स्तर को संस्कृत में क्या कहते हैं? - star ko sanskrt mein kya kahate hain?

इसे सुनेंरोकेंश्वः , परश्वः च अहं बहिः गच्छामि । = कल और परसों मैं बाहर जा रहा हूँ / रही हूँ । पर ह्यः अपि अहं बहिः आसम् । = परसों भी मैं बाहर था /थी ।

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मंगलवार को संस्कृत में क्या कहते हैं?

इसे सुनेंरोकेंमंगलवार (Mangalwar) को संस्कृत में मंगलवासरः कहते हैं।

शुक्रवार को संस्कृत में क्या कहते?

इसे सुनेंरोकेंशुभम करोति, कल्याणम्, आरोग्यम्, धन, शत्रु-बुद्धि, विनाशयः, दीप-ज्योति नमोस्तुते!

जनवरी को संस्कृत में कैसे लिखेंगे?

संस्कृत में महीनों के नाम (Months Name in Sanskrit)

क्र. सं.अंग्रेजी में नामसंस्कृत में नाम08अक्टूबर-नवम्बरकार्तिक:09नवम्बर-दिसम्बरमार्गशीर्ष:10दिसम्बर-जनवरीपौष:11जनवरी-फरवरीमाघ:

जनवरी फरवरी को हिंदी में क्या कहते हैं?

इसे सुनेंरोकेंजनवरी – फरवरी. फाल्गुन / फागन. फरवरी – मार्च. यह सभी हिंदी महीनो के नाम हैं व जैसी की हमने हिंदी महीनो के दो दो नाम बताये हैं जैसे चैत्र / चैत तो आपको थोड़ा घबराने की जरुरत नहीं हैं दोनों का अर्थ एक ही होता हैं जैसे हिंदी में कुछ लोग चैत्र महीना बोलते हैं तो कुछ लोग चैत महीना बोलते हैं पर दोनों का अर्थ एक ही होता है.

रात को संस्कृत में क्या बोलते हैं?

इसे सुनेंरोकेंयह नाम संस्कृत के चंद्र (चाँद) और रात्रि (रात) शब्द से बना है। जिसे हिन्दी और उर्दू में चाँद और रात कहते हैं।

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मंगलवार को संस्कृत में क्या कहते हैं *?

संस्कृत में आज को क्या बोलते हैं?

इसे सुनेंरोकेंअत्र परत्र सर्वत्र अद्य श्वश्च युगे युगे॥

सोमवार को संस्कृत में क्या कहते है?

इसे सुनेंरोकेंExplanation : सोमवार को संस्कृत में क्या कहते हैं? – इंदुवासरः सोमवार को शिव जी की पूजा की जाती है।

इसे सुनेंरोकेंBorrowed from Sanskrit शिक्षा (śikṣā), from the root verb शिक्ष् (śikṣ, “to learn, study”).

विद्यालय में संस्कृत शिक्षण का क्या स्थान है?

इसे सुनेंरोकेंसंस्कृत विद्यालयों में कक्षा तीन से एक विषय के रूप में संस्कृत पढ़ाई जावेगी । (ii) उच्च – प्राथमिक स्तर – सामान्य विद्यालयों में तृतीय भाषा के रूप में सरल संस्कृत का शिक्षण होता है । संस्कृत विद्यालयों में संस्कृत का अध्ययन एक प्रमुख विषय के रूप में होता है ।

संस्कृत भाषा शिक्षण का प्रथम सोपान क्या है?

इसे सुनेंरोकेंवर्तनी लेखन करना, गद्यांश का शुद्ध वाचन करना, श्लोकों को कण्ठस्थ करना, व्याकरणिक तत्वों का ज्ञान प्राप्त करना सरल वाक्यों का भाव ग्रहण करते हुए संस्कृत भाषा में रसानुभूति कर सकना आदि ।

संस्कृत शिक्षण की सर्वोत्तम विधि कौन सी है?

संस्कृत शिक्षण की विधियां

  • मॉण्टेसरी विधि-
  • किण्डरगार्डन विधि-
  • डाल्टन विधि-
  • खेलविधि-
  • प्रोजेक्ट विधि-
  • मौखिक विधिः
  • पारायण विधि:-
  • वाद-विवाद विधि:-

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संस्कृत शिक्षण का क्या महत्व है?

