भाषा के कार्य एवं महत्व, भाषा विकास में सुनने बोलने की भूमिका
- भाषा भावों को अभिव्यक्त करने का एक माध्यम है। मनुष्य पशुओं से इसलिए श्रेष्ठ है क्योंकि उसके पास अभिव्यक्ति के लिए एक ऐसी भाषा होती है, जिसे लोग समझ सकते हैं।
- भाषा बौद्धिक क्षमता को भी अभिव्यक्त करती है।
- बहुत-से लोग वाणी और भाषा दोनों का प्रयोग एक-दूसरे के पर्यायवाची के रूप में करते हैं, परन्तु दोनों में बहुत अन्तर है। हरलॉक ने दोनों शब्दों को निम्नलिखित रूप में स्पष्ट किया है
- भाषा में सम्प्रेषण के वे सभी साधन आते हैं. जिसमें विचारों और भावों को , प्रतीकात्मक बना दिया जाता है जिससे कि अपने विचारों और भावों को दूसरे से अर्थपूर्ण ढंग से कहा जा सके।
- वाणी भाषा का एक स्वरूप है जिसमें अर्थ को दूसरों को अभिव्यक्त करने के लिए कुछ ध्वनियाँ या शब्द उच्चारित किए जाते हैं।
- वाणी भाषा का एक विशिष्ट ढंग है। भाषा व्यापक सम्प्रत्यय है। वाणी, भाषा का एकमाध्यम है।
- मनुष्य में भाषा सीखने की प्रवृत्ति स्वाभाविक रूप से विद्यमान रहती है। उसकी इस प्रवृत्ति का प्रमाण शैशवावस्था में मिल जाता है। जब वह अनुकरण के माध्यम से अपने माता-पिता तथा घर के अन्य सदस्यों से ध्वनियाँ ग्रहण करता है, ध्वनि समूहों को समझने लगता है और उन्हें बोलने लगता है। यह स्वाभाविक प्रवृत्ति ही उसे भाषा सीखने की ओर प्रशस्त करती है।
- भाषा एक कला है, दूसरी कलाओं की भाँति इसे सीखा जाता है और सतत् अभ्यास से इसमें प्रवीणता आती है। जिस प्रकार दूसरी कलाओं में साधनों की आवश्यकता होती है उसी प्रकार भाषा सीखने के लिए भी साधन की आवश्यकता होती है। साधन का दूसरा नाम अभ्यास है, कला की साधना अन्ततः आदत बन जाती है। शुद्ध एवं शिष्ट बोलने वाले व्यक्ति को स्कूल में पढ़े व्याकरण के नियम याद न हो, लेकिन बोलते वक्त स्वतः उसके मुख से व्याकरण सम्मत शुद्ध भाषा ही निकलेगी।
भाषा के कार्य एवं महत्व
इच्छाओं और आवश्यकताओं की सन्तुष्टि
- भाषा व्यक्ति को अपनी आवश्यकता, इच्छा, पीड़ा अथवां मनोभाव दूसरे के समक्ष व्यक्त करने की क्षमता प्रदान करती है जिससे दूसरा व्यक्ति सरलता से उसकी आवश्यकताओं को समझकर तत्सम्बन्धी समाधान प्रदान करता है।
ध्यान खींचनें के लिए
- सभी बालक चाहते हैं कि उनकी ओर लोग ध्यान दें इसलिए वे अभिभावकों से प्रश्न पूछकर, कोई समस्या प्रस्तुत करके तथा विभिन्न तरीकों का प्रयोग कर उनका ध्यान अपनी ओर खींचतें हैं।
विचार-विनिमय का सरलतम एवं सर्वोत्कृष्ट साधन के रूप में
- बालक जन्म के कुछ ही 1 दिनों पश्चात् परिवार में रहकर भाषा सीखने लगता है। यह भाषा वह स्वाभाविक एवं अनुकरण के द्वारा सीखता है। इसे सीखने के लिए किसी अध्यापक की आवश्यकता नहीं होती है। यह बालक को विचार-विनिमय में सहायक सिद्ध होती है।
सामाजिक सम्बन्ध के लिए
- भाषा के माध्यम से ही कोई व्यक्ति समाज के साथ आपसी ताल-मेल विकसित कर पाता है। भाषा के जरिए अपने विचारों को अभिव्यक्त कर समाज में अपनी भूमिका निर्धारित करता है। अन्तर्मुखी बालक समाज से कम अन्तः क्रिया करते हैं इसलिए उनका पर्याप्त सामाजिक विकास नहीं होता।
ज्ञान प्राप्ति के प्रमुख साधन के रूप में
- भाषा के माध्यम से ही एक पीढ़ी समस्त संचित ज्ञान सामाजिक विरासत के रूप में दूसरी पीढ़ी को सौंपती है। भाषा के माध्यम से ही हम प्राचीन और नवीन, आत्मा और विश्व को पहचानने की क्षमता प्राप्त करते हैं।
सामाजिक मूल्यांकन के लिए महत्त्व
