके सामाजिक, आर्थिक और विशेष स्रोतों पर ज़ोर दे रहा है ।

रूस विश्व के किसी भी भाग में आतंकवाद के प्रति लगाव अथवा औचित्य की निंदा करता है । वह किसी राजनीतिक, वैचारिक अथवा अन्य उद्देश्यों को प्राप्त करने के प्रयोजनार्थ आतंकवादी संगठनों का सहारा लेने वाले देशों का भी विरोध करता है । वह इस बात को भी मानता है कि आतंकवाद को सैनिक अथवा कानून के प्रवर्तन के जरिए हराया नहीं जा सकता है । रूस अनुसंधान एवं शैक्षणिक संस्थानों, व्यापारिक समुदायों, धार्मिक समूहों, सिविल सोसाइटी संगठनों के साथ सक्रिय और प्रभावी रूप में कार्य करने की हिमायत करता है । रूस का यह भी मानना है कि आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष तब तक प्रभावी नहीं होगा जब तक कि आतंकवाद को वित्तपोषित करने वाले स्रोतों को समाप्त न कर दिया जाए । वह आतंकवादी संगठनों के साथ आर्थिक संबंध रखने वाले व्यक्तियों और कानूनी इकाइयों तथा देशों को चिह्नित करने के लिए बहुपक्षीय अवसंरचनाओं के भीतर शुरू किए गए वित्तपोषक माध्यमों को भी अवरुद्ध करना चाहता है ।

रूस की नई विदेश नीति में आतंकवाद के विरुद्ध किसी भी रूप में आतंकवाद की निंदा जैसे कड़े शब्दों का प्रयोग किया गया है । इस अनुक्रम में इसके किसी भी रूप के औचित्यकरण को भी नकारा गया है । इसके अलावा इस खतरे का सामना करने के लिए नई युक्तियों यथा सिविल सोसाइटी की सहभागिता का भी आह्वान किया गया है । इस नीति में जोड़े गए नए अध्याय में ऐसे राज्यों, व्यक्तियों और उन लोगों की भी पहचान करने पर ज़ोर दिया गया है जो आतंकवादी समूहों की सहायता करते हैं ताकि आतंकवादियों के वित्तपोषण स्रोत को समाप्त किया जा सके ।

यह सवाल बड़ा दिलचस्प है कि रूस अपनी इस नीति को कैसे लागू करेगा क्योंकि उसके पाकिस्तान (तालिबान और अन्य आतंकवादी समूह) और ईरान (हिजबुल्ला, मिलिशिया समूह) जैसे कुछ देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध हैं जो इन समूहों को वित्तीय सहायता देने के साथ-साथ इन क्षेत्रों मेंसक्रिय रहकर अपनी भूमिका को विधिसम्मत बताते हैं ।

रूस चेचन नेता रमजान काजीरोव का भी समर्थन करता है जिसका संबंध चेचन बागी समूह से है ।पुतिन काजीरोव का समर्थन इसलिए भी करते हैं कि वे चेचनिया में इस्लामी कट्टरवादियों के खिलाफ एक अवरोधक का कार्य कर रहे हैं ।

(च) पलायन

रूस अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की बाबत आयोजित सम्मेलनों में भाग लेता है ताकि पलायन प्रक्रिया को विनियमित करने के साथ-साथ पलायनवादी कामगारों के अधिकारों की रक्षा की जा सके ।

रूस उन अंतर्राष्ट्रीय सहयोग कार्यकलापों में भाग लेता है जिनका उद्देश्य पलायन प्रक्रिया को विनियमित करना है जो पलायनकर्ताओं के लिए सर्वाधिक उपयुक्त देश में समेकन कार्यों और व्यवस्थाओं को संवर्द्धित करने सहित प्रभावी कामगारों के अधिकारों को सुनिश्चित करने, नागरिकता प्राप्त करने अथवा अभियोजन से बचने संबंधी शर्तों को विनियत करने के साथ-साथ राजनीतिक उद्देश्य प्राप्त करने के लिए पलायन प्रक्रिया के उपयोग को निरस्त करता है ।

जब सीरिया के संकट के कारण पिछले वर्ष यूरोप में शरणार्थियों की समस्या उत्पन्न हुई तो रूस ने उनके बारे में यूरोप से संयुक्त प्रयासों का आह्वान करते हुए कहा था कि वे उन्हें पनाह और रोजगार प्रदान करें अन्यथा उन्हें सामाजिक तनाव16 की विस्फोटक स्थिति का सामना करना होगा । रूस अमेरिका17 के बाद शरणार्थियों को पनाह देने के मामले में दूसरे नंबर पर आता है । यूरेशिया के लगभग 80% प्रवासी रूस में जाते हैं ।

अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था और पर्यावरण संबंधी सहयोग

 (क) संतुलित आर्थिक व्यवस्था

रूस एक संतुलित और प्रजातांत्रिक वैश्विक व्यापार, आर्थिक, मौद्रिक और वित्तीय व्यवस्था, अंतर्राष्ट्रीय विकास लक्ष्यों को सुग्राही बनाना चाहता है ताकि सामान्य आधुनिक चुनौतियों के जरिए अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक सहयोग को सुदृढ़ करने का मार्ग प्रशस्त हो सके ।

रूस समान एवं स्वतंत्र व्यापार, आर्थिक, मौद्रिक और वित्तीय अवसंरचना के सृजन में सक्रिय योगदान देना चाहता है । वह सतत वैश्विक विकास मार्गदर्शन और संयुक्त राष्ट्र संघ संधारणीय विकास लक्ष्यों का भी इस आशय के साथ विनिर्धारण करना चाहता है कि मौजूदा वैश्विक आर्थिक चुनौतियों का समाधान करने के लिए संयुक्त प्रयास करना जरूरी है जिनके तहत अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिए नए अद्यतन प्रौद्योगिकी के निर्बाध और गैर भेदभाव मूलक आदान-प्रदान को सुनिश्चित करने के साथ-साथ नाभिकीय ऊर्जा के शांतिपूर्ण उपयोग में बहुपक्षीय सहयोग भी करना चाहता है ।

रूस की विदेश नीति के नए संस्करण में रूस ने अंतर्राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था को अपना योगदान देने की बाबत 2013 की नीति में उल्लिखित सक्रिय रूप शब्द की बजाय पूर्ण सक्रियता शब्द का इस्तेमाल किया है। इससे यह भी उल्लेख किया गया है कि रूस नाभिकीय ऊर्जा के प्रयोग में अद्यतन प्रौद्योगिकी और बहुपक्षीय सहयोग के निर्बाध और गैर भेदभाव मूलक कार्य को भी सुनिश्चित करेगा ।

अद्यतन प्रौद्योगिकी के निर्बाध और गैर भेदभाव मूलक आदान-प्रदान पर इसलिए भी ज़ोर दिया गया है क्योंकि वर्ष 2014 में अमेरिका द्वारा आर्थिक पाबन्दियां लगाने के बाद रूस को बड़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था । इस अनुक्रम में रूस सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को भी प्राप्त करना चाहता है ।