इसे सुनेंरोकेंसंस्कृत भाषा का समृद्ध साहित्य :- भारत की चेतना , उसका रूप इसी वाणी में निहित है। संस्कृत केवल एक भाषा नहीं है एवं भारत में उसका अध्ययन केवल एक भाषा विशेष का ज्ञान प्राप्त करना नहीं है। ज्ञान को भारत देश में सर्वाधिक पवित्र रूप में स्वीकार किया गया है। संस्कृत के अध्ययन से हमें आत्मबोध होता है।

संस्कृत क्यों पढ़ना चाहिए?

इसे सुनेंरोकेंयदि संस्कृत को सभी प्रान्तों में अध्ययन के लिए अनिवार्य भाषा बनाया होता और अंग्रेजी इतना परिश्रम संस्कृत सीखने पर किया होता तो भारत के सभी लोग आपस में जुड़ जाते और क्षेत्रीय भाषाओं को समझ पाते। बिना संस्कृत जाने आप भारतीय भाषाओं का पूरी तरह से आस्वाद नहीं उठा सकते। उदाहरण के रुप में ‘वन्दे मातरम्’ इस गान को लिया जाए।

संस्कृत भाषा शिक्षण की उत्तम विधि कौन सी है?

इसे सुनेंरोकेंपाठ्यपुस्तक विधि- उसके पाठों का मातृभाषा में अनुवाद किया जाता है। इसके पुस्तकों का मुख्योद्देश्य छात्रों का स्वयं ही अध्ययन करके सरल संस्कृत ज्ञान प्राप्त करना है । सम्पूर्ण अध्ययन का केन्द्रबिन्दु पाठ्यपुस्तक होती है। शिक्षण सूत्रो का अनुसरण पूर्ण रूप से किया जाता है अतः यह विधि मनोवैज्ञानिक है।

संस्कृत (संस्कृतम्) भारतीय उपमहाद्वीप की एक भाषा है। संस्कृत एक हिंद-आर्य भाषा है जो हिंद-यूरोपीय भाषा परिवार की एक शाखा है।[5] आधुनिक भारतीय भाषाएँ जैसे, हिंदी, बांग्ला, मराठी, सिन्धी, पंजाबी, नेपाली, आदि इसी से उत्पन्न हुई हैं। इन सभी भाषाओं में यूरोपीय बंजारों की रोमानी भाषा भी शामिल है। संस्कृत में वैदिक धर्म से संबंधित लगभग सभी धर्मग्रंथ लिखे गए हैं। बौद्ध धर्म (विशेषकर महायान) तथा जैन मत के भी कई महत्त्वपूर्ण ग्रंथ संस्कृत में लिखे गए हैं। आज भी हिंदू धर्म के अधिकतर यज्ञ और पूजा संस्कृत में ही होती हैं। संस्कृत आमतौर पर कई पुरानी इंडो-आर्यन किस्मों को जोड़ती है। इनमें से सबसे पुरातन ऋग्वेद में पाया जाने वाला वैदिक संस्कृत है, जो 3000 ईसा पूर्व और 2000 ईसा पूर्व के बीच रचित 1,028 भजनों का एक संग्रह है, जो इंडो-आर्यन जनजातियों द्वारा आज के उत्तरी अफगानिस्तान और उत्तरी भारत में अफगानिस्तान से पूर्व की ओर पलायन करते हैं। वैदिक संस्कृत ने उपमहाद्वीप की प्राचीन प्राचीन भाषाओं के साथ बातचीत की, नए पौधों और जानवरों के नामों को अवशोषित किया। द्रविड़ कोई भाषा नहीं बल्कि एक प्राचीन भारतीय राज्य था।

भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में संस्कृत को भी सम्मिलित किया गया है। यह उत्तराखण्ड की द्वितीय राजभाषा है। आकाशवाणी और दूरदर्शन से संस्कृत में समाचार प्रसारित किए जाते हैं। कतिपय वर्षों से डी. डी. न्यूज (DD News) द्वारा वार्तावली नामक अर्धहोरावधि का संस्कृत-कार्यक्रम भी प्रसारित किया जा रहा है, जो हिन्दी चलचित्र गीतों के संस्कृतानुवाद, सरल-संस्कृत-शिक्षण, संस्कृत-वार्ता और महापुरुषों की संस्कृत जीवनवृत्तियों, सुभाषित-रत्नों आदि के कारण अनुदिन लोकप्रियता को प्राप्त हो रहा है।

