पेट में कीड़े का पता कैसे लगाएं? - pet mein keede ka pata kaise lagaen?

In this article

  • शिशु के पेट में कीड़े होने का क्या मतलब है?
  • शिशुओं और बच्चों में कीड़ों का इनफेक्शन होना कितना आम है?
  • कीड़ों का इनफेक्शन होने के क्या लक्षण हैं?
  • मेरे शिशु को कीड़ों का संक्रमण कैसे हुआ?
  • कीड़े मेरे शिशु के विकास को किस तरह प्रभावित करते हैं?
  • कीड़ों के संक्रमण का पता लगाने के लिए कौन सी जांचें कराई जाती हैं?
  • शिशु में कीड़ों के इनफेक्शन का उपचार कैसे करुं?
  • मैं शिशु को कीड़े होने से बचाने के लिए क्या कर सकती हूं?
  • क्या कीड़ों के इनफेक्शन का बच्चे की प्रतिरक्षण प्रणाली पर सकारात्मक असर हो सकता है?
  • क्या प्रोबायोटिक्स मेरे बच्चे में कीड़ों का संक्रमण ठीक करने में मदद कर सकते हैं?

शिशु के पेट में कीड़े होने का क्या मतलब है?

इसका मतलब है कि आपके शिशु की आंतों में कीड़े या कृमि का संक्रमण है।

हो सकता है आपके शिशु के शरीर में ये कीड़े किसी दूसरे व्यक्ति से, संक्रमित मिट्टी में नंगे पैर चलने से, दूषित पानी में खेलने से या फिर अशुद्ध भोजन खाने से आ गए हों।

जब इन अंडों में से कीड़े निकलते हैं, तो ये और बढ़ जाते हैं और शिशु के शरीर में और अंडे दे देते हैं।

शिशुओं और बच्चों में कीड़ों का इनफेक्शन होना कितना आम है?

कीड़ों का संक्रमण काफी आम हैं और आसानी से फैलता है। हालांकि, यह बता पाना मुश्किल है कि ये इनफेक्शन​ कितने आम हैं, क्योंकि इनके अक्सर कोई लक्षण नहीं होते और इनके बारे में सूचना भी नहीं मिल पाती।

अध्ययनों के अनुमान के अनुसार भारत में रहने वाले हर पांच में से एक व्यक्ति को कम से कम एक प्रकार का कीड़ों का संक्रमण अवश्य होता है। वहीं, छोटे बच्चों में तो यह इससे भी अधिक आम माना जाता है।

कीड़ों के अलग-अलग तरह के इनफेक्शन होते हैं। पिनवर्म जिन्हें थ्रेडवर्म भी कहा जाता है छोटे बच्चों को प्रभावित करने वाले सबसे आम प्रकार के कीड़ें हैं। ये मोटे धागे के टुकड़े जैसे दिखते हैं, इनकी लंबाई करीब स्टेपल पिन जितनी, तीन मि.मी. से 10 मि.मी. तक लंबी हो सकती है।

हुकवर्म, राउंडवर्म और व्हिपवर्म इनफेक्शन भी भारत में आम हैं। शिशु में कीड़ों के इनफेक्शन का पता चलना काफी परेशान कर देने वाला हो सकता है।  सौभाग्यवश, इन कीड़ों से पीछा छुड़ाना काफी आसान है और इसमें अपेक्षाकृत कम समय लगता है।

कीड़ों का इनफेक्शन होने के क्या लक्षण हैं?