(ख) पर्यावरण संबंधी सुरक्षा

रूसी परिसंघ सम्पूर्ण वैश्विक समुदाय के हितार्थ आधुनिक ऊर्जा और संसाधन बचत प्रौद्योगिकियों के उपयोग सहित पृथ्वी पर पर्यावरण संबंधी सुरक्षा को सुनिश्चित करने और जलवायु परिवर्तन का समाधान करने के प्रयोजनार्थ अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ाने पर ज़ोर दे रहा है । रूस की इस क्षेत्र में विद्यमान प्राथमिकताओं में प्राकृतिक पर्यावरण के रक्षार्थ वैज्ञानिक आधार पर और अधिक सहयोग और पर्यावरण संरक्षण संबंधी मुद्दों की बाबत सभी देशों के साथ सहयोग को बढ़ावा देना है ताकि मौजूदा और भावी पीढ़ियों के हितों की रक्षा की जा सके । 

रूसी परिसंघ इस आशय के साथ अंतर्राष्ट्रीय सहयोग बढ़ाने की हिमायत करता है जिसमें पर्यावरण संबंधी सुरक्षा सुनिश्चित होने के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन संबंधी समस्याओं का समाधान किया जा सके । इस संबंध में वह वनों की बढ़ती हुई पारिस्थितिकीय समस्या और उनके संरक्षण के महत्व को दृष्टिगत रखते हुए अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लाभार्थ अत्याधुनिक ऊर्जा और संसाधन बचाव प्रौद्योगिकियों के उपयोग पर भी ज़ोर देता है । 9 मई 1992 को जलवायु परिवर्तन पर आयोजित संयुक्त राष्ट्र संघ कार्य व्यवस्था सम्मेलन में अंगीकृत पेरिस करार में दीर्घकालिक जलवायु नीति की बाबत एक मजबूत विनियामक कार्यतंत्र का प्रस्ताव रखा गया था । इस क्षेत्र में संबंधित प्राथमिकताओं में अनुकूल पर्यावरण को संरक्षित करने के लिए अनुसंधान आधारित व्यवस्था को विकसित करने के लिए और अधिक प्रयास और इस विषय पर सभी देशों के साथ सहयोग को विस्तारित करने पर ज़ोर दिया गया है ताकि मौजूदा और भावी पीढ़ियों की आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके । रूसी परिसंघ पर्यावरण संरक्षण का राजनीतिकरण कने संबंधी प्रयासों का विरोध करने के साथ-साथ इसे प्रकृतिक संसाधनों के मामले में किसी देश की संप्रभुता को प्रतिबंधित करने के बहाने के रूप में लेने और अनुचित प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ाने का भी विरोध करता है ।

अपनी विदेश नीति के नए संस्करण में रूस पारिस्थितिकीय क्षमता के संरक्षण और वृद्धि के महत्व पर ज़ोर देता है । इस अनुक्रम में वह पेरिस करार को महत्व देते हुए अपनी सहमति व्यक्त करने के साथ यह चाहता है कि इस करार के जरिए जलवायु परिवर्तन से संबंधित दीर्घकालिक लक्ष्यों को प्राप्त किया जाए । इस अनुक्रम में यह भी कहा गया है कि मास्को पर्यावरण संबंधी सुरक्षा का राजनीतिकरण करने संबंधी प्रयासों और इसके बहाने देशों के प्राकृतिक संसाधनों पर पाबंदी लगाने अथवा अनुचित प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ावा देने का भी विरोध करता है ।

अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रम्प ने अपने अध्यक्षीय भाषण के दौरान कहा था कि वे अपने देश को पेरिस करार से बाहर कर रहे हैं । यदि दुनिया के बाकी देश भी इसका परित्याग करते हैं तो यह करार निरर्थक हो जाएगा जो रूस के लिए लाभकारी हो सकता है ।

रूस ने अप्रैल 2016 में पेरिस करार पर हस्ताक्षर किए थे तथापि अभी उसे इसका19 परिशोधन करना है । रूसी राष्ट्रपति के सलाहकार जलवायु से संबंधित रूस के विशेष प्रतिनिधि अलेक्ज़ेंडर बैडरिस्की ने कहा था कि रूस दूसरे देशों20 की भांति जलवायु के मामले में पेरिस करार की परिशोधन प्रक्रिया में बेबुनियाद हिस्सा नहीं लेगा ।

रूसी सरकार मौसम संबंधी निर्णय लेने से पूर्व निम्न कार्बन विकास कार्यनीति बनाना चाहती है । इस नीति के तहत दिसंबर 2016 के मध्य तक परिशोधन के आर्थिक, सामाजिक प्रभावों का विश्लेषण करने के बाद में21 निम्न कार्बन विकास के लिए एक कार्य नीति बनाई गई तथापि इस संबंध में ड़ोजियर परिशोधन की बाबत कोई रिपोर्ट नहीं है ।

व्यापारिक समुदाय अधिकांशतः कोयला और स्टील उद्योग व्यापारियों के द्वारा विरोध किए जाने के कारण परिशोधन प्रक्रिया पर संकोच अभिव्यक्त किया गया है । विशेष रूप से साइबेरिया से सुविधाएं प्राप्त करने वाली कंपनियां यह मानती हैं कि शीघ्र परिशोधन और कार्बन संबंधी कर से गंभीर सामाजिक, आर्थिक नुकसान22 होगा ।

परिशोधन के मामले में दूसरा अवरोध यह है कि रूस के पास विसर्जन न्यूनीकरण करने के लिए वित्तपोषण सुविधा नहीं है । अमेरिका द्वारा लगाई गई आर्थिक पाबंदियों के कारण ऊर्जा कौशल व्यवस्था शुरू करने के मामले में रूसी प्रयासों पर रोक लगी है । आर्थिक पाबंदियों के कारण रूसकीविसर्जन न्यूनीकरण परियोजनाओं23 के लिए अंतर्राष्ट्रीय वित्तपोषण संसाधनों तक पहुंच नहीं है तथापि रूस द्वारा पेरिस करार का समर्थन किए जाने से एक बड़ी ताकत के रूप में अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में इसकी ज़िम्मेदारी परिलक्षित होती है ।   

(क) आर्कटिक

रूस की दूसरी प्राथमिकता सागरों और महासागरों के ऐसे लाभकारी उपयोग पर है जिससे आर्थिक विकास के साथ सुरक्षा संबंधी मामला भी सुनिश्चित हो सके । रूसी परिसंघ सागर के पर्यावरण की रक्षा करने और अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद से लड़ने, समुद्र में समुद्री डाकुओं को नियंत्रण में रखने, सुव्यवस्थित रूप से मछलियों को पकड़ने तथा महासागरों से संबंधित वैज्ञानिक अनुसंधान करने सहित सुरक्षित नौवहन के क्षेत्र में प्रासंगिक कार्यों को बढ़ावा दे रहा है । रूस अपने खनिज संसाधनों की खोज और विकास के लिए अतिरिक्त अवसर उपलब्ध कराने के लिए अंतर्राष्ट्रीय कानून और अपनी महाद्वीपीय बाह्य सीमाओं के अनुसार एक व्यवस्थित कार्यतंत्र स्थापित करना चाहता है ।

आर्थिक विकास और सुरक्षा के संबंध में समुद्री मार्गों के बढ़ते हुए महत्व को दृष्टिगत रखते हुए रूसी परिसंघ नौवहन सुरक्षा संबंधी अपेक्षाओं को पूरा करना चाहता है ताकि अंतर्राष्ट्रीय समुद्री कानून के मानदंडो के अनुसार राष्ट्रीय हितों की संरक्षा की जा सके ।इस अनुक्रम में अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद के खिलाफ  संघर्ष, जिम्मेदाराना मछली व्यवसाय के संवर्धन, वैश्विक समुद्रों में अनुसंधान निष्पादन और समुद्रीय पर्यावरण की रक्षा भी शामिल है । रूस अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार अपने महाद्वीपीय दायरे की बाह्य सीमाओं को सुनिश्चित करना चाहता है ताकि खनिजों की खोज और दोहन के लिए और अधिक अवसर प्राप्त हो सकें ।

