विषयसूची
नाटक कितने प्रकार के हैं?
इसे सुनेंरोकें’उपरूपक’ के अठारह भेद हैं— नाटिका, त्रोटक, गोष्ठी, सट्टक, नाटयरासक, प्रस्थान, उल्लाप्य, काव्य, प्रेक्षणा, रासक, संलापक, श्रीगदित, शिंपक, विलासिका, दुर्मल्लिका, प्रकरणिका, हल्लीशा और भणिका। उपर्युक्त भेदों के अनुसार नाटक शब्द दृश्य काव्य मात्र के अर्थ में बोलते हैं।
इसे सुनेंरोकेंआमतौर पर, नाटक ऐसी कहानियाँ होती हैं जिनमें अभिनय किया जाता है। प्रदर्शन, संगीत, नृत्य, रंगमंच की सामग्री आदि के संयोजन के माध्यम से; दर्शक कार्रवाई के एक हिस्से की तरह महसूस करने में सक्षम हैं। नाटक चार प्रकार के होते हैं, वे हैं कॉमेडी, ट्रेजेडी, ट्रेजिकोमेडी और मेलोड्रामा।
नाटक के उद्देश्य क्या है?
इसे सुनेंरोकेंउद्देश्य सामाज के हृदय में रक्त का संचार करना ही नाटक का उद्देश्य होता है। नाटक में अभिनेता पात्र का विशेष महत्त्व होता है,नाटक के अन्य तत्त्व इस उद्देश्य के साधन मात्र होते हैं। भारतीय दृष्टिकोण सदा आशावादी रहा है इसलिए संस्कृत के प्रायः सभी नाटक सुखांत रहे हैं।
नुक्कड़ नाटक का उद्देश्य क्या है?
इसे सुनेंरोकेंनुक्कड़ नाटक आमजनता के लिए उसी की भाषा में, उसी की समस्याओं को आधार बनाकर खेला जाता है। इन नाटकों का उद्देश्य देश की जनता को राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय, सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक अर्थात उन सभी मुद्दों से अवगत कराना होता है। जिसके आधार पर व्यवस्था (system) उनके शोषण उत्पीड़न में संलग्न है।
नुक्कड़ से क्या तात्पर्य है?
इसे सुनेंरोकेंनोक की तरह आगे निकला हुआ कोना या सिरा। मकान, गली रास्ते का वह अंत या सिरा जहाँ कोई मोड़ पड़ता हो।
नाटक के महत्वपूर्ण अंग कौन कौन से हैं?
इसे सुनेंरोकेंभारतीय काव्यशास्त्र में वस्तु, नेता, रस को नाटक का आवश्यक अंग माना गया, परन्तु पाश्चात्य विद्वानों ने कथोपकथन, देशकाल, उद्देश्य और शैली को भी प्रर्याप्त महत्त्व दिया।
नाटक के दो प्रमुख उद्देश्य क्या है?
इसे सुनेंरोकेंनाटककार डॉ. शिवमूरत सिंह ने वक्ताओं के उठाये गये प्रश्नों का जवाब देते हुए कहा कि नाटक का उद्देश्य मनुष्य को प्रगति की ओर बढ़ने का संदेश और सुझाव देना है। यदि यह संदेश नहीं है तो नाटक केवल ‘नाटक’ है। नाटक में प्रतीकों की आवश्यकता होती है।
विषयसूची
- 1 नाटक के कितने प्रकार हैं?
- 2 नाटक के तत्व कौन कौन से हैं?
- 3 नाटक से क्या तात्पर्य है नाटक के प्रमुख तत्व?
- 4 रंगमंच के कितने प्रकार हैं?
- 5 उपरूपक के कितने भेद है?
- 6 नाटक और कहानी में क्या अंतर है?
- 7 नाटक का प्राण तत्व कौन है?
- 8 नाटक शिक्षण की विधियाँ कौन कौन सी है?
नाटक के कितने प्रकार हैं?
इसे सुनेंरोकें’उपरूपक’ के अठारह भेद हैं— नाटिका, त्रोटक, गोष्ठी, सट्टक, नाटयरासक, प्रस्थान, उल्लाप्य, काव्य, प्रेक्षणा, रासक, संलापक, श्रीगदित, शिंपक, विलासिका, दुर्मल्लिका, प्रकरणिका, हल्लीशा और भणिका। उपर्युक्त भेदों के अनुसार नाटक शब्द दृश्य काव्य मात्र के अर्थ में बोलते हैं।
नाटक के तत्व कौन कौन से हैं?