- बालक समाज के लोगों के साथ किस तरह बात करता है? कैसे बोलता है? इन प्रश्नों के उत्तर के माध्यम से उसका सामाजिक मूल्यांकन होता है।
व्यक्तित्व के निर्माण में सहायक
- भाषा व्यक्तित्व के विकास में सहायक है। व्यक्ति अपने आन्तरिक भावों को भाषा के माध्यम से अभिव्यक्त करता है तथा इसी अभिव्यक्ति के साथ अन्दर छिपी अनन्त शक्ति अभिव्यक्त होती है। अपने विचारों एवं भावों को सफलतापूर्वक अभिव्यक्त करा सकना तथा अनेक भाषाएँ बोल सकना विकसित व्यक्ति के ही लक्षण हैं। अतएव किसी व्यक्ति की अभिव्यक्ति जितनी स्पष्ट होगी उसके व्यक्तित्व का विकास भी उतने ही प्रभावशाली ढंग से होगा।
शैक्षिक उपलब्धि का महत्त्व
- भाषा का सम्बन्ध बौद्धिक क्षमता से है। यदि बालक अपने विचारों को भाषा के जरिए अभिव्यक्त करने में सक्षम नहीं होता, तो इसका अर्थ है कि उसकी शैक्षिक उपलब्धि पर्याप्त नहीं है।
दूसरों के विचारों को प्रभावित करने के लिए
- जिन बच्चों की भाषा प्रिय, मधुर एवं ओजस्वी होती है। वे अपने समूह, परिवार अथवा समाज के व्यक्तियों को प्रभावित करते हैं। लोग उन्हीं को अधिक महत्त्व देते हैं जिनका भाषा व्यवहार प्रभावपूर्ण होता है।
साहित्य एवं कला, संस्कृति एवं सभ्यता का विकास करने में
- साहित्य भाषा में लिखा जाता है। भाषा का विकास उसके पल्लवित साहित्य के दर्पण में जाता है। इसी तरह से कला के स्वर भी भाषा में मुखरित होते हैं। भाषा के द्वारा हम अपने समाज के आचार-व्यवहार तथा अपनी विशिष्ट जीवन शैली से अवगत होते हैं और भाषा के द्वारा ही हम नवीन आविष्कारों के आधार पर एक नवीन सृष्टि का सृजन करते हैं तथा अपनी भाषा को उन्नत बनाते हैं।
भाषा विकास को प्रभावित करने वाले कारक
Factors Affecting of Language Development स्वास्थ्य जिन बच्चों में स्वास्थ्य जितना अच्छा होता है उनमें भाषा के विकास की गति उतनी तीव्र होती है।
बुद्धि
- हरलॉक के अनुसार जिन बच्चों का बौद्धिक स्तर उच्च होता है उनमें भाषा विकास अपेक्षाकृत कम बुद्धि से अच्छा होता है। टरमैन, फिशर एवं यम्बा का मानना है कि तीव्र बुद्धि बालकों का उच्चारण और शब्द भण्डार अधिक होता है।
सामाजिक-आर्थिक स्थिति
- बालकों का सामाजिक आर्थिक स्तर भी भाषा विकास को प्रभावित करता है। यही कारण है कि ग्रामीण क्षेत्र में पढ़ने वाले बालकों की शाब्दिक क्षमता शहरी या अन्य पब्लिक स्कूल में पढ़ने वाले बालकों से कम होती है।
लिंगीय भिन्नता सामान्यतः
- बालिकाएँ, बालकों की अपेक्षा अधिक शुद्ध उच्चारण करती हैं, किन्तु ऐसा प्रत्येक मामले में नहीं होता है।
परिवार का आकार
- छोटे परिवार में बालक की भाषा का विकास के बड़े आकार परिवार से अच्छा होता है, क्योंकि छोटे आकार के परिवार में माता-पिता अपने बच्चे के प्रशिक्षण में उनसे वार्तालाप के जरिए अधिक ध्यान देते हैं।
बहुजन्म
- कुछ ऐसे अध्ययन हुए हैं जिनसे प्रमाणित होता है कि यदि एकसाथ अधिक सन्तानें उत्पन्न होती हैं तो उनमें भाषा विकास विलम्ब से होता है। इसका कारण है कि बच्चे एक-दूसरे का अनुकरण करते हैं और दोनों ही अपरिपक्व होते हैं। उदाहरण के लिए यदि एक बच्चा गलत उच्चारण करता है तो उसी की नकल करके दूसरा भी वैसा ही उच्चारण करेगा।
द्वि-भाषावाद
- यदि द्वि-भाषी परिवार है, उदाहरण के लिए यदि पिता हिन्दी बोलने वाला और माँ शुद्ध अंग्रेजी बोलने वाली हो तो ऐसे में बच्चों का भाषा विकास प्रभावित होता है वे भ्रमित हो जाते हैं कि कौन-सी भाषा सीखें?
