अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा द्वारा पृथ्वी के पड़ोसी ग्रह मंगल पर भेजे गए 'क्यूरोसिटी' रोवर ने वहां से एक चौंकाने वाली तस्वीर भेजी है.
इस तस्वीर में मंगल ग्रह के कठोर चट्टानों में बड़ी सुघड़ता से काटे गए गुफा का एक मुहाना सा दिख रहा है. दरवाज़े जैसी इस आकृति को लेकर पिछले कुछ दिनों से कई सवाल उठ रहे हैं.
कइयों ने इसे 'दरवाज़े' जैसी आकृति बताई है, तो कइयों ने कहा कि पृथ्वी से इतर किसी दूसरी सभ्यता के लोगों ने इस 'रास्ते' को बनाया होगा.
लेकिन मंगल ग्रह के बारे में 2012 से जानकारी भेज रहे इसे रोवर द्वारा खींची गई इस तस्वीर की और बेहतर व्याख्या पेश करने की ज़रूरत महसूस की जा रही है. नासा का कहना है कि यह सब नज़रिए की बात है.
नासा ने क्यूरोसिटी रोवर द्वारा मंगल ग्रह की सतह की खींची गई यह तस्वीर 7 मई को जारी की थी. नासा ने इस तस्वीर की पहचान 'सोल 3466' सिरीज़ की एक कड़ी के रूप में बताई. इसे 'मार्स एक्सप्लोरेशन प्रोग्राम' की वेबसाइट पर कई फ्रेम में जारी किया गया है.
इसे जारी किए जाने के बाद इंटरनेट पर लोग इसके आकार और इसके 'दरवाज़े' या 'रास्ते' को लेकर तरह तरह के सिद्धांत पेश करने लगे.
लेकिन यह तस्वीर ख़ास सिरीज़ का महज़ एक हिस्सा भर है. और संपूर्णता में देखने पर इसके आकार को लेकर बनने वाला नज़रिया बदल सा जाता है.
नासा ने बीबीसी मुंडो को बताया, "यह किसी चट्टान में एक छोटी सी दरार का बहुत, बहुत, बहुत बड़ा शॉट है."
इस आकृति की संपूर्णता समझने के लिए इसे नीचे दी गई तस्वीर में देख सकते हैं. इसमें देखा जा सकता है कि जेज़ेरो क्रेटर की चट्टान में यह दरार बहुत छोटी है. मालूम हो कि इस क्रेटर को कुछ हफ़्ते पहले क्यूरोसिटी रोवर ने खोजा है.
नासा की जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी यानी जेपीएल के वैज्ञानिकों ने बताया है कि इस दरार का आकार बहुत छोटा यानी 45 सेंटीमीटर लंबा और 30 सेंटीमीटर चौड़ा है.
नासा के अनुसार, "इस पूरी तस्वीर में लाइन से कई फ्रैक्चर हैं. और यह दरार ऐसी जगह है जहां कई फ्रैक्चर एक दूसरे को काटते हैं."
इमेज स्रोत, NASA/JPL/Neville Thompson
'उत्सुकता पैदा करने वाले' फ्रैक्चर
इस फ्रैक्चर पर पिछले कुछ दिनों में कई विशेषज्ञों का ध्यान गया है.
ब्रिटेन के एक जियोलॉजिस्ट यानी भूवैज्ञानिक नील हॉजसन ने मंगल ग्रह की भू-आकृतियों का काफ़ी अध्ययन किया है. उनका कहना है कि यह तस्वीर 'उत्सुकता पैदा करने वाली' तो है, पर रहस्यमय नहीं है.
लाइव साइंस नामक वेबवसाइट को उन्होंने बताया, 'संक्षेप में कहूं तो मुझे यह प्राकृतिक कटाव लगता है. इस तस्वीर में चट्टान की जो बनावट दिख रही है, उसमें गाद और रेत की कई परतें हैं.'