आर्कटिक क्षेत्र के मामले में पहले शब्द के स्थान पर सीमांकित शब्द का इस्तेमाल किया गया है । वर्ष 2013 में इसके तहत खनिजों की खोज और दोहन के लिए अतिरिक्त अवसर उपलब्ध कराने के प्रयोजनार्थ उसके महाद्वीपीय दायरे की बाह्य सीमाओं को स्थापित करने के बारे में चर्चा की गई है । 2016 की नीति में आर्कटिक क्षेत्र में रूस की स्थिति की सीमाबंदी की गई है ।

रूस आर्कटिक क्षेत्र में अपने स्थिति को मजबूत बनाता रहा है । फरवरी 2016 में रूस ने संयुक्त राष्ट्र संघ में आर्कटिक महासागर पर औपचारिक रूप से अपना दावा प्रस्तुत किया ।  इसके अतिरिक्त उसने उत्तरी ध्रुव क्षेत्र को भी शामिल रखा । यदि किसी देश की भौगोलिक सीमा समुद्र से भी आगे चली जाती है तो वह देश उस क्षेत्र24 से भी आगे पाये जाने वाले खनिज संसाधनों पर दावा कर सकता है । आर्कटिक क्षेत्र विश्व के देशों के बीच रस्साकशी का केंद्र बनता जा रहा है । अमेरिका के भूगर्भीय सर्वेक्षण के द्वारा अनुमान लगाया गया है कि आर्कटिक क्षेत्र में पृथ्वी की गैर दोहित 30% गैर दोहित प्रकृतिक गैस और 13% गैर दोहित तेल के भंडार हैं । यहां पर खनिज पदार्थ भी बड़ी मात्रा में मौजूद हैं । आर्कटिक के सम्पूर्ण क्षेत्र में पाये जाने वाले संसाधन विवाद का विषय बन सकते हैं ।

रूस आर्कटिक क्षेत्र की भौगोलिक रणनीतिक स्थिति के कारण अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करना चाहता है । ज्ञातव्य हो कि आर्कटिक क्षेत्र में यूरोप का इलाका भी शामिल है और रूस पूर्वी एशिया से यूरोप जाने वाले रास्ते की कड़ी है ।

रूसी परिसंघ से संबंधित क्षेत्रीय विदेश नीति की प्राथमिकताएं

(क) आर्कटिक

रूस आर्थिक क्षेत्र में बहुआयामी अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के साथ-साथ शांति और स्थिरता कायम संबंधी नीति का अनुसरण कर रहा है ताकि उसके राष्ट्रीय हितों की संरक्षा हो सके । रूस का विश्वास है कि आर्कटिक महासागर में महाद्वीप बाह्य सीमाओं की परिभाषा करने सहित बातचीत के जरिए सभी क्षेत्रीय समस्याओं का समाधान करने के लिए मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय विधिक कार्यतंत्र पर्याप्त है । महत्वपूर्ण क्षेत्रीय मंच के रूप में आर्थिक परिषद के कार्यतंत्र सहित आर्कटिक देशों के साथ परस्पर बातचीत को प्राथमिकता देने के साथ अन्य बहुपक्षीय मामलों को भी सुलझाना चाहता है । रूस आर्कटिक क्षेत्र में आर्कटिक देशों की आजादी, संप्रभु अधिकारों और आर्कटिक देशों के कार्यक्षेत्र का सम्मान करने वाले गैर आर्कटिक देशों के साथ परस्पर रूप में लाभकारी सहयोग के लिए सदैव तत्पर है । परस्पर लाभकारी आधार पर अंतर्राष्ट्रीय पोत परिवहन के लिए मुक्त आर्कटिक क्षेत्रों में मौजूद रूसी राष्ट्रीय परिवहन लाईन-उत्तरी सागर मार्ग के प्रयोग को क्षेत्र के विकासार्थ अत्यधिक महत्व देता है ।      

रूस ऐसी नीतियों का अनुसरण करता है जिससे आर्थिक क्षेत्र में शांति स्थिरता और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का मार्ग प्रशस्त हो सके । रूसी परिसंघ का मानना है कि मौजूदा अंतर्राष्ट्रीय विधिक कार्यव्यवस्था आर्कटिक महासागर में महाद्वीपीय दायरे की बाह्य सीमाओं को परिभाषित करने सहित बातचीत के जरिए किसी भी क्षेत्रीय समस्या का समाधान करने के लिए पर्याप्त है । रूस यह भी समझता है कि यह विशेष ज़िम्मेदारी है कि वे क्षेत्र के समस्त विकास का मार्ग प्रशस्त करें । इस संबंध में रूस आर्कटिक परिसर, तटीय आर्कटिक पंच और बेरेन्ट यूरोपीय आर्कटिक परिसर के साथ सहयोग बढ़ाने की भी वकालत करता है । रूस ऐसे किसी भी फैसले का विरोध करेगा जिसके तहत विशेष रूप से आर्कटिक क्षेत्र में राजनीतिक और सैनिक टकराव उत्पन्न हो । वह क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के राजनीतिकरण का सामान्यतः विरोध करता है ।

रूस की विदेश नीति अवधारणा से संबंधित नए संस्करण में आर्कटिक क्षेत्र में उसकी अहम भूमिका को स्पष्ट किया गया है जिसके तहत यह कहा गया है कि आर्कटिक क्षेत्र में राजनीतिक और सैनिक टकराव उत्पन्न करने वाले प्रयासों को निष्फल कर दिया जाएगा । उसमें यह भी कहा गया है कि इस क्षेत्र में आम तौर पर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की विशेषता पर ज़ोर दिया जाएगा तथापि क्रेमलिन ने गैर आर्कटिक क्षेत्रों के सह सहयोग का कोई खुलासा नहीं किया है। 2013 की अवधारणा में यह भी कहा गया है कि जब तक गैर आर्कटिक देश रूस की आजादी, संप्रभु अधिकारों और क्षेत्र के आर्कटिक देशों के कार्यक्षेत्र का सम्मान करेंगे तब तक रूस उनके साथ परस्पर रूप से लाभदायक सहयोग करेगा ।

अगस्त 2016 को आयोजित एक बैठक में रूस के रक्षा मंत्री सरजई शोइगू ने उत्तरी बेड़े द्वारा 2020 की सक्रिय योजना के कार्यान्वयन पर विशेष ध्यान दिया है । यह बेड़ा इसलिए बनाया गया है ताकि रूस की उत्तरी सीमाओं की रक्षा की जा सके । इस प्रयोजनार्थ अभिनव क्लोज साइकिल सैन्य नगरों का निर्माण कार्य 2016 में फ्रांज जोजफ लैंड अर्चिप्लेगों और न्यू साइबेरियन द्वीपों पर पूरा कर लिया गया है । सचल, द्रुत प्रक्रिया बलों से संबंधित इकाइयों को सुदूर उत्तर की परिस्थितियों के अनुसार प्रशिक्षित किया जा रहा है । पनडुब्बियों में काम करने वाले कार्मिक बर्फ के नीचे काम करने का प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं । रूस इस क्षेत्र में वायुरक्षा प्रणाली को भी27 मजबूत कर रहा है ।