संस्कृत भाषा का वैश्विक विस्तृति : ३०० ईसापूर्व से लेकर १८०० ई तक की कालावधि में रचित संस्कृत ग्रन्थ एवं संस्कृत अभिलेखों की प्राप्ति के क्षेत्र

संस्कृत का इतिहास बहुत पुराना है। वर्तमान समय में प्राप्त सबसे प्राचीन संस्कृत ग्रन्थ ॠग्वेद है जो कम से कम ढाई हजार ईसापूर्व की रचना है।

संस्कृत भाषा का व्याकरण अत्यन्त परिमार्जित एवं वैज्ञानिक है। बहुत प्राचीन काल से ही अनेक व्याकरणाचार्यों ने संस्कृत व्याकरण पर बहुत कुछ लिखा है। किन्तु पाणिनि का संस्कृत व्याकरण पर किया गया कार्य सबसे प्रसिद्ध है। उनका अष्टाध्यायी किसी भी भाषा के व्याकरण का सबसे प्राचीन ग्रन्थ है।

संस्कृत में संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण और क्रिया के कई तरह से शब्द-रूप बनाये जाते हैं, जो व्याकरणिक अर्थ प्रदान करते हैं। अधिकांश शब्द-रूप मूलशब्द के अन्त में प्रत्यय लगाकर बनाये जाते हैं। इस तरह ये कहा जा सकता है कि संस्कृत एक बहिर्मुखी-अन्त-श्लिष्टयोगात्मक भाषा है। संस्कृत के व्याकरण को वागीश शास्त्री ने वैज्ञानिक स्वरूप प्रदान किया है।

संस्कृत भारत की कई लिपियों में लिखी जाती रही है, लेकिन आधुनिक युग में देवनागरी लिपि के साथ इसका विशेष संबंध है। देवनागरी लिपि वास्तव में संस्कृत के लिए ही बनी है, इसलिए इसमें हर एक चिह्न के लिए एक और केवल एक ही ध्वनि है। देवनागरी में १३ स्वर और ३३ व्यंजन हैं। देवनागरी से रोमन लिपि में लिप्यन्तरण के लिए दो पद्धतियाँ अधिक प्रचलित हैं : IAST और ITRANS. शून्य, एक या अधिक व्यंजनों और एक स्वर के मेल से एक अक्षर बनता है।

चित्र:संस्कृत वाक्यांश.png
संस्कृत, क्षेत्रीय लिपियों में लिखी जाती रही है।

ये स्वर संस्कृत के लिए दिए गए हैं। हिन्दी में इनके उच्चारण थोड़े भिन्न होते हैं।

संस्कृत में ऐ दो स्वरों का युग्म होता है और "अ-इ" या "आ-इ" की तरह बोला जाता है। इसी तरह औ "अ-उ" या "आ-उ" की तरह बोला जाता है।

इसके अलावा निम्नलिखित वर्ण भी स्वर माने जाते हैं :

  • ऋ -- वर्तमान में, स्थानीय भाषाओं के प्रभाव से इसका अशुद्ध उच्चारण किया जाता है। आधुनिक हिन्दी में "रि" की तरह तथा मराठी में "रु" की तरह किया जाता है ।
  • ॠ -- केवल संस्कृत में (दीर्घ ऋ)
  • ऌ -- केवल संस्कृत में (syllabic retroflex l)
  • अं -- न् , म् , ङ् , ञ् , ण् और ं के लिए या स्वर का नासिकीकरण करने के लिए
  • अँ -- स्वर का नासिकीकरण करने के लिए (संस्कृत में नहीं उपयुक्त होता)
  • अः -- अघोष "ह्" (निःश्वास) के लिए

जब कोई स्वर प्रयोग नहीं हो, तो वहाँ पर 'अ' माना जाता है। स्वर के न होने को हलन्त्‌ अथवा विराम से दर्शाया जाता है। जैसे कि क्‌ ख्‌ ग्‌ घ्‌।

