विभिन्न प्रकार के मूल रूप क्या हैं - vibhinn prakaar ke mool roop kya hain

रूप वाक्य में प्रयुक्त शब्द को कहते हैं। इसे पद भी कहा जाता है। शब्दों के दो रूप है। एक तो शुद्ध रूप है या मूल रूप है जो कोश में मिलता है और दूसरा वह रूप है जो किसी प्रकार के संबंध-सूत्र से युक्त होता है। यह दूसरा, वाक्य में प्रयोग के योग्य रूप ही 'पद' या 'रूप' कहलाता है।[1]

परिभाषा[संपादित करें]

संस्कृत में 'शब्द' या मूल रूप को ' प्रकृति' या 'प्रातिपदिक' कहा गया है और सम्बन्ध-स्थापन के लिए जोड़े जाने वाले तत्त्व को 'प्रत्यय'। महाभाष्यकार पतंजलि कहते हैं कि वाक्य में न तो केवल 'प्रकृति' का प्रयोग हो सकता है, न केवल प्रत्यय का। दोनों मिलकर प्रयुक्त होते हैं। (नापि केवला प्रकृति: प्रयोक्तव्या नापि केवल प्रत्ययः)। प्रकृति और प्रत्यय दोनों के मिलने से जो बनता है उसे ही ' पद ' या 'रूप' कहते हैं।[2] उदाहरण के लिए वृक्षात् पत्राणि पतन्ति। इस वाक्य में वृक्ष पत्र आदि शब्द के बजाय उसके प्रत्यय सहित रूप पद वृक्षात्, पत्राणि आदि का प्रयोग हुआ है। लेकिन सभी भाषाओं में शब्द और पद के रूप में इतनी भिन्नता नहीं होती है। वियोगात्मक भाषाओं में जहाँ संबंधतत्व दर्शाने के लिए परसर्गों का प्रयोग होता है वहाँ शब्द और पद के रूप में कभी-कभी भिन्नता होती है तो कभी नहीं भी। उदाहरण स्वरूप-

  • राम आम खाता है। इस वाक्य में प्रयुक्त पद एवं शब्द में भिन्नता नहीं है। संबंधतत्व ने और को भी गुप्त हैं।
  • पेड़ों की डालियाँ फलों से लदी हैं। इस वाक्य में पेड़, डाली, फल, लदना जैसे शब्द के पद के रूप में प्रयुक्त हुए परिवर्तित रूप को देखा जा सकता है।

चीनी भाषा में संबंधतत्व वाक्य में शब्द के स्थान से ही जाहिर हो जाते हैं। इसलिए उसमें शब्द और पद में भिन्नता नहीं होती है।

पद रचना[संपादित करें]

हिन्दी वर्णमाला जो एक शब्द भी बनाता है

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. भोलानाथ तिवारी- भाषा विज्ञान, पृ-२४०
  2. भोलानाथ तिवारी- भाषा विज्ञान, पृ-२४०

मूल रूप के विभिन्न प्रकार क्या हैं?

Solution : मूल दो प्रकार की होती है-(i) मूसला मूल (ii) झकड़ा मूल या अपस्थानिक मूल

रूप विज्ञान से आप क्या समझते हैं इनके भेदों का वर्णन कीजिए?

कैरोल के अनुसार, “रूपविज्ञान उस पद्धति अथवा प्रणाली का अध्ययन है जिसके अनुसार शब्द-निर्माण किया जाता है और निश्चय के साथ कहा जा सकता है कि रूपविज्ञान का संबंध रूपिमों की पहचान, शब्द-निर्माण में उनके क्रम, उनमें होने वाले परिवर्तन तथा विविध व्याकरणिक संरचनाओं में पाई जाने वाली व्यवस्था का अध्ययन है।”

रूप विज्ञान की दो शाखाएं कौन सी है?

ऐतिहासिक रूपविज्ञान- इसमें भाषा या बोली के विभिन्न कालों की शब्द और / या पदरचना का अध्ययन कर उसमें रूपविज्ञान का इतिहास या विकास प्रस्तुत किया जाता है। तुलनात्मक रूपविज्ञान- इसमें दो या अधिक भाषाओं की शब्द और / या पदरचना का तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है।

रूप प्रक्रिया क्या है?

रूपिम स्वनिमों का ऐसा न्यूनतम अनुक्रम है जो व्याकरणिक दृष्टि से सार्थक होता है। स्वनिम के बाद रूपिम भाषा का महत्वपूर्ण तत्व व अंग है। रूपिम को 'रूपग्राम' और 'पदग्राम' भी कहते हैं। जिस प्रकार स्वन-प्रक्रिया की आधारभूत इकाई स्वनिम है, उसी प्रकार रूप-प्रक्रिया की आधारभूत इकाई रूपिम है।

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