अधिकांशत: कीड़ों का इनफेक्शन होने के कोई लक्षण दिखाई नहीं देते। या फिर हो सकता है कि ये लक्षण इतने हल्के हों, कि उन पर ध्यान ही न जाए।

शिशु को कीड़ों का कौन सा संक्रमण हुआ है और यह कितना गंभीर है, इसे देखते हुए बच्चे में कुछ आम संकेत या लक्षण हो सकते हैं। अगर आपके बच्चे को इनमें से कोई भी लक्षण हो, तो उसे तुरंत डॉक्टर के पास ले जाएं:

  • पेट में दर्द।
  • वजन घटना।
  • चिड़चिड़ापन।
  • मिचली।
  • मल में खून आना।
  • उल्टी या खांसी, संभव है कि खांसी या उल्टी के जरिये कीड़ा बाहर निकल आए।
  • गुदा के आसपास खुजली या दर्द, जहां से कीड़े अंदर दाखिल हुए। यह खासकर पिन वर्म के मामलों में होता है।
  • खुजलाहट की वजह से ठीक से नींद न आना।
  • मूत्रमार्ग संक्रमण (यू.टी.आई.) की वजह से बार-बार पेशाब जाना। यह लड़कियों में अधिक आम है।
  • आंतरिक रक्तस्त्राव जिससे की आयरन की कमी और एनीमिया, पोषक तत्वों का सही अवशोषण न होना, दस्त (डायरिया) और भूख न लगना जैसी परेशानियां हो सकती हैं।
  • अगर, बहुत सारे कीड़े हों, तो आंतों में अवरोध भी हो सकता है, मगर ऐसा बहुत ही दुर्लभ है। कुछ बच्चों में उल्टी के साथ कीड़े निकल सकते हैं (आमतौर पर राउंड वर्म जो कि अर्थवर्म जैसे दिखते हैं)। 
  • गंभीर टेपवर्म इनफेक्शन की वजह से दौरे भी पड़ सकते हैं।
  • पाइका (न खाने योग्य, अपौष्टिक चीजें जैसे कि मिट्टी, चॉक, कागज आदि खाना) भी कीड़ों का इनफेक्शन होने का एक अन्य संकेत है।

कुछ डॉक्टरों का कहना है कि दांत पीसना भी कीड़ों का संक्रमण होने का संकेत हो सकता है। मगर इस विषय पर शोध​कर्ताओं की राय अलग-अलग है।

अगर, आपके शिशु को थ्रेडवर्म का हल्का संक्रमण हो, तो हो सकता है उसे कोई लक्षण न हों। वह नितंबों में खुजली होने की शिकायत कर सकता है, खासकर कि रात में।

 शिशु के सो जाने के बाद रात को उसके नितंब देखें। उसके दोनों नितंबों को थोड़ा अलग करते हुए, टॉर्च की रोशनी से उसकी गुदा के आसपास की जगह देखें।

अगर, उसे थ्रेडवर्म हुए तो, आपको एक या इससे ज्यादा कीड़े बाहर निकलते हुए, या शिशु के पायजामे और चादर पर दिख सकते हैं। शिशु के मल में भी आपको ये थ्रेडवर्म दिख सकते हैं।

यदि आपके शिशु को हुकवर्म से इनफेक्शन हुआ है, तो उसे निम्न लक्षण हो सकते हैं:

  • जिस जगह से कीड़ों ने त्वचा में प्रवेश किया है, उस स्थान पर चकत्ते और खुजलाहट हो सकती है, विशेषकर पित्ती ​(हाइव्स-आर्टिकेरिया)
  • एनीमिया

अगर आपके शिशु को ऐसे कोई भी लक्षण हों, तो अधिक जानकारी व उपचार के लिए अपने डॉक्टर से बात करें।

मेरे शिशु को कीड़ों का संक्रमण कैसे हुआ?

आपके शिशु को यह इनफेक्शन निम्न तरीकों से हो सकता है:

संक्रमित मिट्टी
बच्चों में हुकवर्म, राउंडवर्म, टेपवर्म और व्हिपवर्म होने का यह सबसे आम तरीका है।

यदि कोई संक्रमित व्यक्ति मिट्टी मे मलत्याग करें, तो वहां कीड़ों के अंडे जमा हो जाते हैं, जो बाद में छोटे अविकसित कीड़े बन जाते हैं। इसके बाद लार्वा विकसित होता है। संक्रमित मिट्टी में नंगे पैर चलने या घुटनों के बल चलने से बच्चों को हुकवर्म इनफेक्शन हो सकता है, क्योंकि लार्वा पैर की त्वचा के भीतर घुस सकते हैं।