परिपक्वता
- परिपक्वता का तात्पर्य है कि भाषा अवयवों एवं स्वरों पर नियन्त्रण होना। बोलने में जिह्वा, गला, तालु, होंठ, दाँत तथा स्वर यन्त्र आदि जिम्मेदार होते हैं इनमें किसी भी प्रकार की कमजोरी या कमी वाणी को प्रभावित करती है। इन सभी अंगों में जब परिपक्वता होती है तो भाषा पर नियन्त्रण होता है और अभिव्यक्ति अच्छी होती है।
संवेगात्मक तनाव
- जिन बच्चों के संवेगों का कठोरता से दमन कर दिया जाता है ऐसे बच्चों का भाषा विकास देर से होता है।
व्यक्तित्व
- फुर्तीले, चुस्त और बहिर्मुखी स्वभाव वाले बच्चों का भाषा विकास अन्तर्मुखी स्वभाव के बच्चों की अपेक्षा अधिक जल्दी और बेहतर होता है।
प्रशिक्षण
विधि
- प्रशिक्षण विधि भी भाषा विकास को प्रभावित करती है। भाषा के बारे में यदि सैद्धान्तिक रूप से शिक्षा दी जाए एवं उनका प्रयोग व्यावहारिक से न किया जाए तो उस भाषा में अभिव्यक्ति कौशल का पर्याप्त विकास नहीं हो पाता।
भाषा विकास में सुनने की भूमिका Role of Listening in Language Development
- शुद्ध उच्चारण करने में सुनना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है इसके माध्यम से बच्चों में शुद्ध उच्चारण करने के कौशल का विकास होता है। सुनने के माध्यम से ही बच्चा बोलने में आने वाली उच्चारण सम्बन्धी अशुद्धियों को दूर करने में सफल हो पाता है, जिसके परिणामस्वरूप उसके भाषा सम्बन्धी कौशल में निखार आता है। वृद्धि होती है,।
- शब्द भण्डार में वृद्धि सुनने की प्रक्रिया से बच्चों के शब्दकोष में जिसके माध्यम से उसके भाषा विकास में वृद्धि होती है।
- महत्त्वपूर्ण जानकारी प्राप्त करने में बालक लोगों द्वारा कही गई बातों में रेडियो, ऑडियो जैसे उपकरणों को सुनकर समाज, व्यवहार, जीवन आदि से सम्बन्धित उपयोगी जानकारियाँ प्राप्त करता है।
- दूसरों की अभिवृत्तियों को ग्रहण करने में सुनना एक ऐसी प्रक्रिया है, • जिसके माध्यम से एक बालक दूसरों के भावों, विचारों एवं अनुभवों जैसी अभिवृत्तियों को ग्रहण करता है। यही अभिवृत्तियाँ उसमें कौशलों का विकास करती हैं।
- ध्वनियों का विभेदीकरण करने में सुनना, ध्वनियों के विभेदीकरण करने का सबसे अच्छा माध्यम है। इसके द्वारा बालक विभिन्न प्रकार की ध्वनियों के मध्य अन्तर करना सीखता है जिससे उसमें श्रवण कौशल का विकास होता है।
भाषा विकास में बोलने की भूमिका
बच्चों में सुनकर प्राप्त किए गए ज्ञान का मूल्यांकन करने में
- बोलना एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से छात्रों में प्राप्त किए गए ज्ञान का मूल्यांकन करने में सहायता मिलती है। इसके माध्यम से एक शिक्षक बच्चों में भाषा सम्बन्धी त्रुटियों की जाँच करता है वह कक्षा-कक्ष में हुई शिक्षण प्रक्रिया का मूल्यांकन कर सकता है।
बच्चों की झिझक समाप्त करने में
