हिंदी के सर्वश्रेष्ठ कहानीकार प्रेमचंद का जन्म वाराणसी के निकट लमही नामक गाँव में सन् 1880 में हुआ। उनकी आरंभिक शिक्षा गाँव में हुई। छुटपन में ही उनके पिता का देहांत हो गया। इसलिए घरजिम्मेदारी असमय ही उनके कंधों पर आ पड़ी। वे दसवीं पास करके प्राइमरी स्कूल में शिक्षक बन गए।मुंशी प्रेमचंद अपनी सरल, मुहावरेदार भाषा के लिए विख्यात है। उन्होंने लोकभाषा को साहित्यिक भाषा बनाया। उनकी भाषा आम जनता के बहुत निकट है। वे अपने पात्र, वातावरण और मनोदशा के अनुसार शब्दों का चुनाव में उसका करते हैं।तो चलिए पढ़ते हैं Premchand ki Kavitayen.
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This Blog Includes:
- मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय
- Premchand ki kavitayen
- ख्वाहिशे
- क़लम के जादूगर!
- दुनिया में यूँ तो हर किसी का साथ-संग मिला
- हिन्दू और मुसलमान
- जीवन का रहस्य
- मोहब्बत रूह की गीज़ा है
- ईदगाह by मुंशी प्रेमचंद
- Premchand ki kavitayen
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- Premchand ki kavitayen
- रचनाएँ
- साहित्यिक विशेषताएँ
- भाषा-शैली
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मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय
हिंदी के सर्वश्रेष्ठ कहानीकार प्रेमचंद का जन्म वाराणसी के निकट लमही नामक गाँव में सन् 1880 में हुआ। उनकी आरंभिक शिक्षा गाँव में हुई। छुटपन में ही उनके पिता का देहांत हो गया। इसलिए घरजिम्मेदारी असमय ही उनके कंधों पर आ पड़ी। वे दसवीं पास करके प्राइमरी स्कूल में शिक्षक बन गए। नौकरी में रहकर ही उन्होंने बी.ए. पास किया। इसके बाद वे शिक्षा विभाग में सबडिप्टी-इंस्पेक्टर ऑफ स्कूल्स के रूप में नियुक्त हो गए। सन् 1920 में वे गाँधी जी के आह्वान पर असहयोग आंदोलन में कूद पड़े। उन्होंने साहित्य-लेखन द्वारा देशसेवा करने का संकल्प किया। उनका वास्तविक नाम धनपत राय था। पहले वे नवाबराय के नाम से उर्दू में लिखते थे। बाद में हिंदी में प्रेमचंद के नाम से लिखने लगे। उन्होंने अपना छापाखाना खोला तथा ‘हंस’ नामक पत्रिका का संपादन किया। सन् 1936 में उनका देहांत हो गया।
Premchand ki kavitayen
ख्वाहिशे
Source: The Talks Clubख्वाहिश नहीं मुझे,
मशहूर होने की,
आप मुझे पहचानते हो,
बस इतना ही काफी है,
अच्छे ने अच्छा,
और बुरे ने बुरा जाना मुझे,
क्योंकि जिसको जितनी जरूरत थी,
उसने उतना ही पहचाना मुझे,
जिंदगी की फलसफा भी,
कितनी अजीब है,
श्यामे कटती नहीं,
और साल गुजरते चले जा रहे हैं,
एक अजीब सी,
दौड़ है ये ज़िंदगी,
जीत जाओ तो कई,
अपने पीछे छूट जाते हैं,
और हार जाओ तो,
अपने ही पीछे छोड़ जाते हैं,
बैठ जाता हूं,
मिट्टी पर अक्सर, क्योंकि मुझे अपनी,
औकात अच्छी लगती है||
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क़लम के जादूगर!
क़लम के जादूगर! अच्छा है,
आज आप नहीं हो अगर होते,
तो, बहुत दुखी होते। आप ने तो कहा था
कि, खलनायक तभी मरना चाहिए, जब,
पाठक चीख चीख कर बोले,
मार – मार – मार इस कमीने को|
पर,आज कल तो, खलनायक क्या?
नायक-नायिकाओं को भी,जब चाहे ,
तब, मार दिया जाता है|
फिर जिंदा कर दिया जाता है|
और फिर मार दिया जाता है|
और फिर, जनता से पूछने का नाटक होता है-
कि अब,इसे मरा रखा जाए? या जिंदा किया जाए?
