वाक्य में पराक्रम से क्या आशय है स्पष्ट कीजिए - vaaky mein paraakram se kya aashay hai spasht keejie

1. तथागत बोले, “तुम्हारे अंदर का जो प्रकाश बाहर का अंधकार देख रहा है, उसे अपने अंदर उतार लो। आँखों की ज्योति आत्मा में जला दो। चर्मचक्षुओं का जो प्रकाश बाहर का अंधेरा देख रहा है, वह अंदर का अंधेरा भी देखने लगा, तो अंतर्मन भी प्रकाशित हो जाएगा। आत्मदीप जल उठेगा।’

शब्दार्थ-चर्मचक्षु-आँख। अंतर्मन आत्मा, हृदय।

प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक सुगम भारती-6 में संकलित निबंध ‘आओ दीप जलाएँ’ से उद्धृत हैं। इनमें भगवान बुद्ध आनंद को अपनी आत्मा को प्रकाशित करने का मार्ग बता रहे हैं।

व्याख्या-भगवान बुद्ध कहते हैं कि तुम्हारे भीतर का जो प्रकाश तुम्हें बाहर के अंधकार की सूचना दे रहा है, वही तुम्हारी आत्मा के अंधकार को भी दूर करने की शक्ति रखता है। तुम अपनी जिन आँखों से बाहर के अंधेरे को देख रहे हो, उन्हीं आँखों से जब अपने भीतर के अंधेरे को देख लोगे तो अपनी कमियों और बुराइयों को जान पाओगे और उसी क्षण तुम उस अंधकार को दूर कर अपनी आत्मा को भी प्रकाशित कर सकोगे।

विशेष-
1. प्रकाश और अंधकार व्यक्ति के अंदर ही निहित हैं।
2. मनुष्य स्वयं अपने जीवन के अंधकार को दूर करने की शक्ति रखता है।

2. हम अंधकार से लड़ते नहीं, प्रकाशोत्सव मनाते हैं। जगमग-जगमग दीप जलाते हैं, लेकिन इसके एक अपवाद है। वह यह कि जो केवल अपने घर में दीया जलाकर केवल अपना प्रकाशोत्सव मनाते हैं, केवल अपनी ड्योढ़ी झालरों से सजाते हैं, उनका घर तो चमक उठता है, लेकिन उनका यह प्रकाशोत्सव बाहर के अंधकार को उनके अंदर धकिया देता है। यदि किसी के घर का प्रकाश उसके पड़ोसी को चिढ़ाने लगता है तो अंधकार मिटता नहीं, बढ़ता है, बलवान होता है।

शब्दार्थ-प्रकाशोत्सव-प्रकाश का उत्सव।

प्रसंग-पूर्ववत्

व्याख्या-लेखक कहते हैं कि भारत में अंधकार को – दूर करने के लिए प्रकाशोत्सव को अधिक से अधिक प्रकाशित करने की भावना है तो यह प्रकाश बाहर के अंधकार को मनुष्य के अंदर धकेल देता है। उसकी आत्मा मलिन होती है क्योंकि वहाँ स्वार्थ और ईर्ष्या जैसी कुभावनाएँ जगह बना लेती हैं। लेखक कहते हैं कि यदि आप पड़ोसी को चिढ़ाने के लिए अपने घर को झालरों से सजा रहे हैं, तो इससे अंधकार घटेगा नहीं बल्कि बढ़ेगा क्योंकि दुर्भावनाएँ बढ़ेंगी, क्लेश उत्पन्न होगा।

दूसरे शब्दों में, वाक्य सार्थक शब्दों का व्यवस्थित रूप है। वाक्य वह सार्थक शब्द-समूह है। जिससे बोलने या लिखने वाले का भाव पूर्ण रूप से समझ में आ जाय।

उदाहरण के लिए-‘राम ने धर्म की स्थापना की।
यह शब्द-समूह सार्थक है, व्याकरण के नियमों के अनुसार व्यवस्थित है तथा पूरा आशय प्रकट कर रहा है। अतः यह एक वाक्य है।

वाक्य की परिभाषा – सार्थक और व्यवस्थित शब्दों का वह समूह जो किसी भाव या विचार को पूर्णत: व्यक्त करता है वाक्य कहलाता है।

