लुसियन पाई के अनुसार राजनीतिक संस्कृति के प्रकार
लुसियन पाई ने राजनीतिक संस्कृति के निम्नलिखित प्रकार बताए हैं -
- अभिजनात्मक संस्कृति – पाई के अनुसार सभी शासन व्यवस्थाओं में एक राजनीतिक अभिजन वर्ग होता है। इस वर्ग की राजनीतिक संस्कृति, सामान्य जनमानस की राजनीतिक संस्कृति से भिन्न होती है। इसे ही 'अभिजनात्मक राजनीतिक संस्कृति' कहते हैं। इसके अन्तर्गत राजनीतिक व्यवस्था में सहभागी शासकों और सत्ताधारियों के राजनीतिक मूल्यों, विचारधाराओं व अभिरुचियों को रखा जाता है।
- जन राजनीतिक संस्कृति - जन राजनीतिक संस्कृति, राजनीतिक संस्कृति का वह रूप है, जिसमें जनता के राजनीतिक व्यवस्था के प्रति मूल्यों, अभिरुचियों व विचारों के समूह को सम्मिलित किया जाता है। प्रत्येक राजनीतिक व्यवस्था में जन-संस्कृतियों में भिन्नता पाई जाती है। परन्तु अभिजन संस्कृति और जन संस्कृति एक दूसरे की विरोधी न होकर पूरक होती हैं। दोनों संस्कृतियों के मध्य एक तृतीय वर्ग भी पाया जाता है। वर्तमान परिपेक्ष्य में इस वर्ग का प्रभाव बढ़ता जा रहा है। यह वर्ग जितना शक्तिशाली होता है.दोनों संस्कृतियों के मध्य अन्तर उतना ही अधिक बना रहता है। परिणामस्वरूप इन दोनों विपरीत संस्कृतियों के मध्य संघर्ष की संभावना कम रहती है।
निरन्तरता और सातत्यता की दृष्टि से राजनीतिक संस्कृति के प्रकार
- रुढ़िगत या परम्परागत संस्कृति - विचारकों के अनुसार व्यवहारिकता में विशुद्ध रुढ़िगत अथवा परम्परागत संस्कृति का रूप नहीं पाया जाता है, अपितु इसके कम या अधिक प्रभाव वाले रूप खते हैं। इनमें से जिस राजनीतिक व्यवस्था में राजनीतिक मूल्य व विन्यास अपेक्षाकृत बहुतायत में रुढ़िवादी व परम्परावादी होते हैं, उसे ही रुढ़िवादी संस्कृति' के रूप में वर्गीकृत किया जाता है। यद्यपि इसमें भी कुछ मात्रा में आधुनिकता का समावेश आवश्यक रूप से होता है।
- आधुनिक संस्कृति - इसे नवीन संस्कृति भी कहते हैं। यह राजनीतिक संस्कृति का वह रूप है, जिसमें राजनीतिक व्यवस्था के भीतर व्याप्त राजनीतिक मूल्य, अभिरुचियों व विचार अपेक्षाकृत आधुनिक प्रवृत्ति के होते हैं। इनमें परम्पराओं और रुढ़ियों का स्थान व प्रभाव अपेक्षाकृत कम होता है।
इसी प्रकार राजनीतिक संस्कृतियों का वर्गीकरण विचारवादों के आधार पर भी किया जाता है। इस संदर्भ में इनके कुछ प्रमुख रूप निम्नलिखित हैं -
(1) प्रजातंत्रात्मक राजनीतिक संस्कृति - इसमें राजनीतिक मूल्यों में लोकतांत्रिक व्यवस्था व प्रजातन्त्र की भावना का समुचित समावेश होता है।
(2) साम्यवादी राजनीतिक संस्कृति - इस राजनीतिक संस्कृति में राजनीतिक व्यवस्था व राजनीतिक मूल्यों का स्वरूप साम्यवादी विचारों से प्रेरित होता है।
(3) एकतंत्रवादी राजनीतिक संस्कृति - यह राजनीतिक संस्कृति सर्वाधिकारवादी विचारों से प्रेरित होती है। इस प्रकार की राजनीतिक व्यवस्था में शासन व प्रशासन की सत्ता के एक ही बिन्द को मान्यता होती है और इसे ही सर्वोच्च सम्प्रभु माना जाता है। यद्यपि यह केन्द्र बिन्दु कोई एक व्यक्ति, एक समूह, एक संगठन या एक संस्था की हो सकती है।
