कन्यादान का मतलब क्या होता है? - kanyaadaan ka matalab kya hota hai?

कन्यादान एक भारतीय नारी की सबसे दुखद दासता, जब कन्या का पिता उसे उसके होने वाले पति को दान मैं दे देता है पर क्या इसका सही अर्थ यही है,

इसके कुछ तथ्य इस प्रकार है

1  कन्यादान का सही मतलब है कन्या आदान मतलब पिता कन्या का विवाह करते समय उससे पति को कहते है की आज तक मैं मेरी कन्या का पालन पोषण करता  रहा था पर अब ये जिम्मेदारी आपकी है, पर वक़्त के साथ इस कन्या आदान को सुविधा की द्रिष्टी से कन्यादान कहा जाने लगा और उसी से अर्थ का अनर्थ हो गया, इस का ये मतलन नहीं की पिता ने अपनी कन्या दान मैं दे दी और अब उस कन्या पर पिता का कोई हक़ नहीं रह गया।

2  देखा जाये तो दान उसी वस्तु का किया जाता है जिसे आपने अर्जित किया हो जो आपकी सम्पति हो पर कन्या पिता के लिए परमात्मा की धरोहर है वो उसकी अर्जित सम्पति नहीं है तो उसका दान नहीं हो सकता ।   

3  जहा तक मैं जानती हुँ की दान के कर्म मैं जो व्यक्ति दान देता है वो बड़ा होता है और जो दान लेता है वो छोटा होता है, तो हमेशा लड़की के परिवार वालो को नीचा क्यों दिखाया जाता है,  उन्हें तो लड़के वालो से ऊपर रहना चाहिए ना

4   यहाँ तक की कई प्राचीन शास्त्रों मैं भी कन्या दान का विरोध किया गया है, हमारा सविधान और कानून भी कन्यादान के बिना कोर्ट मैरिज करवाता है, पुराने समय मैं गन्धर्व विवाह होते है जिसमे लड़का लड़की अपनी मर्जी से भगवान  को साक्षी मानकर विवाह करते है, खुद  कृष्ण भगवान्  ने अर्जुन और सुभद्रा का गन्धर्व विवाह करवाया था और जब बलराम जी ने विरोध करते हुए कहा की बिना कन्या दान के विवाह नहीं हो सकता तो भगवान्  श्री कृष्ण जी ने इसका विरोध करते हुए कहा था की ।।" प्रदान मपी कन्याया: पशुवत को नुमन्यते ?" अर्थात  पशु की भांति कन्या के दान का अनुमोदन कौन करता है?  कन्यादान के विरोध के स्वर में मनुस्मृति और नारद स्मृति भी पीछे नहीं है ।

5  हमारी विवाह रस्मो मैं सबसे बड़ा स्थान है सात फेरो का ,, बिना सात फेरो के विवाह कभी पूरा नहीं माना जाता ,  यहाँ तक की अगर फेरो के पहले कोई हादसा हो जाये और फेरे न हो तो विवाह पूर्ण नहीं माना जाता , तलाक के समय कानून भी यही पूछता है की सात फेरे हुए या नहि, कन्यादान के बारे मैं कोई नहीं पूछता ,  तो इसका क्या ओचित्य।

6  अगर कन्या का दान ही होता तो वो शादी के बाद दासी  ही कहलाती पर हमारी संस्कृति मैं विवाह को बड़ा ही मान दिया गया है और पत्नी को गृहस्वामिनी का दर्जा दिया गया है,  जबकि  दान मैं ली गयी वस्तु का व्यक्ति कैसा भी उपयोग कर सकता है पर हमारे यहाँ वधु को लक्ष्मी का दर्जा दिया गया है,, पत्नी को अर्धांगिनी माना गया है तो कन्यादान के क्या मायने ,  शिव जी ने पारवती जी को अपने आधे अंग मैं समाहित किया है ,  शास्त्रों मैं पति से पहले पत्नी का नाम लिया जाता है जैसे सीता राम या राधा कृष्ण ,  अगर पत्नी दान की वस्तु होती तो क्या ये सब संभव होता

मुझे तो यही लगता है की कन्यादान एक बुरी प्रथा है जिसमे  कही न कही कन्या को ये जताया जाता है की उसका अब अपने परिवार से कोई सरोकार नहि,, अब वो ससुराल पक्ष की हो गयी है ,  पर इसका सही अर्थ  यही है की पिता अपनी कन्या के विवाह के समय उसके भरण पोषण, सुरक्षा,  सुख शान्ति और आनन्द उल्लास आदि की जिम्मेदारी उसके पति को सोपता  है ये कन्या आदान है कन्या दान नहीं

हम कोई वस्तु नहीं जिसे दान मैं दिया या लिया जाये हम एक स्वत्रंत व्यक्तित्व है,  हमें सिर्फ हमारे हिस्से का मान और सम्मान  दो और हमारे परिवार को भी ,,, क्युकी विवाह दो लोगो का नहीं बल्कि दो परिवारों का मिलन है और अगर ये कन्या आदान नहीं बल्कि कन्यादान है तो पुत्र दान भी होना चहिये।।।।