वाक्य के तत्त्व-वाक्य के निम्नलिखित तत्त्व होते हैं

  1. सार्थकता-वाक्य में प्रयुक्त शब्दों का सार्थक होना आवश्यक है।
  2. आकांक्षा-वाक्य के एक पद को सुनकर दूसरे पद को सुनने या जानने की जो स्वाभाविक उत्कण्ठा जागती है उसे अकांक्षा कहते हैं, जैसे-‘दिन में काम करते हैं।’ इस वाक्य को सुनकर हम प्रश्न करते हैं-कौन लोग काम करते हैं? यदि हम कहें कि दिन में सभी लोग काम करते हैं। तो ‘सभी’ कह देने से प्रश्न का उत्तर मिल जाती है और वाक्य को अर्थ पूर्ण हो जाती है। अत: वाक्य में ‘सभी’ शब्द की आकांक्षा थी, जिसकी पूर्ति होते ही वाक्य पूरा हो गया।
  3. योग्यता-वाक्य में प्रयुक्त शब्द अर्थ प्रदान करने में सहायक होता है तो समझना चाहिए कि वाक्य में योग्यता विद्यमान है, जैसे-किसान लाठी से खेत काटता है। इस वाक्य में योग्यता का अभाव है। क्योंकि लाठी से खेत काटने का काम नहीं लिया जाता। लाठी के स्थान पर यहाँ ‘हँसिया’ का प्रयोग होता तो वाक्य की योग्यता संगत होती।
  4. (आसक्ति या निकटता-एक शब्द या पद के उच्चारण के तुरन्त बाद ही दूसरे शब्द या पद के उच्चारण को
    आसक्ति या सन्निधि कहते हैं। वाक्य में पदों का पास-पास होना आवश्यक है, जैसे-‘मैं …….. निबन्ध ………… लिख ……… रहा ………. हूँ।’ यह वाक्ये नहीं कहा जा सकता क्योंकि दूर-दूर होने के कारण पदों का अर्थ-ग्रहण करने में गतिरोध उत्पन्न होता है। उपर्युक्त शब्दों द्वारा निर्मित वाक्य होना चाहिए-मैं निबन्ध लिख रहा हूँ।
  5. पद क्रम-वाक्यों में प्रयुक्त पदों या शब्दों की विधिवत् स्थापना को क्रम या पद क्रम कहा जाता है, जैसे-‘पढ़ी पुस्तक मैंने यह वाक्य क्रम की दृष्टि से उचित नहीं है, होना यह चाहिए-‘मैंने पुस्तक पढ़ी। क्योंकि मैंने शब्द पुस्तक से पूर्व और पढ़ी शब्द पुस्तक के पश्चात् आना चाहिए।
  6. अन्वय-वाक्य अनेक पदों का समूह होता है अतः पदों का लिंग, वचन, कारक, पुरुष और काल आदि के साथ सामंजस्य बैठना आवश्यक होता है, जैसे-‘गाय घास चरते हैं।’ यह वाक्य सही नहीं है। इसके स्थान पर ‘गाय घास चरती है।’ सही वाक्य है।

वाक्य के अंग (अवयव)

वाक्य में दो अवयव होते हैं
1. उद्देश्य
2. विधेय।

1. उद्देश्य – जिस विषय में कुछ कहा जाता है, उसे सूचित करने वाला शब्द उद्देश्य कहलाता है, जैसे-राम जाता है। यहाँ राम उद्देश्य है।
2. विधेय – उद्देश्य के विषय में जो कहा जाता है वह विधेय कहलाता है, जैसे

  • हैरी बाजार जाता है।
  • मोहन पाठशाला जाता है।
  • सुरेश घर चला गया।
  • झूठ बोलना पाप है।
  • पिताजी अध्यापक से मिलने आये हैं।

उपर्युक्त उदाहरणों में उद्देश्य और विधेय इस प्रकार निर्धारित होंगे

वाक्य भेद

वाक्यों का वर्गीकरण दो दृष्टियों से किया जा सकता है
(1) रचना की दृष्टि से
(2) अर्थ की दृष्टि से।

(1) रचना की दृष्टि से वाक्य भेद
रचना की दृष्टि से वाक्यों के निम्नलिखित भेद हैं

(i) सरल या साधारण वाक्य – जिस वाक्य में एक उद्देश्य और एक विधेय अर्थात् एक मुख्य क्रिया हो उसे सरल या साधारण वाक्य कहते हैं, जैसे
राम पुस्तक पढ़ता है। राम, श्याम और मोहन गा रहे हैं।
उदाहरण – राम पुस्तक पढ़ता है।
एक उद्देश्य      –             ‘राम’
एक विधेय        –             ‘पुस्तक पढ़ता है।

राम, श्याम और मोहन गो रहे हैं।
एक उद्देश्य       –             राम, श्याम मोहन
एक विधेय        –              गा रहे हैं।
(यहाँ राम, श्याम, मोहन तीनों मिलकर एक ही विधेय (कार्य) में संलग्न होने के कारण एक ही उद्देश्य के अन्तर्गत आते हैं।)

(ii) मिश्र या मिश्रित वाक्य – जिस वाक्य में एक प्रधान उपवाक्य तथा एक या अधिक आश्रित उपवाक्य हों, उसे मिश्र या मिश्रित वाक्य कहते हैं। इस प्रकार के वाक्यों में मुख्य उद्देश्य और मुख्य विधेय के अतिरिक्त एक या अनेक समापिका क्रियाएँ होती हैं। मुख्य उद्देश्य और मुख्य विधेय वाला वाक्य प्रधान उपवाक्य होता है, शेष उपवाक्य आश्रित उपवाक्य होते हैं।