संक्रमित मिट्टी को हाथों में लेने या नाखूनों में जमा होने के बाद इन्हीं गंदे हाथों को मुंह में लेने से अन्य कीड़े शरीर में प्रवेश करते हैं।

गंदे या संक्रमित पानी की जगह
कुछ तरह के कीड़े पानी में पनपते हैं। ये झीलों, बांधों और कीचड़ में पाए जा सकते हैं। इन जगहों पर खेलने, नहाने या तैराकी करने से या फिर ऐसा पानी पीने से या इस पानी से दूषित भोजन के सेवन से कीड़ों का इनफेक्शन हो सकता है।

बच्चों को यह इनफेक्शन होने का खतरा इसलिए ज्यादा होता है, क्योंकि उनकी प्रतिरक्षण प्रणाली (इम्यून सिस्टम) वयस्कों की तुलना में कमजोर होती है।

अधपका या संक्रमित भोजन
हुकवर्म, व्हिपवर्म और राउंडवर्म के अंडे ऐसे पौधे और सब्जियों में लगे रह सकते हैं, जो मल से दूषित मिट्टी में उगाए गए हों। अगर इन्हें अच्छी तरह धोया न जाए, तो ये सब्जियों पर ही चिपके रह जाते हैं। ऐसी सब्जियां खाने पर हमें इनफेक्शन हो सकता है।

पानी के क्षेत्रों के पास रहने वाले जानवर, जैसे कि मछली और पशु-मवेशी भी कीड़ों के संक्रमण जैसे कि टेपवर्म इनफेक्शन से बीमार हो सकते हैंं। इसलिए मांस और कच्ची या अधपकी मछलियों में कीड़े हो सकते हैं।

संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आना
अगर, आपका शिशु किसी ऐसे व्यक्ति के संपर्क में है, जिसे कीड़े हों और वे उचित साफ-सफाई पर ध्यान न दें, तो यह इनफेक्शन आपके शिशु तक भी पहुंच सकता है। पिनवर्म ऐसे ही शिशु तक पहुंचते हैं।

कीड़ों के अंडे नाखूनों के नीचे या फिर अच्छी तरह साफ न किए गए हाथों में जीवित रह सकते हैं। ऐसे में वे आपके शिशु के खिलौनों या फिर सीधे उसके मुंह तक पहुंच सकते हैं। थ्रेडवर्म चादरों या कपड़ों में तीन हफ्तों तक जिंदा रह सकते हैं।

कीड़े मेरे शिशु के विकास को किस तरह प्रभावित करते हैं?

थोड़े समय के लिए, कीड़ों के कुछ संक्रमण बीमारी की बजाय खिजलाहट का कारण हो सकते हैं। मगर, यदि इनका उपचार न किया जाए, तो ये गंभीर समस्या हो सकती है क्योंकि कीड़े की वजह से आंतों में रक्तस्त्राव हो सकता है। इसकी वजह से कुपोषण, वजन घटना और एनीमिया जैसी जटिलता उत्पन्न हो सकती है।

संक्रमित बच्चों को बीमारियां होने का खतरा भी ज्यादा होता है, क्योंकि उनकी प्रतिरक्षण प्रणाली क्षतिग्रस्त होती है। यदि टेपवर्म इनफेक्शन की वजह से मस्तिष्क में गांठे बनने लगें तो यह काफी गंभीर हो सकता हैं। हालांकि, ऐसा होना काफी दुर्लभ है, मगर डॉक्टर को दिखा लेना जरुरी है, ताकि स्थिति स्पष्ट हो सके।

लंबे समय के लिए, कीड़ों का संक्रमण बच्चे के भविष्य के शारीरिक और दिमागी विकास को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं, जिससे विकास में देरी और मानसिक कार्यप्रणाली पर असर पड़ता है। खासकर कि यदि संक्रमण से एनीमिया और कुपोषण हो रहा हो तो। अच्छी बात है कि समय पर उपचार किए जाने से इस इनफेक्शन से बचा जा सकता है।

कीड़ों के संक्रमण का पता लगाने के लिए कौन सी जांचें कराई जाती हैं?