- बोलना एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से भाषा शिक्षण के अन्तर्गत बच्चों में पैदा होने वाली झिझक को दूर किया जा सकता है। कक्षा-कक्ष में प्रक्रिया के दौरान कुछ बच्चे बड़ी ही सहज मुद्रा में अधिगम प्राप्त करते हैं परन्तु जब शिक्षक उन्हें खड़ाकर कुछ पूछता है तो वे मौन रह जाते है। 'बोलना' बच्चों में इस प्रकार के झिंझक समाप्त कर भाषा- विकास में सहायता करता है।
भाव, विचार तथा ज्ञान को अभिव्यक्त करने में
- बोलने के माध्यम से एक बालक अपने भाव, विचार तथा ज्ञान को अभिव्यक्त करता है जिससे कि उसमें भाषा का विकास होता है। यदि उसमें बोलने का कौशल नहीं होगा तो इस स्थिति में उसके सीखने की प्रक्रिया बहुत धीमी हो जाती है।
भाषा - प्रवाह को कुशल बनाने में
- बोलना भाषा विकास की प्रक्रिया का वह साधन है जिसके माध्यम से बालक अपने भाषा प्रवाह में प्रवीणता तथा कुशलता का विकास कर सकता है। इसके माध्यम से उसके भाषा के विकास में कुशलता आती है तथा साथ ही भाषा पर उसकी पकड़ और मजबूत होती जाती है।
विद्यालय आधारित कार्यक्रमों में
- सक्रिय भूमिका निभाने में भाषा विकास में बोलने का विशेष महत्त्व है। बालक की बोलने की क्षमता ही उसे विद्यालय आधारित विभिन्न कार्यक्रमों जैसे-भाषण, वाद-विवाद, प्रश्नोत्तरी, अन्ताक्षरी आदि में सक्रिय भूमिका निभाने को प्रेरित करती है जो उसके विकास में सहायक साबित होती है।
कक्षा में भाषा के मुख्य कार्य क्या है?
भाषा की सबसे बड़ी उपयोगिता यह है कि यह हमारे भावों एवं विचारों की अभिव्यक्ति का साधन है। जब हम किसी भाषा को सीखने लगते है तो हमारे भीतर भाव एवं विचार स्फुरित होने लगते हैं। भाषा किसी बालक के शारीरिक एवं मानसिक विकास के साथ जुड़ी हुई होती है। हमारे भावों एवं विचारों की अभिव्यक्ति का समाज में बहुत महत्व है।
भाषा का प्रमुख कार्य क्या है ?`?
भाषा वह साधन है, जिसके द्वारा मनुष्य बोलकर, सुनकर, लिखकर व पढ़कर अपने मन के भावों या विचारों का आदान-प्रदान करता है। दूसरे शब्दों में- जिसके द्वारा हम अपने भावों को लिखित अथवा कथित रूप से दूसरों को समझा सके और दूसरों के भावो को समझ सके उसे भाषा कहते है।
शिक्षा में भाषा की क्या भूमिका है?
बच्चे भाषा के माध्यम से ही हर प्रकार की शिक्षा ग्रहण करने की कोशिश करते हैं । हमारे भारत देश में ही आप देखिएगा एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में प्रवेश करते ही भाषा में परिवर्तन आ जाता है और यही भाषा ही हमें एक-दूसरे के साथ से कार्य करने हेतु सहयोग करती है ।
भाषा का महत्व क्या है?
सामान्यत: भाषा को वैचारिक आदान-प्रदान का माध्यम कहा जा सकता है। भाषा अभिव्यक्ति का सर्वाधिक विश्वसनीय माध्यम है। यही नहीं, यह हमारे समाज के निर्माण, विकास, अस्मिता, सामाजिक व सांस्कृतिक पहचान का भी महत्वपूर्ण साधन है। भाषा के बिना मनुष्य अपूर्ण है और अपने इतिहास और परंपरा से विछिन्न है।