Athletics Javelin throw: ओलिंपिक में जेवलिन थ्रो का गोल्ड जीतने के साथ भारत में लोगों की दिलचस्पी इस खेल में काफी बढ़ गयी है। लोग जानना चाह रहे हैं कि जेवलिन थ्रो खेल के नियम क्या हैं, इसकी क्या खासियतें हैं और कोई इसे कैसे खेल सकता है। आईये, जानते हैं जेवलिन थ्रो से जुडी ख़ास बातें।
जेवलिन यानी भाले का आकार पुरुष और महिला खिलाडियों के लिए अलग अलग होता है। पुरुष वर्ग के लिए भाले का वजन 800 ग्राम होता है वहीं महिला वर्ग के लिए इसका वजन 600 ग्राम रहता है। पुरुष वर्ग के लिए भाले की लंबाई 2.20 से 2.30 मीटर तक की होती है और भाला फेंकने का रन-वे 30 मीटर से 36.50 मीटर तक और रन-वे की चौड़ाई 4 मीटर होती है।
भाले का सिरा किसी धातु का बना होता है तथा यह इतनी पैनी नोक वाला होता है कि आसानी से जमीन के अंदर घुस सके। इसका डंडा लकड़ी का बना होता है और भले के बीचोबीच चारों ओर एक डोरी लिपटी रहती है।
भाला फेंकने की कला
भाला फेंक को जब खेलों में शामिल किया गया तबसे लेकर आज तक इसकी तकनीक में कई परिवर्तन हुए हैं। शुरुआत में स्वीडन तकनीक होती थी जिसमें तीन कदम दौड़कर भाला पत्थर की तरह फेंका जाता था। उस समय भाले पर डोरी नहीं लपेटी जाती थी। 1920 से 1932 तक पोलिश तकनीक प्रयोग की गयी जिसमें दौड़ते समय भाला कंधे पर रहता था और शरीर पूरी तरह कमान की भांति तन जाता था।
भाला फेंकने के नियम
- भाले को कंधे के ऊपर से फेंकना चाहिए।
- भाला छोड़ने से पहले खिलाड़ी को अपनी पीठ पूरी तरह से फेंकने वाले गोले की ओर नहीं करना चाहिए।
- अगर खिलाड़ी गोले में दिए गए लैंडिंग पॉइंट को या फिर इनसे आगे की जमीन को छू लेता है तो यह फ़ाउल माना जाता है।
- सही थ्रो के लिए जरूरी है कि भाले की नोक जमीन पर सीधे गिरे।
- भाला फेंक इवेंट में हर प्रतिभागी को तीन-तीन अवसर मिलते हैं। इसमें उसका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन ही मूल्यांकन का आधार बनता है।
- जब तक भाला जमीन को न स्पर्श कर ले, प्रतिभागी को दौड़ मार्ग से बाहर नहीं जाना चाहिए।
- प्रतिभागी जब भाला लेकर दौड़ता है तब भाले का कोई हिस्सा जमीन से स्पर्श नहीं होना चाहिए।
- यदि फेंकते समय भाला टूट जाए, तो यह विफल प्रयास नहीं माना जाता है।
- इस खेल में सही थ्रो वो ही माना जाता है, जिसमें भाले का सिरा जमीन में घुस जाए या भाला जमीन पर खड़ा रहे।
तोक्योपहलवान बजरंग पूनिया के ब्रॉन्ज मेडल जीतने के कुछ ही देर बाद स्टार जेवलिन थ्रो ऐथलीट नीरज चोपड़ा ने शनिवार को तोक्यो ओलिंपिक में गोल्ड मेडल जीत इतिहास रच दिया। उनका सर्वश्रेष्ठ थ्रो 87.58 मीटर का रहा। यह भारतीय ओलिंपिक इतिहास में 100 वर्षों में ट्रैक ऐंड फील्ड से पहला मेडल है। इसके साथ ही वह ओलिंपिक में इंडिविजुअल स्पोर्ट में गोल्ड जीतने वाले शूटर अभिनव बिंद्रा के बाद दूसरे ऐथलीट भी बन गए हैं। यह भारत का तोक्यो में 7वां मेडल भी है। इसके साथ ही भारत ने अपने लंदन ओलिंपिक-2012 के बेस्ट प्रदर्शन 6 मेडल को पीछे छोड़ दिया।