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Authored by

Gitika dubey

| नवभारतटाइम्स.कॉम | Updated: 29 Apr 2022, 12:30 am

हिंदू धर्म की शादियों में तमाम रस्‍म और रिवाज निभाने के बाद ही विवाह को पूर्ण माना जाता है। तब जाकर कन्‍या और वर, पति-पत्‍नी बन पाते हैं। विवाह की इन रस्‍मों में सबसे महत्‍वपूर्ण होता है कन्‍यादान। कन्‍यादान का अर्थ होता है कन्‍या का दान। अर्थात पिता अपनी पुत्री का हाथ वर के हाथ में सौंपता है। इसके बाद से कन्‍या की सारी जिम्‍मेदारियां वर को निभानी होती हैं। यह एक भावुक संस्‍कार है, जिसमें एक बेटी अपने रूप में अपने पिता के त्‍याग को महसूस करती है। आइए जानते हैं कन्‍यादान का महत्‍व और कैसे निभाई जाती है यह रस्‍म...

  • भगवान विष्‍णु का स्‍वरूप

    वेदों और पुराणों के अनुसार विवाह में वर को भगवान विष्‍णु का स्‍वरूप माना जाता है। विष्‍णु रूपी वर कन्‍या के पिता की हर बात मानकर उन्‍हें यह आश्‍वासन देता है कि वह उनकी पुत्री को खुश रखेगा और उस पर कभी आंच नहीं आने देगा।

  • कन्‍यादान का महत्‍व

    शास्‍त्रों में बताया गया है कि जब कन्‍या के पिता शास्‍त्रों में बताए गए विधि-विधान के अनुसार, कन्‍यादान की रस्‍म निभाते हैं तो कन्‍या के माता-पिता और परिवार को भी सौभाग्‍य की प्राप्ति होती है।

  • दक्षिण भारत में ऐसा कन्‍यादान

    कन्‍यादान की रस्‍म भी देश के अलग-अलग हिस्‍सों में अलग तरीके से निभाई जाती है। दक्षिण भारत में कन्‍या अपने पिता की हथेली पर अपना हाथ रखती है और वर अपने ससुर की हथेली के नीचे अपना हाथ रखता है। फिर इसके ऊपर जल डाला जाता है। पुत्री की हथेली से होता हुआ जल पिता की हथेली पर जाता है और इसके बाद वर की हथेली पर।

  • उत्तर भारत की परंपरा

    उतर भारत के कई स्‍थानों पर वधू की हथेली को एक कलश के ऊपर रखा जाता है। फिर वर वधू की हथेली पर अपना हाथ रखता है। फिर उस पर पुष्‍प, गंगाजल और पान के पत्ते रखकर मंत्रोच्‍चार किए जाते हैं। इसके बाद पवित्र वस्‍त्र से वर-वधू का गठबंधन किया जाता है। इसके बाद सात फेरों की रस्‍में निभाई जाती है।

  • कन्‍यादान से मोक्ष की प्राप्ति

    कन्‍यादान को सबसे बड़ा दान माना जाता है। ऐसा माना गया है कि जिन माता-पिता को कन्‍यादान का सौभाग्‍य प्राप्‍त होता है, उनके लिए इससे बड़ा पुण्‍य कुछ नहीं है। यह दान उनके लिए मोक्ष की प्राप्ति मरणोपरांत स्‍वर्ग का रास्‍ता भी खोल देता है।

  • ऐसे शुरू हुई कन्यादान की परंपरा

कन्यादान का सही मतलब क्या है?

कन्यादान का मतलब होता है कन्या का दान। इसका मतलब होता है कि पिता ने अपनी पुत्री का हाथ वर के हाथों में सौंप दिया है। कन्यादान करना हर माता पिता के लिए बहुत सौभाग्य की बात होती है। कहते हैं जो माता-पिता अपनी बेटी का कन्यादान करते हैं उनके लिए स्वर्ग का रास्ते हमेशा के लिए खुल जाते हैं।

कन्यादान का क्या महत्व है?

कन्‍यादान से मोक्ष की प्राप्ति कन्‍यादान को सबसे बड़ा दान माना जाता है। ऐसा माना गया है कि जिन माता-पिता को कन्‍यादान का सौभाग्‍य प्राप्‍त होता है, उनके लिए इससे बड़ा पुण्‍य कुछ नहीं है। यह दान उनके लिए मोक्ष की प्राप्ति मरणोपरांत स्‍वर्ग का रास्‍ता भी खोल देता है।

कन्यादान को महादान क्यों कहा गया है?

कन्यादान को महादान क्यों कहा जाता है ऐसे में लड़की का पिता अपनी लक्ष्मी स्वरूपा पुत्री को वर पक्ष को सौंप देता है। इसी वजह से कन्यादान को महादान माना जाता है। यदि कोई लक्ष्मी का दान करता है तो वह अपनी सुख समृद्धि का दान भी कर देता है तो इसी वजह से कन्यादान को महादान माना जाता है।

हिन्दू धर्म में कन्यादान क्यों किया जाता है?

हिंदू धर्म ग्रंथों के मुताबिक कन्यादान को महादान की श्रेणी में रखा गया है, जिसका अर्थ है कि इससे बड़ा दान और कोई हो ही नहीं सकता। शास्त्रों में कहा गया है कि कन्यादान जब शास्त्रों में बताए गए विधि-विधान से संपन्न होता है तब कन्या के माता-पिता और उनके परिवार को भी सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

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