अंतर्राष्ट्रीय मानवीय सहयोग और मानव अधिकार

रूस मानव अधिकारों और  स्वतंत्रता सहित सार्वभौम मूल्यों के रक्षार्थ प्रतिबद्ध है और मानव अधिकारों और स्वतंत्रता जैसे लक्ष्यों को सुनिश्चित करने के लिए कार्य कर रहा है ।

रूस मानव अधिकारों और आजादी सहित सार्वभौमिक प्रजातांत्रिक मूल्यों के प्रति समर्पित है और वह इस लक्ष्य को मानव अधिकारों और आजादी आदि का सम्मान सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है ताकि मानव अधिकार सिद्धांतों को राजनीतिक दबाव डालने और देशों के आंतरिक मामलों में दखल देने का प्रयास न किया जा सके । रूस यह भी चाहता है कि ऐसे देशों में अस्थिरता पैदा करने और कानूनी तौर पर चुनी गई सरकारों को गिराने के प्रयास न किए जाएं । रूस का मानना है कि सम्पूर्ण विश्व में अधिक मानवीय सामाजिक व्यवस्था कायम हो ताकि आधारभूत मानव अधिकारों और आजादी की रक्षा की जा सके ।

रूस में मानव अधिकारों से संबंधित अभिलेख सकारात्मक नही हैं । रूस इससे इंकार करते हुए कहता है कि यह पश्चिमी देशों का दुष्प्रचार है । 2015 में क्रेमलिन ने सिविल सोसाइटी मीडिया और इंटरनेट पर पाबंदी लगा दी थी । सरकार ने स्वतंत्र आलोचकों को परेशान करने के साथ-साथ उनकी धरपकड़ जारी रखी । एलजीबीटी समुदाय को कष्ट देने वाली कार्रवाई और बढ़ा दी गई । 2013 में रूस की संसद जिसे ड्यूमा कहते हैं ने सर्वसम्मति से कानून पारित किया जिसके तहत अल्प वयस्कों के बीच समलैंगिक दुष्प्रचार से संबंधित इश्तेहारों के वितरण पर कठोर अर्थदण्ड और कैद का प्रावधान किया गया है । रूस पारंपरिक पारिवारिक मूल्यों पर ज़ोर देता है जिसके कारण ऐसे मामलों से संबंधित उल्लंघन कार्यों में वृद्धि हुई है । अक्टूबर 2016 में रूस महासभा के मतदान द्वारा सयुंक्त राष्ट्र संघ मानव अधिकार परिषद का चुनाव हार गया । मानव अधिकार निगरानी और शरणार्थी अंतर्राष्ट्रीय संगठन सहित 80 गैर सरकारी संगठनों द्वारा हस्ताक्षरित याचिका के जरिए मतदान करने वाले देशों से कहा गया है कि क्या रूस सीरिया28 में अपने हस्तक्षेप के कारण संयुक्त राष्ट्र संघ के सर्वोच्च शासकीय मानव अधिकार संस्थान में भाग लेने का अधिकार रखता है । 

(क) मानव अधिकार

रूसी परिसंघ से संबंधित विदेश नीति कार्यकलापों के लिए सूचनागत सहायता

रूसी परिसंघ की विदेश नीति से संबंधित गतिविधियों का एक महत्वपूर्ण पहलु यह है कि वह अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं की बाबत अपने मन्तव्य के बारे में विश्व को सही सूचना देने के साथ-साथ अपनी विदेश नीति पहलों, कार्यों, योजनाओं और रूसी संस्कृति और विज्ञान के बारे में सही सूचना दे ।

महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय मामलों पर रूस की बाबत गैर पक्षपातपूर्ण सूचना अंतर्राष्ट्रीय समुदाय तक पहुंचाने के लिए उसकी विदेश नीति पहलों, प्रयासों, प्रक्रियाओं, उसके सामाजिक, आर्थिक विकास और सांस्कृतिक एवं अनुसंधानगत उपलब्धियां रूसी परिसंघ की विदेश नीति संबंधी गतिविधियों की एक महत्वपूर्ण आधारशिला है । वैश्विक राजनीति और अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा पर विदेशी विशेषज्ञों के साथ संवाद और रूस के शिक्षाविदों तथा विशेषज्ञों की प्रतिभागिता सार्वजनिक कूटनीतिज्ञ विकास के क्षेत्रों मे से एक है । 

नई विदेश नीति की अवधारणा से जुड़े नए संस्करण में क्षेत्रीय, वैश्विक मुद्दों और उनसे संबंधित लक्ष्यों के बारे में पक्षपात रहित सूचना प्रसारित करने की बाबत चर्चा की गई है ।

इसके तहत वैश्विक राजनीति में विदेशी विशेषज्ञों  के साथ संवाद में रूस के शिक्षाविदों और विशेषज्ञों की प्रतिभागिता का भी जिक्र किया गया है । इस नीति के तहत अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा सार्वजनिक कूटनीतिक विकास का एक महत्वपूर्ण अंश है जिसका 2013 की अवधारणा में उल्लेख नहीं किया गया है ।

वास्तव में रूस की विदेश नीति के नए रूपांतर को पढ़ने के बाद यह पता चलता है कि विदेशी विशेषज्ञों के साथ रूस के शिक्षाविदों और विशेषज्ञों की संख्या में इजाफा होना चाहिए क्योंकि रूस अपने सार्वजनिक कूटनीतिक विकास का मार्ग प्रशस्त करने के लिए अपने विशेषज्ञता दायरे को सुदृढ़ कर रहा है । 

रूसी परिसंघ से संबंधित क्षेत्रीय विदेशी नीतिगत प्राथमिकताएं

(क) यूरोपीय संघ और यूरेशिया

रूस यूरोपीय संघ के साथ अपने प्रमुख व्यापारिक और आर्थिक साथी एवं महत्वपूर्ण विदेश नीति साझेदार के रूप में सहयोग को बढ़ाना चाहता है । इसके साथ-साथ वह सांस्कृतिक पक्षों सहित अर्थव्यवस्था, सुरक्षा और न्याय, बाह्य सुरक्षा, वैज्ञानिक अनुसंधान एवं शिक्षा के चार सामान्य क्षेत्रों समेत परस्पर वार्तालाप का रास्ता खोलना चाहता है ।बराबरी और परस्पर लाभ के सिद्धांतों पर आधारित रणनीतिक भागीदारी के मामले में एक नए रूसी-यूरोपीय संघ कार्यतंत्र करार पर हस्ताक्षर करने का इच्छुक है । रूस परस्पर रूप में लाभकारी ऊर्जा सहयोग के आधुनिकीकरण और संवर्धन के लिए भागीदारी को रूसी-यूरोपीय संघ संयुक्त पहल के कार्यान्वयन में सफल सहयोग देगा जिसका उद्देश्य यह है कि मौजूदा द्विपक्षीय और बहुपक्षीय संधि दायित्वों का कड़ाई से पालन करते हुए एक समेकित यूरोपीय ऊर्जा प्रणाली का सृजन किया जाए । इस क्षेत्र में एक दीर्घकालिक लक्ष्य यह भी है कि एक सामान्य रूसी यूरोपीय संघ मंडी स्थापित की जाए ।  