सच, आप की कमी, सदा खलेगी – हर उस इंसान को,
जिसे मुहब्बत है, साहित्य से, सपनों से, स्वप्नद्रष्टाओं, समाज से,
पर समाज के तथाकथित सुधारकों से नहीं| हे कलम के सिपाही,
आज के दिन आपका सब से छोटा बालक, आप के चरणों में
अपने श्रद्धा सुमन, सादर समर्पित करता है |
दुनिया में यूँ तो हर किसी का साथ-संग मिला
दुनिया में यूँ तो हर किसी का साथ-संग मिला
अफ़सोस सब के चेहरे पे एक ज़र्द रंग मिला
मज़हब की रौशनी से था रौशन हुआ जहाँ
मज़हब के मसीहाओं से पर शहर तंग मिला
सच की उड़ान जिसने भरी और उड़ चला
वो शख़्स शहादत की लिए इक उमंग मिला
कल तक गले लगा के जो करता था जाँ निसार
बातों में उसकी आज अनोखा या ढंग मिला
जिसने लिबास ओढ़ रखा था उसूल का
वो फर्द सियात की उड़ाता पतंग मिला
सूली पे चढ़ गया कोई हक़ बोलकर यहाँ
तारिख़ के पन्नों पे इक ऐसा प्रसंग मिला
शीशे में शक्ल देख हैराँ हुआ हूँ मैं
शीशा भी मुझे देखकर किस कद्र दंग मिला
मज़नू जहाँ गया वहाँ इक भीड़ थी जमा
हाथों में सबके एक नुकीला सा संग मिला
मिलकर चले थे सबके कदम सहर की तरफ
क्यों आज विरासत में ये मैदाने जंग मिला।
हिन्दू और मुसलमान
मंदिर में दान खाकर, चिड़िया मस्जिद में पानी पीती है,
सुनने में आता है राधा की चुनरीया,
कोई सलमा बेगम सीति है,
एक रफी साहब थे जो,
मैसेज रघुपति राघव राजा राम गाते थे,
और था एक प्रेमचंद जो बच्चों को,
ईदगाह सुनाता था,
कभी कन्हैया की लीला गाता,
रसखान सुनाई देता है,बाकियों को दीखते होंगे हिंदू और मुसलमान,
मुझे तो हर जीव में भीतर एक भोला इंसान दीखता है|
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जीवन का रहस्य
उंगलिया हर किसी पर ऐसे ना उठाया करो,
उड़ाने से पहले खुद पैसे कमाया करो,
जिंदगी का तातपर्य क्या है?
एक दिन खुद ही समझ जाओगे…
बारिशों में पतंगो को हवा लगवाया करो,
दोस्तों से मुलाकात पर,
हस्सी के ठहाके लगाया करो,
पुरे दिन मस्ती और,
घूमने के बाद, श्याम में तुम,
कुछ फकीरो को, अन खिलाया करो…
अपने साथ जमीन को बांधकर ,
आसमानों का भी लूप उठाया करो,
आने मंजिल है बड़ी, कही धुर हिअ खड़ी,
इसलिए ऐरे गेरे लोगो को, मुंह मत लगाया करो||
मोहब्बत रूह की गीज़ा है
मोहब्बत रूह की भूख है, और सारी परेशानियां,
इस भूख के ना मिटने पर ही, पैदा होती है,
एक कवी हमें, मोह्हबत के हसीं पल,
और उसके परम आनंद का बता सकता है,
जो और भूख, पैदा करता है, और कवी के मीठे शब्दों से,
हमारी रूह जगमगा उठती है||
ईदगाह by मुंशी प्रेमचंद
ईदगाह सी लिखी कहानी और गबन गोदान,
दर्द लिखा है निर्धन जन का लेखक हुए महान।
प्रेमचंद की सभी कथाएं सुनी पढ़ी जाती हैं,
बूढ़ी काकी कफ़न कामना सबको ही भाती हैं।
नशा स्वामिनी इस्तीफा भी हैं पुस्तक की शान,
दर्द लिखा है निर्धन जन का लेखक हुए महान।
मंदिर मस्जिद मंत्र आभूषण लिखा ईश्वरीय न्याय,
अलगोझा ज्योति लिखी और गरीब की हाय।
हाय निर्मला की संकट में फंसी रही है जान,
दर्द लिखा है निर्धन जन का लेखक हुए महान।
हलकू होरी धनिया जबरा और आत्माराम,
हामिद और अमीना सब ही करें प्रेम से काम।
बड़े भाई साहब तो देखो हैं भाई के प्राण,
दर्द लिखा है निर्धन जन का लेखक हुए महान।
