भारत में कौनसा कृषि वित्त का स्रोत नहीं है? - bhaarat mein kaunasa krshi vitt ka srot nahin hai?

कृषि वित्त ग्रामीण विकास एवं कृषि संबंधित गतिविधियों से जुड़े कार्यों के सम्पादन से सम्बंधित ऐसी वित्त व्यवस्था है जो उसके आपूर्ति, थोक, वितरण, प्रसंस्करण और विपणन के वित्तपोषण के लिए समर्पित एक विभाग के रूप में जाना जाता है.

कृषि वित्त ग्रामीण विकास एवं कृषि संबंधित गतिविधियों से जुड़े कार्यों के सम्पादन से सम्बंधित ऐसी वित्त व्यवस्था है जो उसके आपूर्ति, थोक, वितरण, प्रसंस्करण और विपणन के वित्तपोषण के लिए समर्पित एक विभाग के रूप में जाना जाता है.

किसानों की ऋण आवश्यकताओं को निम्नलिखित तथ्यों ले आधार पर निर्धारित किया जा सकता है:

• समय के आधार पर
• उद्देश्य के आधार पर

समय के आधार पर: समय के आधार पर किसानों की ऋण आवश्यकताओं को निम्न रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है:

• लघु अवधि
• मध्यम अवधि
• लंबे समय तक की अवधि के लिए ऋण

लघु अवधि के ऋण:

इस तरह के ऋण उर्वरक, बीज, कीटनाशकों और पशुओं के चारे आदि को खरीदने आदि के लिए दिया जाता है. साथ ही मजदूरों की मजदूरी के भुगतान, कृषि उपजों के विपणन एवं  उपभोग और अनुत्पादक उद्देश्यों एवं मजदूरी के भुगतान के लिए आवश्यक हैं. इन ऋणों के लिए अवधि 15 महीने से भी कम है.

किसानों की जरूरत एवं  उद्देश्य के आधार पर कृषि ऋण को तीन भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है:

• उत्पादक आवश्यकता
• खपत की जरूरत
• अनुत्पादक आवश्यकता

उत्पादक आवश्यकता -

उत्पादक जरूरतों के सन्दर्भ की बात करें तो कृषि ऋण कृषि उत्पादन को गहरे तक प्रभावित करते हैं. कुछ किसानो की बात करें तो वे आदतन भी खपत के लिए ऋण की जरूरत महसूस करते हैं.. कृषि की बुवाई एवं उसके उपज और बाद में फसल की कटाई और उसके विपणन होने के मध्य इतनी अवधि का समय होता है की किसान अपनी तमाम जरूरतों को पूरा करने में अक्षम होते हैं. अतः वे अपनी तमाम जरूरतों को ही पूरा करने के लिए मजबूरन ऋण लेते हैं. अर्थात यदि कोई किसान ऋण लेता है तो कुछ किसानो को छोड़ दे तो अधिकांश किसानो के ऋण लेने की परंपरा गलत नहीं है.

कृषि अर्थशास्त्र (Agricultural economicsgfd fusdhs या Agronomics) मूल रूप में वह विधा थी जिसमें फसलों उत्पादन एवं जानवरों के पालन में अर्थशास्त्र के सिद्धान्तों का प्रयोग करके इसे अधिक उपयोगी बनाने की कोशिशों का अध्ययन किया जाता था। पहले इसे 'एग्रोनॉमिक्स' कहते थे और यह अर्थशास्त्र की वह शाखा थी जिसमें भूमि के बेहतर उपयोग का अध्ययन किया जाता था।

अर्थशास्त्र में कृषि का विशिष्ट स्थान स्वीकार किया गया है। विकसित, विकासशील एवं अर्द्धविकसित-सभी प्रकार की अर्थव्यवस्थाओं में आवश्यकतानुसार कृषि के विकास को मान्यता प्रदान की जाती है। खाद्य व्यवस्था, कच्चे माल की उपलब्धि तथा रोजगार प्रदान किये जाने के सम्बन्ध में प्रत्येक राष्ट्र की अर्थव्यवस्था में कृषि विकास का विशिष्ट स्थान है। नि:सन्‍देह कृषि के विकास में अनेक अस्थिरताओं से संघर्ष करना पड़ता है। इसके बावजूद भी किसी दृष्टि से कृषि का महत्व खाद्य सामग्री तथा औद्योगिक कच्चे माल की उपलब्धि की दृष्टि से कृषि विकास के महत्त्व को कम नहीं आंका जा सकता। अर्द्धविकसित तथा विकासशील देशों में इनके अतिरिक्त रोजगार उपलब्ध करवाने की दृष्टि से भी कृषि की विशिष्ट भूमिका है।

