रैदास के स्वामी कौन है वह क्या क्या करते हैं? - raidaas ke svaamee kaun hai vah kya kya karate hain?

रैदास के पद

1] किसके बिना संशय की गाँठ नहीं छूटती ? 
उत्तर: राम के बिना संशय की गाँठ नहीं छूटती।

2.1 भक्ति के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा क्या है ?
उत्तर : भक्ति के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा मानव का चंचल चित्त है।


 3.] रैदास के ईश्वर का स्वरूप कैसा है ?
उत्तर : रैदास के ईश्वर निर्गुण, निराकार, असीम, अविगत तथा अविनासी है।

.4. रैदास ने किसकी मति को चंचल बताया है ?
 उत्तर : अपनी माता का।

.5. रैदास ने किसे सारहीन तथा निरर्थक बताया है ?
उत्तर : ऊँच-नीच की भावना तथा ईश्वर-भक्ति के नाम पर किए जानेवाले विवाद को । 

6. रैदास के समय में कौन काशी के सबसे प्रसिद्ध प्रतिष्ठित संत थे ?
उत्तर : रामायण ।

0.7. रैदास की भक्ति किस भाव की है ?
उत्तर : दास्यभाव की।


C.8. रैदास के अनुसार ईश्वर का वास कहाँ है ?
उत्तर : हृदय में।

9. कौन निर्गुण-निराकार ईश्वर का अंत (रहस्य) न पा सके ? 
उत्तर : शिव और सनक आदि ।

10. ब्रह्मा ने किसकी खोज में अपना जन्म गंवा दिया?
उत्तर : निर्गुण-निराकार ईश्वर की खोज में । 

11. 'इन पाचन' से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर : काम, क्रोध, मोह, मद तथा माया ।


Q.12. 'षट्कर्म' कौन-कौन से हैं ?
उत्तर : अध्ययन, अध्यापन, यजन, याजन, दान तथा प्रतिग्रह ।

9.13. 'ऐसे दुरमति' का प्रयोग किसके लिए किया गया है ?
उत्तर : अजामिल तथा गणिका के लिए।

0.14. 'घन' और 'मोर' से किसे संकेतित किया गया है ?
उत्तर : घन से 'ईश्वर' को तथा 'मोर' से रैदास ने अपने-आप को संकेतित किया है। 

15. किसकी ज्योति दिन-रात जलती रहती है ?
उत्तर : ईश्वररूपी दीपक की।

रैदास के पद

खण्ड - क


Q.1.प्रभु जी तुम चंदन हम पानी । जाकी अंग- अंग बास समानी । प्रभु जी तुम घन बन हम मोरा। जैसे चितवत चंद चकोरा ।।

प्रश्न : प्रस्तुत अंश के कवि का नाम लिखें ।
 उत्तर : प्रस्तुत अंश के कवि संत रैदास हैं।

प्रश्न : प्रस्तुत पद्यांश का भावार्थ लिखें।
 उत्तर : प्रस्तुत अंश में रैदास ईश्वर की आराधना करते हुए कहते हैं कि आप चंदन की तरह सुंगधयुक्त हैं और मैं पानी की तरह गंधरहित हूँ। आपकी सुगंध मेरे अंग में समायी हुई है । आप तो उस काले बादल के समान हैं जिसे देखकर मेरा मनरूपी मयूर नाच उठता है ।

Q.2. प्रभु जी तुम दीपक हम बाती । जाकी जोति बरै दिन राती। प्रभु जी तुम मोती हम धागा । जैसे सोनहिं मिलत सुहागा । प्रभु जी तुम स्वामी हम दासा । ऐसी भक्ति करै रैदासा ।।

प्रश्न : प्रस्तुत पद्यांश किस कविता से उद्धृत है ?
 उत्तर : प्रस्तुत पद्यांश रैदास के पद' से उद्धृत है ।

प्रश्न : प्रस्तुत पद्यांश का भावार्थ लिखें।
उत्तर : प्रस्तुत पद्यांश में संत रैदास ईश्वर के प्रति अपनी भक्ति-भावना प्रकट करते हुए कहते हैं कि आप मेरे लिए वैसे ही हैं जैसे चाँद के लिए चकोर। आप दीपक तथा मैं बाती हूँ। आपके बिना मैं अधूरा हूँ। आपका ही प्रकाश इस  संसार में फैला हुआ है । प्रभु, आप मोती तथा मैं धागा हूँ । मैंने अपने-आपको आपकी भक्ति में वैसे ही विलीन कर दिया हे जैसे सोने में सुहागा विलीन हो जाता है । हे प्रभु, आप मेरे स्वामी हैं तथा मैं आपका सेवक हूँ । इसी सेवक के भाव स मैं आपकी भक्ति करता हूँ ।