(iii) संयुक्त वाक्य – संयुक्त वाक्य में एक प्रधान वाक्य और एक या एक से अधिक प्रधान उपवाक्य के समकक्ष होते हैं। (दोनों मिश्र वाक्य भी हो सकते हैं।) संयुक्त वाक्यों में प्रधान उपवाक्य और समानाधिकरण उपवाक्यों को जोड़ने के लिए-और, किन्तु, परन्तु, एवं, तथा, या अथवा आदि सम्बन्धबोधक अव्ययों का प्रयोग किया जाता है।

उदाहरण
1. राम तब घर जाएगा जब मध्यान्तर होगा परन्तु रमेश पहले ही घर चला जाएगा।
2. राम पुस्तक पढ़ रहा है किन्तु मोहन खेल रहा है।

(2) अर्थ की दृष्टि से वाक्य भेद – अर्थ के आधार पर आठ प्रकार के वाक्य होते हैं

  • विधानवाचक वाक्य-जिस वाक्य में क्रिया के होने या करने का सामान्य कथन हो उसे विधानवाचक वाक्य कहते हैं अर्थात् जिससे सीधा अर्थ निकलता हो। उदाहरण-सूर्य गर्मी देता है। मोहन पढ़ता है।
  • निषेधवाचक वाक्य-जिस वाक्य में क्रिया के न होने का बोध हो उसे निषेधवाचक वाक्य कहते हैं। उदाहरण-मोहन नहीं पढ़ती है। राम नहीं जाता है।
  • प्रश्नवाचक वाक्य-जिस वाक्य में प्रश्न किये जाने का बोध हो, उसे प्रश्नवाचक वाक्य कहते हैं। उदाहरण-तुम क्या कर रहे हो? मोहन क्या पढ़ रहा है?
  • विस्मयादिबोधक वाक्य-जिस वाक्य में हर्ष, शोक, घृणा, विस्मय आदि का बोध हो उसे विस्मयादिवाचक वाक्य कहते हैं। विस्मयादिबोधक वाक्य का प्रारम्भ प्रायः आह! अहा! अरे ! छिः! हे राम! हाय! आदि शब्दों से होता है। कभी-कभी ऐसा नहीं भी होता।

उदाहरण:
अहा! तुम आ गये।
हाय! यह क्या हो गया।
यह क्या हो गया, भगवान !
सच! वह मर गया।

(v) आज्ञावाचक वाक्य-जिस वाक्य से किसी प्रकार की आज्ञा या अनुमति का बोध हो उसे आज्ञावाचक वाक्य कहते हैं।
उदाहरण – आप यहाँ से जाइए (आज्ञा) ।                                       आप यहाँ से जा सकते हैं (अनुमति)।

(vi) इच्छावाचक वाक्य-जिस वाक्य से वक्ता की इच्छा, आशीर्वाद, शुभकामना आदि का भाव प्रकट हो उसे इच्छावाचक वाक्य कहते हैं।
उदाहरण: आज तो वर्षा हो जाए।                                                   ईश्वर तुम्हें सुखी रखे।

(vii) संदेहवाचक वाक्य-जिस वाक्य से कार्य के होने में संदेह या संभावना प्रकट हो उसे संदेहवाचक वाक्य कहते हैं।
उदाहरण: वह शायद ही उत्तीर्ण हो।                                                संभवत: वह पढ़ रहा होगा।

(viii) संदेहवाचक वाक्य-जिस वाक्य में एक बात का होना दूसरी बात पर निर्भर हो, उसे संकेतवाचक वाक्य कहते हैं। संकेतवाचक वाक्य मिश्रित वाक्य होता है।
उदाहरण:
यदि वर्षा होती तो फसल अच्छी होती।                                            यदि तुम पढ़ोगे तो उत्तीर्ण हो जाओगे।

अर्थ की दृष्टि से वाक्य भेद तालिका

शुद्ध वाक्य कैसे लिखें।

शुद्ध वाक्य लिखने के लिए हमें अन्विति, पदबन्ध, वाक्य शुद्धीकरण के कुछ विशेष नियमों की जानकारी परम आवश्यक है। अत: छात्र इनको ध्यान से पढ़े और समझने की चेष्टा करें।

1. अन्विति
वाक्य में व्याकरण के अनुसार वाक्य के पदों में लिंग, वचन, कारक तथा पुरुष आदि के साथ क्रिया की अनुरूपता होना ‘अन्वय’ या अन्विति कहा जाता है।
अन्विति सम्बन्धी प्रमुख नियम निम्नानुसार हैं

(क) कर्ता-क्रिया की अन्विति ।
1. जिस वाक्य में कर्ता और कर्म दोनों विभक्ति-रहित हों, वहाँ क्रिया कर्ता के अनुरूप प्रयुक्त होती है, जैसे

