रस्सी कच्चे धागे की खींच रही मैं नाव जाने कब सुन मेरी पुकार, करें देव भवसागर पार - rassee kachche dhaage kee kheench rahee main naav jaane kab sun meree pukaar, karen dev bhavasaagar paar

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रस्सी कच्चे धागे की खींच रही मैं नाव पंक्ति का अभिप्राय क्या है?

नाव का मतलब है जीवन की नैया। इस नाव को हम कच्चे धागे की रस्सी से खींच रहे होते है। कच्चे धागे की रस्सी बहुत कमजोर होती है और हल्के दबाव से ही टूट जाती है। हालाँकि हर कोई अपनी पूरी सामर्थ्य से अपनी जीवन नैया को खींचता है।

रस्सी कच्चे धागे की खींच रही मानव में कौन सा अलंकार है?

´ करें देव भवसागर पार', 'रस्सी कच्चे धागे की, खींच रही मैं नाव' - पंक्तियों में रूपक अलंकार है । आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार का प्रयोग हुआ है ।

कवयित्री ने कच्चे धागे की रस्सी और नाव का प्रयोग किसके लिए किया है और क्यों?

Answer: यहाँ रस्सी से कवयित्री का तात्पर्य स्वयं के इस नाशवान शरीर से है। उनके अनुसार यह शरीर सदा साथ नहीं रहता। यह कच्चे धागे की भाँति है जो कभी भी साथ छोड़ देता है और इसी कच्चे धागे से वह जीवन नैया पार करने की कोशिश कर रही है।

कच्चे धागे किसका प्रतीक है?

Answer: कच्चा धागा कमजोरी एवं अनिश्चितता का प्रतीक है। कच्चे धागा झूठे प्रयासों और नश्वर संसार का प्रतीक है।

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