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- हरिश्चंद्र के वंशजों का था इस किले पर राज, आज छान रहे जंगलों की खाक
हरिश्चंद्र के वंशजों का था इस किले पर राज, आज छान रहे जंगलों की खाक
रांची। ऐतिहासिक रोहतासगढ़ किला तो विश्वप्रसिद्ध है। यह राजा हरिश्चंद्र के पुत्र रोहिताश्व से जुड़ा है। यह वही रोहिताश्व थे, जिन्हें राजा हरिश्चंद्र की परीक्षा लेते समय मृत्यु दे दी गई थी और पुनर्जीवित कर दिया गया था। अयोध्या के राजा द्वारा वहां से सैकड़ों किलोमीटर दूर गढ़ की स्थापना के पीछे एक कहानी जुड़ी है, जो बहुत कम ही लोग जानते हैं।
कहानी यह है कि अपने जीवनकाल में रोहिताश्व ने एक आदिवासी कन्या से विवाह कर लिया था। फिर इसी गढ़ में उनके वंशजों ने सदियों तक
शासन किया। पर मुस्लिम आक्रमणों के बाद उनके हाथ से यह गढ़ निकल गया। आदिवासी कन्या से हुए रोहिताश्व के वंशज आज भी जीवित हैं पर अब इस गढ़ पर उनका राज नहीं है। वे अब जंगलों की खाक छान रहे हैं।
राजा हरिश्चंद्र के वंशजों की कहानी तस्वीरों की जुबानी जानिए आगे की स्लाइड्स पर।
विषयसूची
- 1 राजा हरिश्चंद्र के पिता जी का नाम क्या था?
- 2 राजा हरिश्चंद्र कौन जाति के थे?
- 3 राजा हरिश्चंद्र के पुत्र का क्या नाम था?
- 4 हरिश्चंद्र की माता का नाम क्या था?
- 5 राजा हरिश्चंद्र भगवान राम के क्या लगते थे?
- 6 राजा हरिश्चंद्र के पूर्वजों का क्या नाम था?
- 7 राजा त्रिशंकु के पुत्र का नाम क्या था?
- 8 हरिश्चंद्र के माता पिता कौन थे?
राजा हरिश्चंद्र के पिता जी का नाम क्या था?
इसे सुनेंरोकेंत्रिशंकु वास्तविक नाम सत्यव्रत था। यह प्रसिद्ध राजा हरिश्चंद्र का पिता था।
राजा हरिश्चंद्र कौन जाति के थे?
इसे सुनेंरोकेंराजा हरिश्चंद्र अयोध्या के प्रसिद्ध क्षत्रिय सूर्यवंशी (इक्ष्वाकुवंशी,सूर्यवंशी कोली, रघुवंशी,अर्कवंशी) राजा थे जो त्रिशंकु के पुत्र थे। ये अपनी सत्यनिष्ठा के लिए अद्वितीय थे और इसके लिए इन्हें अनेक कष्ट सहने पड़े।
राजा हरिश्चंद्र के वंशज कौन थे?
राजा हरिश्चंद्र की वंशावली
- ब्रह्मा जी के पुत्र मरीचि
- मरीचि के पुत्र कश्यप
- कश्यप के पुत्र विवस्वान या सूर्य
- विवस्वान के पुत्र वैवस्वत मनु – जिनसे सूर्यवंश का आरम्भ हुआ।
- वैवस्वत के पुत्र नभग
- नाभाग
- अम्बरीष- संपूर्ण पृथ्वी के चक्रवर्ती सम्राट हुये।
- विरुप
राजा हरिश्चंद्र के पुत्र का क्या नाम था?
इसे सुनेंरोकेंहरिश्चंद्र की पत्नी का नाम तारामती और पुत्र का नाम रोहिताश्व था. उनका पारिवारिक जीवन बहुत ही सुखद था.
हरिश्चंद्र की माता का नाम क्या था?
इसे सुनेंरोकेंघटोत्कच की माता का नाम हिडिंबा था जो भीम की दानव पत्नी थी । घटोत्कच के पुत्र का नाम महात्मा बर्बरीक था जो आगे चलकर खाटू श्याम जी के नाम से जाने गए। सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र प्रभु श्रीराम के पूर्वज थे। एक बार महर्षि विश्वामित्र ने उनकी सत्यवादिता और धर्म परायणता की की बहुत कठिन परीक्षा ली थी।
भारतेंदु हरिश्चंद्र की मृत्यु कब हुई?
