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- गेहूं की 50 में से छह किस्म ही रोटी के लिए उपयुक्त मिली
रोटी,हर पेट की जरूरत। देश में करीब 70 प्रतिशत आबादी चपाती खाती है। गेहूं की पैदावार लेने वाले सूबों में यह आंकड़ा ज्यादा है। मगर क्या आपने कभी गहराई से सोचा है कि चपाती बनाने के लिए गेहूं की किस्म सही है या नहीं। जीजेयू के फूड टेक्नोलॉजी विभाग की रिसर्चर मंजू ने चार बरस तक इस पर गहनता से शोध किया है। 6 राज्यों में उत्पादित गेहूं की 50 किस्मों पर शोध किया कि कौन सी गेहूं चपाती बनाने के लिए उपयुक्त है। हैरत की बात यह है कि इन 50 किस्मों में से महज 6 ही चपाती बनाने के लिए सबसे उपयुक्त मिली हैं।
चपाती की गुणवत्ता के आधार पर सही है या नहीं। इसके लिए मानक तय किए गए। परीक्षण भी किया। शोधार्थी ने गेहूं की किस्मों पर शोध करने के अलावा यह भी जाना कि आखिर चपाती के प्रति अरुचि क्यों पैदा हो रही है। साथ ही जिन किस्मों को उपयुक्त पाया गया है। उनकी पैदावार और दाम कितना है। वहीं शोध का जनरल भी प्रकाशित हो चुका है।
शोधार्थी ने बताया कि गेहूं की हरेक किस्म की अपनी विशेषता है। मगर इसका वर्गीकरण करना जरूरी है। कुछ किस्म ब्रेड के लिए, कुछ बिस्किट के लिए, कुछ न्यूडल्स के लिए तो कुछ चपाती के लिए उपयुक्त है। अगर यह जान लिया जाए तो प्रोडक्ट भी टेस्ट और क्वालिटी वाले होंगे। साथ ही चपाती के लिए उपयुक्त गेहूं की पैदावार को बढ़ावा दिया जाए और दाम को भी। क्योंकि इन किस्मों की पैदावार अन्य की तुलना में थोड़ी कम होती है। वहीं गेहूं का स्वाद सही नहीं होने से बड़ा नुकसान ये है कि सुबह के वक्त चपाती खाने में अरुचि पैदा हो रही है अौर स्कूली बच्चे ब्रेक फास्ट में चपाती खाना पसंद नहीं कर रहे और उनका विकास भी सही से नहीं हाे पा रहा है। प्रोफेसर बीएस खटखड़ ने कहा कि इंडिया में क्वालिटी पर नहीं बल्कि क्वांटिटी पर ध्यान है, जोकि गलत है।
अच्छी चपाती के लिए ये रखे मानक
शोधार्थीमंजू के गाइड और फूड टेक्नोलॉजी विभाग के चेयरमैन प्रो. बीएस खटकड़ ने बताया कि रोटी की गुणवत्ता में सबसे पहले टेस्ट को देखा जाता है। हल्के भूरे रंग की गेहूं टेस्ट के लिए बेहतर होती है। क्योंकि गहरे रंग की गेहूं का स्वाद हल्का कड़वा होता है। हल्के रंग की गेहूं में एमीनो एसिड भी ज्यादा होता है। साथ ही आटे को गूंथने के बाद इसे रख देने पर भी यह कठोर नहीं होता और इसमें मौजूद एंजाइम इसमें शूगर की मात्रा को बढ़ा देते हैं। वहीं ऐसे आटे की रोटी पकाने के बाद जल्दी खराब या कठोर नहीं होती और स्वाद भी नहीं बदलता है। गेहूं की जिस किस्म में डैमेज स्टार्च ज्यादा होता है। उस आटे को गूंथने के दौरान पानी की खपत ज्यादा होती है। इसलिए आटा सॉफ्ट होता है। साथ ही चपाती खाने के दौरान मुंह में चिपकती नहीं है और यह च्विंगम की तरह ही मुंह में रोल होती है। परीक्षण के दौरान इन सभी बिंदुओं पर काम किया गया है।
नोट- इनसभी किस्मों में छह किस्म ही चपाती बनाने के लिए उपयुक्त है। इसमें से एचएयू की सी306, पीबीडब्लू 396, तमिलनाडु की डब्लूएच 2004, मध्यप्रदेश की एचआई 1531 और उत्तरांचल की यूपी 2572, 2584 ही चपाती के लिए उपयुक्त मानी गई है।
{ एचडब्लू 2004
{जीडब्लू 173, 322, 396, 496, 273, 190, 11
{डीएल 788-2
{एमएसीएस 2496
{एचआई 1544
{एलओके 1
{एचडी 2932
{ 1109,2684, 2572, 2628, 2382, 2526,2584
{डीबी डब्लू 17
{एचडी 2697
{ एमएसीएस 2496, 6145, 6222
{सीबीडब्लू 38
{पीबीडब्लू 509
{एचडी 2932
{सी 306
{डीबीडब्लू 17
{आरएजे 3765
{पीबीडब्लू 343, 590, 621, 175, 396
{डब्लूएच 711, 1021, 1025, 147, 283, 1080, 542
{डीएल 788-2
{एचडी 2932
{एचआई 1544, 1531, 977, 1077
जीजेयू में रोटी पर शोध