शिशु में कीड़ों का पता लगाने का सबसे बेहतर तरीका यही है कि उसकी जांच डॉक्टर से करवाई जाए। डॉक्टर नीचे दी गई जांचों में से एक जांच करवाने के लिए कह सकते हैं, जिससे शिशु में कीड़ों के इनफेक्शन का पता चल सके:

  • मल की जांच। डॉक्टर आपके शिशु के मल का नमूना लेने के लिए भी कह सकते हैं। इस नमूने को जांच के लिए लैब में भेजा जाएगा, ताकि कीड़ों या कीड़ों के अंडों का पता लगाया जा सके।
  • स्टिकी टेप टेस्ट। यह जांच थ्रेडवर्म के लिए की जाती है, और इसमें शिशु के नितंबों के आसपास टेप का एक टुकड़ा चिपकाया जाता है, ताकि संभावित कीड़ों के अंडों को इकट्ठा किया जा सके। इस टेप को फिर लैब में जांच के लिए भेजा जाता है।

  • नाखूनों के नीचे देखना। डॉक्टर शिशु के नाखूनों के नीचे कीड़ों के अंडे होने की जांच कर सकते हैं।
  • रुई के फाहे (कॉटन-बड स्वॉब) से जांच। डॉक्टर या नर्स शिशु के नितंबों के आसपास रुई के फाहे से पौंछकर कीड़े होने का पता लगा सकते हैं।
  • अल्ट्रासाउंड जांच। यह आमतौर पर तब कराया जाता है, जब शिशु के शरीर में बहुत सारे कीड़े हों। अल्ट्रासाउंड में डॉक्टर कीड़ों की वास्तविक स्थिति का पता लगाएंगे।

शिशु में कीड़ों के इनफेक्शन का उपचार कैसे करुं?

सौभाग्यवश, कीड़ों के लगभग सभी संक्रमणों का उपचार मुंह से लेने वाली (ओरल) दवाओं से किया जा सकता है। आपके बच्चे को किस तरह का संक्रमण है, उसके आधार पर डॉक्टर दवाएं या कीड़ों को खत्म करने का उपचार (डीवर्मिंग) शुरु करेंगे। बच्चे को यदि एनीमिया हो तो उसे आयरन अनुपूरक लेने की भी जरुरत होगी।

कीड़ों के संक्रमण के लिए डॉक्टर की पर्ची के बिना मिलने वाली कोई भी दवा या औषधि न लें। कुछ एंटी-वर्म दवाएं दो साल से कम उम्र के बच्चों के लिए उचित नहीं होती हैं।

हो सकता है आप वैकल्पिक उपचारों जैसे कि जड़ी-बूटी या आयुर्वेदिक उपचार अपनाना चाहें। इनकी प्रभावशीलता के बारे मे ज्यादा प्रमाण उपलब्ध नहीं है। बेहतर यही है कि कुछ भी उपचार आजमाने से पहले अपने डॉक्टर से अवश्य बात करें।

कीड़ों का संक्रमण आसानी से फैलता है और इसका दोबारा हो जाना भी काफी आम है। एहतियात के लिए डॉक्टर शायद आपके पूरे परिवार को कीड़ों को खत्म करने का उपचार करवाने की सलाह दे सकते हैं, चाहे फिर अन्य किसी को कीड़े हों या न हों।

मैं शिशु को कीड़े होने से बचाने के लिए क्या कर सकती हूं?

