राधा चाहती है कि कृष्ण इनकी तरह उनको भी जीवन में सार्थकता क्या है यह समझा दे? - raadha chaahatee hai ki krshn inakee tarah unako bhee jeevan mein saarthakata kya hai yah samajha de?

राधा की दृष्टि सेजीवन की सार्थकता बताइए ।

राधा के लिए जीवन में प्यार सर्वोपरि है। वह वैरभाव अथवा युद्ध को निरर्थक मानती है। कृष्ण के प्रति राधा का प्यार निश्छल और निर्मल है। राधा ने सहज जीवन जीया है और उसने चरम तन्मयता के क्षणों में डूबकर जीवन की सार्थकता पाई है। अतः वह जीवन की समस्त घटनाओं और व्यक्तियों को केवल प्यार की कसौटी पर ही कसती है। वह तन्मयता के क्षणों में अपने सखा कृष्ण की सभी लीलाओं का अपमान करती है। वह केवल प्यार को सार्थक तथा अन्य सभी बातों को निर्थक मानती है। महाभारत के युद्ध के महानायक कृष्ण को संबोधित करते हुए वह कहती है कि मैं तो तुम्हारी वही बावरी सखी हूँ, तुम्हारी मित्र हूँ। मैंने तुमसे सदा स्नेह ही पाया है और मैं स्नेह की ही भाषा समझती हूँ।
राधा कृष्ण के कर्म, स्वधर्म, निर्णय तथा दायित्व जैसे शब्दों को सुनकर कुछ नहीं समझ पाती। वह राह में रुक कर कृष्ण के अधरों की कल्पना करती है... जिन अधरों से उन्होंने प्रणय के शब्द पहली बार उससे कहे थे। उसे इन शब्दों में केवल अपना ही राधन्... राधे... राधे... नाम सुनाई देता है।
इस प्रकार राधा की दृष्टि से जीवन की सार्थकता प्रेम की पराकाष्ठा में है। उसके लिए इसे त्याग कर किसी अन्य का अवलंबन करना नितांत निरर्थक है।

राधा की दृष्टि से जीवन की सार्थकता क्या है?

राधा ने सहज जीवन जीया है और उसने चरम तन्मयता के क्षणों में डूबकर जीवन की सार्थकता पाई है। अतः वह जीवन की समस्त घटनाओं और व्यक्तियों को केवल प्यार की कसौटी पर ही कसती है। वह तन्मयता के क्षणों में अपने सखा कृष्ण की सभी लीलाओं का अपमान करती है। वह केवल प्यार को सार्थक तथा अन्य सभी बातों को निर्थक मानती है।

कनुप्रिया में राधा क्या सार्थक समझती है?

'कनुप्रिया काव्य में राधा अपने प्रियतम कृष्ण के 'महाभारत' युद्ध के महानायक के रूप में अपने से दूर चले जाने से व्यथित है। वह इस बात को लेकर तरह-तरह की कल्पनाएँ करती है। कभी अपनी व्यथा व्यक्त करती है, तो कभी अपने प्रिय की उपलब्धि पर गर्व करके संतोष कर लेती है। यह व्यथा केवल राधा की ही नहीं है।

कवि ने राधा के माध्यम से आधुनिक मानव की व्यथा को कैसे शब्दबद्ध किया है?

कनुप्रिया काव्य के माध्यम से कवि ने आधुनिक मानव की व्यथा को ही शब्दबद्ध किया है, क्योंकि आधुनिक मानव में जिस तरह के भाव उत्पन्न होते हैं, वैसे ही भाव राधा के अंदर उत्पन्न हो रहे हैं। राधा अपने प्रियतम श्रीकृष्ण के स्वयं से दूर चले जाने से बेहद व्यथित हैं। इसी कारण वह तरह-तरह की बातें सोचती रहती हैं।

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