महाबली संविभागी बळीराजा
बलि सप्तचिरजीवियों में से एक, पुराणप्रसिद्ध विष्णुभक्त, दानवीर, महान् योद्धा थे। विरोचनपुत्र असुरराज बलि सभी युद्ध कौशल में निपुण थे। वे वैरोचन नामक साम्राज्य के सम्राट थे जिसकी राजधानी महाबलिपुर थी। इन्हें परास्त करने के लिए विष्णु का वामनावतार हुआ था। इसने असुरगुरु शुक्राचार्य की प्रेरणा से देवों को विजित कर स्वर्ग लोक पर अधिकार कर लिया । समुद्रमंथन से प्राप्त रत्नों के लिए जब देवासुर संग्राम छिड़ा और असुरों एवं देवताओं के बीच युद्ध हुआ तो असुरों ने अपनी मायावी शक्तियों एवं का प्रयोग कर के देवताओं को युद्ध में परास्त किया। उस के बाद राजा बलि ने विश्वजित् और शत अश्वमेध यज्ञों का संपादन कर तीनों लोकों पर अधिकार जमा लिया। कालांतर में जब यह अंतिम अश्वमेघ यज्ञ का समापन कर रहा था, तब दान के लिए वामन रूप में ब्राह्मण वेशधारी विष्णु उपस्थित हुए। शुक्राचार्य के सावधान करने पर भी बलि दान से विमुख न हुआ। वामन ने तीन पग भूमि दान में माँगी और संकल्प पूरा होते ही विशाल रूप धारण कर प्रथम दो पगों में पृथ्वी और स्वर्ग को नाप लिया। शेष दान के लिए बलि ने अपना मस्तक नपवा दिया। लोक मान्यता है कि पार्वती द्वारा शिव पर उछाले गए सात चावल सात रंग की बालू बनकर कन्याकुमारी के पास बिखर गए। 'ओणम' के अवसर पर राजा बलि केरल में प्रतिवर्ष अपनी प्यारी प्रजा को देखने आते हैं। राजा बलि का टीला मथुरा में है।[1]
अन्य बलि[संपादित करें]
बलि वैरोचन के अतिरिक्त बलिनाम धारी अनेक पौराणिक व्यक्तियों में कुछ ये हैं -
- युधिष्ठिर की राजसभा का एक विद्वान् ऋषि,
- आंध्रवंशीय राजा,
- शिवावतारों में से एक अवतार,
- सुनपस्पुत्र - जो आनवदेश का राजा था।
सन्दर्भ[संपादित करें]
- ↑ "लोक-परम्परा में धरती-संबंधी अवधारणाएँ". टेक्नॉलॉजी डिपार्टमेंट ऑफ़ इंडियन गवर्नमेंट. मूल (एचटीएम) से 14 अक्तूबर 2008 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 27 जुलाई 2007.
2) बलि का राज आये (पौराणिक उपन्यास) लेखक सुधीर मौर्य
इन्हें भी देखें[संपादित करें]
- पशु बलि
- बलि (रामायण)
बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]
- Biography of Bali Maharaj
Updated: | Wed, 31 May 2017 10:49 AM (IST)
राजा बलि के पूर्वज प्रह्लाद थे। जो कि भगवान विष्णु के अनन्य भक्त थे। पुराणों में वर्णित हिंदू कथाओं को मानें तो राजा बलि पूर्वजन्म में जुआरी थे। एक बार वो जुए में काफी धन जीत गए।
और अपनी प्रेमिका, जोकि वेश्या थी। उससे मिलने के लिए पहुंचने वाले थे कि रास्ते में मृत्यु ने घेर लिया। तब उन्होंने एक मंदिर में वह धन भगवान शिव को अर्पित कर दिया और अंतिम सांस ली।
जब उनकी आत्मा मृत्यु के देवता यमराज के सामने उपस्थित हुई तो आत्मा का लेखा-जोखा हुआ। चित्रगुप्त ने जुआरी से कहा, तुमने एकमात्र पुण्य भगवान को धन दान के रूप में किया है।
यमराज ने कहा, तुमने पुण्य तो बहुत कम किए हैं लेकिन तुम्हारा यह पुण्य काफी प्रभावशाली है, इसलिए तुम्हें दो घड़ी के लिए इंद्र बनाया जाएगा। इस तरह उस जुआरी की आत्मा दो घड़ी के लिए यमराज के आदेशानुसार इंद्र बनाई गई।
इंद्र बनने के बाद जुआरी अप्सराओं-गंधर्व के नृत्य और सुरापान का आनंद ले ही रहा था, तभी नारदजी देवलोक आए। वह यह सब देखकर हंस दिए। उन्होंने कहा, 'यदि इस बात में संदेह हो कि स्वर्ग-नर्क हैं तब भी सत्कर्म तो कर ही लेना चाहिए वर्ना तो आस्तिक का कुछ नहीं बिगड़ेगा, पर हुए तो नास्तिक जरूर मारा जाएगा।'
यह बात सुनते ही उस जुआरी को होश आ गया। उसने दो घड़ी में ऐरावत, नंदन वन समेत पूरा इन्द्रलोक दान कर दिया। इसके प्रताप से वह पापों से मुक्त हो इंद्र बना और जब जुआरी का धरती पर जन्म हुआ तो वह राजा बलि के नाम से प्रसिद्ध हुए।
विरोचन के पुत्र थे बलि
वैदिक काल में कश्यप ऋषि हुए थे। उनकी पत्नी दिति थीं। जिनके के दो पुत्र हुए नाम थे हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष थे।
हिरण्यकश्यप के 4 पुत्र थे। जोकि क्रमशः अनुहल्लाद, हल्लाद, भक्त प्रह्लाद और संहल्लाद। और प्रह्लाद के कुल में विरोचन के पुत्र राजा बलि का जन्म हुआ।
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विष्णु को बनाया रक्षक : राजा बलि ने कहा कि भगवान यदि आप मुझे पाताल लोक का राजा बना ही रहे हैं तो मुझे वरदान दीजिए कि मेरा साम्राज्य शत्रुओं के प्रपंचों से बचा रहे और आप मेरे साथ रहें। अपने भक्त के अनुरोध पर भगवान विष्णु ने राजा बलि के निवास में रहने का संकल्प लिया।
पातालपुरी में राजा बलि के राज्य में आठों प्रहर भगवान विष्णु सशरीर उपस्थित रह उनकी रक्षा करने लगे और इस तरह बलि निश्चिंत होकर सोता था और संपूर्ण पातालपुरी में
शुक्राचार्य के साथ रहकर एक नए धर्म राज्य की व्यवस्था संचालित करता था।
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