6 जनवरी 1885भारतेन्दु हरिश्चंद्र / मृत्यु तारीख
राजा हरिश्चंद्र भगवान राम के क्या लगते थे?
इसे सुनेंरोकेंअयोध्या के राजा हरिशचंद्र बहुत ही सत्यवादी और धर्मपरायण राजा थे। वे भगवान राम के पूर्वज थे। वे अपने सत्य धर्म का पालन करने और वचनों को निभाने के लिए राजपाट छोड़कर पत्नी और बच्चे के साथ जंगल चले गए और वहां भी उन्होंने विषम परिस्थितियों में भी धर्म का पालन किया।
राजा हरिश्चंद्र के पूर्वजों का क्या नाम था?
इसे सुनेंरोकेंराजा हरिश्चंद्र की वंशावली – विवस्वान के पुत्र वैवस्वत मनु – जिनसे सूर्यवंश का आरम्भ हुआ। अम्बरीष- संपूर्ण पृथ्वी के चक्रवर्ती सम्राट हुये।
राजा हरिश्चंद्र के कितने पुत्र थे?
इसे सुनेंरोकेंसत्यवादी राजा हरिश्चंद्र का एक ही पुत्र था, जिसका नाम ‘रोहित’ था।
राजा त्रिशंकु के पुत्र का नाम क्या था?
इसे सुनेंरोकेंहरिश्चंद्र ^२ संज्ञा पुं॰ सूर्यवंश का अट्ठाईसवाँ राजा जो त्रिशंकु का पुत्र था ।
हरिश्चंद्र के माता पिता कौन थे?
इसे सुनेंरोकें’मार्कंडेय पुराण’ के अनुसार, राजा हरिश्चंद्र त्रेता युग में अयोध्या के प्रसिद्ध क्षत्रिय सूर्यवंशी (इक्ष्वाकु वंशी, रघुवंशी) राजा थे जो सत्यव्रत / त्रिशंकु के पुत्र थे।
हरिश्चंद्र का जन्म कैसे हुआ?
इसे सुनेंरोकेंराजा हरिश्चंद्र एक सत्यवादी, निष्ठावान एवं शक्तिशाली सम्राट थे। हरिश्चंद्र पौष माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन सूर्यवंश में जन्मे थे। राजा हरिश्चन्द्र ने सत्य के लिए अपने पुत्र, पत्नी और खुद को बेच दिया था। अपने दानी स्वभाव की वजह से विश्वामित्र कोअपना सम्पूर्ण राज्य को दान में दे दिया था।
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नमस्कार दोस्तों! हमारा भारत देश सत्य और वचन का पालन करने के लिए जाना जाता है। कई महान राजा अपने वचन के कारण युद्ध में हार गए थे। हम राजा राम की ही बात करे तो उन्हों ने अपने पिता के वचन के कारण वह 10 वर्ष तक वनवास किया था। वहि भीष्म पितामहा ने अपनी माँ से दिए गए वचन के कारण कभी भी राज गाद्दी पर नही बैठे थे। वैसे ही थे राजा हरीश्चद्र जो सत्यवादी और अपने वचनों का पालन करने वाले व्यक्ति थे। सत्य की चर्चा जब भी कही जाती है तो राजा हरिश्चन्द्र का नाम अवश्य आता है। हरिश्चन्द्र राजा अयोध्या नगरी के राजा थे, और राजा सत्यव्रत के पुत्र थे।
महाराजा हरिश्चंद्र अपनी सत्यनिष्ठ के लाई प्रसिद्ध है इस लिए उन्हें कई सारी मुश्केलियो से गुजरना पाडा था। हरिश्चन्द्र राजा इक्ष्वाकुवंशी और अर्कवंशी के वंशज थे। हम सभी ने हरिश्चन्द्र से लगती कई सारी कहानी सुनी है। हरिश्चंद्र राजा ने अपने जीवन कई कष्टों का सामना करना पडता था। हरिश्चन्द्र राजा और उनकी पातीं पुत्र नही था, इस लिए वे अपने कुल गुरु वशिष्ठ के पास अपनी समस्या का उपाय शोधने के लिए गए। कुलगुरु ने हरिश्चन्द्र की इस समस्या का उपाई बताया और कहा की वे वरुणदेव की आराधना करे। हरिश्चन्द्र राजा ने पूरी भक्ति के साथ वरुणदेव की आराधना की वरुणदेव प्रसंत हुई। और उन्हें पुत्र प्रप्ति का वचन दिया और एक शर्त वरुणदेव ने रखी थी।
