'जनसंख्या नियंत्रण का तरीक़ा है गर्भपात'
- आलोक प्रकाश पुतुल
- रायपुर से, बीबीसी हिंदी डॉटकॉम के लिए
26 दिसंबर 2015
इमेज स्रोत, ALOK PRAKASH PUTUL
गर्भपात को जनसंख्या नियंत्रण का उपाय बताने वाली 10वीं कक्षा की किताब को लेकर छत्तीसगढ़ में विवाद शुरू हो गया है.
शिक्षा से जुड़े संगठन इसके लिए सरकार की आलोचना कर रहे हैं. सामाजिक संगठन सोशल एंड ज्यूडीशियल एक्शन ग्रुप इस मामले में राज्य सरकार के ख़िलाफ़ हाई कोर्ट में याचिका लगाने की तैयारी कर रहा है.
असल में, छत्तीसगढ़ के सरकारी स्कूलों में सामाजिक विज्ञान की पाठ्यपुस्तक में जनसंख्या विस्फोट पाठ में जनसंख्या नियंत्रण के लिए गर्भपात को एक तरीक़ा बताया गया है.
पुस्तक के मुताबिक़, "भारत में सुरक्षित गर्भपात के लिए आवश्यक अस्पताल और नर्सिंग रूम की संख्या वृद्धि की आश्वयकता है. इसके द्वारा जन्मदर में कमी की जा सकती है."
इससे पहले भी इसी पाठ्यपुस्तक का एक पाठ विवादों में आया था, जिसमें बेरोज़गारी का एक बड़ा कारण 'महिलाओं द्वारा नौकरी' को बताया गया था.
इमेज स्रोत, ALOK PRAKASH PUTUL
इस पाठ में कहा गया था, ''स्वतंत्रता से पूर्व बहुत कम महिलाएं नौकरी करती थीं लेकिन आज सभी क्षेत्रों में महिलाएं नौकरी करने लगी हैं, जिससे पुरुषों में बेरोज़गारी का अनुपात बढ़ा है.''
किताब को लेकर राज्य सरकार से शिकायत करने वाली जशपुर की शिक्षिका सौम्या गर्ग का कहना है कि सरकारी पाठ्य पुस्तकों में इस तरह की गंभीर लापरवाही चिंताजनक है.
सौम्या कहती हैं, ''पिछले 67 सालों में जिन बच्चों को भी यह पढ़ाया गया और उन पर जो प्रभाव हुआ, उनके जो विचार बने होंगे वो समाज के लिए कितने घातक होंगे, इसे समझना मुश्किल नहीं है.''
राज्य शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद के संचालक संजय ओझा के मुताबिक़ यह पाठ्यपुस्तक छत्तीसगढ़ माध्यमिक शिक्षा मंडल ने तैयार की थी.
इमेज स्रोत, ALOK PRAKASH PUTUL
उनका दावा है कि परिषद नए सिरे से पाठ्यक्रम तैयार करवा रहा है. लेकिन राइट टू एजुकेशन फ़ोरम छत्तीसगढ़ के संयोजक गौतम बंदोपाध्याय इसे नाकाफ़ी मानते हैं.
गौतम बंदोपाध्याय का मानना है कि बाल मनोवैज्ञानिक, शिक्षाविद और समाजशास्त्री संयुक्त रूप से इन पाठ्यक्रमों को तैयार करें, यह तो ज़रूरी है ही लेकिन शिक्षकों का प्रशिक्षण भी ज़रूरी है. इसके अलावा पाठ्यक्रम में महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर अतिरिक्त संवेदनशीलता बरती जानी चाहिए.
इन पाठ्यक्रमों को लेकर महिला संगठनों में भी नाराज़गी है.
वसुधा महिला मंच की डॉक्टर सत्यभामा अवस्थी कहती हैं, ''गर्भपात को जनसंख्या नियंत्रण का उपाय बताना एक ख़तरनाक सोच है. यह महिला अधिकारों का भी हनन है. इसे तत्काल पाठ्यक्रमों से हटाया जाना चाहिए.''
वे मांग करती हैं, "इसके लेखन, प्रकाशन और वितरण करने वाले लोगों की ज़िम्मेदारी तय करके उनके ख़िलाफ़ कार्रवाई भी होनी चाहिए.''
