भारत के आर्थिक विकास में हिमालय का क्या महत्व है स्पष्ट कीजिए? - bhaarat ke aarthik vikaas mein himaalay ka kya mahatv hai spasht keejie?

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हिंदुकुश-हिमालय क्षेत्र के भौगोलिक एवं आर्थिक महत्व

January 23, 2020 उत्तर लेखन, भूगोल

प्रश्न: हिंदुकुश-हिमालय क्षेत्र के भौगोलिक एवं आर्थिक महत्व को स्पष्ट कीजिए। इस क्षेत्र की महत्वपूर्ण भौगौलिक विशेषताएं किसप्रकार परिवर्तित हो रही हैं और इनके संभावित परिणाम क्या हो सकते हैं?

दृष्टिकोण

  • हिन्दुकुश-हिमालयी क्षेत्र का एक संक्षिप्त सिंहावलोकन प्रस्तुत कीजिए। 
  • इस क्षेत्र के भौगोलिक और आर्थिक महत्व का उल्लेख कीजिए।
  • इस क्षेत्र की परिवर्तित भौगोलिक विशेषताओं की चर्चा कीजिए।
  • इनके संभावित परिणामों का उल्लेख कीजिए।
  • संक्षिप्त सुझावों के साथ निष्कर्ष प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर

हिन्दुकुश-हिमालयी क्षेत्र का विस्तार 8 देशों, यथा- भारत, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, चीन, म्यांमार, नेपाल और पाकिस्तान में लगभग 3,500 वर्ग किलोमीटर तक है। यह अपने व्यापक स्थायी हिमाच्छादन के कारण ‘तृतीय ध्रुव’ का एक भाग है।

इस क्षेत्र का भौगोलिक और आर्थिक महत्व: 

  • यह क्षेत्र अमुदरिया, सिंधु, गंगा, ब्रह्मपुत्र इत्यादि जैसे दस विशाल एशियाई नदी तंत्रों का उद्गम स्थल है जिससे यहाँ जल की उपलब्धता सुनिश्चित होती है। यह महत्वपूर्ण पारितंत्रीय सेवाओं को बनाए रखता है तथा पर्वतीय एवं पहाड़ी क्षेत्रों में निवास करने वाले 240 मिलियन लोगों हेतु आजीविका के आधार के रूप में कार्य करता है। यह ग्रीष्मकाल में एक ऊष्मा स्त्रोत के रूप में तथा शीतकाल में एक हीट सिंक के रूप में भी कार्य करता है। इसके अतिरिक्त इस क्षेत्र में तिब्बत पठार भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून को भी प्रभावित करता है।
  • इस क्षेत्र में बांग्लादेश, भूटान और भारत जैसे देशों में वाणिज्यिक रूप से व्यवहार्य जलविद्युत संभावनाएं विद्यमान हैं जिनका पूर्ण दोहन किया जाना अभी शेष है।
  • यह क्षेत्र बाघों, हाथियों, कस्तूरी मृगों, लाल पांडा, हिम तेंदुओं, रोडेंड्रान, आर्किड, दुर्लभ औषधीय पादपों आदि जैसे वनस्पतिजात एवं प्राणिजात के एक विविध समूह हेतु पर्यावास भी उपलब्ध कराता है।
  • यहाँ विश्व के सर्वाधिक उच्च पर्वत शिखर अवस्थित हैं, यथा- माउंट एवरेस्ट, K2, कंचनजंघा, मकालू आदि। ये पर्वत शिखर साहसिक (एडवेंचर) पर्यटन हेतु अवसर प्रदान करते हैं।

हालांकि, हिन्दुकुश-हिमालयी क्षेत्र नवीन एवं वृद्धिशील पर्वतों से युक्त भौगोलिक रूप से भंगुर (fragile) अवस्था में है, जिसके कारण यह अपरदन एवं भू-स्खलन के प्रति सुभेद्य है। यह क्षेत्र जलवायु परिवर्तन, आपदा, अवसंरचना विकास, भूमि-उपयोग परिवर्तन, नगरीकरण इत्यादि जैसे बलों द्वारा संचालित तीव्रगामी परिवर्तनों से गुजर रहा है। इंटरनेशनल सेंटर फॉर इंटीग्रेटेड माउंटेन डेवलपमेंट द्वारा जारी नवीनतम रिपोर्ट के अनुसार यदि वैश्विक तापन को 1.5°C तक सीमित किया जाता है तो भी हिन्दुकुश-हिमालयी क्षेत्र में तापन 0.3°C तक उच्च रहेगा।

हाल ही में इस क्षेत्र में निम्नलिखित गंभीर भौगोलिक परिवर्तन दृष्टिगोचर हुए हैं:

  •  हिमनदों का पिघलना: 1970 के दशक के पश्चात् से तापमान में वृद्धि के कारण हिन्दुकुश-हिमालयी क्षेत्र में लगभग 15% हिम पिघल चुकी है।
  • हिमनद विखंडन: एक रिपोर्ट के अनुसार हिमालय में विशाल हिमनदों के अनेक लघु हिमनदों में विखंडन के कारण विगत पांच दशकों में इनकी संख्या में वृद्धि हुई है।
  • हिमनद द्रव्यमान में परिवर्तन: विस्तृत हिन्दुकुश-हिमालयी क्षेत्र में विगत दो दशकों से हिमनदों में एक तीव्र दर पर द्रव्यमान क्षति परिलक्षित हुई है।
  • वर्द्धित नदी धारा प्रवाहः तीव्रता से हिमनदों के पीछे हटने के कारण नदियों के जल प्रवाह में वृद्धि हुई है। उदाहरणार्थ तिब्बत पठार क्षेत्र में नदी प्रवाह में 5.5 % तक बढ़ोतरी हुई है।

