हिंदी की स्थिति क्या है (ShutterStock)
हिंदी को लेकर हाल में बालीवुड अभिनेता अजय देवगन और कन्नड़ एक्टर किच्चा सुरेश के बीच बहस ने इस विवाद पर सभी का ध्यान खींचा है. आखिर हिंदी की संवैधानिक स्थिति क्या है. देश में सबसे ज्यादा लोगों के हिंदी बोलने के बाद भी ये राष्ट्रीय भाषा क्यों नहीं बन पाई.
अधिक पढ़ें ...
- News18Hindi
- Last Updated : May 16, 2022, 18:01 IST
दरअसल बॉलीवुड एक्टर अजय देवगन और कर्नाटक के एक्टर किच्चा सुरेश के बीच हिंदी को लेकर ट्विटर पर एक बहस शुरू हुई. अजय का तर्क था हिंदी इस देश की राष्ट्रभाषा और मातृभाषा है. सुरेश ने इसे मानने से मना कर दिया. उन्होंने कहा हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा नहीं मिला है. इसे साउथ पर थोपा नहीं जा सकता. इसके बाद इस विवाद में कर्नाटक के सियासी नेता भी जुड़ गए, जिन्होंने सुरेश के सुर में सुर मिलाया. वैसे ये जानने वाली बात है कि देश में सबसे ज्यादा लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषा हिंदी की संवैधानिक स्थिति क्या है. आखिर क्यों ये राष्ट्रीय भाषा नहीं बन पाई.
आजादी के बाद हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के समर्थक महात्मा गांधी और नेहरू भी थे. इन्होंने एक या दो भाषाओं को पूरे देश की भाषा बनाने की मुहिम चला रखी थी. जबकि हिंदी विरोधी गुट इसका विरोध कर रहा था. अंग्रेजी को ही राज्य की भाषा बनाए रखने के पक्ष में था. 1949 में भारत की संवैधानिक समिति एक समझौते पर पहुंची. इसे मुंशी-आयंगर समझौता कहा जाता है. इसके बाद जिस भाषा को राजभाषा के तौर पर स्वीकृति मिली, वह हिंदी (देवनागरी लिपि में) थी.
संविधान में भारत की केवल दो ऑफिशियल भाषाओं का जिक्र था. इसमें किसी ‘राष्ट्रीय भाषा’ का जिक्र भी नहीं था. इनमें से ऑफिशियल भाषा के तौर पर अंग्रेजी का प्रयोग अगले पंद्रह सालों में कम करने का लक्ष्य था. ये 15 साल संविधान लागू होने की तारीख (26 जनवरी, 1950) से अगले 15 साल यानी 26 जनवरी, 1965 को खत्म होने वाले थे.
हिंदी को लेकर हुआ था बहुत बवाल
हिंदी समर्थक राजनेता जिसमें बालकृष्ण
शर्मा और पुरुषोत्तम दास टंडन शामिल थे. उन्होंने अंग्रेजी को अपनाए जाने का विरोध किया. इस कदम को साम्राज्यवाद का अवशेष बताया. साथ ही केवल हिंदी को भारत की राष्ट्रीय भाषा बनाए जाने के लिए विरोध प्रदर्शन किए. उन्होंने इसके लिए कई प्रस्ताव रखे लेकिन कोई भी प्रयास सफल नहीं हो सका क्योंकि हिंदी अभी भी दक्षिण और पूर्वी भारत के राज्यों के लिए अनजान भाषा ही थी. 1965 में जब हिंदी को सभी जगहों पर आवश्यक बना दिया गया तो तमिलनाडु में हिंसक आंदोलन हुए.
जिसके बाद कांग्रेस वर्किंग कमेटी ने तय किया कि संविधान के लागू हो जाने के 15 साल बाद भी अगर हिंदी को हर जगह लागू किए जाने पर अगर भारत के सारे राज्य राजी नहीं हैं तो हिंदी को भारत की एकमात्र ऑफिशियल भाषा नहीं बनाया जा सकता है. शायद ऐसा हो जाता तो भारत की यह एकमात्र ऑफिशियल भाषा, राष्ट्रभाषा कही जा सकती थी.
