निम्नलिखित प्रश्न के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दें:
देश में जल संसाधनों की उपलब्धता की विवेचना कीजिए और इसके स्थानिक वितरण के लिए उत्तरदायी निर्धारित करने वाले कारक बताइए।
भारत में विश्व के जल संसाधनों का 4 प्रतिशत भाग पाया जाता है। भारत में प्रति वर्ष वर्षा से कुल 4,000 घन कि.मी. जल की मात्रा प्राप्त होती हैं। धरातलीय जल और पुन: पूर्तियोग भौम जल से 1869 घन कि.मी. जल उपलब्ध है। इसमें से केवल 60 प्रतिशत जल का लाभदायक उपयोग किया जा सकता है। इस प्रकार देश में कुल उपयोगी जल संसाधन 1,122 घन कि.मी. है।
वर्षा: जल का सबसे बड़ा स्तोत्र वर्ष होती हैं। वर्षा का प्रभाव अंतभौम पर भी देखा जा सकता हैं। बहुत कम वर्षा वाले वाले प्रदेश में अंतभौम जल खारा पाया जाता हैं।
धरातलीय जल: धरातलीय जल के चार मुख्य स्रोत हैं- नदियाँ, झीलें, तलैया और तालाब। नदी में जल प्रवाह इसके जल ग्रहण क्षेत्र के आकार अथवा नदी बेसिन और इस जल ग्रहण क्षेत्र में हुई वर्षा पर निर्भर करता है। इस जल के सिंचाई में उचित प्रबंध से हमारे कृषि क्षेत्र को बहुत लाभ हुआ है। अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों से नदियों पर बांध बनाकर इसका सदुपयोग किया जाता है। भारत में क्योंकि वर्षा अनिश्चित है इसलिए धरातलीय जल का उचित दिशा में प्रयोग बहुत जरूरी है। फसलों को उचित समय पर जल प्रदान करने के लिए भी जल का उचित प्रबंध जरूरी हैं। अनुमान है कि भारत की नदियों में 16.7 करोड़ हेक्टेयर मीटर जल- संसाधन उपलब्ध हैं। इसमें से 6.6 करोड़ हेक्टेयर मीटर जल सिंचाई के लिए प्रयोग किया जाता है।
भौम जल: जल एक अन्य स्त्रोत भौम जल भी हैं। देश में, कुल पुन: पूर्तियोग्य भौम जल संसाधन लगभग 432 घन कि.मी. है। भौम जल संसाधन का लगभग 46 प्रतिशत गंगा और ब्रह्मपुत्र बेसिनों में पाया जाता है। इसके उपयोग में विभिन्न राज्यों में भिन्नता पायी जाती हैं। पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और तमिलनाडु राज्यों में भौम जल का उपयोग बहुत अधिक है। परंतु कुछ राज्य जैसे छत्तीसगढ़, उड़ीसा, केरल आदि अपने भौम जल क्षमता का बहुत कम उपयोग करते हैं।
जल संसाधन का संरक्षण बहुत ज़रूरी हैं। अतः इसका उपयोग बड़ी सूझ-बुझ से किया जाना चाहिए। ऐसा न किए जाने पर विकास के मार्ग में बाँधा उत्पन्न होगी जिस कारण हमे सामाजिक उथल-पुथल का सामना करना पड़ेगा।