विश्वकर्मा जयंती का क्या महत्व है? - vishvakarma jayantee ka kya mahatv hai?

हिंदू धर्म में भगवान विश्वकर्मा जी को बहुत ही महत्व दिया जाता है। हर साल कन्या संक्रांति के दिन विश्वकर्मा जयंती मनाई जाती है। इस साल यह जयंती आज के दिन बहुत ही उल्लास के साथ मनाई जा रही है। भगवान विश्वकर्मा जी देवताओं के शिल्पी रुप में माना जाता है। भगवान विश्वकर्मा जी ने ही देवी-देवताओं के महल और अस्त्र-शस्त्रों का निर्माण किया था। वह पहले वास्तुशिल्प रचनाकार भी कहलाए जाते हैं। ज्योतिषाशास्त्र के अनुसार, इस दिन विभिन्न औजारों की विशेष तरीके से पूजा की जाती है। तो चलिए आपको बताते हैं इसका महत्व और पूजा की विधि...

विश्वकर्मा जयंती पूजा की विधि

विश्वकर्मा के दिन सारे औजारों और मशीनों की पूजा की जाती है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, इस बार विश्वकर्मा जयंती पर दो शुभ मुहूर्त पढ़ रहे हैं। पहला शुभ मुहूर्त आज सुबह 7.39 से शुरु होकर 9.11 तक रहेगा। वहीं दूसरा शुभ मुहूर्त 01.48 से शुरु होकर शाम के 4.52 तक रहेगा। पूजा के लिए आप सुबह जल्दी उठकर मशीनों और औजारों की सफाई कर लें। फिर विश्वकर्मा जी की प्रतिमा स्थापित करके विधि-विधान से पूजा करें। पूजा करने के साथ आप ऊं विश्वकर्मणे नम: मंत्र का जाप करें। इसके बाद मशीनों और औजारों का अच्छे से तिलक करें। इसके बाद भगवान विश्वकर्मा से प्रार्थना करें कि औजार और मशीनें बिना किसी रुकावट से चलती रहें। 

क्या है विश्वकर्मा जयंती का महत्व

पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान ब्रह्मा जी ने विश्व के शिल्पीकार रुप में विश्वकर्मा जी को जिम्मेदारी दी थी। उन्होंने अपनी कला के साथ कई महलों, राजधानियों, अस्त्र-शस्त्र, पुष्पक विमान के साथ कई आश्चर्यजनक चीजों का निर्माण किया था। ब्रह्मा जी ने सृष्टि को शेषनाग की जीभ पर रखा। लेकिन शेषनाग के हिलने से सृष्टि को नुकसान होता था। उस समय भगवान विश्वकर्मा जी ने ब्रह्माजी से इसका उपाय पूछा भगवान विश्वकर्मा जी ने उपाय बताया और मेरु पर्वत को जल में रखवाकर सृष्टि को स्थिर कर दिया था। इसके बाद भगवान विश्वकर्मा जी की इस शिल्पकला से ब्रह्मा जी बहुत ही प्रभावित हुए। इसी के बाद विश्वकर्मा जी को पहले वास्तुकार के रुप में पूजा जाने लगा। इस दिन दुकारन और कारखानों में विभिन्न औजारों की पूजा भी की जाती है। 

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हर साल विश्वकर्मा पूजा कन्या संक्रांति को मनाई जाती है. इस दिन भगवान विश्वकर्मा का जन्म हुआ था, इसलिए इसे विश्वकर्मा जयंती भी कहते हैं. इस बार विश्वकर्मा जयंती 17 सितंबर 2017 को रविवार के दिन मनाई जा रही है. 

दरअसल, विश्वकर्मा को दुनिया को सबसे पहला इंजीनियर और वास्तुकार माना जाता है. इसलिए इस दिन उद्योगों, फेक्ट्र‍ियों और हर तरह के मशीन की पूजा की जाती है.

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यह पूजा सभी कलाकारों, बुनकर, शिल्पकारों और औद्योगिक घरानों द्वारा की जाती है. लेकिन देश के कुछ भागों में इसे दीपावली के दूसरे दिन भी मनाया जाता है.

इस दिन ज्यादातर कल-कारखाने बंद रहते हैं और लोग हर्षोल्लास के साथ भगवान विश्वकर्मा की पूजा करते हैं.

उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, दिल्ली आदि राज्यों में भगवान विश्वकर्मा की भव्य मूर्ति स्थापित की जाती है और उनकी आराधना की जाती है.

क्या है मान्यता

कहा जाता है कि प्राचीन काल में जितनी राजधानियां थी, प्राय: सभी विश्वकर्मा की ही बनाई कही जाती हैं. यहां तक कि सतयुग का 'स्वर्ग लोक', त्रेता युग की 'लंका', द्वापर की 'द्वारिका' और कलयुग का 'हस्तिनापुर' आदि विश्वकर्मा द्वारा ही रचित हैं. 'सुदामापुरी' की तत्क्षण रचना के बारे में भी यह कहा जाता है कि उसके निर्माता विश्वकर्मा ही थे. इससे यह आशय लगाया जाता है कि धन-धान्य और सुख-समृद्धि की अभिलाषा रखने वाले पुरुषों को बाबा विश्वकर्मा की पूजा करना आवश्यक और मंगलदायी है.