स्पर्शअघोषघोषनासिक्यअल्पप्राणमहाप्राणअल्पप्राणमहाप्राणकण्ठ्यक / kə /
k; अंग्रेजी: skipख / khə /
kh; अंग्रेजी: catग / gə /
g; अंग्रेजी: gameघ / gɦə /
gh; महाप्राण /g/ङ / ŋə /
n; अंग्रेजी: ringतालव्यच / cə / or / tʃə /
ch; अंग्रेजी: chatछ / chə / or /tʃhə/
chh; महाप्राण /c/ज / ɟə / or / dʒə /
j; अंग्रेजी: jamझ / ɟɦə / or / dʒɦə /
jh; महाप्राण /ɟ/ञ / ɲə /
n; अंग्रेजी: finchमूर्धन्यट / ʈə /
t; अमेरिकी अंग्रेजी:: hurtingठ / ʈhə /
th; महाप्राण /ʈ/ड / ɖə /
d; अमेरिकी अंग्रेजी:: murderढ / ɖɦə /
dh; महाप्राण /ɖ/ण / ɳə /
n; अमेरिकी अंग्रेज़ी:: hunterदन्त्यत / t̪ə /
t; स्पैनिश: tomateथ / t̪hə /
th; महाप्राण /t̪/द / d̪ə /
d; स्पैनिश: dondeध / d̪ɦə /
dh; महाप्राण /d̪/न / nə /
n; अंग्रेज़ी: nameओष्ठ्यप / pə /
p; अंग्रेज़ी: spinफ / phə /
ph; अंग्रेज़ी: pitब / bə /
b; अंग्रेज़ी: boneभ / bɦə /
bh; महाप्राण /b/म / mə /
m; अंग्रेज़ी: mineटिप्पणी
  • इनमें से ळ (मूर्धन्य पार्विक अन्तस्थ) एक अतिरिक्त व्यंजन है जिसका प्रयोग हिन्दी में नहीं होता है। मराठी और वैदिक संस्कृत में इसका प्रयोग किया जाता है।
  • संस्कृत में ष का उच्चारण ऐसे होता था : जीभ की नोंक को मूर्धा (मुँह की छत) की ओर उठाकर श जैसी ध्वनि करना। शुक्ल यजुर्वेद की माध्यंदिनि शाखा में कुछ वाक्यों में ष का उच्चारण ख की तरह करना मान्य था।

संस्कृत भाषा की विशेषताएँ[संपादित करें]

