संस्कृत स्वर वर्णमाला - संस्कृत में कितने स्वर वर्ण होते हैं? - संस्कृत वर्ण प्रकरण
संस्कृत स्वर वर्णमाला - संस्कृत में कितने स्वर वर्ण होते हैं? - संस्कृत वर्ण प्रकरण
संस्कृत भाषा देवनागरी लिपि में लिखी जाती है। आप अनेक वर्ष तक देवनागरी लिपि में हिन्दी पढ़ते रहे हैं अतः आपके लिए देवनागरी लिपि में संस्कृत पढ़ना कठिन नहीं होना चाहिए। पर यह अच्छा होगा यदि हम देवनागरी लिपि की विशेषताओं पर एक बार फिर ध्यान दे ले ताकि संस्कृत सीखने में हमे और अधिक सुविधा हो सके।
स्वर-संस्कृत में 10 प्रमुख स्वर है जिनमे से तीन स्वर हस्व है और सात स्वर दीर्घ है।
हस्व स्वर दीर्घ स्वर - अ, इ. उ
आ, ई. ऊ ए. ऐ, ओ, औ
इनमें से आ, ई और ऊ क्रमशः अ, इ और उ के दीर्घ रूप है, अर्थात् इनका उच्चारण उसी प्रकार किया जाता है जिस प्रकार हस्व स्वरों का, किन्तु इनके उच्चारण में हस्य स्वरों की तुलना में दुगुना समय लगता है। ए और ओ का उच्चारण संस्कृत और हिन्दी में एक समान है, पर ऐ और औ के उच्चारण में अंतर है और इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है। हिन्दी के है शब्द में स्वर का जो उच्चारण है वह संस्कृत के वै के स्वर के उच्चारण से बहुत भित्र है। हिन्दी के भैया शब्द में पहले स्वर का उदाहरण संस्कृत के ऐ के उपारण के निकट है। संस्कृत ऐ का उच्चारण अ और इ स्वरों को तुरन्त एक के बाद एक उच्चारित करने से होता है। इसी प्रकार संस्कृत के भौतिक शब्द मे पहले स्वर का उ हिन्दी के और शब्द के स्वर जैसा नहीं है। यह कौआ शब्द के औ के उच्चारण के निकट है।
संस्कृत में औ का उदाहरण अ और उ स्वरों को तुरन्त एक के बाद एक उच्चारित करने से होता है। इन दस स्वरों के अतिरिक्त संस्कृत में ऋ, ऋ और लृ ये तीन स्वर और लृ ये तीन स्वर और हैं। इनका स्वर के रूप में उच्चारण अब लुप्त हो गया है। इनका उच्चारण अब प्रायः र, ल व्यंजनों और इ, ई स्वरों के योग के रूप में क्रमशः रि, री और लृ की तरह होता है। इस प्रकार संस्कृत में कुल निम्नलिखित तेरह स्वर हैं:
अ, आ, इ. ई. उ. ऊ, ऋ ऋ,लृ . ए. ऐ. ओ, औ।
1. भारत के कुछ पश्चिमी और दक्षिण भागों में ऋ का उच्चारण रु की तरह होता है।
2. यद्यपि ऋ ऋ और लृ का उच्चारण अब स्वर के मे नहीं होता, पर संस्कृत व्याकरण में इन्हे स्वर ही माना गया है। इस बात को ध्यान में रखना महत्वपूर्ण है।
3. ऋ के दीर्घ रूप ऋ की तरह लृ का भी दीर्घ रूप लृ है पर इसका प्रयोग संस्कृत के किसी वास्तविक शब्द में नहीं होता।
संस्कृत वर्णमाला में 13 स्वर, 33 व्यंजन और 4 आयोगवाह ऐसे कुल मिलाकर के 50 वर्ण हैं । स्वर को ‘अच्’ और ब्यंजन को ‘हल्’ कहते हैं । 14 स्वरों में से 5 शुद्ध स्वर हैं; अ, इ, उ, ऋ, लृ मुख के अंदर स्थान-स्थान पर हवा को दबाने से भिन्न-भिन्न वर्णों का उच्चारण होता है । मुख के अंदर पाँच विभाग हैं, जिनको स्थान कहते हैं । इन पाँच विभागों में से प्रत्येक विभाग में एक-एक स्वर उत्पन्न होता है, ये ही पाँच
शुद्ध स्वर कहलाते हैं । स्वर उसको कहते हैं, जो एक ही आवाज में बहुत देर तक बोला जा सके । 33 व्यंजनों में 25 वर्ण, वर्गीय वर्ण हैं याने कि वे पाँच–पाँच वर्णों के वर्ग में विभाजित किये हुए हैं । बाकी के 8 व्यंजन विशिष्ट व्यंजन हैं, क्यों कि वे वर्ग़ीय व्यंजन की तरह किसी एक वर्ग में नहीं बैठ सकतें । वर्गीय व्यंजनों का विभाजन उनके उच्चारण की समानता के अनुसार किया गया है ।
और 9 अन्य स्वर: आ, ई, ऊ, ऋ, लृ, ए, ऐ, ओ, औ संस्कृत में वर्णो के उच्चारन् स्थान
वर्णो का विभाजन- classification of hindi alphabet
वर्णमाला को तीन भागों में विभाजित किया गया है –
- स्वर
- व्यंजन
- अयोगवाह
स्वरों का विभाजन – classification of vowels
- मूल स्वरों की संख्या 9 है – अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, अं, अः
- सयुक्त स्वर 4 होते है – ए, ऐ, ओ, औ
स्वरों को तीन भागों में बांटा गया है – (swaro ko kitane bhago me baata gaya hai?)