शर्त के हिसाब से हरिश्चंद्र और उनकी पत्नी को जो पुत्र होगा उन्हें उस पुत्र की बलि यज्ञं के समय देने होगी। थोड़े समय बाद महाराजा हरिश्चन्द्र को एक पुत्र हुआ उस पुत्र का नाम रोहित रखा गया था। पुत्र के जन्म के बाद हरिश्चन्द्र ने अपनी की गई प्रतिज्ञान को नजर अंदाज कर दिया जिसे क्रोधित होकर वरुण देव ने हरिश्चन्द्र को श्राप दिया की उन्हें जलोदर नामक रोग होगा। तो चलिए जानते है राजा हरिश्चंद्र कहानी के बारे विस्तार से।
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राजा हरिश्चन्द्र का जीवन परिचय (Biography of Raja Harishchandra)
नाम | राजा हरिश्चंद्र |
पिता का नाम | सत्यव्रत |
जन्म तिथि | पौष माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा |
जन्म स्थान | अयोध्या नगरी |
कुल | सूर्यवंश, |
पत्नी का नाम | तारामति |
कुल गुरु | गुरु वशिष्ठ |
पुत्र | रोहित |
प्रख्यात | सत्य बोलने और वचन पालन |
राष्टियता | भारतीय |
राजा हरिश्चन्द्र अयोध्या नगरी के बहुत ही प्रसिद्ध राजा हुआ करते थे। उनके पिता नाम सत्यव्रत था। महाराजा हरिश्चंद्र का जन्म पोष महा के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन अयोध्या नगरी में हुआ था। हरिश्चंद्र राजा सूर्यवंश के वंशज थे। उनका विवाह राजकुमारी तारामती के साथ हुआ था। हरिश्चन्द्र राजा को तारामती से एक पुत्र था जिनका नाम रोहित था। हरिश्चन्द्र के कुल गुरु का नाम गुरु वशिष्ठ था। हरिश्चन्द्र राजा सत्य और वचन पालन होने के कारण बहुत ही प्रख्यात राजा बने थे। इस वजह जे हरिश्चंद्र राजा को अपने सत्य और वचन पालन की कई सारी परीक्षाऐ देने पड़ी थी, इस सभी कष्टों के बाद भी हरिश्चन्द्र राजा ने अपने सत्यनिष्ठां को बनाये रखा था। हरिश्चन्द्र राजा के बारे में कई सारी कहानियाँ प्रसिद्ध है।
राजा हरिश्चन्द्र को वरुणदेव से श्राप
हरिश्चन्द्र राजा के पास सब कुछ था लेकिन अयोध्या नगरी की गद्दी में बेठने के लिए कोई वारिस नही था। इस लिए राजा हरीश्चन्द्र अपनी इस समस्या का समाधान करने हेतु कई यज्ञं और तप करते लेकिन उन्हें कुछ हासिल नही होता था। एक दिन वह अपनी इस समस्या का समाधन करने के लिए अपने कुल गुरु वशिष्ठ के यहाँ जा पहुच गुरु वशिष्ठ ने उनकी इस समस्या को सुना और उन्हें एक उपाय बताया की वे वरुणदेव की आराधना करे। गुरु वशिष्ठ के कहे अनुसार हरिश्चन्द्र ने वरुणदेव की आराधना की और उन्हें प्र्संत्र किया वरुणदेव ने उन्हें पुत्र प्रप्ति का वरदान दिया और एक शर्त रखी थी की उन्हें जो भी पुत्र प्राप्त होगा, उस पुत्र की बलि यज्ञं समय दौरान देने होगी। राजा वरुणदेव की इस शर्त का स्वीकार कर लिया और उनके घर एक पुत्र का जन्म हुआ। हरिश्चंद्र राजा को पुत्र प्राप्त होने के बाद उन्होंने वरुणदेव की इस शर्त को अनदेखा कर लिया। इस से क्रोधित होकर वरुणदेव ने राजा को शार्प दिया की उन्हें जलोदर नाम का एक भयंकर रोग होगा।