मुंशी प्रेमचंद का सचमुच वृहद कथा संसार,
सुने पढ़े जाएंगे जब तक है गंगा में धार।
शब्द शब्द में प्रेमचंद हैं यही हमें है भान,
दर्द लिखा है निर्धन जन का लेखक हुए महान।
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Premchand ki kavitayen
बेधड़क और निर्द्वंद्व भाव से
लिखने का महायुग था वह
गृहस्थी से फुरसत मिलते ही
हो जाती थीं कई लेखिकाएं तैयार
कलम जिनके लिए बन चुकी थी
प्रतिरोध का हथियार वे भी
और वे भी जिनके लिए लिखना एक शगल था
अक्लमंदी के बजाय सुंदरता दिखाने का
इन स्त्रियों के पास था एक अपूर्व-अव्यक्त संसार
आभासी दुनिया ने दिया
उन्हें एक भरा-पूरा पाठक संसार
बावजूद तमाम कानूनों और नैतिक बंधनों के
लेखिकाओं के पीछे ही पड़े रहते थे पाठक
वाहवाही का प्रशंसनीय दरबार था
सुंदर स्त्रियों की सामान्य तुकबंदियां ही नहीं
उड़ाई हुई पंक्तियां भी
गहरी और मर्मस्पर्शी होती थीं उस काल में
ऐसा स्त्रीलोभी संसार था वह
जहां रचना का स्तर
लिंग से तय होता था
जबकि लिंग परीक्षण निषिद्ध था।
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Premchand ki kavitayen
जो जिस भाषा में लिखता था
उसी में कमतर था
प्रसिद्धि उसे उसी भाषा में मिली
जिसे घृणा से देखता था वह
घृणा और सफलता का
ऐसा समन्वय था उस युग में कि
लोग बेलगाम जुबान को ही समझने लगे थे
सफलता का अंतिम उपाय।
Premchand ki kavitayen
जब संबंधों में ही समाप्त हो चुका था माधुर्य
ऐसा एक युग था वह
फिर भी कुछ लोग खोज रहे थे
छंदों में माधुर्छं
द का फंद इतना जटिल कि
कवि होने की पहली शर्त था
गवैया होना
यूं स्वामी हरिदास के बाद
नहीं पाया गया कोई गायक कवि
छंदों में रचने वाले
गवैये भी खोजते थे
एक अच्छा गायक
और गायक खोजते थे
अच्छा लिखने वाला।
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Premchand ki kavitayen
अपने ही समय को
कहना पड़ता था भूतकाल
अपने ही देश को बताना होता था मगध
कैसी लाचारी थी कवि की
या कि भाषा और समय की
भविष्य हमेशा की तरह
अकल्पनीय था उस युग में
लोगों के पास जीवन में
भले ही कम रही हों उम्मीदें
साहित्य के बारे में वे पूरे आश्वस्त थे।
Premchand ki kavitayen
सिनेमा में ही बचे रह गए थे
छंद और तुक
इतना बेतुका था समय
कुछ ब्राण्डेड किस्म के कवि थे
जो बनाते थे रेडीमेड गीत हर मौके के लिए
और कुछ खोजते थे सिनेमा में अवसर
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कुछ कवि हमेशा ही रहते थे अनंत की खोज में
अन्नदाताओं की खुदकुशी के दिनों में भी अनंतवादी तलाश रहे थे
देह, संबंध और आत्मा के रहस्य उनकी
अनंत की यात्रा में शामिल थे बस निजी दुख
पराया दुख नहीं सालता था उन्हें।
कविता के नाम पर एक तरफ था कारोबार
सैंकडों करोड का मंच पर जहां कविता पनाह मांगती थी
जनता कविता मांगती थी और चुटकुलों से पेट भरती थी
एक महान भाषा का हास्य युग था वह जहां मंच पर कुछ का कब्जा था
कविता की खाली जमीन थी आयोजकों के पास नकली पट्टे थी
कवियों के नाम पर भाण्ड थे चुटकुलों के लट्ठ लिए
निर्द्वंद्व भाव से वे विमानों में उडते थे और जमीन पर कराहती थी काव्य संवेदना।