  • (१) संस्कृत, विश्व की सबसे पुरानी पुस्तक (वेद) की भाषा है। इसलिए इसे विश्व की प्रथम भाषा मानने में कहीं किसी संशय की संभावना नहीं है।[6][7]
  • (२) इसकी सुस्पष्ट व्याकरण और वर्णमाला की वैज्ञानिकता के कारण सर्वश्रेष्ठता भी स्वयं सिद्ध है।
  • (३) सर्वाधिक महत्वपूर्ण साहित्य की धनी होने से इसकी महत्ता भी निर्विवाद है।
  • (४) इसे देवभाषा माना जाता है।
  • (५) संस्कृत केवल स्वविकसित भाषा नहीं बल्कि संस्कारित भाषा भी है, अतः इसका नाम संस्कृत है। केवल संस्कृत ही एकमात्र भाषा है जिसका नामकरण उसके बोलने वालों के नाम पर नहीं किया गया है।
  • संस्कृत > सम् + सुट् + 'कृ करणे' + क्त, ('सम्पर्युपेभ्यः करोतौ भूषणे' इस सूत्र से 'भूषण' अर्थ में 'सुट्' या सकार का आगम/ 'भूते' इस सूत्र से भूतकाल(past) को द्योतित करने के लिए संज्ञा अर्थ में क्त-प्रत्यय /कृ-धातु 'करणे' या 'Doing' अर्थ में) अर्थात् विभूूूूषित, समलंकृत(well-decorated) या संस्कारयुक्त (well-cutured)।
  • संस्कृत को संस्कारित करने वाले भी कोई साधारण भाषाविद् नहीं बल्कि महर्षि पाणिनि, महर्षि कात्यायन और योगशास्त्र के प्रणेता महर्षि पतंजलि हैं। इन तीनों महर्षियों ने बड़ी ही कुशलता से योग की क्रियाओं को भाषा में समाविष्ट किया है। यही इस भाषा का रहस्य है।
  • (६) शब्द-रूप - विश्व की सभी भाषाओं में एक शब्द का एक या कुछ ही रूप होते हैं, जबकि संस्कृत में प्रत्येक शब्द के 27 रूप होते हैं।
  • (७) द्विवचन - सभी भाषाओं में एकवचन और बहुवचन होते हैं जबकि संस्कृत में द्विवचन अतिरिक्त होता है।
  • (८) सन्धि - संस्कृत भाषा की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता है सन्धि। संस्कृत में जब दो अक्षर निकट आते हैं तो वहाँ सन्धि होने से स्वरूप और उच्चारण बदल जा है ।
  • (१०) शोध से ऐसा पाया गया है कि संस्कृत पढ़ने से स्मरण शक्ति बढ़ती है।[8]
  • (११) संस्कृत वाक्यों में शब्दों को किसी भी क्रम में रखा जा सकता है। इससे अर्थ का अनर्थ होने की बहुत कम या कोई भी सम्भावना नहीं होती। ऐसा इसलिये होता है क्योंकि सभी शब्द विभक्ति और वचन के अनुसार होते हैं और क्रम बदलने पर भी सही अर्थ सुरक्षित रहता है। जैसे - अहं गृहं गच्छामि या गच्छामि गृहं अहम् दोनो ही ठीक हैं।
  • (१२) संस्कृत विश्व की सर्वाधिक 'पूर्ण' (perfect) एवं तर्कसम्मत भाषा है।[9]
  • (१३) संस्कृत ही एक मात्र साधन हैं जो क्रमश: अंगुलियों एवं जीभ को लचीला बनाते हैं। इसके अध्ययन करने वाले छात्रों को गणित, विज्ञान एवं अन्य भाषाएँ ग्रहण करने में सहायता मिलती है।
  • (१४) संस्कृत भाषा में साहित्य की रचना कम से कम छह हजार वर्षों से निरन्तर होती आ रही है। इसके कई लाख ग्रन्थों के पठन-पाठन और चिन्तन में भारतवर्ष के हजारों पुश्त तक के करोड़ों सर्वोत्तम मस्तिष्क दिन-रात लगे रहे हैं और आज भी लगे हुए हैं। पता नहीं कि संसार के किसी देश में इतने काल तक, इतनी दूरी तक व्याप्त, इतने उत्तम मस्तिष्क में विचरण करने वाली कोई भाषा है या नहीं। शायद नहीं है। दीर्घ कालखण्ड के बाद भी असंख्य प्राकृतिक तथा मानवीय आपदाओं (वैदेशिक आक्रमणों) को झेलते हुए आज भी ३ करोड़ से अधिक संस्कृत पाण्डुलिपियाँ विद्यमान हैं। यह संख्या ग्रीक और लैटिन की पाण्डुलिपियों की सम्मिलित संख्या से भी १०० गुना अधिक है। निःसंदेह ही यह सम्पदा छापाखाने के आविष्कार के पहले किसी भी संस्कृति द्वारा सृजित सबसे बड़ी सांस्कृतिक विरासत है।[10]
  • (१५) संस्कृत केवल एक मात्र भाषा नहीं है अपितु संस्कृत एक विचार है। संस्कृत एक संस्कृति है एक संस्कार है संस्कृत में विश्व का कल्याण है, शांति है, सहयोग है, वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना है।
1. प्रथमः2. द्वितीयः3. तृतीयः4. चतुर्थः5. पंचमः6. षष्टः7. सप्तमः8. अष्टमः9. नवमः10. दशमः11. एकादशः12. द्वादशः13. त्रयोदशः14. चतुर्दशः15. पंचदशः16. षोड़शः17. सप्तदशः18. अष्टादशः19. एकोनविंशतिः20. विंशतिः1 से 100 तक देखे

भारत और विश्व के लिए संस्कृत का महत्त्व[संपादित करें]

  • संस्कृत कई भारतीय भाषाओं की जननी है। इनकी अधिकांश शब्दावली या तो संस्कृत से ली गई है या संस्कृत से प्रभावित है। पूरे भारत में संस्कृत के अध्ययन-अध्यापन से भारतीय भाषाओं में अधिकाधिक एकरूपता आएगी जिससे भारतीय एकता बलवती होगी। यदि इच्छा-शक्ति हो तो संस्कृत को हिब्रू की भाँति पुनः प्रचलित भाषा भी बनाया जा सकता है।
  • हिन्दू, बौद्ध, जैन आदि धर्मों के प्राचीन धार्मिक ग्रन्थ संस्कृत में हैं।
  • हिन्दुओं के सभी पूजा-पाठ और धार्मिक संस्कार की भाषा संस्कृत ही है।
  • हिन्दुओं, बौद्धों और जैनों के नाम भी संस्कृत पर आधारित होते हैं।
  • संस्कृत, भारत को एकता के सूत्र में बाँधती है।
  • संस्कृत का साहित्य अत्यन्त प्राचीन, विशाल और विविधतापूर्ण है। इसमें अध्यात्म, दर्शन, ज्ञान-विज्ञान और साहित्य का खजाना है। इसके अध्ययन से ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में प्रगति को बढ़ावा मिलेगा।

