अपभ्रंश का पहला कवि कौन है? - apabhransh ka pahala kavi kaun hai?

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अपभ्रंश भाषा के प्रथम कवि कौन हैं ?

15/01/202015/01/2020 केवल कृष्ण घोड़ेलाअपभ्रंश भाषा के प्रथम कवि कौन हैं ? 0 Comment

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केवल कृष्ण घोड़ेला

Jan 15, 2020 03:46 PM 0 Answers इकाई 1 हिंदी भाषा और उसका विकास

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स्वयंभू

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अपभ्रंश भाषा का प्रथम कवि माना जाता है Apabhramsh bhasha ka pratham kavi mana jata hai आदिकाल kya kise kab kaha kaun kisko kiska kaise hota kahte bolte h kyo what why which where gk hindi english Answer of this question Apabhramsh bhasha ka pratham kavi mana jata hai - Svayambhu

कौन सी भाषा संस्कृत भाषा की अपभ्रंश है अपभ्रंश किसे कहते हैं , अपभ्रंश के प्रथम कवि कौन है भाषा की विशेषताएं अर्थ मतलब क्या है ?

प्रश्न: अपभ्रंश
उत्तर: लोक प्रयोग में संस्कृत के शब्दों के विभिन्न रूपों में प्रयोग को पंतजलि ने अपभ्रंश कहा है। इस भाषा का प्रारम्भिक महाकाव्य स्वयंभू देव का पउमचरिउ (पद्यचरित) है। हरिवंश ने रामायण एवं महाभारत का अपभ्रंश में रुपान्तरण किया। विद्वानों की मान्यता है कि उत्तरी भारत की कश्मीरी, पंजाबी, सिंधी, नेपाली, शौरसेनी तथा मराठी भाषाओं का विकास अपभ्रंश से ही हुआ है।

लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न: अर्थशास्त्र
उत्तर: कौटिल्य द्वारा रचित अर्थशास्त्र को भारत की राजनीति का पहला ग्रन्थ माना जाता है। अर्थशास्त्र में 15 अधिकरण तथा 180 प्रकरण हैं। इस ग्रन्थ में श्लोकों की संख्या 4000 बतायी गयी हैं। कौटिल्य के अर्थशास्त्र की पाण्डुलिपि को सर्वप्रथम आर. शाम शास्त्री द्वारा खोजा गया। शाम शास्त्री के अनुसार वर्तमान ग्रन्थ में भी इतने ही श्लोक हैं। राजनीति शास्त्र के क्षेत्र में अर्थशास्त्र का वही स्थान है, जो व्याकरण के क्षेत्र में पाणिनि के अष्टाध्यायी का।
प्रश्न: अश्वघोष एक साहित्यकार के रूप में
उत्तर: अश्वघोष कुषाण नरेश कनिष्क का दरबारी कवि था। इसने संस्कृत में 3 ग्रंथ लिखे। बुद्धचरित और सौनदरानन्द महाकाव्य एवं शारिपुत्रप्रकरण नाटक है। बुद्धचरित में महात्मा बुद्ध के जीवन का सरल एवं सरस चित्रण किया गया है। सौनदरानन्द में बुद्ध के सौतेले भाई सुन्दरनन्द के प्रवज्या ग्रहण करने का काव्यात्मक वर्णन है जिसमें नन्द व उसकी पत्नी सुन्दरी की मूक वेदनाओं का वर्णन है। शारिपुत्रप्रकरण में शारिपुत्र के बौद्धमत में दीक्षित होने की घटना का नाटकीय वर्णन है।
प्रश्न: शुंगकालीन साहित्यिक उपलब्धियों की समीक्षा कीजिए।
उत्तर: शुंगकाल में गुप्तकालीन साहित्य के स्वर्णयुग की पृष्ठभूमि बनी। मनुस्मृति की रचना शुंग युग में हुई। पंतजलि जो पुष्यमित्र शंग का समकालीन था, ने पाणिनि के अष्ठाध्यायी पर महाभाष्य की रचना की। महाभारत को भी संशोधित रूप में पुनः लिखा गया। गामी संहिता शुंगकालीन ज्योतिषीय ग्रंथ था। शुंगकालीन साहित्य की यथेष्ठ जानकारी अभी नहीं मिली है।
प्रश्न: भास एक साहित्यकार के रूप में
उत्तर: भास के प्रमख ग्रंथ है- ‘प्रतिमा‘, ‘अभिषेक‘, ‘पंचरात्र‘, ‘दूतघटोत्कच्छ‘, ‘बालचरित‘, ‘दरिद्वचारूदत्त‘, ‘प्रतिज्ञायौगंदरायण‘ तथा ‘स्वप्नवासवदत्ता‘। दरिद्रचारूदत्त में चारूदत्त व बंसतसेना की प्रेम कथा है। प्रतिज्ञायौगंदरायण और स्वप्नवासवदत्ता का सम्बन्ध कौशाम्बी नरेश उदयन और अवंति राज की पुत्री वासदत्ता के प्रणय प्रसंग से है।
प्रश्न: हर्षवर्द्धन एक साहित्यकार के रूप में
उत्तर: हर्षवर्द्धन एक महान् विजेता ही नहीं वरन् एक प्रसिद्ध साहित्यकार भी था। हर्षवर्धन ने तीन नाटक लिखे, जो हैंः-रत्नावली – इसमें सिंहल देश के राजा की कन्या रलावली और कौशाम्बी नरेश उदयन की प्रणयकथा है। नागानन्द – इसमें जीमूतवाहन और मलयंती के प्रणय का वर्णन है। प्रियदर्शिका – इसमें उदयन और प्रियदर्शिका की प्रणय कथा है।
प्रश्न: राजशेखर एक साहित्यकार के रूप में
उत्तर: राजशेखर गुर्जर नरेश महेन्द्रपाल और महिपाल की राजसभा का दरबारी कवि था। इसने प्रमुख ग्रंथ है- बालरामायण-इसमें सीता स्वयंवर से अयोध्या लौटने तक का वर्णन है। बालभारत-द्रौपदी स्वयंवर एवं ची चित्रण किया गया है। विद्वशालभंजिका यह एक प्रणय कथा है। कर्पूरमंजरी-प्राकृत भाषा में एक विवाह प्रणय है। काव्यमीमांसा-यह अलंकार शास्त्र है।
प्रश्न: दण्डी एक साहित्यकार के रूप में