रचनाएँ
मुंशी प्रेमचंद ने 350 कहानियाँ और 11 उपन्यास लिखे। उनकी कहानियाँ ‘मानसरोवर’ नाम से आठ भागों में संकलित हैं। उनके प्रसिद्ध उपन्यास हैं-सेवासदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि , निर्मला, गबन, कर्मभूमि और गोदान। ‘क्बला’ और ‘प्रेम की वेदी’ नामक उनके दो नाटक भी हैं। उनके द्वारा लिखित निबंध ‘कुछ विचार’ और ‘विविध प्रसंग’ नामक संकलनों में संकलित हैं।
साहित्यिक विशेषताएँ
मुंशी प्रेमचंद के साहित्य का सबसे प्रमुख विषय है-राष्ट्रीय जागरण समाज-सुधार। देशभक्ति के प्रबल स्वर के कारण उनके कहानी-संग्रह ‘सोजे वतन’ को अंग्रेज सरकार ने जब्त कर लिया था। मुंशी प्रेमचंद ने दीन-हीन किसानों, ग्रामीणों और शोषितों की दलित अवस्था का मार्मिक चित्रण किया। उनकी कफ़न, पूस की रात, गोदान आदि रचनाएँ शोषण के विरुद्ध विद्रोह की आवाज़ उठाती हैं। उन्होंने समाज में व्याप्त अन्य बुराइयों-दहेज, अनमेल विवाह, नशाखोरी, शोषण, बहु-विवाह, छुआछूत, ऊँच-नीच आदि पर भी प्रभावशाली साहित्य लिखा।
भाषा-शैली
मुंशी प्रेमचंद अपनी सरल, मुहावरेदार भाषा के लिए विख्यात है। उन्होंने लोकभाषा को साहित्यिक भाषा बनाया। उनकी भाषा आम जनता के बहुत निकट है। वे अपने पात्र, वातावरण और मनोदशा के अनुसार शब्दों का चुनाव में उसका करते हैं। वास्तव में एक व्यक्ति जिस वातावरण में अपने पद-स्थान के अनुसार जिस परिस्थिति में जो भाषा बोलता है, उसी को व्याकरण के नियमों में ढालकर उन्होंने प्रस्तुत कर दिया है। वे मानव-मन में उठ रहे मनोभावों को प्रकट करने में बहुत कुशल हैं।
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4 comments
M. R. Iyengar कहते हैं:
मार्च 26, 2022 को 8:18 पूर्वाह्न पर
ख्वाहिश नहीं मुझको मशहूर होने की कविता प्रेमचन्द के किस पुस्तक से है? अमिताभ ने तो इसे हरिवंशराय जी बच्चन किया बताया है।
प्रेमचंद के नाटक कौन कौन से है?
प्रेमचंद - विकिपीडियाhi.wikipedia.org › wiki › प्रेमचंदnullप्रेमचंदविधाकहानी और उपन्यासविषयसामाजिक और कृषक-जीवनसाहित्यिक आन्दोलनआदर्शोन्मुख यथार्थवाद (आदर्शवाद व यथार्थवाद) ,अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघउल्लेखनीय कार्यगोदान, कर्मभूमि, रंगभूमि, सेवासदन, निर्मला और मानसरोवरप्रेमचंद की पांच कहानियां कौन कौन सी है?
मुंशी प्रेमचंद की प्रमुख कहानियों की सूची:-.आत्माराम.दो बैलों की कथा.इज्जत का खून.इस्तीफा.कप्तान साहब.कर्मों का फल.प्रेमचंद की प्रमुख कहानी क्या है?
प्रेमचंद की कहानियों में सेवासदन, गबन, कर्मभूमि, प्रेमाश्रम, गोदान, रंगभूमि व निर्मला जैसे कई उपन्यास लोकप्रिय हैं। इसके अलावा कफन, पंच परमेश्वर, पूस की रात, बड़े घर की बेटी, दो बैलों की कथा और बूढ़ी काकी जैसी 300 से अधिक कहानियां भी चर्चित हैं।प्रेमचंद की सर्वश्रेष्ठ कहानी कौन सी है?
प्रेमचंद की 5 सर्वश्रेष्ठ कहानियां.गोदान गोदान उपन्यास प्रेमचंद का अंतिम और सबसे महत्त्वपूर्ण उपन्यास माना जाता है. ... .दो बैलों की कथा दो बैलों की कथा दो बैल हीरा और मोती की कहानी है. ... .पूस की रात पूस की रात की मूल समस्या गरीबी की है..