  • वसंत मिठाई खाता है।
  • चपला पत्र लिखती है।
  • चिड़ियाँ दाना चुगती हैं।

2. जहाँ कर्ता विभक्ति-रहित हो किन्तु कर्म में परसर्ग लगा हो, वहाँ भी क्रिया कर्ता पद के लिंग, वचनानुसार प्रयुक्त होती है, जैसे

  • अभिषेक कुत्तों को पीटता है।
  • स्त्रियाँ बच्चों को नहलाती हैं।
  • किसान खेतों को सींचता है।

(ख) कर्म-क्रिया की अन्विति
1. जिन कर्ता-पदों के साथ ‘ने’ विभक्ति का प्रयोग होता है किन्तु कर्म या पूरक परसर्ग-रहित होता है, वहाँ क्रिया कर्म के अनुसार प्रयुक्त होती है, यथा

  • सुषमा ने कपड़े धोए।
  • बच्चों ने कुर्सी तोड़ दी।
  • छात्रों ने पुस्तकें पढ़ीं।
  • मल्लिका ने चित्र बनाया।

(ग) निरपेक्ष अन्विति ।
1. जहाँ कर्ता और कर्म दोनों विभक्ति-सहित होते हैं, वहाँ क्रिया पुंल्लिंग एकवचन में होती है, यथा

  • पुलिस ने लुटेरों को पकड़ा।
  • जिलाधिकारी ने कर्मचारियों को बुलाया।
  • डॉक्टर ने रोगियों को देखा।

2. समान लिंग के विभक्ति-रहित अनेक कर्ता-पद जब ‘और’ योजक से जुड़े होते हैं तो क्रिया उसी लिंग के बहुवचन में प्रयुक्त होती है, जैसे

  • भवनेश, शंकर और गौरव आ रहे हैं।
  • शुभा, फाल्गुनी और देविका टहल रही हैं।

3. ‘या’ से जुड़े विभक्ति-रहित कर्ता-पदों की क्रिया अन्तिम कर्ता के अनुसार होती है, जैसे

  • विवाह में मोहन या उसकी बहिनें आएँगी।
  • मैच में सचिन यो गम्भीर खेलेगा।

4. यदि एकाधिक कर्ता-पदों के लिंग भिन्न-भिन्न हों और वे ‘और’ योजक से जुड़े हों तो क्रिया पुंल्लिंग बहुवचन में प्रयुक्त होती है, जैसे

  • मेलों में बच्चे-बूढ़े, नर-नारी, लड़के-लड़कियाँ सभी जाते हैं।
  • प्राचार्य, शिक्षिकाएँ और छात्र सभी पिकनिक पर गये हैं।

5. यदि एक से अधिक कर्ता-पद भिन्न पुरुष में हों तो उनका क्रम होगा-1. मध्यम पुरुष, 2. अन्य पुरुष, तथा 3. उत्तम पुरुष। ऐसे वाक्यों में क्रिया अन्तिम कर्ता के लिंग के अनुसार बहुवचन में होगी। उदाहरणतया

  • तुम, सुरभि और मैं कल बाजार चलेंगे।
  • तुम, तुम्हारा भाई और हम क्रिकेट खेलेंगे।

6. आदर सूचित करने के लिए एकवचन कर्ता के लिए क्रिया बहुवचन में प्रयुक्त होती है, जैसे

  • पिताजी मेरठ से आ रहे हैं।
  • प्रधानमंत्री शाम को भाषण देंगे।

7. प्राण, दर्शन, आँसू, लोग, दाम, ओंठ आदि शब्दों के साथ क्रिया का बहुवचन में प्रयुक्त होता है, जैसे

  • प्राण निकल गए।
  • आँसू टपक रहे थे।
  • जेब में दाम नहीं हैं।

8. संज्ञा-सर्वनाम की अन्विति ।

नियम 1. वाक्य के साथ आने पर सर्वनाम सम्बन्धित संज्ञा के लिंग, वचन का अनुकरण करता है, जैसे
1. राम ने कहा कि वह कल जाएगा।
2. स्त्रियाँ बताती हैं कि वे समर्थ हैं।
नियम 2. आदरार्थ सर्वनाम बहुवचन में आता है, जैसे
चाचा जी ने कहा कि वे कल उपवास रखेंगे।

9. विशेषण-विशेष्य की अन्विति ।
नियम 1. (i) यदि विशेष्य (संज्ञा) से पूर्व या पश्चात् विकारी विशेषण हो तो वह विशेष्य के लिंग, वचन के अनुसार परिवर्तित होता है, जैसे

(ii) अकारान्त, इकारान्त, ईकारान्त, ऊकारान्त तथा ओकारान्त आदि विशेषण सदा एक-से रहते हैं
उदाहरणतया
विश्वसनीय युवक                           ईमानदार लड़का
विश्वसनीय युवती                           ईमानदार लड़की
घरेलू सेवक                                  स्वस्थ युवक
घरेलू सेविका                                स्वस्थ युवती