संस्कृत का अन्य भाषाओं पर प्रभाव[संपादित करें]

संस्कृत भाषा के शब्द मूलत रूप से सभी आधुनिक भारतीय भाषाओं में हैं। सभी भारतीय भाषाओं में एकता की रक्षा संस्कृत के माध्यम से ही हो सकती है। मलयालम, कन्नड और तेलुगु आदि दक्षिणात्य भाषाएं संस्कृत से बहुत प्रभावित हैं। यहाँ तक कि तमिल में भी संस्कृत के हजारों शब्द भरे पड़े हैं और मध्यकाल में संस्कृत का तमिल पर गहरा प्रभव पड़ा।[12]

विश्व की अनेकानेक भाषाओं पर संस्कृत ने गहरा प्रभाव डाला है।[13] संस्कृत भारोपीय भाषा परिवर में आती है और इस परिवार की भाषाओं से भी संस्कृत में बहुत सी समानता है। वैदिक संस्कृत और अवेस्ता (प्राचीन इरानी) में बहुत समानता है। भारत के पड़ोसी देशों की भाषाएँ सिंहल, नेपाली, म्यांमार भाषा, थाई भाषा, ख्मेर[14] संस्कृत से प्रभावित हैं। बौद्ध धर्म का चीन ज्यों-ज्यों प्रसार हुआ वैसे वैसे पहली शताब्दी से दसवीं शताब्दी तक सैकड़ों संस्कृत ग्रन्थों का चीनी भाषा में अनुवाद हुआ। इससे संस्कृत के हजरों शब्द चीनी भाषा में गए।[15] उत्तरी-पश्चिमी तिब्बत में तो अज से १००० वर्ष पहले तक संस्कृत की संस्कृति थी और वहाँ गान्धारी भाषा का प्रचलन था। [16]

तत्सम-तद्भव-समान-शब्दसंस्कृत शब्दहिन्दीमलयालमकन्नडतेलुगुग्रीकलैटिनअंग्रेजीजर्मनफ़ारसी मातृमाताअम्मामातेरमदर्मुटेरमादर पितृ/पितरपिताअच्चन्पातेरफ़ाथर्फ़ाटेरदुहितृबेटीदाह्तर्भ्रातृ/भ्रातरभाईब्रदर्ब्रुडेरपत्तनम्पत्तनपट्टणम्टाउनवैधुर्यम्विधुरवैडूर्यम्वैडूर्यम्विजोवर्सप्तन्सातसेप्तम्सेव्हेन्ज़ीबेनअष्टौआठहोक्तोओक्तोऐय्‌ट्आख़्टनवन्नौहेणेअनोवेम्नायन्नोएनद्वारम्द्वारदोर्टोरनालिकेरःनारियलनाळिकेरम्कोकोस्नुस्ससमसमान sameतात=पिता Dadअहम् I amस्मार्तSmartपंडित पंडित/विशेषज्ञ Pundit

देश, काल और विविधता की दृष्टि से संस्कृत साहित्य अत्यन्त विशाल है। इसे मुख्यतः दो भागों में विभाजित किया जाता है- वैदिक साहित्य तथा शास्त्रीय साहित्य । आज से तीन-चार हजार वर्ष पहले रचित वैदिक साहित्य उपलब्ध होता है।

इनके अतिरिक्त रसविद्या, तंत्र साहित्य, वैमानिक शास्त्र तथा अन्यान्य विषयों पर संस्कृत में ग्रन्थ रचे गये जिनमें से कुछ आज भी उपलब्ध हैं।

शिक्षा एवं प्रचार-प्रसार[संपादित करें]

भारत के संविधान में संस्कृत आठवीं अनुसूची में सम्मिलित अन्य भाषाओं के साथ विराजमान है। त्रिभाषा सूत्र के अन्तर्गत संस्कृत भी आती है। हिन्दी एवं अन्य भारतीय भाषाओं की की वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली संस्कृत से निर्मित है।

भारत तथा अन्य देशों के कुछ संस्कृत विश्वविद्यालयों की सूची नीचे दी गयी है- (देखें, भारत स्थित संस्कृत विश्वविद्यालयों की सूची)

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