इसके बाद सरकार ने राजभाषा अधिनियम, 1963 लागू किया. इसे 1967 में संशोधित किया गया. जिसके जरिए भारत ने एक द्विभाषीय पद्धति को अपना लिया. ये दोनों भाषाएं पहले वाली ही थीं, अंग्रेजी और हिंदी.
क्षेत्रीय भाषाओं के पहचान पाने
की चिंता
1971 के बाद, भारत की भाषाई पॉलिसी का सारा ध्यान क्षेत्रीय भाषाओं को भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में जोड़ने पर रहा. जिसका मतलब था कि ये भाषाएं भी ऑफिशियल लैंग्वेज कमीशन में जगह पाएंगी और उस स्टेट की भाषा के तौर पर इस्तेमाल की जाएंगी. यह कदम बहुभाषाई जनता का भाषा को लेकर गुस्सा कम करने के लिए उठाया गया था. आजादी के वक्त इसमें 14 भाषाएं थीं, जो 2007 तक बढ़कर 22 हो गई थीं.
वर्तमान सरकार ने भी जगाई थी आशा
वर्तमान NDA सरकार ने भी इस दिशा में बहुत सी
आशाएं जगाई थीं. 2014 में, सरकार ने आते ही अपने अधिकारियों और मंत्रियों को सोशल मीडिया पर सरकारी पत्रों में हिंदी का प्रयोग करने का आदेश दिया था. स्वयं प्रधानमंत्री मोदी भी अंग्रेजी में सहज होते हुए भी अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी हिंदी में बोलते दिख जाते हैं. हालांकि फिर भी हिंदी के राष्ट्रभाषा बनने की संभावना बहुत कम ही है.
दरअसल जितना बताया जाता है उतने लोग भी नहीं बोलते हिंदी
25 जनवरी, 2010 को दिए एक फैसले में गुजरात हाई कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा था, भारत की बड़ी
जनसंख्या हिंदी को राष्ट्रीय भाषा मानती है. ऐसा कोई भी नियम रिकॉर्ड में नहीं है. न ही कोई ऐसा आदेश पारित किया गया है जो हिंदी के देश की राष्ट्रीय भाषा होने की घोषणा करता हो.
अक्सर कहा जाता है कि करीब 125 करोड़ की जनसंख्या वाले भारत में 50 फीसदी से ज्यादा लोग हिंदी बोलते हैं. साथ ही गैर हिंदी भाषी जनसंख्या में भी करीब 20 फीसदी लोग हिंदी समझते हैं. इसलिए हिंदी भारत की आम भाषा है. लेकिन कई भाषाविदों का कहना है कि हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, राजस्थान, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़ के लोगों को हिंदी भाषियों में गिन लिया जाता है, वे लोग हिंदी भाषी नहीं हैं. और उनमें से बहुत से लोगों की भाषा जनजातीय या क्षेत्रीय है. ऐसे में इन्हें हिंदीभाषी के तौर पर गिन लेना सही नहीं है.
देश के 29 में से 20 राज्य हैं गैर हिंदी-भाषी
इसके अलावा भारत के दक्षिण में केरल, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक. पश्चिम में गोवा, महाराष्ट्र और गुजरात. भारत के उत्तर-पश्चिम में पंजाब और जम्मू-कश्मीर. पूर्व में ओडिशा और पश्चिम बंगाल. उत्तरपूर्व में सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम,
त्रिपुरा, नगालैंड, मणिपुर, मेघालय और असम. ये इस देश के 29 में से 20 राज्य हैं जिनमें हिंदीभाषी बहुत कम हैं. ऐसे में हिंदी राष्ट्रभाषा हो ही नहीं सकती.
इसके अलावा भारत में ही हिंदी से कहीं पुरानी भाषाएं तमिल, कन्नड़, तेलुगू, मलयालम, मराठी, गुजराती, सिंधी, कश्मीरी, ओड़िया, बांग्ला, नेपाली और असमिया हैं. ऐसे में एक नई भाषा को राष्ट्रभाषा का दर्जा दे देना सही नहीं होगा.
ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें News18 हिंदी| आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट News18 हिंदी|
Tags: Ajay devgan, Hindi, Hindi debate, Hindi Language
FIRST PUBLISHED : April 29, 2022, 12:56 IST