यूरोपीय संघ रूस का एक महत्वपूर्ण व्यापारिक, आर्थिक और विदेश नीतिगत भागीदार है । रूसी परिसंघ समानता और एक दूसरे के हितों की रक्षा संबंधी सिद्धांतों के आधार पर यूरोपीय संघ के देशों के साथ रचनात्मक, स्थिर और ठोस सहयोग चाहता है । इसके अलावा यूरोपीय संघ के साथ संबंधों को विकसित करने का अर्थ यह भी है कि विधिक संविदात्मक कार्यतंत्र में सुधार लाने के साथ-साथ संस्थागत सहयोग कार्यतंत्र को भी व्यवस्थित किया जाए ताकि ऊर्जा क्षेत्र सहित परस्पर लाभकारी कार्य और भागीदारी संबंधों का यथा संभव बेहतर मार्ग निर्धारित हो सके । यूरोपीय संघ के साथ अपने संबंधों में रूस की रणनीतिक प्राथमिकता एक सामान्य आर्थिक और मानवीय मूल्यों  को स्थापित करना है जो यूरोप और यूरेशिया की समेकन प्रक्रियाओं से जुड़े हितों को जोड़कर अटलांटिक से लेकर पेसिफिक तक विस्तारित होंगे  ताकि    यूरोपीय महाद्वीप में बंटवारे की प्रक्रिया को रोका जा सके । 

उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो), यूरोपीय संघ (ईयू) और संयुक्त राज्य के प्रति रूस का लहजा आरोपात्मक है । इसमें कुछ ऐसे अंश भी हैं जिन्हें 2013 की नीति में शामिल किया गया है ।

यूरोपीय संघ के मामले में द्विपक्षीय संबंधों को लेकर 2013 की अवधारणा से एक नई पंक्ति शामिल की गई है जिसके तहत यूरोपीय और यूरेशियन समेकित परियोजनाओं के एकीकरण की बाबत उल्लेख किया गया है ।रूस यूरोप की ऊर्जा मंडियों पर अपना वर्चस्व बनाना चाहता है । रूस एक ऐसे विस्तृत यूरोप की परिकल्पना करता है जिसका विस्तार लिस्बन से लेकर व्लोडीवोस्टक तक होगा । रूस चाहता है कि उसके और यूरोप के बीच आर्थिक, प्रौद्योगिक, नवाचारी और व्यापारिक संबंध आगे बढ़ें । विस्तृत यूरोप की अवधारणा के तहत यूरेशिया के मामले में रूस द्वारा सुरक्षा प्रदान करने संबंधी दायित्व एक बड़ी हद तक बदल जाता है । इस प्रकरण को दृष्टिगत रखते हुए वह क्षेत्र के महत्वपूर्ण देशों में शुमार होने लगता है । दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि वह यूरोप और एशिया29 के बीच एक पुल का कार्य करता है । यूरोपीय संघ के साथ सहयोग बढ़ाकर रूस यह भी अपेक्षा करता है कि उसके नागरिकों को यूरोपीय संघ में वीजा रहित जाने की सुविधा प्राप्त हो ।

(ख) उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) और यूरोपीय संघ

रूस ने यूरोपीय संघ और नाटो के प्रसार का कोई उल्लेख नहीं किया है । इस प्रसार के कारण यूरोपीय अटलांटिक क्षेत्र में समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं ।

यूरोपीय अटलांटिक क्षेत्र में पिछले 25 वर्षों से संचित क्रमबद्ध समस्याएं उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) और यूरोपीय संघ द्वारा निष्पादित भौगोलिक राजनीतिक विस्तार कार्यों के द्वारा परिलक्षित हैं जिसके तहत सामान्य यूरोपीय सुरक्षा और सहयोग कार्यव्यवस्था के संबंध में राजनीतिक वक्तव्यों के कार्यान्वयन कार्य को न शुरू करना भी शामिल है जिसका नतीजा यह निकला कि रूस और पश्चिमी देशों के बीच संबंधों में गंभीर संकट उत्पन्न हुआ । रूस के खिलाफ संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके मित्र देशों द्वारा अंगीकृत निस्तारण नीति, राजनीतिक, आर्थिक, सूचनागत और अन्य दबाव एक ऐसी श्रंखला है जिसका सामना रूस को करना पड़ रहा है जिसके कारण न केवल क्षेत्रीय बल्कि वैश्विक स्थिरता को भी खतरा उत्पन्न हो रहा है । इससे सभी पक्षों को दूरगामी नुकसान पहुंचेगा । इस व्यवस्था से पारगमन राष्ट्रीय चुनौतियों और विश्व के समक्ष मौजूद खतरों का समाधान करने और उससे संबंधित सहयोग की बढ़ती हुई आवश्यकताओं पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा ।

रूस, मास्को के हित क्षेत्रों में किसी भी प्रकार की दखलंदाजी को विप्लवकारी मानता है । 2008 में जॉर्जिया का युद्ध और 2014 में यूक्रेन का संकट इस संदर्भ में 21वीं शताब्दी के उदाहरण हैं ।

रूस यूरोपीय संघ की कब्जाने वाली प्रक्रिया के परिप्रेक्ष्य में यूक्रेन संकट के बाद विशेष रूप से व्यथित रहा । रूस का मानना है कि नाटो और यूरोपीय संघ ऐसे संगठन हैं जो उसके राष्ट्रीय हितों में रुकावट बन रहे हैं ।

(ग) गैर सैनिक गठबंधन

कोई उल्लेख नहीं किया गया है ।

रूस उन यूरोपीय देशों की इच्छा का सम्मान करता है जो सैनिक गठबंधनों के सदस्य नहीं हैं ।ये देश यूरोप में सही मायनो में स्थिरता और सुरक्षा सुनिश्चित करने में विशेष सहयोग दे रहे हैं । रूस इन देशों के साथ रचनात्मक बहुआयामी सहयोग करना चाहता है ।

उन यूरोपीय देशों (ऑस्ट्रिया, साइप्रस, फ़िनलैंड, आयरलैंड, माल्टा और स्वीडन) के संबंध में एक नया खंड शामिल किया गया है । उपर्युक्त देश किसी सैनिक गठबंधन के सदस्य नहीं हैं । रूस ने कहा था कि वह इन देशों का सम्मान करता है । उसने कहा कि वह उनके साथ रचनात्मक बहुआयामी सहयोग करना चाहता है ।

(घ) संयुक्त राज्य अमेरिका

रूस रणनीतिक, आक्रामक और बचाव युद्ध के बीच निर्बाध संबंध जोड़ने, नाभिकीय निशस्त्रीकरण को बहुपक्षीय प्रक्रिया में बदलने के साथ-साथ संयुक्त राज्य अमेरिका से शस्त्र नियंत्रण के विषय पर रचनात्मक सहयोग करता है । रूस यह समझता है कि रणनीतिक आक्रामक शस्त्रागार में जांच वैश्विक रणनीतिक स्थिरता को प्रभावित करने वाले सभी कारकों को ध्यान में रखते हुए की जाए । संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा वैश्विक मिसाइल रक्षा प्रणाली बनाए जाने के संबंध में निरंतर ऐसी विधिक गारंटी की मांग कर रहा है कि उसका प्रयोग रूस की नाभिकीय प्रतिरोध शक्तियों के विरुद्ध न किया जाए ।