उसके बाद हरिश्चन्द्र को जलोदर रोग ने अपनी जपेट मे लिए लिया था। हरिश्चन्द्र राजा के जीवन काल में त्रेता युग चल रहा था। जलोदर रोग से छुटकारा पाने के लिए। हरिश्चंद्र राजा फिर से अपने कुल गुरु वशिष्ठ के पास जा पहुचे गुरु वशिष्ठ ने कहा की अगर उन्हें इस रोग से छुटकार पाना है, तो फिर से वरुणदेव को प्रसत्र करना बहुत ही आवश्यक है। वरुणदेव को प्रसत्र कने के लिए जब वह हवन कर रहे थे, तब उनके पुत्र रोहित को इन्द्रदेव ने जंगल में भगा दिया था। गुरु वशिष्ठ की अनुमति से हरिश्चन्द्र ने एक गरीब ब्रह्मंड के बच्चे को खरीद लिया और यज्ञं का प्रारंभ किआ था। लेकिन बलि चढाने के वक्त शमिता ने कहा की वे पशु की बलि देता है एक मासूम बालक की नही लेकिन विश्वामित्र ने कहा की में बताता हु, की वरुणदेव को कैसे प्र्सत्र किया जाता है। आप मंत्र का जप कीजिए, विश्वमित्र के मंत्र जाप से वरुणदेव प्रस्नत्र हुए, वरुणदेव ने प्रकट होकर कहा की, “में तुम्हारे इस यज्ञं से खुश हुआ राजन तुम्हे जलोदर रोग से मुक्त करता हु” और यह भी कहा की ब्रहमंड के पुत्र शुन:शेपको को छोड़ दिया जाए। वरुणदेव के जाने के बाद इन्द्रदेव ने रोहिताश्व को यज्ञं की जगह पर छोड़ दिया।
राजा हरिश्चन्द्र की विश्वमित्र ने ली परीक्षा
राजा हरिश्चन्द्र धार्मिक, सत्यप्रिय और न्यायी थे। एक दिन जब महाराजा हरिश्चन्द्र रात्रि के समय विश्राम कर रहे थे। तभी उन्हें एक संपन देखा की उनके दरबार में एक ब्रह्मंड आया है,और वह ब्रहमंड राजा से तिन सवाल पूछे की दान किसे देना चाहिए?, किसकी रक्षा करनी चाहिए? और किस से युद्ध करना चाहिए। राजा ने जवाब दिया की दान ब्रह्मंण और आजीविका विहीन को देना चाहिए। रक्षा भयभीत प्राणी की करनी चाहिए, और युद्ध हमेशा शत्रु से करना चाहिए। उस ब्रह्मंड हरिश्चंद्र राजा से अपनी राज्य को दान में माँगा तभी हरिश्चन्द्र राजा की आखं खुल गई और वे अपने संपन को भूल गए।
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उसके दो दिन बाद विश्वामित्र राजा के दरबार में आए और विश्वामित्र ने राजा को आये संपन के बारे बताया और कहा की वे सब मेरी ही की हुए विद्या थी। विश्वामित्र ब्रह्माण होने के नाते राजा से उसके राज्य को दान में माँगा,और हरिश्चन्द्र ने अपने राज्य को विश्वमित्र को दान में दे दिया। फिर विश्वामित्र ने राजा से अपने किये गए यज्ञं की दक्षिणा मांगी तो राजा ने अपने मंत्री को मुद्रा लाने को कहा तभी गुरु विश्वामित्र ने राजा से कहा की, “तुम अपना राज्य दान में दे चुके हो अब वह राज्य तुम्हारा नही रहा”। “तुम्हारे पास है, वे दो” विश्वामित्र की यह बात को सुनकर राजा ने कहा की, “आप सच्च कह रहे है गुरुजी आपकी दक्षिणा देने के लिए मुझे कुछ समय दीजेऐ” विश्वामित्र क्रोधित हो कर कहा की अगर तुम दक्षिणा नही दी सकते तो मना करदो अन्यथा में तुम्हे भस्म होने का श्राप देते हु।
राजा हरिश्चन्द्र ने श्मशान की रखवाली की थी
राजा ने अपने आपको बेचने का निर्णय लिया उस समय दौरान मनुष्य को पशुओ जैसे खरीदा और बेचा जा सकता था। राजा ने अपने आपको काशी में बेचने का फेसला किया हरिश्चन्द्र को शार्प से ज्यादा यह बात का दुःख था, की वे विश्वामित्र को दक्षिणा नही दे सकते थे। काशी में कई जगह भटक ने के बाद एक श्मशान के रखवाले ने उन्हें ख़रीदा लेकिन दक्षिणा के लिए इतनी मुद्राए कम थी इस वजह से राजा ने अपनी पत्नी और पुत्र दोनों को बेच दिया और विश्वामित्र को दक्षिणा दी ।