10. सम्बन्ध-सम्बन्धी अन्विति
नियम 1. सम्बन्ध कारक का लिंग और वचन वाक्य में प्रयुक्त सम्बन्धी के लिंग, वचन के अनुरूप होता है, जैसे
1. कौशल्या दशरथ की रानी थी।
2. राम और लक्ष्मण दशरथ के पुत्र थे।
3. तुम्हारी बहिनें आ रही हैं।
4. आपका पुत्र बीमार है।

2. पदबन्ध
‘पदबन्ध’ का अर्थ है-कई पदों का समूह। पदबन्ध एक पद जैसा कार्य करता है। अतः ‘पदबन्ध’ पदों की वह सामूहिक इकाई है जो वाक्य में संज्ञा, विशेषण, क्रिया, क्रिया विशेषण के रूप में प्रयुक्त होती है, जैसे

‘राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी हमारे आदर्श हैं।’ इस वाक्य में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी’ एक पदबन्ध है जो संज्ञा पद के रूप में कार्य कर रहा है।

पंदबन्ध के प्रकार – पदबन्ध चार प्रकार के होते हैं

  1. संज्ञा पदबन्ध,
  2. विशेषण पदबन्ध,
  3. क्रिया पदबन्ध,
  4. क्रिया विशेषण पदबन्ध।

1. संज्ञा पदबन्ध – जो पदबन्ध संज्ञा पद के रूप में प्रयुक्त होते हैं, उन्हें संज्ञा पदबन्ध कहा जाता है, जैसेपरिश्रमी बालक, थोड़े से फूल, भीम जैसा पराक्रमी, श्री रामप्रसाद, श्रीमती अग्रवाल, राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी आदि।

2. विशेषण पदबन्ध – विशेषण का कार्य करने वाला पदबन्ध ‘विशेषण पदबन्ध’ कहा जाता है, जैसेकुछ-कुछ लाल, अत्यन्त मीठा, तेज चलने वाली गाड़ी, घोड़े पर सवार सैनिक।

3. क्रिया पदबन्ध-जहाँ क्रिया एक से अधिक पदों के मेल से बनी हो वहाँ क्रिया पदबन्ध होता है, जैसे
(i) वह देर तक सोता रहा था।
(ii) भाग्य को कोई नहीं मिटा सकता।

4. क्रिया विशेषण पदबन्ध-क्रिया विशेषण के रूप में प्रयुक्त होने वाले पदबन्ध को ‘क्रिया विशेषण पदबन्ध’ कहा जाता है, जैसे
(i) वह लंगड़ा कर चलती है।
(ii) सूरज धीरे-धीरे छिप गया।

(i) प्रवीणा बहुत सुस्त लड़की है। वाक्य में पद बन्धों का प्रयोग उनके प्रकारों के अनुसार ही होना चाहिए।
अर्थ की दृष्टि के वाक्य में परिवर्तन-अर्थ की दृष्टि से वाक्य आठ प्रकार के होते हैं। इनमें सामान्य कथन का विधानवाचक वाक्य ही अन्य सारे प्रकारों को आधार होता है। विधानवाचक वाक्य को अन्य प्रकार के वाक्यों में बदला जा सकता है, जैसे

विधानवाचक – प्रवीण विद्यालय जाता है।
निषेधवाचक – प्रवीण विद्यालय नहीं जाता है।
प्रश्नवाचक – क्या प्रवीण विद्यालय जाता है?
आज्ञावाचक – प्रवीण! तुम विद्यालय जाओ।
विस्मयवाचक – अरे! प्रवीण विद्यालय जाता है।
इच्छावाचक – काश! प्रवीण विद्यालय जाता।
संदेहवाचक – शायद प्रवीण विद्यालय जाता है।
संकेतवाचक – पिता जोर दें तो प्रवीण जाए।

वाक्य शुद्धीकरण
वाक्य को रचना तथा अर्थ की दृष्टि से शुद्ध होना चाहिए। छात्र प्रायः वाक्य-रचना में कुछ भूलें कर जाते हैं। इनसे बचने के लिए यहाँ अशुद्धियाँ और शुद्ध रूपों का परिचय दिया जा रहा है।

वाक्य-रचना में अशुद्धियाँ-वाक्य-रचना में प्रायः निम्नलिखित पाँच प्रकार की अशुद्धियाँ सम्भव हैं

  1. लिंग सम्बन्धी,
  2. वचन सम्बन्धी,
  3. कारक सम्बन्धी,
  4. विराम-चिह्न सम्बन्धी,
  5. अन्विति और पदक्रम सम्बन्धी।

(1) लिंग सम्बन्धी अशुद्धियाँ – संज्ञा के जिस रूप से उसके पुरुष या स्त्री होने का बोध होता है, उसे लिंग कहते हैं। शुद्ध वाक्य-निर्माण में लिंग की पहचान आवश्यक है।
नीचे लिंग सम्बन्धी कुछ अशुद्ध वाक्य और उनके शुद्ध रूप दिये जा रहे हैं

