भुगतान सन्तुलन से आप क्या समझते हैं? - bhugataan santulan se aap kya samajhate hain?

भुगतान संतुलन (बीओपी) दुनिया और किसी देश के निवासियों के बीच सभी वित्तीय लेनदेन को रिकॉर्ड करता है। यह देश में धन के प्रवाह को समझने और यह देखने में मदद करता है कि धन का कितना अच्छा उपयोग किया गया है। यह जानने में मदद करता है कि कोई अर्थव्यवस्था विकसित हो रही है या नहीं। भुगतान का एक आदर्श संतुलन शून्य है – निधियों का शुद्ध अंतर्वाह और बहिर्वाह रद्द हो जाना चाहिए। एक बीओपी यह समझने में मदद करता है कि क्या किसी देश में अधिशेष या धन की कमी उपलब्ध है। यदि आयात निर्यात से अधिक है, तो कहा जाता है कि देश में धन की कमी है।

भुगतान संतुलन की गणना कैसे करें?

बीओपी की गणना के लिए सूत्र है: चालू खाता + वित्तीय खाता + पूंजी खाता + बैलेंसिंग आइटम = 0

बीओपी किससे बना होता है?

बीओपी के तीन भाग हैं- चालू खाता, वित्तीय खाता और पूंजी खाता। एक आदर्श स्थिति में पूंजी और वित्तीय खाते का कुल योग चालू खाते द्वारा संतुलित किया जाना चाहिए।

पूंजी खाता

इसमें भूमि और संपत्ति जैसी गैर-वित्तीय संपत्तियों की खरीद और बिक्री शामिल है। इसमें प्रवासियों के साथ-साथ संपत्ति की आवाजाही से उत्पन्न बिक्री, खरीद और कर भी शामिल हैं। style="font-weight:400;">चालू खाते से घाटा या अधिकता का प्रबंधन पूंजी खाते द्वारा किया जाता है और इसके विपरीत। इसके तीन प्रमुख तत्व हैं-

  • ऋण और उधार – दूसरे देश से सभी प्रकार के ऋण और उधार।
  • निवेश – निवासियों द्वारा कॉर्पोरेट शेयरों में निवासियों द्वारा निवेश की गई निधि
  • विदेशी मुद्रा भंडार – हर देश के केंद्रीय बैंक के पास होता है और इसका अर्थव्यवस्था पर सीधा प्रभाव पड़ता है।

चालू खाता

यह देश में माल की आमद और बहिर्वाह की निगरानी में मदद करता है। इसमें कच्चे माल और विनिर्मित वस्तुओं के संदर्भ में सभी प्राप्तियां शामिल हैं। इसमें व्यापार, पर्यटन, स्टॉक, परिवहन, व्यापार सेवाओं और पेटेंट और कॉपीराइट से रॉयल्टी का आदान-प्रदान भी शामिल है। जब उपरोक्त सभी वस्तुओं को जोड़ा जाता है, तो वे बीओटी (व्यापार संतुलन) बनाते हैं। देशों के बीच दो प्रकार के आदान-प्रदान होते हैं- दृश्य और अदृश्य। अदृश्य विनिमय में पर्यटन, बैंकिंग आदि जैसी सेवाएं शामिल हैं, जबकि दृश्य विनिमय में माल का निर्यात और आयात शामिल है। 400;">एकतरफा हस्तांतरण में अन्य देशों के निवासियों को भेजा गया प्रत्यक्ष धन शामिल है। इसमें रिश्तेदारों द्वारा अन्य देशों में उनके परिवारों को भेजा गया धन भी शामिल है।

वित्तीय खाता

इसमें निवासियों द्वारा अचल संपत्ति, व्यावसायिक उद्यमों और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में निवेश किया गया धन शामिल है। यह घरेलू संपत्ति के विदेशी स्वामित्व और विदेशी संपत्ति के घरेलू स्वामित्व में परिवर्तन की निगरानी करता है, और विश्लेषण करता है कि कोई देश अधिक संपत्ति प्राप्त कर रहा है या नहीं।