रूस रणनीतिक, आक्रामक और रक्षात्मक युद्ध तथा बहुपक्षीय नाभिकीय निरस्त्रीकरण के लिए अमेरिका के साथ शस्त्रों पर नियंत्रण पाने के मामलों में रचनात्मक सहयोग की हिमायत करता है । रूसी परिसंघ का मानना है कि रणनीतिक, आक्रामक शस्त्रों में तभी कमी की जा सकती है जबकि बिना किसी अपराध के वैश्विक रणनीतिक स्थिरता को प्रभावित करने वाले सभी कारकों को दृष्टिगत रखा जाए । रूस का विचार है कि अमेरिका द्वारा विकसित वैश्विक मिसाइल रक्षा प्रणाली उसकी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है तथा इस संबंध में उसके पास यह अधिकार सुरक्षित है कि वह अपेक्षित जबावी कार्रवाई करे ।

अमेरिका में नया नेतृत्व आने के बाद पुतिन और ट्रम्प के बीच कई वार्तालाप हुए । आशा है कि दोनों देशों के बीच समान आधार पर रचनात्मक संबंध स्थापित होंगे तथापि नए राष्ट्रपति ट्रम्प के नेतृत्व में अमेरिका को यह अपेक्षा नहीं करनी चाहिए कि रूस अपने नाभिकीय हथियारों में कोई कटौती करेगा ।

वास्तव में रूस किसी भी सैन्य विवाद के खिलाफ नाभिकीय क्षमता को अवरोधक के रूप में मानता है ।

(ङ) एससीओ

रूस का विचार है कि एपीआर में क्षेत्रीय संगठनों के भागीदार नेटवर्क को सृजित एवं संवर्धित करे । इस संबंध में एससीओ के क्षेत्रीय तथा वैश्विक मामलों में अपनी भूमिका को बढ़ाने पर विशेष ज़ोर दिया गया है जिसका क्षेत्र में स्थिति पर रचनात्मक प्रभाव काफी हद तक बढ़ गया है । 

रूस क्षेत्रीय और वैश्विक मामलों में एससीओ की भूमिका को और अधिक सुदृढ़ करने, उसकी सदस्यता को विस्तारित करने, एससीओ की राजनीतिक और आर्थिक क्षमता को बढ़ाने, मध्य एशिया में परस्पर विश्वास और भागीदारी को समेकित करते हुए उसके दायरे के भीतर व्यवहारिक कार्यों को कार्यान्वित करने और एससीओ के सदस्य देशों के साथ सहयोग को बढ़ावा देने तथा उनकी  भागेदारी के साथ परस्पर विचार-विमर्श को बहुत महत्व देता है । 

भारत और पाकिस्तान को एससीओ की अध्यक्षता की पेशकश की गई है । नई दिल्ली में सदस्यता से संबंधित सभी औपचारिकताओं को पूरा कर लिया गया है । आशा है कि वह शीघ्र ही इसका सदस्य बन जाएगा । पिछले सितंबर में भारतीय और रूसी प्रमुखों के बीच आयोजित बैठक के दौरान यह सुझाव दिया गया कि एससीओ आतंकवाद के विरुद्ध और अफगानिस्तान में स्थिरता लाने के लिए एक महत्वपूर्ण मंच का कार्य कर सकता है ।जहां तक रूस का मामला है एससीओ यूरेशिया में सभी संगठनों के लिए एक केंद्र के रूप में कार्य करेगा । इसके साथ-साथ वह एक विनियामक की भी भूमिका अदा कर सकता है । रूस को आशा है कि एससीओ का बहुसांस्कृतिक वातावरण उसे एक केंद्र का दर्जा देगा । इस क्षेत्र में चीनी वर्चस्व को कमजोर करने के लिए अफगानिस्तान, ईरान और अन्य देशों को भी शामिल करने का प्रयास कर रहा है ।

(च) आसियान

रूस वियतनाम के साथ अपनी रणनीतिक भागीदारी को बढ़ाने के साथ-साथ आसियान के अन्य सदस्य देशों के साथ भी सहयोग में वृद्धि करना चाहता है । वह ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड के साथ अपने संबंधों को गहन करने के साथ-साथ नियमित संबंधों को बनाए रखना चाहता है । रूस दक्षिण प्रशांत के द्वीपीय देशों के साथ भी संबंधों को मजबूत करना चाहता है । 

रूस दक्षिण पूर्व एशियाई देश संघ आसियान के साथ दीर्घकालिक व्यापक संवाद भागीदारी को और आगे बढ़ाने के साथ-साथ रणनीतिक भागीदारी का लक्ष्य भी प्राप्त करना चाहता है । इस क्षेत्र में किए गए प्रयासों को मध्य एशिया शिखर सम्मेलन जैसी गतिविधियों के द्वारा विस्तारित किया जाएगा । इससे एशिया प्रशांत क्षेत्र, आसियान क्षेत्रीय मंच और आसियान रक्षा मंत्री बैठक का मार्ग सुग्राही बनाने के लिए अवधारणात्मक मुद्दों पर संबंधित देशों के नेताओं के बीच रणनीतिक संवाद के लिए मंच उपलब्ध होगा ।

रूस एक मुक्त सामान्य और गैर भेद-भाव मूलक, आर्थिक भागीदारी और संयुक्त विकास प्रक्रिया स्थापित करने के लिए प्रतिबद्ध है । यह प्रक्रिया एशिया-प्रशांत और यूरेशिया में समेकन व्यवस्था को सुनिश्चित करने के प्रयोजनार्थ आसियान, एससीओ और ईएईयू के निमित होगी । 

रूस ने अपनी नई विदेश नीति अवधारणा के नए संस्करण में आसियान समूह के प्रति जबरदस्त रुची दिखाई है । रूस और आसियान के बीच रणनीतिक भागेदारी की परिकल्पना 19-20 मई 2016 को सोची, रूस में आयोजित यादगार शिखर सम्मेलन के अनुक्रम में 2016 में उनके संवादगत संबंधों की 20वीं जयंती के दौरान परस्पर लाभ हेतु रणनीतिक भागेदारी की दिशा में प्रस्थान विषयक अनुवर्ती कार्रवाई है । इस समय आसियान-रूसी सहयोग को 2016-2020 के दौरान आसियान और रूसी परिसंघ के बीच सहयोग को बढ़ाने के प्रयोजनार्थ वृहद कार्यक्रम के तहत शुरू किया जा रहा है । सीपीए (2016-2020) का उद्देश्य यह है कि क्षेत्रीय आर्थिक समेकन और समुदाय निर्माण ने उसके प्रयासों के मद्देनजर आसियान को दी जाने वाली सहायता के जरिए आसियान-रूसी संवाद संबंधों को संवर्धितएवं वृद्धिकृत किया जाए । 

(छ) भारत

रूस भारत के साथ विशेष रणनीतिक भागीदारी को सुदृढ़ करना चाहता है । वह सभी क्षेत्रों विशेष रूप से व्यापार में परस्पर लाभकारी द्विपक्षीय संबंधों को बढ़ाने और प्रासंगिक अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर सहयोग करना चाहता है । इस अनुक्रम में रूस चाहता है कि दोनों देशों द्वारा अनुमोदित दीर्घकालिक सहयोग कार्यक्रम के कार्यान्वयन को विशेष रूप से दृष्टिगत रखा जाए ।