वाइज मैन के अनुसार राजनीतिक संस्कृति के प्रकार
वाइज मैन ने सर्वांगसमता के दृष्टिकोण से राजनीतिक संस्कृति को तीन विशुद्ध भागों में बाँटा है -
(1) संकुचित राजनीतिक संस्कृति - सर्वांगसमता के तीन मानक होते हैं -
- निष्ठा,
- उदासीनता,
- अलगाव।
इन्हीं आधारों पर संकुचित राजनीतिक संस्कृति का निर्धारण किया जाता है। संकुचित राजनीतिक संस्कृति में जनता का राजनीतिक व्यवस्था के प्रति उपर्युक्त आधारों पर अभिमुखन नगण्य होता है।
(2) प्रजाभावी राजनीतिक संस्कृति - प्रजाभावी राजनीतिक संस्कृति में राजनीतिक व्यवस्था के स्तर पर सर्वांगसमता के मानकों के प्रति अभिमुखन पाया जाता है।
(3) सहभागी राजनीतिक संस्कृति - सहभागी राजनीतिक संस्कृति में सर्वागसमता के मानकों के प्रति जनता व राजव्यवस्था दोनों में ही अभिमुखन पाया जाता है।
एम.ई.फाइनर के अनुसार राजनीतिक संस्कृति के प्रकार
- प्रौढ़ राजनीतिक संस्कृति - वह राजनीतिक संस्कृति है जोकि दीर्घ समयान्तराल में विकसित होकर परिपक्वता के स्तर को प्राप्त कर लेती है।
- विकसित राजनीतिक संस्कृति - यह राजनीतिक संस्कृति का वह रूप है, जो विकास की प्रक्रिया से होता हुआ अधिक स्पष्टता व निरन्तरता प्राप्त कर लेता है। इसमें स्थायित्व होता है।
- निम्न राजनीतिक संस्कृति - इसमें राजनीतिक संस्कृति के उस रूप को रखते हैं, जोकि विकास की प्रक्रिया में है और अत्यधिक परिवर्तनशील है।
- पूर्व-फ्रांसीसी क्रांति सम संस्कृति - इस रूप में उन राजनीतिक व्यवस्थाओं में व्याप्त राजनीतिक मूल्यों को रखा जाता है, जोकि स्वतन्त्रता, समानता व बन्धुत्व जैसे मूल्यों से अभी भी दूर है।
संस्कृति के कितने रूप हैं?
संस्कृति दो प्रकार की हो सकती है : (1) भौतिक संस्कृति, तथा (2) अभौतिकसंस्कृति।संस्कृति के दो रूप कौन से हैं?
संस्कृति के दो भिन्न उप-विभाग कहे जा सकते हैं- भौतिक और अभौतिक। भौतिक संस्कृति उन विषयों से जुड़ी है जो हमारी सभ्यता कहते हैं, और हमारे जीवन के भौतिक पक्षों से सम्बद्ध होते हैं, जैसे हमारी वेशभूषा, भोजन, घरेलू सामान आदि। अभौतिक संस्कृति का सम्बध विचारों, आदर्शों, भावनाओं और विश्वासों से है।संस्कृति क्या है इसके प्रकार बताइए?
संस्कृति के दो प्रकार होते है-- भौतिक और अभौतिक। भौतिक संस्कृति के अंतर्गत प्रत्यक्ष रूप से अवलोकन करने वाली वस्तुयें आती है जैसे-- घर, मकान, अचल संपत्ति। अभौतिक सांस्कृति के अंतर्गत आचार, विचार, कला एवं विश्वास जैसी वस्तुयें आती है। संस्कृति के अनेक पहलू होते हैं, वे पारस्परिक संबंद्ध व व्यवस्थित रहते है।संस्कृति के कितने पक्ष होते हैं?
संस्कृति के दो भिन्न पक्ष होते हैं- भौतिक और कहलाती हैं। संस्कृति और सभ्यता दोनों शब्द प्रायः पर्याय के रूप में प्रयुक्त किये जाते हैं। फिर भी दोनों में भिन्नता होते हुए दोनों के अर्थ अलग-अलग हैं।