हॉजसन ने बताया, 'अवसादी चट्टान बनाने वाले हालातों में लगभग 400 करोड़ साल पहले ये परतें जमा होती गईं. यह परत शायद किसी नदी में या हवा के झोंके से टीले के रूप में जमा हुई थी."
सतह पर होने वाले फ्रैक्चर स्वाभाविक रूप से ऐसी दरारें बना सकते हैं. लेकिन इस तरह का कटाव तब बनता है जब कोई फ्रैक्चर ऊपर से नीचे बने और चट्टानों की परतों को काट दे.
पहला मंगल मिशन सोवियत संघ ने भेजा था. करीब 62 साल पहले. पहले सफल मंगल मिशन का तमगा मिला अमेरिका को. लेकिन पहली बार में नहीं. दुनियी में सिर्फ एक ही देश है जिसने यह कमाल किया है. वो है अपना भारत. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के मंगलयान यानी मार्स ऑर्बिटर मिशन (MOM) ने एक ही बार में मंगल ग्रह पर पहुंचकर रिकॉर्ड बना दिया. दुनिया भौचक्की रह गई. आंखें फाड़-फाड़ कर लोग इसरो की तरह देखने लगे.
1960 में सोवियत संघ ने मंगल ग्रह पर मिशन (Mars Mission) भेजने की शुरुआत की थी. असफलताएं मिलती जा रही थीं. उधर अमेरिका भी मंगल ग्रह पर मिशन भेज रहा था. कई बार फेल होने के बाद अमेरिका ने पहली बार मंगल पर मिशन पहुंचाकर सफलता हासिल की. ऐसे कई देश हैं जो पहली बार में मंगल ग्रह तक नहीं पहुंच पाए. लॉन्च के समय, आधे रास्ते में या पहुंचने से ठीक पहले मिशन फेल हो गए. लापता हो गए.
अब 1960 से अब तक 62 साल हो चुके हैं. करीब 59 मिशन भेजे गए हैं लाल ग्रह पर. कुछ ऑर्बिटर यानी ग्रह का चक्कर लगाने वाले. फ्लाई बाय यानी पास से गुजर जाने वाले. लैंडर यानी एक ही जगह उतरने वाले और रोवर यानी सतह पर चक्कर लगाने वाले रोबोटिक मिशन.
अमेरिका ने भेजे थे सबसे अधिक मिशन
दुनिया में अमेरिका इकलौता ऐसे देश है, जिसने मंगल ग्रह पर सबसे ज्यादा मिशन भेजे हैं. अमेरिका ने मंगल ग्रह पर पिछले 62 सालों में 30 मिशन भेजे हैं. इसके बाद सोवियत संघ/रूस का स्थान आता है. उसने 22 भेजे हैं. वहीं, यूरोपियन संघ ने चार मिशन भेजे हैं. भारत, जापान और UAE ने अपने-अपने एक-एक मिशन लाल ग्रह पर भेजे हैं. यानी मंगल ग्रह पर अब तक कुल आठ देशों ने अपने मार्स मिशन (Mars Mission) को रवाना किया है.
कितन मिशन फेल, कितने हुए टेस्ट में पास
मंगल पर भेजे गए कुल 59 मिशन में से 39.36 प्रतिशत मिशन फेल हो गए थे. यानी 23 करीब. 53.44 प्रतिशत यानी 32 मिशन सफल हुए. 3 मिशन सफलता के करीब पहुंच कर फेल हो गए. जो मिशन फेल हुए थे, उनमें से 10 तो लॉन्च होते ही फेल हो गए. 13 अंतरिक्षयान रास्ते में फेल हुए. 23 सफल मिशनों में से इस समय सिर्फ 9 ही काम कर रहे हैं.