रूस विदेश नीति से संबंधित प्राथमिकताओं, ऐतिहासिक मैत्रीपूर्ण संबंधों, परस्पर गहन विश्वास, आवश्यक अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों पर सहयोग तथा सभी क्षेत्रों विशेष रूप से व्यापार और व्यवस्था विषय पर दोनों देशों द्वारा अनुमोदित दीर्घकालिक सहयोग कार्यक्रम के कार्यान्वयन पर ध्यान देते हुए भारत गणराज्य के साथ अपनी विशेष भागीदारी को और अधिक सुदृढ़ करना चाहता है ।

अपने द्विपक्षीय संबंधों की 70वीं जयंती मनाने के दौरान रूस और भारत उस प्रतिबद्धता को इस संयुक्त वक्तव्य के द्वारा पूरा कर सकते हैं कि हमारी निकट मित्रता से एक स्पष्ट दिशा, नवीन आधार और सशक्त मन्तव्य के जरिए हमारे सम्बन्धों को नए आयाम प्राप्त होंगे । यह वक्तव्य 15 अक्टूबर 201634 को भारत, रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन के दौरान दिया गया था ।

रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने 26 जनवरी को कहा था कि भारत रूस की विदेश नीति की अनिवार्य प्राथमिकता है और यह कि भारत क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कार्यसूची में इंगित विशेष समस्याओं का समाधान करने में एक विशेष और रचनात्मक भूमिका निभा रहा है ।

रूस की वर्ष 2013 की नीति ने परस्पर हितों यथा बहुध्रुवीय वैश्विक व्यवस्था और आतंकवाद आदि के विरुद्ध लड़ाई आदि जैसे शब्दों का प्रयोग किया गया था । तथापि 2016 के संस्कारण में बहुध्रुवीय वैश्विक व्यवस्था और समान वैश्विक आर्थिक व्यवस्था कायम करने के प्रयोजनार्थ दोनों देशों के बीच परस्पर समझ बूझ और वैचारिक समानता पर ज़ोर दिया गया है ।

भारतीय पक्ष की और से दिया गया महत्वपूर्ण वक्तव्य यह है कि दोनों देशों के बीच रणनीतिक भागीदारी से साझाकृत विदेश नीति प्राथमिकताओं पर आधारित व्यवस्था और अधिक मजबूत होगी । यद्यपि पुतिन ने भारत के प्रति रूस की प्राथमिकता जताई है तथापि इसके साथ-साथ अफगानिस्तान में दोनों देशों की भूमिकाओं में पर्याप्त अंतर है । रूस के लिए आईएसआईएस औरदाइश अफगानिस्तान में तालिबान से भी बड़ा खतरा है । आईएसआईएस के खतरे से निपटने के लिए रूस पाकिस्तान के निकट सहयोग से कार्य कर रहा है । इसके साथ-साथ उसने तालिबान से बातचीत का रास्ता भी खुला रखा है । जहां तक भारत का संबंध है वह दूसरे आतंकवादी समूहों के अलावा तालिबान को भी अपने देश, क्षेत्र और विश्व36 की सुरक्षा के लिए समान रूप से एक बड़ा खतरा मानता है ।

अफगानिस्तान में रूसी राष्ट्रपति के विशेष प्रतिनिधि जमीर काबुलोव ने पिछले दिसंबर में आयोजित हार्ट ऑफ एशिया सम्मेलन के दौरान यह कहा था कि दाइश भारत के लिए इस समय इतना बड़ा खतरा नहीं जितना कि वह अफगानिस्तान और मध्य एशिया के लिए है । उनके अनुसार भारत को तालिबान की अपेक्षा आईएसआईएस से निपटने पर ज़ोर लगाना चाहिए क्योंकि वह तालिबान की अपेक्षा ज्यादा बड़ा खतरा है ।

आईएसआईएस और तालिबान के मामले में भारत तथा रूस के बीच समझ बूझ का अंतर एक गंभीर समस्या है जिसका समाधान किया जाना चाहिए ।

जहां तक रूस के पाकिस्तान के साथ बढ़ते हुए रिश्तों का संबंध है तो वह इस परिप्रेक्ष्य में अपने हथियारों के निर्यात हेतु पाकिस्तान को एक बड़ी मंडी मानने के साथ-साथ उसके जरिए अपने आर्थिक हितों को भी पूरा करना चाहता है । मास्को पाकिस्तान को अफगानिस्तान से संबंधित मामले में एक वास्तविक अंश मानता है जिसकी किसी भी प्रकार से उपेक्षा नहीं की जा सकती है । रूस के एक विद्वान के अनुसार कभी-कभी कोई संगठन जो समाधान का हिस्सा न होकर समस्या का हिस्सा होता है उसे भी उस दायरे में शामिल करना पड़ता है क्योंकि वह आग को रोकने का कार्य करने के साथ-साथ रूस और क्षेत्र38 की सुरक्षा के लिए खतरनाक हो सकता है ।   

(ज) चीन

रूस चीन के साथ व्यापक, समान और सुदृढ़ भागीदारी स्थापित करने के साथ-साथ रणनीतिक सहयोग भी करेगा तथा सभी क्षेत्रों में सहयोग का मार्ग प्रशस्त करेगा । रूस इस तथ्य को भलीभाँति समझता है कि दोनों देश क्षेत्रीय और वैश्विक स्थिरता के महत्वपूर्ण कारकों के रूप में विशेष वैश्विक मुद्दों पर एक जैसी बुनियादी स्थिति रखते हैं इसलिए रूस नए खतरों और चुनौतियों का सामना करने, विशेष रूप से क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय समस्याओं के समाधान, संयुक्त राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद के साथ सहयोग, ग्रुप-20, ब्रिक्स, ईएएस, एससीओ और अन्य बहुपक्षीय आयामों सहित विभिन्न क्षेत्रों में चीन के साथ विदेश नीति के मामले में सहयोग करेगा ।

रूस चीन जनगणराज्य के साथ वृहद, समान और विश्वास पर आधारित भागीदारी, रणनीतिक सहयोग तथा अन्य सभी मामलों में अपने सहयोग को जारी रखेगा । रूस क्षेत्रीय और वैश्विक स्थिरता के लिए वैश्विक कार्यसूची में महत्वपूर्ण मुद्दों का समाधान करने के प्रयोजनार्थ दोनों देशों द्वारा अंगीकृत सामान्य सिद्धान्त सम्मत विचारों को महत्वपूर्ण मानता है । वह इस आधारशिला का निर्माण करके नई चुनौतियों और खतरों के मुक़ाबले, क्षेत्रीय और वैश्विक समस्याओं के समाधान, अंतर्राष्ट्रीय संगठनों और बहुपक्षीय संस्थानों के साथ सहयोग सहित विभिन्न क्षेत्रों में चीन के साथ विदेश नीतिगत सहयोग को बढ़ाना चाहता है ।

रूस और चीन के बीच विशेष रूप से 2014 से द्विपक्षीय संबंध मजबूत होते रहे हैं । रूस बीजिंग के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों को सुदृढ़ करने की कोशिश करता है ताकि रूस के आस-पास के क्षेत्र में चीन के बढ़ते हुए प्रभाव को नियंत्रित किया जा सके। रूस एशिया प्रशांत में भी अपने आर्थिक प्रभाव को बढ़ाना चाहता है इसलिए वह चीन के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित कर रहा है ट्रम्प द्वारा अमेरिका में राष्ट्रपति का कार्यभार ग्रहण करने के बाद रूस और अमेरिका के बीच परिचर्चा चल रही है जिससे चीन को हानि पहुंच सकती है । बीजिंग की इन शंकाओं को दूर करने के प्रयोजनार्थ रूस ने सक्रियता शब्द का इस्तेमाल किया है ताकि द्विपक्षीय संबंधों के बारे में चीन को आश्वासन दिया जा सके । रूस यह भी सुनिश्चित करना चाहेगा कि चीन के साथ उसके संबंध अमेरिका के साथ संबंधों को मजबूत करने के कारण असंतुलित न हो जाएं ।