लिंग-निर्धारण के कुछ नियम निम्न प्रकार हैं

  1. कर्ता के लिंग के अनुसार क्रिया का लिंग निश्चित होता है। जैसे-गोविन्द जाता है। राधा जाती है।
  2. विशेष्य के लिंग के अनुसार विशेषण का लिंग निश्चित होता है, जैसे-अच्छा लड़का, अच्छी लड़की।
  3. वाक्य में एक अधिक कर्ता होने पर अन्तिम कर्ता के लिंग के अनुसार क्रिया का लिंग निर्धारित होता है,
    जैसे-पुरुष, स्त्रियाँ, लड़के और लड़कियाँ मेले में जा रही हैं।
  4. अधिकांश ईकारान्त संज्ञाएँ स्त्रीलिंग होती हैं, लेकिन हाथी, दही, बाराती, नाती, पुजारी, भिखारी आदि इसका अपवाद हैं।
  5. नदियों के नाम स्त्रीलिंग माने जाते हैं। पर्वतों के नाम पुल्लिंग माने जाते हैं।
  6. पृथ्वी के अतिरिक्त सारे ग्रह पुंल्लिंग माने जाते हैं।
  7. सभी समुद्र पुंल्लिंग माने जाते हैं।
  8. सभी नगरों के नाम पुंल्लिंग माने जाते हैं किन्तु, काशी, उज्जयिनी, द्वारिका, मथुरा आदि अपवाद हैं।

(2) वचन सम्बन्धी अशुद्धियाँ-वस्तु के एक या एक से अधिक होने के बोध को वचन कहते हैं। हिन्दी में वचन दो प्रकार के होते हैं
(i) एकवचन-जिस शब्द से ही वस्तु या व्यक्ति का बोध होता है, उसे एकवचन कहते हैं। यथा-बेटी, पहाड़।
(ii) बहुवचन-एक से अधिक वस्तुओं या व्यक्तियों को दर्शाने वाला शब्द बहुवचन कहलाता है, यथा-बेटियाँ, पहाड़ों ।

वचन सम्बन्धी अशुद्धियाँ दूर करने हेतु कुछ ध्यान रखने योग्य बातें

  1. आदरसूचक शब्दों का बहुवचन में प्रयोग किया जाता है, यथा-पिताजी आ गये हैं। अधिकारी महोदय कह रहे थे।
  2. प्राण, दर्शन, आँसू, हस्ताक्षर आदि शब्द भी बहुवचन में प्रयुक्त होते हैं, यथा- मेरे प्राण निकलने वाले हैं। तुम्हारे दर्शन हो गये। देखो, कैसे आँसू बह रहे हैं। उसने हस्ताक्षर कर दिये हैं।
  3. भाववाचक संज्ञाएँ प्रायः एकवचन में प्रयुक्त होती हैं, यथा-जवानी, बुढ़ापा। कुछ अपवाद भी देखने में आते हैं, जैसे
    ‘मिट गई जवानियाँ बन गईं कहानियाँ’ ‘समानताएँ’ देखी जाती हैं।
  4. ‘और’ तथा, एवं, व आदि से जुड़े एकवचन संज्ञा व सर्वनाम पद बहुवचन माने जाते हैं। उनके पुरुष व लिंग तो बाद वाले पद के अनुरूप होते हैं किन्तु वचन ‘और’ से जुड़े पदों की संख्या के अनुरूप एकवचन या (बहुवचन), होते हैं, यथा-लड़के और लड़कियाँ दौड़ेंगी। लड़कियाँ और लड़के कहाँ जा रहे हैं?
  5. अथवा’ (या) से जुड़े पदों के लिंग, पुरुष तथा वचन का निर्धारण बाद वाले पद के अनुसार होता है, यथा-यह फल तुम या मैं खाऊँगा। वह लड़का अथवा वह लड़की मुझे जानती है।

वचन सम्बन्धी कुछ अशुद्ध वाक्ये और उनके शुद्ध रूप

(3) कारक सम्बन्धी अशुद्धियाँ – प्रत्येक वाक्य में एक क्रिया अवश्य होती है। वाक्य में प्रयुक्त ‘संज्ञा’ या ‘सर्वनाम शब्दों का उस वाक्य की क्रिया से जो सम्बन्ध पाया जाता है, उसे कारक कहते हैं, जैसे
(i) राम ने रावण को मारा।
(ii) मोहन कुर्सी पर बैठा है।

कारक चिह्न एवं विभक्तियों की तालिका

कारक के शुद्ध प्रयोग

1. राम ने रावण को मारा।                         (कर्ता कारक)
2. मोहन ने पुस्तक पढ़ी।                           (कर्ता कारक)
3. रमेश ने मोहन को पत्र लिखा।                 (कर्म कारक)
4. राम पुस्तक को पढ़ता है।                       (कर्म कारक)
5. रमेश ने उसे डंडे से मारा।                      (करण कारक)
6. रेणू सीता के लिए चाय लायी।                  (सम्प्रदान कारक)
7. राम बस से उतरा।                                (अपादान कारक)
8. हाथ से गिलास छूट गया।                        (अपादान कारक)
9. मोहन की बहन आ रही है।                     (सम्बन्ध कारक)
10. माँ कुर्सी पर बैठी है।                            (अधिकरण कारक)

