महाशिवरात्रि का पर्व भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह के उपलक्ष्य में आज देशभर में धूमधाम से मनाया जा रहा है। भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए माता पार्वती ने कठोर तपस्या की थी। शिवजी ने तपस्या से प्रसन्न होकर फाल्गुन मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन माता पार्वती के साथ विवाह किया था। बताया जाता है कि माता पार्वती ने जहां तपस्या की थी, वह स्थान आज केदारनाथ के पास स्थिति गौरी कुंड है और तपस्या पूरी होकर गुप्तकाशी में देवी पार्वती ने भगवान शिव के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा, जिसे भगवान शिव ने स्वीकार कर लिया था। लेकिन क्या आपको पता है कि शिव-पार्वती का विवाह कहां हुआ था और अब वह स्थान कैसा दिखता है। आइए जानते हैं…
यहां हुआ था शिव-पार्वती का विवाह
महादेव ने जब माता पार्वती के साथ विवाह के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया, तब माता के पिता हिमालय ने विवाह की तैयारियां जोरो-शोरों से शुरू कर दी थी और उनकी शादी उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में हुई थी। जहां भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था, वह स्थान आज रुद्रप्रयाग एक गांव त्रिर्युगी नारायण के नाम से जाना जाता है। बताया जाता है कि इस गांव में दोनों का विवाह संपन्न हुआ था और तब यह हिमवत की राजधानी थी।
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मंदिर में स्थित हैं कई अद्भुत चीजें
त्रिर्युगी नारायण में हर साल देशभर से कई लोग संतान प्राप्ति के लिए यहां दर्शन करने आते हैं और हर साल सितंबर के माह में बावन द्वादशी की शुभ तिथि पर यहां मेले का बहुत बड़ा आयोजन भी किया जाता है। त्रिर्युगी नारायण में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का मंदिर है, जिसको शिव-पार्वती के विवाह स्थल के रूप में बताया जाता है। इस मंदिर के प्रांगण में कई ऐसी अद्भुत चीजें हैं, जो दर्शाती हैं कि यह शिव-पार्वती के विवाह का प्रतीक हैं।
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यहां ब्रह्मकुंड और विष्णुकुंड भी हैं
त्रिर्युगी नारायण में एक ब्रह्मकुंड और विष्णुकुंड भी हैं। बताया जाता है कि शिव-पार्वती के विवाह में ब्रह्माजी पुरोहित थे और उनकी शादी से पहले ब्रह्माजी ने जिस कुंड में स्नान किया था, वह ब्रह्मकुंड कहलाया। शिव-पार्वती के विवाह में भगवान विष्णु ने भाई के रूप में सभी रीति-रिवाजों को पूरा किया था। शादी से पहले जहां विष्णुजी ने स्नान किया था, वह विष्णु कुंड कहलाया, इसके बाद उन्होंने विवाह संस्कार में भाग लिया।
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रुद्रकुंड में देवी-देवताओं ने किया था स्नान
त्रिर्युगी नारायण में ब्रह्मकुंड और विष्णुकुंड के अलावा रुद्रकुंड भी है। बताया जाता है कि सभी देवी-देवताओं ने भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह में शामिल हुए थे। विवाह संस्कार में शामिल होने से पहले उन्होंने रुद्रकुंड स्नान किया था। मान्यता है कि इस कुंड को जल का स्त्रोत सरस्वती कुंड से आता है। जब भक्त यहां दर्शन के लिए आते हैं, तब इन कुंड में स्नान करके सभी देवी-देवताओं का आशीर्वाद लेते हैं।
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तीन युगों से जल रही है अखंड धुनी
मंदिर के प्रांगण में जहां भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था, वहां आज भी अग्नि जलती रहती है। बताया जाता है कि तीनों युगों से यह अखंड जल रही है। इसे त्रिर्युगी नारायण मंदिर की अंखड धुनी भी कहा जाता है। इसी अग्नि के चारों ओर भगवान शिव और माता पार्वती ने सात फेरे लिए थे। कई लोग अग्नि कुंड की राख को घर ले जाते हैं। बताया जाता है कि राख को हमेशा साथ में रखने से वैवाहिक जीवन में कोई परेशानी नहीं आती।
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विवाह में मिली थी भगवान शिव को गाय