हरिश्चंद्र राजा ने अपने पुत्र और पत्नी को एक ब्राह्मण के हाथो बेच दिया और खुद श्मशान की रखवाली करने लगे थे। जिस राजा के हजारो दास दासिय हुआ करती थी वे राजा एक श्मशान में मुर्दों की कर वसूली का काम कर रहा था जो राजा हर रोज सोने और चांदी का दान किया करता था वह राजा को आज दुसरो से भीख मांग रहा है। रानी तारामती जो अयोध्या की महरानी थी वे जूठे बर्तन साफ कर रही जो पुत्र रोहित जिस कभी गरीबी देखि ही नही वे सुकी रोटी खा कर गुजरा कर रहा था। अपने मालिक की फटकार और ड़ाट को सुनते हुए महाराजा हरिश्चन्द्र रानी तारामती दोनों पूरी ईमानदारी से अपना फर्ज निभाया करते थे, और सत्य वचन का पालन किया था।
राजा हरिश्चंद और रानी तारामति
एक दिन की बात है,जब पुत्र रोहित खेल रहा था तब उस एक जहरी ले साप ने डस लिया और तत्काल में उनकी मृत्यु हो गए रानी तारामति अपने पुत्र के देह को लेके श्मशान में अग्नि संस्कार करने के लिए लेकर गई और पुत्र के देह को जला ने के लिए कहा गया। लेकिन पुत्र के चिता को जलाने के लिए तारामती के पास हरिश्चन्द्र ने मुद्रा की मांग की तारामती ने कहा की उनके पास देने के लिए कोई भी कर नही है तभी हरिश्चन्द्र राजा ने कहा की तुम्हे कर तो चूका न ही पड़ेगा नियम से कोई मुक्त नही हो सकता है। अगर तुम्हे बिना कर लिए छोड़ दुगा तो मालिक समजेगा की मेने उनके साथ विश्वासघात कहा जाएगा। उन्होंने कहा की आप चाहे तो अपनी साडी का आधा भाग मुझे दी सकती है में कर समज कर रख लुगा।
रानी तारामति मजबूर होकर उन्होंने अपनी साडी के आधे हिसे को फाड़ न शरू किया की तभी गुरु विश्वामित्र प्रगट हुए और हरिश्चन्द्र राजा को यह आशीर्वाद दिया और कहा की तुम्हारी परीक्षा पूर्ण हुए में तुम्हारा राज्य तुम्हे वापस मिलेगा और पुत्र को पुनह जीवन दान का वरदान दिया। अयोध्या के महान हरिश्चंद्र राजा ने खुद को बेच लेकिन अपने सत्य वचन का पालन किया। हरिश्चन्द्र राजा का नाम सत्य और पालन का बेमिसाल उदाहरन बना है। कलयुग के इस समय में भी हरिश्चंद्र राजा का नाम पुरे आदर और श्रद्धा से लिया जाता है।
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राजा हरिश्चन्द्र की वंशावली
- ब्रह्मा जी के पुत्र मरीचि
- मरीचि के पुत्र कश्यप
- कश्यप के पुत्र विवस्वान या सूर्य
- विवस्वान के पुत्र वैवस्वत मनु – जिनसे सूर्यवंश का आरम्भ हुआ।
- वैवस्वत के पुत्र नभग
- नाभाग
- अम्बरीष- संपूर्ण पृथ्वी के चक्रवर्ती सम्राट हुये।
- विरुप
- पृषदश्व
- रथीतर
इक्ष्वाकु प्रतापी राजा के नाम से वंश का नाम इक्ष्वाकु वंश शुरू हुआ था
- कुक्षि
- विकुक्षि
- पुरन्जय
- अनरण्य प्रथम
- पृथु
- विश्वरन्धि
- चंद्र
- युवनाश्व
- वृहदश्व
- धुन्धमार
- दृढाश्व
- हर्यश्व
- निकुम्भ
- वर्हणाश्व
- कृशाष्व
- सेनजित
- युवनाश्व द्वितीय
त्रेतायुग का आरम्भ
- मान्धाता
- पुरुकुत्स
- त्रसदस्यु
- अनरण्य
- हर्यश्व
- अरुण
- निबंधन
- सत्यवृत (त्रिशंकु)
- सत्यवादी हरिस्चंद्र
राजा हरिश्चन्द्र के जीवन पर कौनसी फिल्म बनी थी?