देश के लिए बीओपी का महत्व

किसी देश के लिए BOP आवश्यक होने के कई कारण हैं। उनमें से कुछ हैं-

  • यह जानने में मदद करता है कि मुद्रा के मूल्य में सुधार हो रहा है या मूल्यह्रास।
  • यह किसी देश की वित्तीय और आर्थिक स्थिति जानने में मदद करता है,
  • यह सरकार को व्यापार और राजकोषीय नीतियों के बारे में निर्णय लेने में मदद करता है।
  • यह अन्य देशों के साथ आर्थिक व्यवहार का विश्लेषण करने में मदद करता है।

तथ्यों को जानना चाहिए

बीओटी और बीओपी में क्या अंतर है?

400;">बीओटी या व्यापार संतुलन में केवल दृश्यमान उत्पाद शामिल हैं, इस प्रकार केवल माल के निर्यात और आयात की गणना की जाती है। भुगतान संतुलन के चालू खाते में माल, एकतरफा प्रेषण, सेवाओं आदि से स्थानांतरण शामिल हैं। इनमें से कुल योग का गठन होता है चालू खाता इस प्रकार, बीओटी चालू खाते के रूप में बीओपी का एक हिस्सा बनता है।

भुगतान संतुलन में कमी का क्या अर्थ है?

जब स्वायत्त विदेशी मुद्रा भुगतान स्वायत्त विदेशी मुद्रा प्राप्तियों से अधिक हो जाता है, तो इसे भुगतान संतुलन में कमी के रूप में जाना जाता है। व्यक्ति की खातिर स्वायत्त लेनदेन किए जाते हैं।

आधिकारिक आरक्षित लेनदेन क्या हैं? वे महत्वपूर्ण क्यों हैं?

यदि किसी देश के पास भुगतान का अधिशेष शेष है तो वह विदेशी मुद्रा खरीद सकता है और अपनी संपत्ति का विस्तार कर सकता है। हालांकि, अगर किसी देश में घाटा है तो किसी देश की विदेशी मुद्रा संपत्ति को नीचे चलाने की जरूरत है। बीओपी सरकार को देश में और बाहर संपत्ति के भविष्य के आंदोलन की योजना बनाने के लिए विभिन्न नीतियों की निगरानी और कार्यान्वयन में मदद करता है।

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भुगतान सन्तुलन का अर्थ | भुगतान सन्तुलन का महत्व | प्रतिकूल भुगतान सन्तुलन के कारण | प्रतिकूल भुगतान सन्तुलन को सुधारने के उपाय

असाम्य भुगतान सन्तुलन का महत्व | असाम्य भुगतान सन्तुलन का कारण | असाम्य भुगतान सन्तुलन को सुधार के उपाय

  • भुगतान सन्तुलन का अर्थ (Meaning of Balance of Payments)- 
    • भुगतान सन्तुलन का महत्व
    • प्रतिकूल (असाम्य) भुगतान सन्तुलन के कारण –
    • प्रतिकूल भुगतान सन्तुलन को सुधारने के उपाय
      • अर्थशास्त्र – महत्वपूर्ण लिंक

भुगतान सन्तुलन का अर्थ (Meaning of Balance of Payments)- 

भुगतान सन्तुलन उन समस्त आर्थिक सौदों का एक लेखा-जोखा (Account) है जिन्हें एक देश के निवासी अन्य देशों के निवासियों के साथ एक निश्चित अवधि (प्रायः एक वर्ष ) में सम्पन्न करते हैं। इसमे वस्तुओं के आयात व निर्यात (दृश्य व्यापार) के अतिरिक्त अन्य मदें भी शामिल की जाती हैं। जैसे- पूँजी का आदान-प्रदान ब्याज का लेन-देन, जहाजरानी की सेवायें, पर्यटकों के आवगमन से प्राप्ति व देनदारी, विशेषताओं की सेवओं का लेनदेन इत्यादि।