चीन ने 26 जनवरी को रूस और अमेरिका के साथ द्विपक्षीय संबंध स्थापित करने के प्रति अपनी सहमति जताई । यह कार्रवाई चीन ने मास्को की इस हिमायत के बाद की कि तीनों देशों को अपने संयुक्त संबंधों में सुधार लाने चाहिएं । 

(झ) एशिया प्रशांत के देशों के साथ सहयोग

रूस वियतनाम के साथ अपनी रणनीतिक भागीदारी बढ़ाना चाहता है ।

रूस समाजवादी गणराज्य वियतनाम के साथ वृहद रणनीतिक भागीदारी को मजबूत करने संबंधी अपने प्रयासों को जारी रखने के साथ-साथ इंडोनेशिया गणराज्य, किंग्डम ऑफ थाईलैंड, सिंगापुर गणराज्य, मलेशिया और एशिया प्रशांत के अन्य देशों के साथ भी बहुआयामी सहयोग को विस्तारित करना चाहता है ।

रूस एशिया प्रशांत में अपना ध्यान संकेद्रित करेगा । विदेश नीति के पूर्वी मार्ग से संबंधित रूस का सघनीकरण, क्षेत्रीय द्विपक्षीय संबंधों में बढ़ोतरी और अंतर शासकीय संगठनों में प्रतिभागिता रूस की प्राथमिकताओं में शामिल हैं ।

रूस क्षेत्रीय वृहद आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) के साथ सहयोग के फलस्वरूप उत्पन्न नुक़सानों और लाभों का जायजा ले रहा है । ईएईयू के तहत 2015 में वियतनाम के साथ मुक्त व्यापार करार (एफ़टीए) पीएआर हस्ताक्षर करने जैसे कुछ कदम उठाएं हैं । सिंगापुर ने पिछले वर्ष ईएईयू के साथ एफ़टीए की व्यवहार्यता पर संयुक्त अध्ययन शुरू किया है । ईएईयू, एफ़टीए के साथ हस्ताक्षर करने के मामले में थायलैंड से बातचीत कर रहा है । रूस आसियान और आरईसीईपी के साथ ईएईयू से भी संबंध स्थापित करना चाहता है ।

इस क्षेत्र में सहयोग को आगे बढ़ाने के अलावा रूस का ध्यान अपने सुदूर पूर्ववर्ती क्षेत्र और साइबेरिया के विकास पर भी है । एशिया-प्रशांत के साथ सहयोग से रूस को इस क्षेत्र का विकास करने में मदद मिलेगी । आने वाले समय में रूस बिम्सटेक देशों के साथ भी अपने संबंध मजबूत करना चाहता है । पिछले वर्ष भारत में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में मास्को ने बिम्सटेक के साथ सहयोग करने में अपनी सहमति जताई । 

(ञ) सीरिया

रूस सीरिया अरब गणराज्य की समस्या का राजनीतिक समाधान चाहता है । वह चाहता है कि सीरिया के लोग अंतर्राष्ट्रीय सीरिया समर्थन समूह और प्रासंगिक संयुक्त राष्ट्र संघ सुरक्षा परिषद संकल्प द्वारा 30 जून 2012 की जेनेवा विज्ञप्ति पर आधारित सिद्धांतों के अनुसार अपने भविष्य का निर्धारण करें । रूस सीरिया अरब गणराज्य की क्षेत्रीय अखंडता, एकता और स्वतंत्रता का धर्मनिरपेक्ष, प्रजातांत्रिक देश के रूप में समर्थन करता है जहां सभी नस्लीय और धार्मिक समूह शांति, सुरक्षा, समान अधिकारों और अवसरों के साथ रहें ।

नई अवधारणा 2016 में रूस ने सीरिया संकट और उसके समाधान का भी जिक्र किया है । उसने इस बात पर भी ज़ोर दिया है कि रूस सीरिया में राजनीतिक समाधान चाहता है ।  रूस यह भी चाहता है कि सीरिया के लोग अपने भविष्य का निर्धारण 30 जून 2012 की जेनेवा विज्ञप्ति के आधार पर करें ।

सीरिया ने रूस के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान दर्ज कराया है क्योंकि वहां व्याप्त संकट ने रूस को पुनः उस सुपर पावर का दर्जा दे दिया है जो उसे शीत युद्ध के दौरान हासिल था । सीरिया की वजह से न केवल रूस की सैनिक शक्ति का प्रदर्शन हुआ बल्कि उसकी कूटनीतिक क्षमता भी सामने आई है । रूस सीरिया संकट के दौरान अमेरिका और तुर्की के बीच गठबंधन को तोड़ने में भी सफल हुआ है । ज्ञातव्य हो कि तुर्की अमेरिका का एक महत्वपूर्ण साथी था । अंकारा ने अपना पक्ष उस समय परिवर्तित किया जब रूसी जैट को गिराए जाने के बाद दोनों देशों के मध्य मतैक्य स्थापित हुआ था । इस घटना से दोनों देशों के बीच युद्ध की स्थिति उत्पन्न हो गई थी ।

रूस सीरिया में बातचीत के जरिए सीरिया के राष्ट्रपति बशर अल असद की सरकार और विरोधी दलों को आमने-सामने बैठाने में सफल हुआ । यद्यपि युद्धरत पक्षों के बीच बातचीत का सफल नतीजा सामने आना है तथापि क्रेमलिन इस प्रकरण में अपने प्रभाव को परिलक्षित करने में सफल हुआ ।

रूस में नई आर्थिक नीति कब लागू हुई?

1921 की नई आर्थिक नीति (New Economic Policy of 1921) नई आर्थिक नीति (एनईपी) 1921 में व्लादिमीर लेनिन द्वारा रूसी अर्थव्यवस्था के लिए एक अस्थायी राहत के रूप में प्रस्तावित सोवियत संघ की एक आर्थिक नीति थी।

नई आर्थिक नीति का जन्मदाता कौन है?

Solution : व्लादिमीर इलिच लेनिन (1870-1924) ने नई आर्थिक नीति शुरू की थी।

नई आर्थिक नीति से आप क्या समझते हैं?

नई आर्थिक नीति का तात्पर्य भारतीय अर्थव्यवस्था को संकट से उबारने के लिये 1991 में अपनाई गई नीतियों से है। नई आर्थिक नीति के उपायों को स्थिरीकरण उपाय तथा संरचनात्मक समायोजन कार्यक्रम में बाँटकर देखा जा सकता है। अर्थव्यवस्था में त्वरित सुधारों के लिये स्थिरीकरण उपायों को अमल में लाया गया।

रूस की आर्थिक नीति क्या थी?

रूस में बड़े उद्योग जैसे- रेल, खानें आदि सरकारी नियंत्रण में थे। 1922 में लगभग चार हज़ार छोटे उद्योगों को लाइसेंस जारी कर विदेशी कंपनियों को भी उद्योग लगाने के लिये प्रोत्साहित किया गया। नई आर्थिक नीति के लागू हो जाने से बलात् श्रम करवाने और समान वेतन न देने की नीति समाप्त हो गई।

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