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कैसे हुई भगवान विश्वकर्मा की उत्पत्ति

एक कथा के अनुसार सृष्टि के प्रारंभ में सर्वप्रथम 'नारायण' अर्थात साक्षात विष्णु भगवान सागर में शेषशय्या पर प्रकट हुए. उनके नाभि-कमल से चर्तुमुख ब्रह्मा दृष्टिगोचर हो रहे थे. ब्रह्मा के पुत्र 'धर्म' तथा धर्म के पुत्र 'वास्तुदेव' हुए. कहा जाता है कि धर्म की 'वस्तु' नामक स्त्री से उत्पन्न 'वास्तु' सातवें पुत्र थे, जो शिल्पशास्त्र के आदि प्रवर्तक थे. उन्हीं वास्तुदेव की 'अंगिरसी' नामक पत्नी से विश्वकर्मा उत्पन्न हुए. पिता की भांति विश्वकर्मा भी वास्तुकला के अद्वितीय आचार्य बने.

अनेक रूप हैं भगवान विश्वकर्मा के

भगवान विश्वकर्मा के अनेक रूप बताए जाते हैं- दो बाहु वाले, चार बाहु एवं दस बाहु वाले तथा एक मुख, चार मुख एवं पंचमुख वाले. उनके मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी एवं दैवज्ञ नामक पांच पुत्र हैं. यह भी मान्यता है कि ये पांचों वास्तु शिल्प की अलग-अलग विधाओं में पारंगत थे और उन्होंने कई वस्तुओं का आविष्कार किया. इस प्रसंग में मनु को लोहे से, तो मय को लकड़ी, त्वष्टा को कांसे एवं तांबे, शिल्पी ईंट और दैवज्ञ को सोने-चांदी से जोड़ा जाता है. विश्वकर्मा पर प्रचलित कथा भगवान विश्वकर्मा की महत्ता स्थापित करने वाली एक कथा है.

इसके अनुसार वाराणसी में धार्मिक व्यवहार से चलने वाला एक रथकार अपनी पत्नी के साथ रहता था. अपने कार्य में निपुण था, परंतु विभिन्न जगहों पर घूम-घूम कर प्रयत्न करने पर भी भोजन से अधिक धन नहीं प्राप्त कर पाता था. पति की तरह पत्नी भी पुत्र न होने के कारण चिंतित रहती थी. पुत्र प्राप्ति के लिए वे साधु-संतों के यहां जाते थे, लेकिन यह इच्छा उसकी पूरी न हो सकी. तब एक पड़ोसी ब्राह्मण ने रथकार की पत्नी से कहा कि तुम भगवान विश्वकर्मा की शरण में जाओ, तुम्हारी इच्छा पूरी होगी और अमावस्या तिथि को व्रत कर भगवान विश्वकर्मा महात्म्य को सुनो.

इसके बाद रथकार एवं उसकी पत्नी ने अमावस्या को भगवान विश्वकर्मा की पूजा की, जिससे उसे धन-धान्य और पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई और वे सुखी जीवन व्यतीत करने लगे. उत्तर भारत में इस पूजा का काफी महत्व है.

विश्वकर्मा जयंती क्यों मानते हैं?

Vishwakarma Jayanti 2022: विश्‍वकर्मा जयंती हर साल 17 सितंबर को मनाई जाती है और इस दिन पौराणिक काल के इंजीनियर माने जाने वाने भगवान विश्‍वकर्मा की पूजा की जाती है। इस अवसर पर सभी कामगार वर्ग के लोग, कुशल, कारीगर और फैक्ट्रियों के मजदूर विश्‍वकर्माजी की पूजा करते हैं

विश्वकर्मा जयंती का अर्थ क्या है?

श्री विश्वकर्मा पूजा दिवस, एक हिंदू भगवान विश्वकर्मा, दिव्य वास्तुकार के लिए उत्सव का दिन है। [३] उन्हें स्वायंभु और विश्व का निर्माता माना जाता है। उन्होंने द्वारका के पवित्र शहर का निर्माण किया जहां कृष्ण ने शासन किया, पांडवों की माया सभा, और देवताओं के लिए कई शानदार हथियारों के निर्माता थे।

विश्वकर्मा जयंती साल में कितनी बार आती है?

Vishwakarma Puja 2022: विश्वकर्मा जयंती साल में दो बार मनाई जाती है. विश्वकर्मा जयंती 17 सितंबर के दिन कन्या संक्रांति के दिन मनाई जाती है, लेकिन वहीं राजस्थान और गुजरात के कुछ इलाकों में भगवान विश्वकर्मा का जन्म 7 फरवरी को मनाया जाता है. विश्वकर्मा पूजा को ही विश्वकर्मा जयंती और विश्वकर्मा दिवस के नाम से जाना जाता है.

14 फरवरी विश्वकर्मा जयंती है क्या?

वर्ष 2022 में सोमवार, 14 फरवरी 2022 (February 14 Monday) को भगवान विश्‍वकर्मा की जयंती (Vishwakarma Jayanti 2022) मनाई जा रही है। माना जाता है भगवान ब्रह्मा जी के कहने पर विश्वकर्मा ने ये दुनिया बनाई थी।

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