भुगतान सन्तुलन को भुगतान शेष भी कहा जाता है।

प्रो. वॉल्टर क्रास के अनुसार, “भुगतान सन्तुलन किसी देश के निवासियों एवं शेष विश्व के निवासियों के मध्य एक विशेष समय में साधारणतयः एक वर्ष में किये गये समस्त आर्थिक लेन-देनों का एक व्यवस्थित विवरण है।”

पी. टी. एल्सवर्थ के अनुसार, “भुगतान सन्तुलन एक देश के निवासियों और शेष विश्व के बीच किये गये समस्त लेन-देनों का लिखित विवरण है। यह किसी दिये हुए समय साधारणतया एक वर्ष के लिए होता है।”

स्पष्ट है कि एक देश के भुगतान को देखकर यह पता लगाया जा सकता है कि देश विशेष की अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक स्थिति कैसी है। अन्तर्राष्ट्रीय दायित्वों के निपटाने के लिए वह देश कैसी स्थिति का सामना कर रहा है? विश्व देश की अर्थव्यवस्था में उसका कितना हिस्सा है? इस बात की जानकारी हमें उसके अनुपात सन्तुलन से ज्ञात हो सकती है।

भुगतान सन्तुलन का महत्व

भुगतान सन्तुलन का महत्व निम्न बातों से स्पष्ट हो जाता है.

  1. देश की अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक स्थिति का ज्ञान (Knowledge of International Economic Condition of the Country)- भुगतान सन्तुलन के विवरण से देश की अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक स्थिति की जानकारी होती है। इससे ज्ञात हो जाता है कि कितनी आय प्राप्त होनी है तथा कितना भुगतान करना है। इससे मौद्रिक व वित्तीय नीति, विदेशी व्यापार तथा विदेशी विनिमय सम्बन्धी निर्णय लेने में सहायता मिलती है।
  2. मौद्रिक तथा विनिमय नियन्त्रण नीतियों की सफलता का अनुमान (Estimate of Success of Monetary & Exchange Control Policies)- भुगतान सन्तुलन की स्थिति से इस बात का ज्ञान हो जाता है कि एक देश ऋण ले रहा है या दे रहा है, उसकी चलन तथा विदेशी विनिमय स्थिति कमजोर या सुदृढ़ तथा उसके द्वारा अपनाई गयी मौद्रिक तथा विनिमय नियन्त्रण नीति कहाँ तक प्रभावपूर्ण है।
  3. अवमूल्यन के प्रभाव का ज्ञान (Knowledge of Effect of Devaluation)- भुगतान सन्तुलन के विवरण से यह ज्ञात किया जा सकता कि किसी देश द्वारा अवमूल्यन की नीति अपनाने के परिणामस्वरूप उसके निर्यातों में पर्याप्त वृद्धि हुई है या नहीं।
  4. देश का राष्ट्रीय आय पर विदेशी व्यापार के प्रभाव की माप (Measurment of Effect of Foreign Trade on National Income of the Country)- भुगतान सन्तुलन के विवरण से देश की राष्ट्रीय आय पर पड़ने वाले विदेशी व्यापार तथा व्यवहारों के प्रभाव को मापा जा सकता है।

प्रतिकूल (असाम्य) भुगतान सन्तुलन के कारण –

भुगतान सन्तुलन की असाम्यता या प्रतिकूलता निम्नलिखित कारणों से उत्पन्न होती है।

(1) व्यापार चक्र के कारण भुगतान सन्तुलन में असाम्यता उत्पन्न हो जाता है।

(2) विकासशील देशों/अर्द्धविकसित देशों द्वारा विकास कार्यक्रम पर अत्यधिक खर्च करना असाम्यता की समस्या उत्पन्न करता है।