इस क्षेत्र में हिमनदों के अत्यधिक मात्रा में पिघलने के निम्नलिखित परिणाम दृष्टिगत होंगे:

  • हिम और हिमनदों के तीव्रता से पिघलने के कारण हिमनदीय झीलों में जल की अधिकता के परिणामस्वरूप बाढ़ जैसी घटनाओं में वृद्धि होगी जिससे व्यापक जनहानि हो सकती है तथा स्थानीय अवसंरचना को अतिशय क्षति पहुंच सकती है।
  • चूँकि, हिम की परतें स्वयं द्वारा आवृत्त भूभागों पर अत्यधिक भार डालती हैं इसलिए हिमनदों का पिघलना समस्थितिक प्रतिक्षेप (isostatic rebound) का कारण बन सकता है जिसका अर्थ है- भार के समाप्त होने के कारण भूमि का उर्ध्वगामी उभार।
  • नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार आकार में घटते हिमनदों जैसे कारकों के कारण भारतीय हिमालय में 30% जल स्त्रोत सूख गए हैं, जिससे विद्यमान जल स्त्रोतों पर अतिरिक्त दबाव आरोपित होगा।
  • यह क्षेत्र भौगौलिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह भारतीय मानसून प्रणाली को प्रभावित करता है। मानसून प्रतिरूपों में परिवर्तन कुछ क्षेत्रों में अत्यधिक वर्षण का कारण बन सकता है, जिससे बाढ़, भू-स्खलन और मृदा अपरदन जैसी घटनाओं में वृद्धि होगी।
  • इस क्षेत्र का 70-80% तक मूल पर्यावास नष्ट हो चुका है तथा वर्ष 2100 तक इसमें 80-87% तक वृद्धि होने का अनुमान लगाया गया है, जिसके परिणामस्वरूप जैव-विविधता की गंभीर क्षति होगी।
  • वर्द्धित धारा प्रवाह के कारण समुद्र तल में भी वृद्धि होगी जिसके गंभीर परिणाम होंगे।

हिन्दुकुश-हिमालयी क्षेत्र जलवायु परिवर्तन और अस्थिरता के प्रति अतिसंवेदनशील है। यदि वैश्विक तापमान में वृद्धि 1.5°C तक सीमित भी रहती है तो वर्ष 2100 तक क्षेत्र में 35% से अधिक हिमनद लुप्त हो जाएंगे। इसलिए इस क्षेत्र में हिमनदों के त्वरित विगलन को सामूहिक रूप से रोकने हेतु अल्पकालिक और दीर्घकालिक जलवायु-संबंधी समस्याओं के प्रति अनुकूलन के लिए अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सहयोग की आवश्यकता है। इस प्रकार के सहयोग को पेरिस जलवायु परिवर्तन के लक्ष्यों की पूर्ति के साथ-साथ संचालित किया जाना चाहिए।

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भारत के आर्थिक विकास में हिमालय का क्या महत्व है वर्णन कीजिए?

हिमालय की वर्ष-पर्यंत हिमाच्छादित श्रेणियाँ और इनके हिमनद सदावाहिनी नदियों के स्रोत हैं जिनसे भारत, पाकिस्तान, नेपाल और बांग्लादेश को महत्वपूर्ण जल संसाधन उपलब्ध होते हैं। वन संसाधनों के रूप में शीतोष्ण कटिबंधीय मुलायम लकड़ी वाली वनस्पति और शंक्वाकार वनों के स्रोत के रूप में जिसका काफ़ी आर्थिक महत्व है।

भारत के हिमालय का क्या महत्व है?

हिमालय पर्वत एक अवरोधक का कार्य करता है। यह अरब सागर और बंगाल की खाड़ी से आने वाली ग्रीष्म मानसून पवनों को रोक देता है, जिससे भारतवर्ष में भारी वर्षा होती है। इसके अतिरिक्त यह साइबेरिया से आने वाली अति शीत और शुष्क पवनों को रोक देता है। इस प्रकार हिमालय पर्वत उत्तर भारत के घनी जनसंख्या वाले प्रदेशों की सुरक्षा करता है।

हिमालय से भारत को क्या लाभ है?

हिमालय एक महान जलवायु बाधा है। वे हमारे देश को मध्य एशिया की ठंडी और सूखी हवाओं से बचाते हैं, यह हिंद महासागर की बारिश से भरी मानसून की हवाओं को उत्तरी देशों तक पहुंचने से रोकता है और उत्तरी भारत में भारी बारिश का कारण बनता है। यदि कोई हिमालय नहीं था, तो हमारा देश थार रेगिस्तान की तरह बंजर होता।

हिमालय की विशेषताएं क्या होती है?

हिमालय एक पर्वत तन्त्र है जो भारतीय उपमहाद्वीप को मध्य एशिया और तिब्बत से अलग करता है। यह पर्वत तन्त्र मुख्य रूप से तीन समानांतर श्रेणियां- महान हिमालय, मध्य हिमालय और शिवालिक से मिलकर बना है जो पश्चिम से पूर्व की ओर एक चाप की आकृति में लगभग 2400 कि॰मी॰ की लम्बाई में फैली हैं।

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