उत्तर: यह कोची के पल्लव नरेश नरसिंह वर्मन् का दरबारी था। दण्डी के प्रमुख ग्रंथ हैं:- काव्यादर्श: इसमें काव्य शास्त्र के नियम हैं। दशकुमार चरित: इसमें पाटलिपुत्र के राजा राजहंस और उसके दस मंत्रियों के पुत्रों के जीवन की साहसिक घटनाएं तथा भौतिक जीवन का वर्णन है। अवंतिसुन्दरी कथा: इसमें मालवा की राजकुमारी अंवति सुन्दरी की कथा है। दण्डी अपने पद लालित्य के लिए प्रसिद्ध था।
प्रश्न: कालिदास एक साहित्यकार के रूप में:
उत्तर: यह गुप्तकालीन साहित्यकार था जिसे प्रायः चन्द्रगुप्त द्वितीय का समकालीन माना जाता है। इसकी रचनाएँ निम्नलिखित:- ऋतुसंहार: यह खण्ड काव्य है जिसमें भारत की 6 ऋतुओं का बहुत सुंदर वर्णन किया गया है। मेघदूतम: खण्डकाव्य है। इसमें यक्ष, यक्षणी के विरह का मार्मिक चित्रण किया है। कुमारसम्भव: यह महाकाव्य है। इसमें शिव पार्वती के पुत्र कुमार (कार्तिकेय) के जन्म की कथा का वर्णन है। रघुवंशम् रू महाकाव्य है। इसमें दिलीप से अग्निवर्ष तक 40 इक्ष्वाकु वंशीय राजाओं का वर्णन है। मालविकाग्निमित्रम्: यह कवि का प्रथम ऐतिहासिक नाटक है। जिसमें मालवा की राजकुमारी मालविका और पुष्यमित्र शुंग के पुत्र अग्निमित्र की प्रणयकथा है। विक्रमोर्वशीय: इसमें पुरूर्वा ऋषि और उर्वशी की प्रणय कथा है। अभिज्ञानशाकुंतलम: यह कवि की सर्वोत्कृष्ट रचना है। इसका कथानक महाभारत के आदि पर्व से लिया गया है। जिसमें मेनका और विश्वामित्र की पुत्री शंकुलता तथा हस्तिनापुर के राजा दुष्यंत की प्रणय कथा है। कालिदास को वी.ए. स्मिथ ने ‘भारत का शेक्सपीयर‘ कहा है।
प्रश्न: सातवाहन कालीन भाषा तथा साहित्य के बारे में बताइए।
उत्तर: सातवाहन काल में महाराष्ट्री प्राकृत भाषा दक्षिणी भारत में बोली जाती थी। यह राष्ट्रभाषा थी। सातवाहनों के अभिलेख इसी भाषा में लिखे गये हैं।
सातवाहन नरेश स्वयं विद्वान्, विद्या-प्रेमी तथा विद्वानों के आश्रयदाता थे। हाल नामक राजा एक महान् कवि था जिसने ‘गाथासप्तशती‘ नामक प्राकृत भाषा के श्रृंगार रस प्रधान नीति काव्य की रचना की थी। इसमें कुल 700 आर्या छन्दों का संग्रह है जिसका प्रत्येक पद्य अपने-आप में पूर्ण तथा स्वतंत्र है। इस प्रकार इसके पद्य मक्तक काव्य के प्राचीनतम उदाहरण है। हाल के दरबार में गुणाढ्य तथा शर्ववर्मन् जैसे उच्चकोटि के विद्वान निवास करते थे। गुणाढ्य ने ‘बृहत्कथा‘ नामक ग्रथ को रचना की थी। यह मूलतः पैशाची प्राकृत में लिखा गया था तथा इसमें करीब एक लाख पद्यों का संग्रह था। परन्तु दुर्भाग्यवश यह ग्रंथ आज हमें अपने मूल रूप में प्राप्त नहीं है। इस ग्रंथ में गुणाढ्य ने अपने समय की प्रचलित अनेक लोक कथाओं का संग्रह किया है। अनेक अद्भुत यात्रा-विवरणों तथा प्रणय प्रसंगों का इस ग्रंथ में विस्तृत विवरण मिलता है। शर्ववर्मन् ने ‘कातंत्र‘ नामक संस्कृत व्याकरण ग्रंथ की रचना की थी। बृहत्कथा के अनुसार ‘कातंत्र‘ की रचना का उद्देश्य हाल को सुगमता से संस्कृत सिखाना था। इसकी रचना अत्यन्त सरल शैली में हुई है। इसमें अति संक्षेप में पाणिनीय व्याकरण के सूत्रों का संग्रह हुआ है।
