सरहुल पर्व में किसकी पूजा की जाती है? - sarahul parv mein kisakee pooja kee jaatee hai?

इसे सुनेंरोकेंसरहुल में साल और सखुआ वृक्ष की विशेष तौर पर पूजा की जाती है. इस पर्व को झारखंड (Jharkhand) की विभिन्न जनजातियां अलग-अलग नाम से मनाती हैं. उरांव जनजाति इसे ‘खुदी पर्व’, संथाल लोग ‘बाहा पर्व’, मुंडा समुदाय के लोग ‘बा पर्व’ और खड़िया जनजाति ‘जंकौर पर्व’ के नाम से इसे मनाती है.

सूरज कितने दिन से लापता था?

इसे सुनेंरोकेंपूरे दस दिन हो गए सूरज लापता है। आज सुबह तो रज़ाई से निकलने की हिम्मत नहीं हो रही थी ।

सरहुल क्यों मनाते हैं?

इसे सुनेंरोकेंप्रकृति पर्व सरहुल वसंत ऋतु में मनाए जाने वाला आदिवासियों का प्रमुख त्यौहार है। वसंत ऋतु में जब पेड़ ‘पतझड़’ में अपनी पुरानी पतियों को गिरा कर टहनियों पर नई-नई पत्तियां लाने लगती है, तब सरहुल का पर्व मनाया जाता है। यह पर्व मुख्यतः चैत्र मास के शुक्ल पक्ष के तृतीय से शुरू होता है और चैत्र पूर्णिमा को समाप्त होता है।

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सरहुल में लोगों के घर कैसे दिखते हैं?

इसे सुनेंरोकेंसखुआ साल या सरजोम वृक्ष के नीचे मुंडारी खूंटकटी भूमि पर मंुडा समाज का पूजा स्थल सरना होता है। सभी धार्मिक नेग विधि इसी सरना स्थल पर पाहन द्वारा संपन्न किया जाता है। जब सखुआ की डालियों पर सखुआ फूल भर जाते हैं, तब गांव के लोग एक निर्धारित तिथि पर बहा पोरोब मनाते हैं।

सरहुल त्योहार में किसकी पूजा की जाती है?

इसे सुनेंरोकेंसरहुल का शाब्दिक अर्थ है ‘साल पेड़ की पूजा’, सरहुल त्योहार धरती माता को समर्पित है – इस त्योहार के दौरान प्रकृति की पूजा की जाती है। सरहुल कई दिनों तक मनाया जाता है, जिसमें मुख्य पारंपरिक नृत्य, “सरहुल नृत्य” किया जाता है।

सरहुल कहाँ और कैसे मनाया जाता है?

इसे सुनेंरोकेंसरहुल मध्य-पूर्व भारत के आदिवासियों का एक प्रमुख पर्व है जो झारखंड, उड़ीसा, बंगाल और मध्य भारत के आदिवासी क्षेत्रों में मनाया जाता है। यह उनके भव्य उत्सवों में से एक है। यह उत्सव चैत्र महीने के तीसरे दिन चैत्र शुक्ल तृतीया पर मनाया जाता है। यह पर्व नये साल की शुरुआत का प्रतीक है।

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सरहुल का साल के पेड़ से क्या संबंध है?

इसे सुनेंरोकेंनिकायों जो पत्तियों और शाखाओं के पेड़ों से ढंके हुए थे, सुरक्षित नहीं थे, जबकि अन्य शव, जो कि साल के पेड़ से नहीं आते थे, विकृत हो गए थे और कम समय के भीतर सड़ गया थे। इससे साल के पेड़ पर उनका विश्वास दर्शाया गया है जो सरहुल त्योहार से काफी मजबूत है।

Ranchi: झारखंड में इन दिनों सरहुल पर्व (Sarhul Tribal Festival) मनाया जा रहा है. सरहुल आदिवासियों (Tribals) का प्रमुख त्योहार है. पतझड़ के बाद, जब पेड़-पौधे हरे-भरे होने लगते हैं तब सरहुल त्योहार शुरू होता है. यह पर्व महीने भर चलता है. हर साल चैत्र महीने के कृष्ण पक्ष की तृतीया को चांद दिखाई पड़ने के साथ ही सरहुल का आगाज हो जाता है. वहीं, पूर्णिमा के दिन ये पर्व संपन्न होता है.

बता दें कि सरहुल त्योहार धरती माता को समर्पित है.  इस त्योहार के दौरान प्रकृति की पूजा की जाती है. आदिवासियों का मानना ​​है कि इस त्योहार को मनाए जाने के बाद ही नई फसल का उपयोग शुरू किया जा सकता है. चूंकि यह पर्व रबी (Rabi) की फसल कटने के साथ ही शुरू हो जाता है, इसलिए इसे नए वर्ष के आगमन के रूप में भी मनाया जाता है.