- ह्रस्व स्वर – ये संख्या में 5 है। – अ , इ , उ , ऋ , लृ
- दीर्घ स्वर – ये संख्या में 7 है। – आ , ई , ऊ , ॠ , ए , ओ, औ
- प्लुत स्वर – ये संख्या में 1 होता है। – ३
संवृत और विवृत स्वर – samvrat aur vivrat swar kya hai?
संवृत स्वर –samvrat swar
- संवृत स्वर के उच्चारण में मुख द्वार सकरा हो जाता है। ये संख्या में चार होते है – इ , ई , उ , ऊ
अर्द्ध संवृत स्वर – ardhd samvrat swar
- अर्द्ध संवृत स्वर के उच्चारण में मुख द्वार कम सकरा होता है। ये संख्या में 2 होते है – ए , ओ
विवृत स्वर – vivrat swar
- विवृत स्वर के उच्चारण में मुख द्वार पूरा खुला होता है। ये संख्या में 2 है – आ , आँ
अर्द्ध विवृत स्वर – ardhd vivrat swar
- अर्द्ध विवृत स्वर के उच्चारण में मुख द्वार अधखुला होता है। ये संख्या में 4 होते है – अ , ऐ , औ , ऑ
संध्य और सामान स्वर – sandhy aur saman swar kya hai?
संध्य स्वर –sandhy swar
- संध्य स्वर संख्या में चार होते है। – ए , ऐ , ओ , औ
समान स्वर – samaan swar
- समान स्वर, संध्य स्वरों को छोड़कर सभी शेष स्वर समान स्वर होते है।
- समान स्वर संख्या में 9 हैं। – अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, अं, अः
व्यंजनों का विभाजन-classification of consonants
- कंठ से आनेवाले वर्ण “कंठव्य” कहलाते हैं। उदाहरण – क, ख, ग, घ
- तालु की मदत से होनेवाले उच्चार “तालव्य” कहलाते हैं। उदाहरण – च, छ, ज, झ
- ‘मूर्धा’ से (कंठ के थोडे उपर का स्थान) होनेवाले उच्चार “मूर्धन्य” हैं। उदाहरण – ट, ठ, ड, ढ, ण
- दांत की मदत से बोले जानेवाले वर्ण “दंतव्य” हैं। उदाहरण – त, थ, द, ध, न; औ
- होठों से बोले जानेवाले वर्ण “ओष्ठव्य” कहे जाते हैं। उदाहरण – प, फ, ब, भ, म
- कंठव्य / ‘क’ वर्ग – क् ख् ग् घ् ङ्
- तालव्य / ‘च’ वर्ग – च् छ् ज् झ् ञ्
- मूर्धन्य / ‘ट’ वर्ग – ट् ठ् ड् ढ् ण्
- दंतव्य / ‘त’ वर्ग – त् थ् द् ध् न्
- ओष्ठव्य / ‘प’ वर्ग – प् फ् ब् भ् म्
- विशिष्ट व्यंजन – य् व् र् ल् श् ष् स् ह्
आयोगवाह – ayogvaah varn kitane hote hai?
स्वर और व्यंजन के अलावा “ं” (अनुस्वार), ‘ः’ (विसर्ग), जीव्हामूलीय, और उपध्मानीय ये चार ‘आयोगवाह ’ कहे जाते हैं, और इनके उच्चार कुछ खास नियमों से चलते हैं जो आगे दिये गये हैं ।
संयुक्त वर्ण – sanyukt varn kitane hote hai?
इन 49 वर्णों को छोडकर, और भी कुछ वर्ण सामान्य तौर पे प्रयुक्त होते हैं जैसे कि क्ष, त्र, ज्ञ, श्र इत्यादि । पर ये सब किसी न किसी व्यंजनों के संयोग से बने गये होने से उनका अलग अस्तित्व नहि है; और इन्हें संयुक्त वर्ण भी कहा जा सकता है ।
अन्तःस्थ व्यञ्जन – antastha vyanjan kitane hote hai?
‘य’, ‘व’, ‘र’, और ‘ल’ ये विशिष्ट वर्ण हैं क्यों कि स्वर-जन्य (स्वरों से बने हुए) हैं, ये अन्तःस्थ व्यञ्जन भी कहे जाते हैं । देखिए-
- इ / ई + अ = य (तालव्य)
- उ / ऊ + अ = व (दंतव्य तथा ओष्ठव्य)
- ऋ / ऋ + अ = र (मूर्धन्य)
- लृ / लृ + अ = ल (दंतव्य)
ऊष्म व्यंजन – ushm vyanjan kitane hai?
इनके अलावा ‘श’, ‘ष’, और ‘स’ के उच्चारों में बहुधा अशुद्धि पायी जाती है । इनके उच्चार स्थान अगर ध्यान में रहे, तो उनका उच्चारण काफी हद तक सुधारा जा सकता है ।
- श = तालव्य
- ष = मूर्धन्य
- स = दंतव्य
- ह = कण्ठ्य
ये चारों ऊष्म व्यंजन होने से विशिष्ट माने गये हैं ।
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