त्रिर्युगी मंदिर में भगवान शिव और माता पार्वती विवाह के दौरान जिस स्थान पर बैठे थे, वह भी दिखाया गया है। इसी स्थान पर ब्रह्माजी ने शिव-पार्वती का विवाह संपन्न करवाया था। बताया जाता है कि भगवान शिव को विवाह में एक गाय भी मिली थी, जो मंदिर में स्तंभ है, वहां यह गाय बांधी गई थी। इस स्तंभ को आज भी संजोकर रखा गया है। मंदिर से कुछ ही दूरी पर गौर कुंड है, बताया जाता है कि यहीं पर माता पार्वती ने कठोर तपस्या की थी। गौरी कुंड का पानी सर्दियों में भी हमेशा गर्म रहता है।
माता पार्वती और महादेव के अप्रतिम प्रेम से पूरा संसार वाकिफ है। कहते हैं कि उनके आगे प्रेम की पराकाष्ठा भी छोटी महसूस होने लगती है। कई ऐसे पौराणिक किस्से भी सुनने को मिलते हैं जहां देवी-देवताओं ने स्वयं भोलेनाथ के प्रेम को असीम और अनन्य बताया है। शायद यही वजह है कि महादेव ने मां पार्वती को अपने आधे अंग पर स्थान दिया और स्वयं अर्धनारीश्वर कहलाए। तो आइए आज महाशिवरात्रि के पवित्र मौके पर आपको बताते हैं मां पार्वती और महादेव के प्रेम और उनके विवाह की रोचक कथा…
महादेव को पाने के लिए मां का कठोर संकल्प
माता पार्वती भगवान शिव को मन ही मन अपना पति मान चुकी थीं। वह दृढ़ संकल्पित थीं कि विवाह करेंगी तो भोलेनाथ के साथ ही करेंगी। उधर देवता भी यही चाहते थे। देवताओं ने माता पार्वती के विवाह का प्रस्ताव कन्दर्प से भगवान शिव के पास भेजा। जिसे भोलेनाथ ने ठुकरा दिया और उसे अपने तीसरे नेत्र से भस्म भी कर दिया। लेकिन माता इससे भी विचलित नहीं हुईं और कठोर तपस्या शुरू कर दी।
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तब रीझ गए भोलेबाबा माता पार्वती पर
देवी पार्वती की तपस्या से तीनों लोक में हाहाकार मच गया। बडे़-बड़े पहाड़ डगमगाने लगे। देवता भी मदद के लिए भगवान शिव के पास पहुंचे। भोले बाबा भी पार्वती के तप से प्रसन्न हुए और उन्हें दर्शन देकर कहा कि वह किसी राजकुमार से विवाह कर लें। उन्होंने कहा कि उनके साथ रहना आसान नहीं होगा। लेकिन माता पार्वती ने कहा कि वह उन्हें ही अपना पति मान चुकी हैं। अब उनके सिवा किसी और से विवाह नहीं करेंगी। पार्वती के इस असीम प्रेम को देखकर भोलेनाथ विवाह के लिए मान गए।
जब अनोखी बारात लेकर शिव चले ब्याहने
पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शिव जब माता पार्वती को ब्याहने पहुंचे तो उनके साथ संपूर्ण जगत के भूत-प्रेत थे। इसके अलावा डाकिनियां, शाकिनियां और चुड़ैलें भी शिव जी की बारात में शामिल थीं। उन्होंने ने ही भोलेनाथ का भस्म से श्रृंगार किया। हड्डियों की माला पहनाई। इस अनोखी बारात को देखकर तो रानी मैना देवी यानी कि माता पार्वती की मां हैरान रह गईं। उन्होंने अपनी बेटी का विवाह करने से इंकार कर दिया।
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प्रेम की प्राप्ति के लिए जब मां को मनाया
शिव के इस रूप को देखकर माता पार्वती ने उनसे आग्रह किया कि वह विवाह की परंपरा के अनुसार तैयार होकर आएं। इसके बाद भोलेनाथ ने उनकी विनती स्वीकार की और दुल्हे के रूप में तैयार हुए। उनके इस अनुपम सौंदर्य को देखकर रानी मैना देवी चकित रह गईं। इसके बाद सृष्टि रचयिता श्री ब्रह्मा जी की मौजूदगी में देवी पार्वती और भोलेनाथ का विवाह संपन्न हुआ। पौराणिक कथाओं के अनुसार शिव-पार्वती के विवाह की यह तिथि ही महाशिवरात्रि कहलाई।
इसलिए विशेष है महाशिवरात्रि का दिन
मान्यता है कि महाशिवरात्रि का व्रत करने से भक्तों को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है और शिवजी के साथ-साथ माता पार्वती का भी आशीर्वाद मिलता है। कुंवारी कन्याओं को मनचाहा वर मिलता है। इसके लिए विद्वानजन बताते हैं कि कुंवारी कन्याओं को इस दिन नित्य कर्म से निवृत्त होकर व्रत करना चाहिए। इसके बाद किसी भी ऐसे शिव मंदिर में जाएं जहां पर शिव-पार्वती एक साथ विराजते हों। पार्वतीजी को सुहाग का समान अर्पित करते हुए पार्वती और शिव को लाल रंग कलावे से 7 बार बांध देना चाहिए। इसके बाद शीघ्र विवाह की प्रार्थना करनी चाहिए। वहीं सुहागिन स्त्रियों को इस पूजा से अखंड सौभाग्य का वरदान मिलता है।