A. 12,000 Loss
B. 14,000 Profit
C. 12,000 Profit
D. 34,000 Loss
उत्तर – A
साझेदारी फर्म का विघटन
19.यदि फर्म की कुल संपत्ति ₹3,25,000 हो एवं कुल बाहरी लेनदार ₹45,000 हो तो साझेदारों की कुल पूंजी की राशि क्या होगी?
A. 3,70,000
B. 2,80,000
C. 5,00,000
D. 12,000
उत्तर – B
20.साझेदार का दिवालिया होना किस प्रकार के समापन हैं?
A. न्यायालय द्वारा समापन
B. अनिवार्य समापन
C. संयोग द्वारा समापन
D. None Of these
उत्तर – B
21.फर्म के समापन पर सबसे अंत में कौन सा खाता बनाना चाहिए?
A. वसूली खाता
B. साझेदारों के पूंजी खाते
C. रोकड़ खाता
D. साझेदारों के ऋण खाते
उत्तर – C
22.साझेदारी फर्म के समापन के समय कृत्रिम संपत्तियों को हस्तांतरित किया जाता हैं?
A. साझेदारों की पूंजी खाते में
B. वसूली खाते में
C. रोकड़ खाते में
D. साझेदारों के ऋण खाते में
उत्तर – A
23.साझेदार द्वारा वसूली व्ययों के भुगतान की जिम्मेदारी लेने पर क्रेडिट किया जाएगा?
A. वसूली खाता
B. रोकड़ खाता
C. साझेदार का पूंजी खाता
D. None of these
उत्तर – C
साझेदारी फर्म का विघटन
24.जब साझेदार की तरफ से फर्म द्वारा वसूली व्यय का भुगतान किया जाता हैं तो ऐसे व्ययों को डेबिट किया जाता हैं?
A. Realization Account
B. Partner’s Capital Account
C. Partners Loan Account
D. None of these
उत्तर – B
25.निम्न में से किसे वसूली खाते में हस्तांतरित किया जाता हैं?
A. रोकड़ खाते किस शेष को
B. लाभ हानि खाते शेष को
C. संपत्तियों के विक्रय से प्राप्त राशि को
D. संचय
उत्तर – C
26.निम्नलिखित में से किसे वसूली खाते में हस्तांतरित नहीं किया जाता हैं?
A. रोकड़ खाते के शेष को
B. संचय के शेष को
C. लाभ हानि खाते शेष को
D. इनमें से किसी में भी नहीं
उत्तर – C
27.बैलेंस शीट में दिखाई गई रोकड़ बाकी को समापन के समय दिखाया जाता हैं?
A. वसूली खाते में
B. रोकड़ खाते में
C. पूंजी खाते में
D. व्यापारी खाते में
उत्तर – B
28.समापन की दशा में जब कोई साझेदार कोई संपत्ति लेता हैं तो डेबिट किया जाता हैं-
A. वसूली खाता
B. साझेदार के पूंजी खाते
C. रोकड़ खाते
D. संपत्ति खाते
उत्तर – B
29.फार्म के विघटन पर बैंक अधिविकर्ष को हस्तांतरित करेंगे-
A. रोकड़ खाते में
B. बैंक खाते में
C. वसूली खाते में
D. साझेदार के पूंजी खाते में
उत्तर – C
30.फर्म के विघटन पर साझेदार के ऋण खाते को हस्तांतरित किया जाता हैं?
A. वसूली खाते में
B. साझेदार के पूंजी खाते में
C. साझेदार के चालू खाते में
D. None
उत्तर – D
31.लेनदार और देय विपत्र जैसे दायित्वों को वसूली खाते में हस्तांतरित करने के पश्चात भुगतान के संबंध में सूचना के अभाव में ऐसे दायित्व का-
साझेदारी फर्म को विघटन से क्या आशय है? What is meant by dissolution of partnership firm?साझेदारी फर्म को विघटन से क्या आशय है? कर्म के विघटन व साझेदारी के विघटन में क्या अन्तर है? साझेदारी फर्म के विघटन की परिस्थितियाँ रीतियों का वर्णन कीजिये।
अर्थ एवं परिभाषा – भारतीय साझेदारी अधिनियम, 1932 के अनुसार जब एक फर्म (सार्थ) के सभी साझेदार आपस में, पूर्व स्थापित सम्बन्ध विच्छेद कर लें तो इसे साझेदारी फर्म का विघट कहते हैं। एक फर्म के विघटन के बाद फर्म का व्यवसाय अनिवार्यतः समाप्त हो जाता है क्योंकि व्यवसाय समाप्त हुए बिना फर्म का विघटन नहीं हो सकता।
भारतीय साझेदारी अधिनियम, 1932 की धारा 39 के अनुसार, “फर्म के समस्त साझेदारों के बीच साझेदारी समाप्त हो जाने को फर्म का विघटन कहते हैं।”
