रॉकेट में कितने आदमी बैठते हैं - roket mein kitane aadamee baithate hain

रॉकेट सीधा ऊपर क्यों जाता है?

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रॉकेट एकदम सीधा ऊपर जाता है जबकि प्लेन पहले रनवे पर दौड़ लगाता है, क्यों?

प्लेन ज्यादा भारी होता है और उसे ऊपर उठने के लिए हवा को बहुत तेज गति से पीछे छोड़ना पड़ता है। इसलिए वह पहले रनवे पर कुछ दूर चलकर पंखों से हवा को ठेलने जितना बल प्राप्त करता है।



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एक रॉकेट की न्यूनतम और अधिकम गति क्या हो सकती है?जाने!

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आपने रॉकेट को उड़ते हुए टीवी पर जरूर देखा होगा,लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि रॉकेट की स्पीड कितनी होगी।

  1. कोई भी वस्तु किसी भी हालत में सूर्य के प्रकाश की गति नहीं प्राप्त कर सकती । सूर्य का निर्वात में बेग 10,792,51200 kmph है ।
  2. पृथ्वी का पलायन वेग (एस्केप वेलोसिटी) 38400 kmph मीटर प्रति सेकंड है यानी कोई भी वस्तु अगर इस वेग से ऊपर की तरफ फेंकी जाती है तो वह वस्तु फिर पृथ्वी पर वापस नहीं आएगी ।

आकाश में छोड़े हुए राकेट का वेग सामान्यतः 17500 kmph (स्पेस शटल) होता है ।

एक सामान्य राकेट .

फिलहाल 1973 में लांच हुआ .  .रॉकेट .  .सैटर्न-5 सबसे ताकतवर .  .रॉकेट .  .माना जाता है.

रॉकेट जब छोड़ा जाता है तो उसके नीचे से आग की एक पूंछ निकलती है और फिर वह ऊपर उठता है। दरअसल, रॉकेट में ईंधन जलता है, जिससे गर्म गैस निकलती है। स्पेस शटल में तरल हाइड्रोजन और ठोस प्रोपालेंट का उपयोग होता है। ठोस प्रोपालेंट जलता है, पर विस्फोटक नहीं होता। रॉकेट को पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल से बाहर निकालना आसान काम नहीं होता है। इसमें एक बंद चैंबर में विस्फोटक रासायनिक प्रक्रिया होती है, जिससे रॉकेट के पीछे के भाग से कोन के आकार में गर्म गैसें निकलती हैं। इसी ऊर्जा से रॉकेट का इंजन 16,000 कि.मी. प्रति घंटे की रफ्तार से जमीन से ऊपर उठ पाता है। इंजन रॉकेट लॉन्च के 2 मिनट बाद ही शटल से अलग हो जाता है। रॉकेट का बाहरी टैंक भी कुछ देर बाद ही खाली हो जाता है, पर तब तक रॉकेट अंतरिक्ष में बहुत दूर जा चुका होता है।

जानें, क्या है रॉकेट और कैसे काम करता है?

| Updated: 2 Apr 2019, 11:41 am

जेट इंजन के मुकाबले रॉकेट इंजन थोड़ा अलग होता है। जेट इंजन हवा से ऑक्सीजन लेकर काम करता है जबकि रॉकेट इंजन अपने साथ हर वह चीज लेकर चलता है, जिसकी उसे जरूरत होती है। रॉकेट इंजन अंतरिक्ष में भी काम करता है जहां हवा नहीं होती है।

सांकेतिक तस्वीर

'रॉकेट' शब्द का अलग-अलग मतलब हो सकता है। ज्यादातर लोग सोचते हैं कि लम्बा, पतला और गोलाकार यान रॉकेट होता है। वे सोचते हैं कि रॉकेट को सिर्फ स्पेस में भेजा जाता है। वैसे 'रॉकेट' का मतलब एक तरह का इंजन होता है। इसका मतलब ऐसा यान भी होता है जो उस इंजन का इस्तेमाल करता है। जेट इंजन से अलग होता है रॉकेट इंजन
जेट इंजन के मुकाबले रॉकेट इंजन थोड़ा अलग होता है। जेट इंजन हवा से ऑक्सीजन लेकर काम करता है जबकि रॉकेट इंजन अपने साथ हर वह चीज लेकर चलता है, जिसकी उसे जरूरत होती है। रॉकेट इंजन अंतरिक्ष में भी काम करता है जहां हवा नहीं होती है।

रॉकेट इंजन
रॉकेट इंजन मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं। कुछ इंजन तरल ईंधन का इस्तेमाल करते हैं। स्पेस शटल ऑर्बिटर के मुख्य इंजन तरल ईंधन का उपयोग करते हैं। रूस का सुयोज भी इसी ईंधन का इस्तेमाल करता है। अन्य रॉकेट इंजन में ठोस ईंधन का उपयोग किया जाता है। स्पेस शटल के किनारे में दो सफेद ठोस रॉकेट बूस्टर्स होते हैं। वे भी ठोस ईंधन का इस्तेमाल करते हैं। आतिशबाजी में इस्तेमाल होने वाले पटाखे या रॉकेट और मॉडल रॉकेटों में ठोस ईंधन का इस्तेमाल होता है।