भारत के इतिहास में राजा हरिश्चंद्र का नाम बहुत ही प्रसिद्ध है। भारत के फिल्म इंडस्ट्री में भी उनकी जलक देखने को मिलती है। एक टीवी सीरयल में हरिश्चंद्र राजा का अभिनय बहुत बारा दिखाया जा चूका है। हरिश्चंद्र राजा के नाम पर कई सारी फिल्मे भी बनी है। फिल्म इंडस्ट्री में दादा साहेब फाल्के ने हरिश्चन्द्र के नाम तिन फिल्मे भी बनाई है साल 1913, 1917, एवं 1923 में उनकी फिल्म हरिश्चन्द्र राजा भारत की सबसे पहली मूवी थी इस के बाद में महाराजा हरिश्चंद्र का जीवन परिचय पर 1928, 1952, 1968, 1979, 1984 और 1994 फिल्म बनी उस फिल्म का नाम भी हरिश्चंद्र राजा के नाम पर रखा गया था।
राजा हरिश्चन्द्र के बारे में कुछ रोचक तथ्य
- हरिश्चन्द्र का जन्म पोष माह के शुक्ल पक्ष में हुआ था।
- राजा हरिश्चन्द्र सुर्यवंश के वंशज थे।
- हरिश्चंद्र राजा एक शक्तिशाली सम्राट और प्रजा प्रिय राजा थे।
- राजा हरिश्चंद्र सत्य और वचन के पालन के लिए उन्हों ने सामने से विश्वामित्र को अपना राज्य दान में दिया।
- हरिश्चन्द्र राजा ग्रंथ और पौराणिक कथा के हिसाबसे धार्मिक, सत्यप्रिय और न्यायी राजा थे।
- राजा हरिश्चंद्र ने सत्य के लिए अपनी पत्नी, पुत्र और खुद को बेचा था।
- हरिश्चन्द्र राजा सभी दिशा के राजा को पराजित कर के चक्रवाती सम्राट बने थे।
- हरिश्चन्द्र राजा का अलग अलग सभी ग्रंथो में उनका विवरण मिलता है।
- राजा ने राजसूर्य यज्ञं किया था।
दोस्तों हमारे आज के इस आर्टिकल में हमने आपको सत्य और वचन के पालन कार राजा हरिश्चन्द्र का जीवन परिचय दिया जैसे की राजा हरिश्चंन्द्र का जीवन परिचय, सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र की कहानी, राजा हरिश्चन्द्र की विश्वमित्र ने लिए परीक्षा, राजा हरिश्चन्द्र की श्मशान में रखवाली की, राजा हरिश्चंद और रानी तारामति, हरिश्चंद्र राजा की वंशावली, त्रेतायुग का आरम्भ, हरिश्चन्द्र राजा के ऊपर बनी फिल्म, राजा हरिश्चंद के बारे कुछ रोचक तथ्य, और महान हरिश्चन्द्र राजा के जीवन से जुडी सारी जानकारी से आप वाकिफ हो चुके होंगे।
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