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू.एच.ओ.) की सलाह है कि प्रीस्कूल के बच्चों को नियमित रूप से कीड़ों को खत्म करने का उपचार दिया जाए। शिशु के एक साल का हो जाने के बाद से डॉक्टर हर छह महीने में उसे डीवर्मिंग उपचार देने की सलाह देते हैं।

जब आपका नन्हा शिशु चलने लग जाता है, तो उसे कीड़ों का इनफेक्शन होने का खतरा शुरु हो जाता है। अपने बच्चे को नियमित तौर पर डॉक्टर के पास जांच के लिए ले जाएं और नियत समय पर कीड़ों को खत्म करने का उपचार करवाएं।

निम्नांकित सुझावों को अपनाकर आप उसे कीड़ों के संक्रमण से सुरक्षित रख सकती हैं:

  • शिशु की लंगोट (नैपी) नियमित रूप से बदलती रहें और इसके बाद अपने हाथों को अच्छे से धो लें।
  • अपने घर को अक्सर अच्छे कीटनाशक से साफ करती रहें
  • जब आपका शिशु चलना शुरु कर देता है, तो उसे पैरों को ढक लेने वाले जूते पहनाएं। सु​निश्चित करें कि बाहर खेलते समय बच्चा ये जूते अवश्य पहने। घर आने के बाद उसके हाथों और पैरों को अवश्य धो दें।
  • अपने बच्चे को झीलों, बांधों और कीचड़ से दूर रहकर ही खेलने दें।
  • शिशु को कीचड़ वाली जगहों, नमी वाले रेत की टीलों और मिट्टी से दूर रखें। मानसून के दिनों में विशेष ध्यान रखें, जब अक्सर पानी जमा हो जाता है। दूषित पानी कहीं से भी आ सकता है।
  • हमेशा ध्यान रखें कि शिशु साफ और सूखी जगह पर ही खेले।
  • अपने बच्चे को पानी की जगहों पर जैसे कि कीचड़, गढ्ढ़ों, झीलों या बांधों के आसपास न खेलने दें।
  • सुनिश्चित करें कि शिशु पेशाब या शौच के लिए स्वच्छ शौचालय का ही इस्तेमाल करे।
  • अपने शौचालय को साफ रखें। हर बार पेशाब करने या मल त्याग के बाद शिशु के नितंबों को धो दें। इसके बाद अपने हाथों को भी अच्छी तरफ धोएं। यदि आपका शिशु बड़ा है तो आप उसे हर बार शौचालय के इस्तेमाल के बाद हाथ धोने के बारे में सिखाएं।
  • सुनिश्चित करें कि आपके परिवार के सदस्य खाने से पहले और शौचालय के इस्तेमाल के बाद अपने हाथ साबुन से अवश्य धोएं।
  • बच्चे के नाखून छोटे और साफ रखें। कीड़ों के अंडे लंबे नाखूनों में फंस सकते हैं और पूरे घर में फैल सकते हैं।
  • हमेशा साफ पानी पीएं। आप पानी को उबाल सकते हैं या फिर फिल्टर कर सकती है।
  • फल और सब्जियों को साफ पानी में अच्छे से धोएं। हरी पत्तेदार सब्जियों को धोते समय विशेष सावधानी बरतें, क्योंकि उनमें मिट्टी और धूल लगी रह सकती है।
  • खाना बनाने से पहले देख लें कि मांस और मछली ताजा हो। मांस और मांस और मछली को अच्छी तरह पकाएं, ताकि वह कच्चा न रहे।
  • अगर आपके घर में कामवाली या आया शिशु की देखभाल करती है, तो सुनिश्चित करें कि वह साफ-सुथरी रहती हो। परिवार के अन्य सदस्यों ​के साथ-साथ घर में काम करने वाली कामवाली को भी कीड़े खत्म करने की दवाई दिलवाना सही रहता है।

क्या कीड़ों के इनफेक्शन का बच्चे की प्रतिरक्षण प्रणाली पर सकारात्मक असर हो सकता है?