(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप यहां क्लिक कर सकते हैं. आप हमें फ़ेसबुक और ट्विटर पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)
आवश्यकता इस बात की है कि सभी राजनीतिक दल जनसंख्या वृद्धि को धर्म एवं जाति के चश्मे से न देखकर संबंधित कानून को पारित करने में सरकार की मदद करें ताकि जनसंख्या विस्फोट की स्थिति को समय रहते रोका जा सके।
डा. सुनील कुमार मिश्र। भारत एक विकासशील देश है और विकसित राष्ट्र के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए निरंतर प्रयासरत है। परंतु तेजी से बढ़ती जनसंख्या इस लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में सबसे बड़ी बाधा के रूप में दिखाई देती है। हमारा देश जनसंख्या की दृष्टि से विश्व में दूसरे स्थान पर है और पिछले कुछ वर्षो में जनसंख्या वृद्धि की जो दर रही है, जल्द ही सर्वाधिक जनसंख्या वाले देश चीन को पीछे छोड़ सकता है। निरंतर बढ़ती जनसंख्या न केवल आर्थिकी को क्षति पहुंचा रही है, अपितु सरकार द्वारा रोजगार प्रदान करने की राह में प्रमुख बाधा के रूप में भी दिख रही है। उदाहरणस्वरूप सरकार जब तक एक करोड़ रोजगार के अवसर सृजित करती है, तब तक उसकी तुलना में जनसंख्या बहुत अधिक बढ़ जाती है। इस कारण तमाम समस्याएं कम होने के बजाय बढ़ती ही जा रही हैं। तेजी से बढ़ रही जनसंख्या कई प्रकार के सामाजिक, राजनीतिक एवं आर्थिक परिवर्तन का कारक भी है जिसके भविष्य में गंभीर दुष्परिणाम सामने आ सकते हैं।
बड़ी जनसंख्या किसी भी देश के विकास को गति देने में सक्षम है। विशाल भूभाग में फैले चीन जैसे देश के लिए तो यह सही है, परंतु भारत जैसे देश में जहां तुलनात्मक रूप से संसाधनों पर अधिक आबादी का बोझ हो, वहां यह विकास की राह में बाधक ही साबित हो रही है। स्वाधीनता के बाद से भारत की जनसंख्या में लगभग सौ करोड़ की वृद्धि हो चुकी है, परंतु संरचनागत संसाधनों में यह वृद्धि दर बेहद धीमी रही है। कोविड महामारी से उत्पन्न स्वास्थ्य चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा जिसके मूल में जनसंख्या अनुपात एवं स्वास्थ्य सुविधाओं में बड़ा अंतर स्पष्ट रूप से नजर आया। यही नहीं, इस दौरान सरकार द्वारा व्यापक आबादी को खाद्य सामग्री उपलब्ध कराने के लिए सरकारी खजाने को खाली करना पड़ा जिसका महंगाई पर असर पड़ा। जनसंख्या और महंगाई बढ़ने में प्रत्यक्ष संबंध है। जनसंख्या वृद्धि एवं उपलब्ध संसाधनों में अनुपातिक वृद्धि न होने की वजह से देश संसाधनों की कमी का सामना करता है जिसकी पूर्ति के लिए सरकार को संबंधित वस्तुओं का विदेश से आयात करना पड़ता है।
किसी भी राष्ट्र के समग्र विकास के लिए आवश्यक है कि उसके विकास में वहां की समग्र जनसंख्या सहभागी बने। यह तभी संभव है जब सभी को समान अवसर उपलब्ध हों। सरकार के समक्ष, गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाली जनसंख्या को विकास प्रक्रिया में सहभागी बनाने की चुनौती है। विकास एक बहुआयामी प्रक्रिया है जिसे समग्र सहभागिता द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है। साथ ही सहभागिता तभी संभव है जब हम तेज गति से बढ़ रही जनसंख्या को जल्द से जल्द रोकने के लिए ठोस उपाय करें। बढ़ती जनसंख्या पर नियंत्रण अत्यंत आवश्यक है, ताकि भारतीय जनमानस के लिए मूलभूत आवश्यकताओं की आपूर्ति को सुनिश्चित किया जा सके।
ऐसे में सरकार को जनसंख्या नियंत्रण से संबंधित कानून बनाने में अब देरी नहीं करनी चाहिए, क्योंकि इस संदर्भ में देरी जनता पर भारी पड़ती हुई दिख रही है। विविध राजनीतिक दलों से जुड़े राजनेताओं एवं धर्मगुरुओं को आगे बढ़कर जनसंख्या नियंत्रण कानून की मांग करनी चाहिए जिससे यह कानून संसद के आगामी सत्र में लाया जा सके और आसानी से पारित हो सके। हमें अपनी प्राथमिकताओं को भी समझना होगा और निश्चित रूप से जाति आधारित जनगणना से पहले आबादी नियंत्रण के प्रभावी उपायों को प्रोत्साहित करना होगा।
[एसोसिएट प्रोफेसर, विवेकानंद इंस्टीट्यूट आफ प्रोफेशनल स्टडीज, नई दिल्ली]
Edited By: Sanjay Pokhriyal