नाटक के तत्व – Natak ke tatva
- कथावस्तु – कथावस्तु को ‘नाटक’ ही कहा जाता है अंग्रेजी में इसे ‘प्लॉट’ की संज्ञा दी जाती है जिसका अर्थ आधार या भूमि है।
- पात्र एवं चरित्र चित्रण – नाटक में नाटक का अपने विचारों , भावों आदि का प्रतिपादन पात्रों के माध्यम से ही करना होता है।
- संवाद –
- देशकाल वातावरण –
- भाषा शैली –
नाटक से क्या तात्पर्य है नाटक के प्रमुख तत्व?
नाटक के तत्व
- कथावस्तु
- पात्र चरित्र-चित्रण
- संवाद या कथोपकथन
- भाषा-शैली
- देशकाल और वातावरण
- उद्देश्य
- संकलनत्रय
- रंगमंचीयता
नाटक का महत्त्वपूर्ण अंग कौन सा है *?
इसे सुनेंरोकेंभारतीय काव्यशास्त्र में वस्तु, नेता, रस को नाटक का आवश्यक अंग माना गया, परन्तु पाश्चात्य विद्वानों ने कथोपकथन, देशकाल, उद्देश्य और शैली को भी प्रर्याप्त महत्त्व दिया। अभिनेयता तो नाटक का आवश्यक तत्त्व है ही।
नाटक की विशेषताएं क्या है?
इसे सुनेंरोकेंनाटक काव्यकला का सर्वश्रेष्ठ अंग है। अभिनय के माध्यम से समाज एवं व्यक्ति के चरित्रों का प्रदर्शन ही नाटक है। इसमें कथा-तत्त्व की प्रधानता होती है। परम्परागत रूप से नाटक कम-से-कम पाँच अंकों का होना चाहिए, जिसमें आरम्भ, विकास, चरम एवं अंत दिखाया जाता है।
रंगमंच के कितने प्रकार हैं?
अनुक्रम
- 1 आविर्भाव
- 2 भारत के रंगमंच
- 3 पाश्चात्य रंगमंच
- 4 आधुनिक रंगमंच
- 5 चित्रपट और रंगमंच
- 6 सन्दर्भ ग्रन्थ
- 7 इन्हें भी देखें
- 8 बाहरी कड़ियाँ
उपरूपक के कितने भेद है?
इसे सुनेंरोकेंनायक और रस के भेद के आधार पर उपरूपक के अठारह भेद माने गए हैं।
नाटक और कहानी में क्या अंतर है?
इसे सुनेंरोकेंजैसे कि मैंने ऊपर आपको बताया कि, अपनी सोच, स्वप्न किसी व्यक्ति के साथ सांझा करना कहानी कहलाता है। उसी कहानी को जब कुछ कलाकार मिलकर किसी रंगमंच पर अपने आव-भाव व गुणों के साथ श्रोताओं के सामने दर्शाऐं, तो उसे नाटक कहते हैं।
इसे सुनेंरोकेंनाटक चार प्रकार के होते हैं, वे हैं कॉमेडी, ट्रेजेडी, ट्रेजिकोमेडी और मेलोड्रामा। इन शैलियों की उत्पत्ति अलग-अलग समय में हुई है, लेकिन उनमें से प्रत्येक की अपनी विशेषताएं हैं।
नाटक क्या है इसे परिभाषित करें?
इसे सुनेंरोकेंनाटक:- नाटक, काव्य का एक रूप है। जो रचना श्रवण द्वारा ही नहीं अपितु दृष्टि द्वारा भी दर्शकों के हृदय में रसानुभूति कराती है उसे नाटक या दृश्य-काव्य कहते हैं। नाटक में श्रव्य काव्य से अधिक रमणीयता होती है। श्रव्य काव्य होने के कारण यह लोक चेतना से अपेक्षाकृत अधिक घनिष्ठ रूप से संबद्ध है।
नाटक के उद्देश्य क्या है?
इसे सुनेंरोकेंउद्देश्य सामाज के हृदय में रक्त का संचार करना ही नाटक का उद्देश्य होता है। नाटक में अभिनेता पात्र का विशेष महत्त्व होता है,नाटक के अन्य तत्त्व इस उद्देश्य के साधन मात्र होते हैं। भारतीय दृष्टिकोण सदा आशावादी रहा है इसलिए संस्कृत के प्रायः सभी नाटक सुखांत रहे हैं।
नाटक का प्राण तत्व कौन है?
इसे सुनेंरोकेंहिंदी के आधुनिक नाटकों तथा नाट्यलोचन पर पाश्चात्य नाटक तथा नाट्यलोचन का पर्याप्त प्रभाव देखा जा सकता है। पाश्चात्य विद्वानों ने नाटक के छह तत्व स्वीकार किए है – कथावस्तु, कथानक, पात्र, चरित्र चित्रण, कथोपकथन, देशकाल-वातावरण, भाषाशैली और उद्देश्य। यह नाटक का प्राणतत्व है।
नाटक शिक्षण की विधियाँ कौन कौन सी है?
1 नाटक शिक्षण की सर्वश्रेष्ट विधि है।