कृषि अर्थशास्त्र में कृषि के सम्बन्ध में स्थानीय कृषि, कृषि की नवीन व्यहू रचना तथा हरित क्रान्ति, कृषि का आधुनिकीकरण एवं व्यवसायीकरण, कृषि मूल्य नीति, कृषि श्रमिक, वन सम्पदा, ग्रामिण आधारभूत ढाँचा, बंजरभूमि विकास कार्यक्रम, कृषि वित्त, सहकारिता, सहकारिता का उद्गम एवं विकास, सहकारी विपणन, उपभोक्ता सहकारी समितियाँ और औद्योगिक सहकारी समितियाँ आदि विषयों का विस्तृत विवेचन किया जाता है।

कृषि अर्थशास्त्र वस्तुतः सामान्य अर्थशास्त्र की एक विशिष्ट शाखा है। इसके अन्तर्गत कृषि व्यवसाय से सम्बन्धिात विभिन्न आर्थिक समस्याओं एवं सिद्धान्तों का अधययन किया जाता है। कृषि एक उत्पादक कार्य है। इसलिये कृषि अर्थशास्त्र उत्पादन की समस्याओं पर अपेक्षाकृत अधिाक विस्तार के साथ विचार किया जाता है। कृषि व्यवसाय की विविध समस्याएँ जैसे, कृषि-उत्पादन हेतु विभिन्न साधनों की व्यवस्था, प्रति हैक्येटर उत्पत्ति में वृद्धि, कृषि-भूमि पर जनसंख्या का दबाव, आर्थिक जोत, भूमि-स्वामित्व प्रणाली, कृषि उपज का विपणन, सहकारी कृषि आदि पर कृषि अर्थशास्त्र के अन्तर्गत विचार किया जाता है। परन्तु इस सम्बन्ध में यह स्मरणीय है कि कृषि अर्थशास्त्र में न केवल कृषि सम्बन्धी विभिन्न समस्याओं पर विचार किया जाता है, अपितु अर्थशास्त्र के विभिन्न महत्त्वपूर्ण नियमों जैसे, ह्रासमान प्रतिफल नियम (Law of Diminishing Returns) माँग का नियम, पूर्ति का नियम आदि की कृषि क्षेत्र में क्रियाशीलता की जाँच की जाती है।

पृथक् विषय के रूप में कृषि-अर्थशास्त्र का वैज्ञानिक अधययन उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में प्रारम्भ हुआ था। आधुनिक कृषि एक व्यवसाय है। इसमें वे सभी उद्योग सम्मिलित किए जाते हैं, जो कृषि के विकास के लिए उत्पादन-साधनों को निर्मित करते हैं तथा कृषि-गत पदार्थों का परिष्करण (प्रोसेसिंग) के द्वारा रूप परिवर्तित करते हैं।

अर्थशास्त्र की विभिन्न शाखाएँ हैं, जो अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों पर विस्तृत प्रकाश डालती है। कृषि अर्थशास्त्र उनमें से एक है। यह कृषि से सम्बन्धिात मुख्य आर्थिक समस्याओं का अधययन करती है। कृषि अर्थशास्त्र में हम फार्म प्रबन्ध, उत्पादन फलन, कृषि विपणन, कृषि वित्त, कृषि कीमत आदि से सम्बन्धिात नीतियों का अधययन करते हैं।

फार्म प्रबंध में उत्पादन एवं प्रबंध से संबंधिात निर्णयात्मक समस्याओं का विवेचन किया जाता है। एक निश्चित भौतिक एवं आर्थिक परिस्थितियों में कौन-सी फसलें उगानी चाहिए और प्रत्येक फसल के लिए कितना क्षेत्रफल निर्धारित करना चाहिए? उदाहरण के तौर पर मान लो 10 एकड़ भूमि में फसल उगाने की मेरी योजना है, तो उसमें से क्या मुझे 6 एकड़ में गेहूं, 3 एकड़ में गन्ना और एक एकड़ में चना उगाना चाहिए? या फिर अन्य फसलें इसकी अपेक्षा अधिाक लाभप्रद हो सकती है? गेहूँ, गन्ना और चने की कौन-सी किस्में होनी चाहिए? किन कृषि- विधिायों को मुझे अनुसरण करना चाहिए? कब और कितनी मात्र मे उर्वरक डालना चाहिए और सिंचाई करनी चाहिए? कीमतों का ढाँचा क्या है और उनका झुकाव किस ओर है? विभिन्न बाजारों में विभिन्न कृषि उत्पादों के विपणन से संबंधिात कौन-कौन-सी भिन्न कीमतें हैं? व्यक्ति, समाज अथवा राष्ट्र के हितों की दृष्टि से बाजारों के ढाँचे में किस प्रकार सुधार किया जाता है? क्या फार्म को नकद भुगतान करके, उधार या यथोचित पट्टे पर खरीदना चाहिए? किसान को किस उद्देश्य के लिए, किन शर्तों पर और कितनी अवधिा के लिए उधार लेना चाहिए? कृषि नीति कृषि अर्थशास्त्र का एक अधिाक महत्त्वपूर्ण अंग है। ये नीतियाँ प्राप्त उद्देश्यों पर और कृषि के साधनों के उपयोग पर आधारित होती है। इस क्षेत्र में कृषि उत्पादों की कीमतों को नियंत्रित करने के प्रश्नों का अधययन किया जाता है। जैसे क्या कपास के वायदा व्यापार (सट्टा) पर प्रतिबंध लगा दिया जाना चाहिए यदि ऐसा है, तो कपास और सूती कपड़ों की कीमतों पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा? क्या उर्वरकों पर कर लगाना चाहिए? क्या कृषि आय पर कर होना चाहिए? ये सभी प्रश्न कृषि अर्थशास्त्र के कृषि नीति के क्षेत्र में आते हैं।