कारक सम्बन्धी कुछ अशुद्धियाँ

विभक्ति के प्रयोग में

अशुद्ध वाक्य                                                             शुद्ध वाक्य
(1) राकेश कुत्ते को पीटा।                               राकेश ने कुत्ते को पीटा।
(2) मैंने यह काम नहीं करना।                          मुझे यह काम नहीं करना।
(3) मेरे को पता नहीं है।                                  मुझे पता नहीं है।
(4) हम हमारे घर जा रहे हैं।                            हम अपने घर जा रहे हैं।
(5) मैं मेरा काम जानता हूँ।                              मैं अपना काम जानता हूँ।
(6) लड़कों से जाने के लिए कहो।                      लड़कों से जाने को कहो।
(7) वे मुझ में विश्वास करते हैं।                           वे मुझ पर विश्वास करते हैं।

(4) विराम-चिह्न सम्बन्धी अशुद्धियाँ निम्न प्रकार हैं
प्रमुख विराम-चिह्न-इस प्रकरण में आगे बढ़ने से पूर्व विराम-चिह्नों के विषय में जान लेना आवश्यक प्रतीत होता है। यहाँ उन्हीं विराम-चिह्नों का संक्षिप्त परिचय दिया जा रहा है, जिनका प्रयोग हिन्दी-लेखन में प्रायः होता है।

(1) पूर्ण विराम (।) – इसे पूर्ण वाक्य की समाप्ति पर लगाते हैं। हर भाषा में पूर्ण विराम का प्रयोग किसी-न-किसी रूप में अवश्य होता है, जैसे-बादल घिर आये, अब वर्षा होगी।
(2) प्रश्नवाचक चिह्न (?) – प्रत्येक प्रश्नवाचक वाक्य के अन्त में इसका प्रयोग होता है, यथाइनमें से तुम कितने लोगों को जानते हो? यदि प्रश्नवाचक वाक्य आश्रित उपवाक्य के रूप में हो तो प्रश्नवाचक चिह्न का प्रयोग नहीं करना चाहिए, यथा

  1. मैं जानता हूँ कि वह क्या कर सकता है।
  2.  क्या यह सच है कि कल अवकाश रहेगा?

नोट – ऊपर वाक्य सं. 2 में प्रधान उपवाक्य प्रश्नवाचक है, इसीलिए इसमें प्रश्नवाचक चिह्न लगा है।

(3) अल्पविराम चिह्न (,) – इसी को अंग्रेजी में कॉमा कहते हैं। इसका प्रयोग निम्नलिखित स्थितियों में किया जाता है

(क) ‘और’ से शब्दों या उपवाक्यों को एक-दूसरे से अलग करने के लिए अन्तिम से पहले ‘और’ का तथा शेष स्थानों पर अल्पविराम का प्रयोग करते हैं, यथा

  1. मैं मण्डी से आलू, मिर्च, करेला और टमाटर लाऊँगा।
  2. वह आया, मेरे साथ खेला, थोड़ा पानी पिया और चला गया।

(ख) सामान्यतः उपवाक्यों को एक-दूसरे से अलग करने के लिए

  1. जो परिश्रम करते हैं, वे अवश्य सफल होते हैं।
  2. सब लोग आकर चले गये, तुम भी चले जाओ।

(ग) तो, तब, वह आदि के स्थान पर भी अल्पविराम का प्रयोग होता है, यथा

  1. तुमने जिस कुत्ते को पाला था, वह मर गया।
  2. जब तुम्हारा भाई आ जाए, तब तुम चले जाना।

(घ) सम्बोधन पद को शेष वाक्य से अलग करने के लिए, यथा

  1. मित्रवर, मेरी बात ध्यान से सुनो।
  2. हे प्रभो, मुझ दीन पर दया करो।

(ङ) ‘हाँ’, और ‘नहीं’ के पश्चात् यदि ये वाक्य में सबसे पहले हों, यथा

  1. हाँ, तुम जब चाहो, आ सकते हो।
  2. नहीं, मुझे तुमसे नहीं मिलना।

(च) उद्धरण-चिने से पहले, यथा
दारोगा ने घूरते हुए कहा, “इतनी रात में कहाँ जा रहे हो?”