यह हम निश्चित तौर पर तो नहीं कह सकते। कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि बचपन में कीड़ों का संक्रमण होना प्रतिरक्षण प्रणाली के लिए अच्छा होता है और यह एलर्जी और स्वप्रतिरक्षित (आॅटोइम्यून) स्थितियों के प्रति सुरक्षा प्रदान करने में मदद कर सकता है। इसे "ओल्ड फ्रेंड्स हाइपोथेसिस" कहा जाता है।

इस बात को साबित करने के लिए ​अन्य देशों के कुछ उदारहण नीचे दिए गए हैं:

  • एक शताब्दी पहले, जब यूके में कीड़ों के संक्रमण काफी ज्यादा प्रचलित थे और अधिकांश वयस्कों को ये होते थे, तब वहां एलर्जी होना इतना आम नहीं था।
  • युगांडा में हुए एक अध्ययन में पाया गया कि जब गर्भवती ​महिला ने गर्भावस्था के दौरान कीड़े खत्म करने की दवाएं ली, उनके शिशु को एग्जिमा होने की संभावना काफी ज्यादा थी।

क्या प्रोबायोटिक्स मेरे बच्चे में कीड़ों का संक्रमण ठीक करने में मदद कर सकते हैं?

माना जाता है कि प्रोबायोटिक भोजन, जैसे कि दही, लस्सी, छाछ, रायता या योगर्ट अच्छे जीवाणुओं की बढ़त में मदद करते हैं। अच्छे जीवाणु आपके बच्चे की प्रतिरक्षण क्षमता के लिए जरुरी हैं। हालांकि, इस बारे में पर्याप्त शोध उपलब्ध नहीं है कि ये कीड़ों के उपचार में कितने मददगार हैं। इस क्षेत्र में और अधिक अध्ययन की आवश्यकता है।

अध्ययनों के अनुसार प्रोबायोटिक्स कीड़ों समेत परजीवियों के खिलाफ कुछ सुरक्षा प्रदान कर सकते हैं। हालांकि, ये अध्ययन चूहे पर किए गए थे और यह किस तरह काम करेगा, स्पष्ट नहीं है।

इस बात के कोई प्रमाण नहीं है कि केवल प्रोबायोटिक्स कीड़ों के संक्रमण का उपचार कर सकते हैं। यदि आप इनका इस्तेमाल करना चाहें, तो साथ में बच्चे को डॉक्टर द्वारा बताए गए प्रमाणित उपचार भी दें।

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हमोर लेख पढ़ें:

  • शिशुओं में कब्ज (कॉन्स्टिपेशन)
  • शिशुओं में कॉलिक (उदरशूल)
  • शिशु का मल: क्या सामान्य है, क्या नहीं

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कैसे पता चलता है ki पेट में कीड़े हो तो?

पेट में कीड़े होने के लक्षण-Stomach worms symptoms in hindi.
मलाशय में खुजली (Anal itching) ... .
लगातार होने वाली मतली और उल्टी (Nausea and vomiting) ... .
ज्यादा दांत पीसना (Grinding teeth) ... .
पेट में दर्द (Stomach Pain) ... .
अचानक से वजन का कम होना (Sudden Weight loss) ... .
मल में सफेद डॉट्स आना (White dots in the stool).

पेट में कीड़े होने से कौन सी बीमारी होती है?

पेट में कीड़ा होना कृमि रोग कहलाता है। पेट के कीड़े कईं समस्याओं को जन्म देते हैं। यह समस्या सबसे अधिक बच्चों में होती है जिस कारण उनमें पेट दर्द, भूख न लगना और वजन घटने जैसे लक्षण नजर या महसूस होते हैं।

पेट के कीड़े मारने की सबसे अच्छी दवा कौन सी है?

पेट के कीड़ों का इलाज करने के लिए अजवाइन का पाउडर बना लें. अब एक चुटकी इस पाउडर में 1 चम्मच शहद मिलाएं और दिन कम से कम 3 बार इस चूर्ण का सेवन करें. यह पेट के कीड़े मारने की अचूक दवा है.

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