कृषि अर्थशास्त्र में कृषि की निम्नलिखित क्रियाओं का अधययन किया जाता है।

  • विभिन्न उद्यमों के समूह-फसल उत्पादन, पशुपालन, फल उत्पादन तथा विभिन्न उद्यमों में आपसी सम्बन्ध का अधययन जिससे उद्यमों के सही चुनाव द्वारा अधिाकतम लाभ प्राप्त किया जा सके।
  • उत्पादन के सीमित साधनों का विभिन्न उद्यमों में अधिाकतम लाभ की प्राप्ति के लिए अनुकूलतम उपयोग, उत्पादन साधनों का प्रतिस्थापन एवं विभिन्न साधनों का उचित मात्र में संयोजन।
  • उत्पादक एवं उपभोक्ताओं के बीच क्रय-विक्रय के लिए उचित सम्बन्ध बनाए रखना।
  • विभिन्न उत्पादनों साधनों एवं उत्पादित वस्तुओं की लागत एवं आय के सम्बन्धं पर विचार करना।

भारतीय कृषि अब व्यावसायिक रूप धारण करती जा रही है। कृषि साख, बचत, विनियोग, कृषि-विपणन, कृषि वस्तुओं के मूल्य, कृषि वस्तुओं का अंतर्देशीय तथा अंतर्राष्ट्रीय व्यापार, ग्रामीण क्षेत्र में नवीन संगठन आदि अत्यन्त महत्त्वपूर्ण विषय हो गए हैं, अतः कृषि अर्थशास्त्र में इन सब समस्याओं का अधययन किया जाता है।

अधययन की दृष्टि से कृषि अर्थशास्त्र के विभिन्न क्षेत्रों को निम्न विभागों में विभक्त किया जा सकता है-

भारत में कौनसा कृषि वित्त का स्रोत है?

कृषि वित्त का प्रमुख स्रोत सहकारी समितियाँ हैं, जो स्वतंत्रता प्रप्ति के बाद पोषित हुई हैं। स्वतंत्रता के बाद ग्रामीण क्षेत्र में 'सहकारिता आन्दोलन' प्रारम्भ होने पर विश्वास व्यक्त किया गया कि अब कृषि वित्त का मूल स्रोत सहकारी समितियाँ, होंगी, जो साहूकारों एवं महाजनों का स्थान ग्रहण कर लेंगी।

कौन सा प्रत्यक्ष वित्त का स्रोत नहीं है?

सही उत्तर नाबार्ड है।

भारत में कृषि वित्त कितने प्रकार के होते हैं?

कृषि साख या कृषि वित्त क्या है इसकी परिभाषा लिखिए?.
किसानों की इस आवश्यकता के प्रमुख स्रोत है -.
ऋण लेने की आवश्यकतानुसार कृषि साख या वित्त का वर्गीकरण -.
( अ ) उत्पादक ऋण ( Productive Credit ) -.
यह दो प्रकार का होता है -.
( i ) प्रत्यक्ष उत्पादक ( Direct Productive ) -.
( ii ) अप्रत्यक्ष उत्पादक ( Indirect Productive ) -.

भारत में कृषि वित्त क्या है?

कृषि वित्त ग्रामीण विकास एवं कृषि संबंधित गतिविधियों से जुड़े कार्यों के सम्पादन से सम्बंधित ऐसी वित्त व्यवस्था है जो उसके आपूर्ति, थोक, वितरण, प्रसंस्करण और विपणन के वित्तपोषण के लिए समर्पित एक विभाग के रूप में जाना जाता है.

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