(3) विकासशील देशों में भुगतान सन्तुलन में असाम्यता का प्रमुख कारण उनके निर्यात की माँग का बेलोच होना है।

(4) आय एवं कीमतें प्रभाव इस समस्या को जन्म देती हैं आय एवं कीमत स्तर में वृद्धि के कारण आयात बढ़ जाता परन्तु निर्यात उसी अनुपात में नहीं बढ़ता है।

(5) संरक्षणात्मक नीतियाँ इस समस्या को व्यापक बना देती है। इस नीति के परिणामस्वरूप विकासशील देशों का निर्यात स्तर वांक्षित स्तर नहीं प्राप्त कर पाता है।

(6) विदेशी ऋण भुगतान सन्तुलन की समस्या को अत्यधिक असाम्य बना देता है।

प्रतिकूल भुगतान सन्तुलन को सुधारने के उपाय

निम्नलिखित हैं-

(1) मुद्रा संकुचन- एक देश महँगी मुद्रा व साख नीति अपनाते हुए मुद्रा संकुचन करके भुगतान संतुलन के असाम्य या प्रतिकूलता को दूर कर सकता है। मुद्रा संकुचन के फलस्वरूप मुद्रा की मात्रा में कमी हो जाती है। जिसके कारण साधन व अन्य सामान की कीमतों में कमी हो जाती है जिसके फलस्वरूप उत्पादन लागत और इस प्रकार वस्तु की कीमतें गिर जाती हैं जिसके फलस्वरूप विदेशों में इस देश की वस्तुयें अपेक्षाकृत सस्ती हो जायेंगी और निर्यातों में वृद्धि हो जायेगी।

(2) विनिमय मूल्य ह्रास – जब एक देश अपनी मुद्रा के बाह्य मूल्य को कम कर देता है तो इसे विनिमय मूल्य ह्यस कहते हैं। यह स्वतन्त्र विनिमय दर की स्थिति में होता है। यह बाजार की शक्तियों किन्तु विनिमय बस की इस सन्दर्भ में सफलता आयात व निर्यात के लिए माँग की लोच पर निर्भर है। विनिमय ह्रास वाले देश की आयात व निर्यात दोनों के लिए माँग की लोच इकाई से अधिक होने चाहिए। यदि दोनों ही अथवा किसी एक की माँग की लोच इकाई से कम है तो या तो आयात नहीं घट पायेंगे अथवा और निर्यातों में वृद्धि नहीं हो पायेगी और भुगतान सन्तुलन में घाटा बना रहेगा।

(3) अवमूल्यन- भुगतान सन्तुलन के असाम्य को दूर करने के लिए अवमूल्यन का भी सहारा लिया जाता है। अवमूल्यन में देश की मुद्रा के बाह्य मूल्य को सरकारी घोषणा द्वारा कम कर दिया जाता है। अवमूल्यन के फलस्वरूप करने वाले देश की मुद्रा की एक इकाई के बदले विदेशी मुद्रा को पहले की अपेक्षा कम मात्रा प्राप्त होने लगती है। अवमूल्यन के कारण आवश्यक रूप से मुद्रा का आन्तरिक मूल्य कम नहीं होता है। अवमूल्यन सामान्यत: विश्व के सभी देशों की मुद्राओं के सन्दर्भ अथवा किसी एक देश की मुद्रा के सन्दर्भ में अपनाया जा सकता है।

(4) विनिमय नियंत्रण- भुगतान सन्तुलन के असाम्य को दूर करने के लिए विनिमय नियंत्रण एक अन्तिम मौद्रिक अस्त्र है। यदि मुद्रा-संकुचन राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के लिए घातक है तो अवमूल्यन दूसरों का मुंह देखता है। इसलिए इन उपायों के प्रयोग से बचा जाता है।