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सरहुल दो शब्दों से बना हुआ है 'सर' और 'हुल'. सर का मतलब सरई या सखुआ फूल होता है. वहीं, हुल का मतलब क्रांति होता है.  इस तरह सखुआ फूलों की क्रांति को सरहुल कहा गया है. सरहुल में साल और सखुआ वृक्ष की विशेष तौर पर पूजा की जाती है. इस पर्व को झारखंड (Jharkhand) की विभिन्न जनजातियां अलग-अलग नाम से मनाती हैं. उरांव जनजाति इसे 'खुदी पर्व', संथाल लोग 'बाहा पर्व', मुंडा समुदाय के लोग 'बा पर्व' और खड़िया जनजाति 'जंकौर पर्व' के नाम से इसे मनाती है.

सरहुल पूजा शुरू होने से पहले पाहन या पुजारी को उपवास करना होता है. वो सुबह की पूजा करते हैं. इसके बाद पाहन घर-घर जाकर जल और फूल वितरित करते हैं. घरों में फूल देकर पाहन ये संदेश देते हैं कि फूल खिल गए हैं, इसलिए फल की प्राप्ति निश्चित है. खुशी और उल्लास के इस त्योहार में गांव के सभी आदिवासी इकट्ठा होकर मांदर की थाप पर जमकर नृत्य करते हैं.

Sarhul 2022: सरहुल आदिवासियों के प्रकृति प्रेम का प्रतीक है और आदिवासियों के प्रकृति प्रेम के प्रतीक के रुप में सरहुल पर्व पूरे झारखंड में मनाया जाता है. इस बार सरहुल 4 अप्रैल को है. यह आदिवासी समुदाय का सबसे बड़ा पर्व माना जाता है.

प्रकृति को समर्पित है सरहुल पर्व

सरहुल त्योहार प्रकृति को समर्पित है. इस त्योहार के दौरान प्रकृति की पूजा की जाती है. आदिवासियों का मानना है कि इस त्योहार को मनाए जाने के बाद ही नई फसल का उपयोग शुरू किया जा सकता है. चूंकि यह पर्व रबी (Rabi) की फसल कटने के साथ ही शुरू हो जाता है, इसलिए इसे नए वर्ष के आगमन के रूप में भी मनाया जाता है.

'सर' और 'हुल' से मिलकर बना है सरहुल

सरहुल दो शब्दों से बना हुआ है 'सर' और 'हुल'. सर का मतलब सरई या सखुआ फूल होता है. वहीं, हुल का मतलब क्रांति होता है. इस तरह सखुआ फूलों की क्रांति को सरहुल कहा गया है. सरहुल में साल और सखुआ वृक्ष की विशेष तौर पर पूजा की जाती है.

विभिन्न जनजातियां के बीच प्रसिद्ध है सरहुल पर्व

सरहुल पर्व को झारखंड (Jharkhand) की विभिन्न जनजातियां अलग-अलग नाम से मनाती हैं. उरांव जनजाति इसे 'खुदी पर्व', संथाल लोग 'बाहा पर्व', मुंडा समुदाय के लोग 'बा पर्व' और खड़िया जनजाति 'जंकौर पर्व' के नाम से इसे मनाती है.

सरहुल पर्व की पूजा विधि

सरहुल से एक दिन पहले उपवास और जल रखाई की रस्म होती है. सरना स्थल पर पारम्परिक रुप से पूजा की जाती है. खास बात ये है कि इस पर्व में मुख्य रूप से साल के पेड़ की पूजा होती है. सरहुल वसंत के मौसम में मनाया जाता है, इसलिए साल की शाखाएं नए फूल से सुसज्जित होती हैं. इन नए फूलों से देवताओं की पूजा की जाती है.

सरहुल में किसकी पूजा होती है?

सरहुल का शाब्दिक अर्थ है 'साल की पूजा', सरहुल त्योहार धरती माता को समर्पित है - इस त्योहार के दौरान प्रकृति की पूजा की जाती हैसरहुल कई दिनों तक मनाया जाता है, जिसमें मुख्य पारंपरिक नृत्य सरहुल नृत्य किया जाता है

सरहुल पूजा क्या है?

सरहुल आदिवासियों का प्रमुख पर्व है, जो झारखंड, उड़ीसा और बंगाल के आदिवासी द्वारा मनाया जाता है. यह उत्सव चैत्र महीने के तीसरे दिन चैत्र शुक्ल तृतीया को मनाया जाता है. इसमें वृक्षों की पूजा की जाती है. यह पर्व नये साल की शुरुआत का भी प्रतीक माना जाता है.

झारखंड में सरहुल क्यों मनाया जाता है?

Sarhul Puja 2022 रांची: झारखंड में प्रकृति पर्व सरहुल आज बड़े ही धूमधाम से मनाया जा रहा है, मान्यता के अनुसार ये पर्व सूर्य और धरती के विवाह के तौर पर मनाया जाता है. सखुआ के पेड़ पर फूल लगते ही लोग इसकी तैयारी में जुट जाते हैं.

सरहुल पर्व कब मनाया जाता है?

सरहुल कब मनाया जाता है ? सरहुल पर्व प्रत्येक वर्ष के चैत्र शुक्ल पक्ष के तृतीया से शुरू होकर चैत्र के पूर्णिमा के दिन संपन्न होता है। यह प्रकृति पर्व वसंत ऋतू में मनाये जाने वाला आदिवासियों का प्रमुख त्यौहार है।

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