CLASS 10th  (MADHYAMIK) HINDICHAPTER-1रैदास के पद

रैदास के पद

खण्ड - क


Q.1. 'रैदास के पद' में निहित संदेश को लिखें। अथवा, पठित पाठ के आधार पर 'रैदास के पद' का सारांश लिखें
उत्तर : संत रैदास उस जाति तथा समाज में पले-बढ़े थे जो हिन्दू होते हुए भी हिंदुओं द्वारा आदर न पाता था । वह कुल-परंपरा से विद्या प्राप्त करने के अयोग्य माना जाता था । शास्त्र-ज्ञान प्राप्त करने का दरवाजा उसके लिए बंद हो गया था। ये गरीबी में जनमते थे, गरीबी में ही पलते थे और उसी में मर जाया करते थे । ऐसे समाज तथा वातावरण में पैदा हुए व्यक्ति के लिए धर्म के आडंबर पर चोट करना जीवन-मरण का प्रश्न था । संत रैदास इसी समाज के रत्न थे। कबीर की तरह संत रैदास की भाषा सीधे चोट नहीं करती, वह तो मीठी छूरी की तरह वार करती है। जहाँ तक संत रैदास की भक्ति-भावना की बात है उनकी भक्ति दास्य भाव की है रैदास ईश्वर के प्रति अपनी भावना प्रकट करते हुए कहते हैं कि आप चंदन की तरह सुगंध-युक्त हैं तथा में पानी की तरह हूँ जिसमें कोई सुगंध नहीं होती। आपकी सुंगध मेरे अंग-अंग में समायी हुई है । आप मेरे लिए वैसे ही हैं जैसे चकोर के लिए चंद्रमा प्रभु आप तो दीपक तथा मैं बाती के समान हूँ। वे कहते हैं कि मेरी बुद्धि चंचल है और इस चंचल बुद्धि से आपकी भक्ति भला कैसे की जा सकती है ईश्वर का वास तो प्रत्येक के हृदय में है लेकिन मैं अज्ञानतावश उसे नहीं देख पाया । आपके गुण तो अपार हैं और मैं गुणहीन हूँ । आपने जो उपकार मेरे ऊपर किए हैं मैंने उसे भी नहीं माना, भुला दिया । मैं अपनी-पराये के भेदभाव में पड़ा रहा और इससे भला मैं कैसे मोक्ष पा सकता हूँ।

CLASS 10th  (MADHYAMIKHINDICHAPTER-1रैदास के पद

अविगत ईश्वर के चरण पाताल में तथा सिर आसमान को छूते हैं- भला जिनका विस्तार इतना विशाल है, जिसे शिव, सनक आदि भी न जान सके, जिसे खोजते-खोजते स्वयं ब्रह्मा ने भी अपने जन्म को गंवा दिया- वे भला मंदिर में कैसे समा सकते हैं । जिनके पैरों के नख से गंगा प्रवाहित होती हो, जिनकी रोमावली से ही अठ्ठारह पुराणों का जन्म हुआ हो तथा चारों वेद जिनकी साँसों में बसा हो - उस असीम, निर्गुण, निराकार ईश्वर की उपासना ही रैदास करते हैं। काम, क्रोध, मोह, मद और माया ये पाँचों मिलकर मनुष्य को लूट लेते हैं । अर्थात् ईश्वर से विमुख कर देते हैं । पढ़ लिखकर भी मनुष्य को तब तक सच्चे ज्ञान की प्राप्ति नहीं होती जब तक कि वह अनासक्त भाव से ईश्वर की भक्ति न करे । ठीक वैसे ही जैसे बिना पारस के स्पर्श के लोहा सोने में नहीं बदल सकता। जो मित्र, शत्रु तथा जाति-अजाति के बंधन से मुक्त हैं, जिनके हृदय में सबके लिए हित की भावना हो-वही तीनों लोकों में यश की प्राप्ति कर पाते हैं - इसे वे लोग कहाँ जान पाते हैं जिनके हृदय में ईश्वर-भक्ति नहीं है हे कृष्ण, आपने ही घड़ियाल के मुख से गज की रक्षा की तथा अजामिल एवं गणिका जैसे तुच्छ प्राणियों को मोक्ष प्रदान किया । जब आपने ऐसों-ऐसों का उद्धार किया तो फिर रैदास का उद्धार क्यों नहीं करते? इस प्रकार संत रैदास ने अपने पदों के द्वारा यह संदेश देना चाहा है कि श्रेष्ठ वही है जो धर्म, संप्रदाय, जाति, कुल और शास्त्र की रूढ़ियों से नहीं बंधा हुआ है । धर्म के नाम पर दिखावा करना तथा संस्कारों की विचारहीन गुलामी रैदास को पसंद नहीं थी तथा इन्हीं बेड़ियों को तोड़ने का संदेश उनके पदों में छिपा है । रैदास के लिए ईश्वर-प्रेम ही सबकुछ है । यह प्रेम, धर्म तथा समाज की बनाई रूढ़ियों से बहुत ऊपर है - 
मित्र शत्रु जाति सबते, अंतरि लावै हेत रे । लोग बाकी कहा जानैं, तीनि लोक पवित रे ।

रैदास के स्वामी कौन है वह क्या क्या कार्य करते हैं?

रैदास के स्वामी निराकार प्रभु हैं। वे अपनी असीम कृपा से नीच को भी ऊँच और अछूत को महान बना देते हैंरैदास अपने प्रभु के अनन्य भक्त हैं, जिन्हें अपने आराध्य को देखने से असीम खुशी मिलती है।

रैदास ने स्वयं को क्या कहा है?

रैदास जी अपने पदों में ईश्वर के प्रति अपार भक्ति को प्रदर्शित करते हैं। इसके लिए अनेक प्रकार के उदाहरण देते हैं। क) पहले पद में भगवान और भक्त की जिन-जिन चीज़ों से तुलना की गई है, उनका उल्लेख कीजिए ।

गरीबों का मसीहा कौन है वह किस प्रकार उनकी सहायता करता है?

उत्तर अपने शब्दों में दीजिए ।

कवि रैदास ईश्वर की कौन कौन सी विशेषता बताता है?

प्रभुजी तुम घन बन हम मोरा, जैसे चितवत चंद चकोरा । प्रभुजी तुम दीपक हम बाती, जाकी जोति बरै दिन राती । प्रभुजी तुम मोती हम धागा, जैसे सोनहिं मिलत सोहागा । प्रभुजी तुम स्वामी हम दासा, ऐसी भक्ति करै 'रैदासा' ।

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