(4) अर्द्धविराम चिह्न (;) – जहाँ अल्पविराम से कुछ अधिक किन्तु पूर्णविराम से कम देर रुकने की आवश्यकता हो, वहाँ अर्द्धविराम का प्रयोग करते हैं, यथा

1. मैंने बहुत कहा, किन्तु वह नहीं रुका; यह जानते हुए भी कि मैं उसका परम मित्र हूँ।
2. मैंने तो सबको बुलाया है; कुछ आएँगे, कुछ नहीं आएँगे।

(5) उपविराम (अपूर्ण विराम) चिह्न (:) – इस चिहने की आकृति संस्कृत से विसर्ग की भाँति होती है तथा इसे अंग्रेजी में कोलन कहते हैं। इसका प्रयोग पहले लिखित शब्द (या शब्दावली) और उसके सम्बन्ध में अन्य सूचना के बीच में किया जाता है। यह स्थिति प्रायः किसी समाचार, लेख या ग्रन्थ आदि के शीर्षक में देखी जा सकती है, यथा –

  1. कालिदास : एक समीक्षात्मक अध्ययन।
  2. भरतपुर : मुठभेड़ में इनामी डकैत ढेर।।

(6) समास-चिह्न (-) – समास द्वारा जोड़े गये दो या अधिक पद यदि मिलाकर न लिखे जाएँ तो उनके मध्य समास-चिह्न का प्रयोग करते हैं, जैसे-देश-निकाला, नील-कमल, राज-भवन।
विशेष-इन शब्दों को इस प्रकार भी लिख सकते हैं| समानता प्रकट करने के लिए प्रयुक्त ‘सा’ और ‘जैसा’ (सी, से, जैसी, जैसे) आदि से पहले भी समास चिह्न का प्रयोग किया जाता है, जैसे-कमल-सा मुख, तुम-जैसा मनुष्य, बर्फ-सी ठण्डी, बहुत-से लोग आदि।

(7) निर्देशक चिह्न (-) – निर्देशक चिह्न को अंग्रेजी में डैश कहते हैं। यह समास-चिह्न से दोगुना लम्बा होता है। इसे किसी विवरण को निर्देशित करने के लिए उससे पहले तथा लेख आदि में शीर्षक के बाद लगाते हैं, यथा

  1. रावण – रे वानर, तू कौन है?
  2. हनुमान – मैं श्रीराम का सेवक हनुमान हूँ।
  3. कुछ उदाहरण

(8) उद्धरण-चिह्न (“………..)-यदि वक्ता का कहा हुआ वाक्य उसी के शब्दों के दुहराना (उद्धत करना) हो तो उस वाक्य को दोनों ओर से उद्धरण-चिहन से बन्द कर देते हैं, यथा

  1. राजा ने कहा, “हमारी सेना पीछे नहीं हटेगी।”
  2. न्यायाधीश ने अभियुक्त ने पूछा, “तुम अपनी सफाई में क्या कहना चाहते हो ?”

(9) विस्मयसूचक चिह्न (!)-मन में उठने वाले घृणा, शोक, हर्ष, विस्मय आदि भावों को प्रकट करने वाले शब्दों वे बाद उस चिह्न का प्रयोग करते हैं, यथा

वाक्य में पदक्रम का क्या आशय है?

वाक्य में पदक्रम- वाक्य में सभी प्रयुक्त सभी पदों (शब्दों) का एक निश्चित क्रम होता है। यदि शब्दों को निश्चित क्रम में प्रयोग किया जाता है तो पाठक या श्रोता के द्वारा सार्थक अर्थ ग्रहण कर लिया जाता है। यदि पदों का क्रम बिगाड़ कर लिखा जाता है तो वाक्य का सार्थक अर्थ ग्रहण करना दूभर होता है।

वाक्य से क्या आशय है?

पदों या सार्थक शब्दों का व्यवस्थित समूह, जिससे वक्ता के कथन का अभीष्ट आशय अर्थ पूर्ण रूप से स्पष्ट होता है, वाक्य कहलाता है। शब्दों के सार्थक मेल से बनने वाली इकाई वाक्य कहलाती है।

वाक्य से आपका क्या अभिप्राय है हिंदी वाक्य रचना के सामान्य नियम क्या है इनका पालन करना क्यों आवश्यक है?

वह शब्द समूह जिससे पूरी बात समझ में आ जाये, 'वाक्य' कहलाता है। दूसरे शब्दों में- विचार को पूर्णता से प्रकट करनेवाली एक क्रिया से युक्त पद-समूह को 'वाक्य' कहते हैं। सरल शब्दों में- सार्थक शब्दों का व्यवस्थित समूह जिससे अपेक्षित अर्थ प्रकट हो, वाक्य कहलाता है।

वाक्य रचना में परिवर्तन के क्या क्या कारण हो सकते हैं?

प्रयोग की नवीनता के कारण वाक्य रचना पद्धति में परिवर्तन आते हैं। वक्ता या लेखक अपने लेख में नवीनता लाने के लिए नए-नए प्रयोग करते रहते हैं। कुछ वक्ता परस्पर प्रयुक्त हो रहे वाक्यों के पद-क्रम में थोड़े बहुत परिवर्तन कर अधिक आकर्षण या प्रभाव पैदा करना चाहते हैं

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