इस समय कितने मंगल मिशन कर रहे हैं काम
मार्स पर इस समय 13 लैंडर काम कर रहे हैं. जबकि, दो रोवर खोजबीन के लिए घूमते रहते हैं. ये हैं अमेरिका के क्यूरियोसिटी और पर्सिवरेंस रोवर. क्यूरियोसिटी तो 2012 से अब तक काम कर रहा है. लेकिन अब उसके जीवनकाल के खत्म होने के आसार दिख रहे हैं. क्योंकि अब वो चल-फिर नहीं पा रहा है. उसके पहिये टूट रहे हैं. नासा के वैज्ञानिकों को आशंका है कि वह बहुत जल्दी चलना-फिरना बंद कर देगा. अगले साल इसके अलावा 2023 में मंगल ग्रह पर रोसेलिंड फ्रैंकलिन रोवर लैंड कराया जाएगा.
कब किसे मिली किस तरह की सफलता
1. 1960 से लेकर 1962 तक किसी भी देश ने मार्स की सतह पर लैंडर या रोवर उतारने की नहीं सोची थी. सोवियत संघ ने सोचा कि वह सबसे पहले लैंडर उतारकर दुनिया में धाक जमाएगा पर फेल हो गया.
2. फ्लाईबाय मिशन की पहली सफलता अमेरिका को 28 नवंबर 1964 में मिली थी.
3. 19 मई 1971 को सोवियत संघ को मंगल ग्रह के चारों तरफ चक्कर लगाने वाले ऑर्बिटर मिशन की पहली सफलता मिली. इसी साल 28 मई को सोवियत संघ रोवर उतारने में फेल हो गया. लेकिन लैंडर सफल रहा.
4. अमेरिका का पहला ऑर्बिटर 30 मई 1971 में सफल हुआ. अमेरिका को लैंडर उतारने की सफलता 20 अगस्त 1975 में मिली.
5. 4 दिसंबर 1996 को अमेरिका ने सबसे पहले मंगल ग्रह पर रोवर उतारा. इसका नाम था सोजर्नर. दूसरा रोवर इतारा स्पिरिट, तीसरा ऑर्प्यूनिटी, फिर क्यूरियोसिटी और सबसे लेटेस्ट पर्सिवरेंस रोवर.
6. साल 2013 में भारत ने मंगलयान (Mangalyaan) लॉन्च किया. 2014 में मंगलयान पहली बार में ही मंगल ग्रह की कक्षा में पहुंच गया. भारत ने इतिहास बना दिया. इससे पहले किसी भी देश को पहली बार में ये सफलता नहीं मिली थी.
किस दशक में कितने मिशन
1. 1960 के दशक में 12
2. 1970 के दशक में 11
3. 1980 के दशक में 02
4. 1990 के दशक में 07
5. 2000 के दशक में 08
6. 2010 के दशक में 06
7. 2020 के दशक में अब तक 04 मिशन.
भविष्य के मंगल पर जाने वाले संभावित मिशन
यूरोपियन यूनियन और रूस को 2022 में एक्सोमार्स (ExoMars 2022) नाम का लैंडर-रोवर भेजना था. लेकिन रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध शुरू होने की वजह से यह मिशन टल गया है. इसी साल जापान एक ऑर्बिटर-लैंडर मार्स टेराहर्टज माइक्रोसैटेलाइट (Mars Terahertz Microsatellite) भेजने की तैयारी में है. 2023 में US भेजेगा फ्लाई बाई मिशन साइकी (Psyche). भारत के मंगलयान-2 मिशन की फिलहाल कोई चर्चा नहीं है. लेकिन संभावित है. इसके बाद जापान मार्शियन मून्स एक्सप्लोरेशन (Martian Moons Exploration) भेजेगा. यह एक ऑर्बिटर होगा. 2025 में यूरोपियन यूनियन का ज्यूपिटर आइसी मून्स एक्सप्लोरर (Jupiter Icy Moons Explorer) अपने रास्ते में मंगल ग्रह के बगल से तस्वीरें लेते हुए जाएगा.