रॉकेट इंजन कैसे काम करता है?
रॉकेट इंजन भी अन्य इंजनों की तरह काम करता है। वह ईंधन को जलाकर थर्स्ट पैदा करता है। थर्स्ट का आम शब्दों में मतलब धक्का होता है। यानी वह यान को आगे बढ़ने के लिए धक्का देता है। ज्यादातर रॉकेट इंजन ईंधन को गर्म गैस में बदल देता हैं। इंजन इस गैस को पीछे की ओर छोड़ता है जिससे रॉकेट आगे की ओर बढ़ता है।

अंतरिक्ष में कुछ ऐसा नहीं होता जिसे धक्का देकर इंजन आगे बढ़े। ऐसे में यह सवाल उठता है कि फिर रॉकेट आगे कैसे बढ़ता है? रॉकेट न्यूटन के गति के तीसरे नियम के आधार पर काम करता है। इस नियम के मुताबिक, हर क्रिया की बराबर और विपरित दिशा में प्रतिक्रिया होती है। रॉकेट का इंजन गैस को बाहर की ओर धक्का देता है। इस प्रक्रिया में गैस भी बराबर ताकत से आगे की ओर रॉकेट को धक्का देती है। इससे रॉकेट आगे की ओर बढ़ता है।

रॉकेट का आविष्कार कब हुआ?
ऐसा माना जाता है कि 12वीं सदी के आसपास चीन में रॉकेट का आविष्कार हुआ। इन ठोस रॉकेटों को आतिशबाजी के लिए इस्तेमाल किया जाता था। युद्ध में सेनाओं द्वारा भी उनका इस्तेमाल किया जाता था। 13वीं सदी में इन रॉकेटों का एशिया और यूरोप के ज्यादातर हिस्से में आतिशबाजी और युद्धों में इस्तेमाल होने लगा। अगले 600 सालों में लोगों ने बड़े और बेहतर ठोस रॉकेट विकसित किए। इनमें से ज्यादातर का इस्तेमाल सेनाओं द्वारा किया जाता था।

तरल ईंधन रॉकेट
1903 में रूस के एक शिक्षक कॉन्सटैंटिन सिओलकोव्सकी ने तरल ईंधन वाले रॉकेटों पर एक पेपर लिखा। 1926 में अमेरिकी वैज्ञानिक रॉबर्ट गॉडार्ड ने तरल ईंधन से चलने वाले पहले रॉकेट को उड़ाया। हरमन ऑबर्ट के नेतृत्व में जर्मनी के वैज्ञानिकों ने तरल ईंधन से चलने वाले रॉकेट विकसित किए। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अन्य देशों पर बम गिराने के लिए जर्मनी ने रॉकेटों का इस्तेमाल किया। 1957 में सोवियत संघ ने पहले सैटलाइट को अंतरिक्ष में भेजने के लिए एक रॉकेट का इस्तेमाल किया। 1961 में सोवियत संघ के अंतरिक्षयात्री यूरी गागरिक रॉकेट में सवार होकर अंतरिक्ष में जाने वाले पहले व्यक्ति बन गए। 1969 में अमेरिका ने चांद पर नील आर्मस्ट्रॉन्ग और बज ऑल्ड्रिन को भेजा। उस मिशन में सैटर्न V रॉकेट का इस्तेमाल किया गया था।

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रॉकेट की गति कितनी होती है?

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रॉकेट कितनी ऊंचाई में उड़ता है?

प्रश्न – रॉकेट कितनी ऊंचाई पर उड़ता है? उत्तर – आमतौर पर, एक सामान्य रॉकेट 100 किलोमीटर की ऊंचाई तक उड़ान भरने में सक्षम होता है. लेकिन विशेष परिस्थिति में, आंतरिक जाने वाली रॉकेट 360 किलोमीटर से भी ज्यादा ऊंचा उड़ सकता है.

रॉकेट कितने प्रकार के होते हैं?

Solution : (i) ठोस प्रणोदक, (ii) द्वव प्रणोदक, (iii) मिश्रित या संकरित प्रणोदक।

रॉकेट के अंदर क्या होता है?

रॉकेट के भीतर एक कक्ष में ठोस या तरल ईंधन को आक्सीजन की उपस्थिति में जलाया जाता है जिससे उच्च दाब पर गैस उत्पन्न होती है। यह गैस पीछे की ओर एक संकरे मुँह से अत्यन्त वेग के साथ बाहर निकलती है। इसके फलस्वरूप जो प्रतिक्रिया उत्पन्न होती है वह रॉकेट को तीव्र वेग से आगे की ओर ले जाती है।

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