जब एक या कुछ साझेदारों के मध्य साझेदारी सम्बन्ध समाप्त होता है, अथवा एक या कुछ साझेदार फर्म से अलग हो जाते है तो साझेदारी का विघटन कहते हैं। ऐसी दशा में शेष पुनर्गठन (नवीन समझौता) कर व्यवसाय चालू रख सकते हैं।
Contents
- फर्म का विघटन एवं साझेदारी के विघटन में अन्तर-
- साझेदारी फर्म के विघटन की परिस्थितियाँ ‘या’ ढंग-
फर्म का विघटन होने पर साझेदारी का भी विघटन हो जाता है लेकिन साझेदारी का विघटन होने पर फर्म का विघटन होना आवश्यक नहीं है। किसी साझेदार के प्रवेश करने पर या अवकाश ग्रहण करने पर या किसी साझेदार की मृत्यु हो जाने पर साझेदारों के मध्य पूर्व में हुआ समझौता समाप्त हो जाता है तथा बाद में एक नया समझौता कर व्यवसाय जारी रखा जा सकता है। जबकि फर्म के विघटन में साझेदारी के अन्त के साथ व्यवसाय का भी अन्त हो जाता है।
साझेदारी फर्म के विघटन की परिस्थितियाँ ‘या’ ढंग-साझेदारी फर्म के विघटन की परिस्थितियों को भारतीय साझेदारी अधिनियम, 1932 की धाराएं 40 से 44 तक स्पष्ट किया गया है जिनका वर्णन निम्नानुसार हैं-
(क) ठहराव द्वारा विघटन (Dissolution by Agreement) (धारा 40)- फर्म के विघटन के लिए जब सभी साझेदार सहमत हो या साझेदारी संलेख में अथवा उनके बीच में ऐसा कोई अनुबन्ध हुआ हो।
(ख) अनिवार्य विघटन (Compulsory Dissolution or dissolution by the Operation of Law) (धारा 41 ) – निम्नलिखित परिस्थितियों के अन्तर्गत किसी फर्म का अनिवार्य विघटन हो जाता है:
- जब कोई ऐसी घटना हो जाये तो फर्म के व्यवसाय के संचालन को अवैधानिक बना दें।
- जब सब या एक को छोड़कर शेष साझेदार न्यायालय द्वारा दिवालिया घोषित (मान्य) कर दिये जायें।
(ग) आकस्मिक घटना के घटित होने पर विघटन (Dissolution on the happening of Unexpected Event) (धारा 42)- इसके अन्तर्गत निम्नलिखित दशाओं में से किसी भी दशा में फर्म का विघटन हो जाता है-
- यदि साझेदारी का गठन एक निश्चित अवधि के लिए हुआ है तथा वह अवधि समाप्त हो गयी है;
- यदि साझेदारी का गठन एक या कुछ उपक्रम अथवा उद्देश्य के लिए किया गया है तो उसके पूर्ण होने पर;
- किसी साझेदार के दिवालिया घोषित हो जाने पर;
- किसी साझेदार की मृत्यु होने पर।
(घ) सूचना द्वारा विघटन (Dissolution by Notice of Partnership at Will) (धारा 43)- यदि साझेदारी ऐच्छिक है तो कोई भी भी साझेदार अन्य साझेदारों को फर्म के विघटन से सम्बन्धित, अपने अभिप्राय की लिखित सूचना देकर फर्म का विघटन करा सकता है।
(ङ) न्यायालय द्वारा विघटन (Dissolution by Court) (धारा 44)- किसी साझेदार द्वारा वाद प्रस्तुत करने पर न्यायालय द्वारा निम्नलिखित परिस्थितियों में फर्म का विघटन सम्बन्धी आदेश पारित किया जा सकता है :
- जब कोई साझेदार अस्वस्थ मस्तिष्क का हो गया है।
- जब कोई साझेदार किसी कारण से साझेदार के रूप में अपने कर्तव्यों का निष्पादन करने में स्थायी रूप से अयोग्य हो गया है।
- जब कोई साझेदार ऐसे आचरण का दोषी हो जिससे व्यवसाय को क्षति पहुँचने की सम्भावना हो या हो रही हो।
- जब कोई साझेदार निरन्तर और जान-बूझकर आपसी समझौते या साझेदारी संलेख का उल्लंघन करता है।
- जब कोई साझेदार, फर्म में निहित अपने समस्त हितों को किसी तीसरे व्यक्ति (पक्षकार) को हस्तान्तरित कर दे।
- जब फर्म का व्यवसाय बिना हानि के चलाया जाना सम्भव न हो।
- जब किसी कारण से फर्म का विघटन न्यायालय के दृष्टिकोण से उचित एवं न्यायसंगत हो।
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साझेदारी फर्म का विघटन से क्या आशय है?
साझेदारी के विघटन के दो महत्वपूर्ण तरीके क्या हैं?
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