ऐसा प्रतीत होता है कि इस समय संस्कृत भाषा का भी दक्षिण में व्यापक प्रचार था। बृहत्कथा से ज्ञात होता है कि हाल की एक रानी मलयवती संस्कृत भाषा की विदुषी थी। उसी ने हाल को संस्कृत सीखने के लिये प्रेरित किया था। जिसके फलस्वरूप ‘कातंत्र‘ की रचना की गयी थी। कन्हेरी के एक अभिलेख में एक सातवाहन रानी संस्कृत का प्रयोग करती थी। इस प्रकार सातवाहन युग में दक्षिणी भारत में प्राकृत तथा संस्कृत दोनों ही भाषाओं का समान रूप से विकास हुआ।
प्रश्न: कुषाणकालीन साहित्यिक प्रगति की विवेचना कीजिए।
उत्तर: कनिष्क का शासन-काल साहित्य की उन्नति के लिये भी प्रसिद्ध है। वह विद्या का उदार संरक्षक था तथा उसके दरबार में उच्चकोटि के विद्वान् तथा दार्शनिक निवास करते थे। विद्वानों में अश्वघोष का नाम सर्वप्रमुख है। वे कनिष्क के राजकवि थे। उनकी रचनाओं में तीन प्रमुख हैं – (1) बुद्धचरित, (2) सौन्दरनन्द तथा (3) शारिपुत्रप्रकरण। इनमें प्रथम दो महाकाव्य तथा अन्तिम नाटक ग्रंथ है। बुद्धचरित में गौतम बुद्ध के जीवन का सरल तथा सरस वर्णन मिलता है। सौन्टरनट में बढ़ के सौतेले भाई सन्दर नन्द के सन्यास ग्रहण का वर्णन है। यह ग्रंथ अपने पूर्ण रूप में उपलब्ध होता है। इसमें 18 सर्ग है। शारिपत्रप्रकरण नौ अंकों का एक नाटक ग्रंथ है जिसमें बुद्ध के शिष्य शारिपुत्र के बौद्ध धर्म में दीक्षित होने का नाटकीय विवरण प्रस्तुत किया गया है। कवि तथा नाटककार होने के साथ-साथ अश्वघोष एक महान् संगीतज्ञ, कथाकार. नीतिज्ञ तथा दार्शनिक भी थे। इस प्रकार उनकी प्रतिभा बहुमुखी थी। विद्वानों ने अश्वघोष की तुलना मिल्टन, गेटे, कान्ट तथा वाल्टेयर आदि से की है।
अश्वघोष के अतिरिक्त माध्यमिक दर्शन के प्रसिद्ध आचार्य नागार्जुन भी कनिष्क की राजसभा में निवास करते थे। उन्होंने ‘प्रज्ञापारमितासत्र‘ की रचना की थी जिसमें शून्यवाद (सापेक्ष्यवाद) का प्रतिपादन है। अन्य विद्वानों में पार्श्व. वसमित्र मातचेट, संघरक्ष आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। संघरक्ष उसके पुरोहित थे। वसुमित्र ने चतुर्थ बौद्ध संगीति की अध्यक्षता की तथा त्रिपिटकों का भाष्य तैयार करने में प्रमुख रूप से योगदान दिया था। विभाषाशास्त्र की रचना का श्रेय वसमित्र को ही दिया जाता है। कनिष्क के ही दरबार में आयुर्वेद के विख्यात् चरक निवास करते थे। वे कनिष्क के राजवैद्य थे जिन्होंने ‘चरक संहिता‘ की रचना की थी। यह औषधिशास्त्र के ऊपर प्राचीनतम रचना है। इसका अनुवाद अरबी तथा फारसी भाषाओं में बहुत पहले ही किया जा चुका था।

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अपभ्रंश के प्रथम कवि कौन हैं?

स्वयंभू, अपभ्रंश भाषा के महाकवि थे।

अपभ्रंश किसने लिखा था?

अब्दुल रहमान (13वीं शताब्दी) - मुल्तानी कवि जिन्होंने अपभ्रंश में एक महाकाव्य रोमांस लिखा।

अपभ्रंश का दूसरा नाम क्या है?

अपभ्रंश को प्राकृत कहते हैं तो दूसरी ओर भामह (छठी शती), दंडी (सातवीं शती) आदि आचार्य अपभ्रंश का उल्लेख प्राकृत से भिन्न स्वतंत्र काव्यभाषा के रूप में करते हैं।

अपभ्रंश भाषा का काल कौन सा है?

अपभ्रंश भाषा का समय काल 500 ई. से 1000 ई. तक माना जाता हैं। 'अप्रभ्रंश' मध्यकालीन भारतीय आर्यभाषा और आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं के बीच की कड़ी है।

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