हैबरलर के अनुसार, “विनिमय नियंत्रण वह सरकारी नियमन है जो विदेशी विनिमय बाजार में अधिक शक्तियों के स्वतन्त्र कार्यकरण पर रोक लगता है।”

(5) अमौद्रिक उपाय (Non-Monetary Measures)- प्रतिकूल भुगतान सन्तुलन को ठीक करने के लिए मौद्रिक उपायों की अपेक्षा अमौद्रिक उपाय जिनसे विदेशी व्यापार पर प्रत्यक्षतः नियंत्रण होता है अधिक महत्वपूर्ण है। इन उपायों में आयातों को नियंत्रित करने के लिए आयात अभ्यंश (Import Quota), आयात-कर (tariffs) निर्यात प्रोत्साहन कार्यक्रम, विदेशी पर्यटकों को प्रोत्साहन आदि महत्वपूर्ण है।

अर्थशास्त्र महत्वपूर्ण लिंक
  • बैंक का उद्गम एवं विकास | बैंक की परिभाषा | बैंकों के प्रकार
  • व्यापारिक बैंकों के कार्य | Functions of commercial banks in Hindi
  • भारत के बैंकिंग क्षेत्र में वर्तमान सुधार | बैंकिंग सुधार के दौर | बैंकिंग सुधार का प्रथम दौर
  • साख निर्माण | साख निर्माण के प्रकार | साख निर्माण की प्रक्रिया | साख सृजन के उद्देश्य | साख सृजन की सीमाएँ
  • बैंकिंग संगठन | इकाई बैंकिंग | इकाई प्रणाली के गुण | इकाई बैंकिंग प्रणाली के दोष | शाखा बैंकिग | शाखा बैंकिंग की विशेषताएँ | शाखा बैंकिंग के गुण | शाखा बैंकिंग प्रणाली के दोष
  • भारत में बैंक का राष्ट्रीयकरण | भारत में बैंक राष्ट्रीयकरण के पक्ष में तर्क | बैंकों के राष्ट्रीयकरण के विपक्ष में तर्क
  • केन्द्रीय बैंक की परिभाषा | केन्द्रीय बैंक के कार्य | साख नियंत्रण की प्रमुख विधियाँ
  • साख नियंत्रण का अर्थ | साख नियन्त्रण का उद्देश्य | साख नियंत्रण की विधियाँ | परिमाणात्मक नियंत्रण | गुणात्मक विधियाँ
  • केन्द्रीय बैंक के कार्य | साख नियन्त्रण | Functions of central bank in Hindi | Credit control in Hindi

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About the author

भुगतान संतुलन से आप क्या समझते?

भुगतान संतुलन एक विवरण है जो किसी भी अवधि के दौरान व्यावसायिक इकाइयों, सरकार जैसी संस्थाओं के मध्य किए गए प्रत्येक मौद्रिक लेनदेन को अभिलिखित करता है। यह देश में आने वाले धन के प्रवाह की निगरानी में सहायता करता है एवं किसी देश की वित्तीय स्थिति का बेहतर तरीके से मूल्यांकन करने में सहायता करता है।

भुगतान संतुलन से क्या अभिप्राय है इसके मुख्य अवयव क्या है?

भुगतान संतुलन (शेष) से अभिप्राय इसमें वस्तुओं के आयात एवं निर्यात के अतिरिक्त पूँजी का आदान-प्रदान, ब्याज का भुगतान या प्राप्ति, जहाजरानी सेवाएँ, पर्यटक सेवाएं तथा विशेषज्ञों का आवागमन आदि सम्मिलित की जाती है ।

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भुगतान संतुलन क्या है Drishti IAS?

भुगतान संतुलन (Balance Of Payment-BoP) का अभिप्राय ऐसे सांख्यिकी विवरण से होता है, जो एक निश्चित अवधि के दौरान किसी देश के निवासियों तथा विश्व के अन्य देशों के साथ हुए मौद्रिक लेन-देनों के लेखांकन को रिकॉर्ड करता है।

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