नीरज ने पहले प्रयास में 87.03 मीटर भाला फेंका, जबकि दूसरे प्रयास में 87.58 मीटर रहा। इसके साथ ही उनका गोल्ड मेडल लगभग पक्का हो गया था, क्योंकि वह दोनों ही राउंड में टॉप पर रहे थे। उन्होंने तीसरे प्रयास में 76.79 मीटर थ्रो किया। दूसरे नंबर पर चेक गणराज्य ऐथलीट और गोल्ड मेडल के दावेदार माने जा रहे वी. याकूब ने इस दौरान दूसरा और तीसरा प्रयास फाउल किया और आखिरी प्रयास तक 86.67 मीटर ही भाला फेंक सके। नीरज ने स्वर्ण पदक जीतने के बाद तिरंगा लेकर मैदान का चक्कर लगाया और इसका जश्न मनाया।
नॉर्मन थे पहले ब्रिटिश इंडियन
अंतरराष्ट्रीय ओलिंपिक समिति (आईओसी) अब भी नॉर्मन प्रिचार्ड के पेरिस ओलिंपिक 1900 में 200 मीटर और 200 मीटर बाधा दौड़ में जीते गये पदकों को भारत के नाम पर दर्ज करता है लेकिन विभिन्न शोध तथा अंतरराष्ट्रीय ऐथलेटिक्स महासंघ (अब विश्व ऐथलेटिक्स) के अनुसार उन्होंने तब ग्रेट ब्रिटेन का प्रतिनिधित्व किया था।
2008 में अभिनव बिंद्रा ने रचा था इतिहास
13 वर्ष पहले अभिनव बिंद्रा ने मीटर एयर रायफल स्पर्धा में भारत को गोल्ड मेडल दिलाकर इतिहास रचा था। वह 11 अगस्त 2008 को बीजिंग ओलिंपिक खेलों की व्यक्तिगत स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतकर व्यक्तिगत स्वर्ण पदक जीतने वाले पहले भारतीय खिलाड़ी बने थे।
क्वॉलिफिकेशन राउंड में भी रहे थे टॉपर
नीरज ने क्वॉलिफिकेशन राउंड के पहले प्रयास में ही 86.65 मीटर के थ्रो के साथ फाइनल के लिए क्वॉलीफाइ कर भारत की पदक की उम्मीदें बढ़ा दी थीं। नीरज ग्रुप-ए में पहले स्थान पर रहे थे, उसके बाद उनसे सोना लाने की संभावना बढ़ गई थी।
भारत के लिए तोक्यो में मेडल जीतने वाले ऐथलीट
1. वेटलिफ्टर मीराबाई चानू: मणिपुर की 26 वर्षीय वेटलिफ्टर मीराबाई चानू ने तोक्यो ओलिंपिक में भारत के लिए पहला सिल्वर मेडल जीता। उन्होंने महिलाओं के 49 किग्रा में 202 किग्रा (87 किग्रा + 115 किग्रा) भार उठाकर सिल्वर अपने नाम किया।
2. बॉक्सर लवलीना बोरगोहेन: भारत की स्टार मुक्केबाज लवलीना बोर्गोहेन को महिला वेल्टरवेट वर्ग (69 किग्रा) के सेमीफाइनल में तुर्की की मौजूदा विश्व चैंपियन बुसेनाज सुरमेनेली के खिलाफ शिकस्त के साथ ब्रॉन्ज मेडल से संतोष करना पड़ा।
3. शटलर पीवी सिंधु: सिंधु ने महिला बैडमिंटन के सिंगल्स का ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम किया। उन्होंने चीन की ही बिंग जियाओ को 2-0 से हराया था। यह उनका ओलिंपिक में रेकॉर्ड दूसरा मेडल रहा।
4. पहलवान रवि दहिया: भारत के पहलवान रवि कुमार दहिया को पुरुष फ्रीस्टाइल 57 किग्रा भार वर्ग के फाइनल मुकाबले में रूस ओलंपिक समिति (आरओसी) के जायूर उगयेव के हाथों 4-7 से हार का सामना कर रजत पदक से संतोष करना पड़ा।
5. पुरुष हॉकी टीम: भारत की पुरुष हॉकी टीम ने जर्मनी को 5-4 से हराकर ऐतिहासिक ब्रॉन्ज मेडल अपने नाम किया। 1980 के बाद यह पहला मौका था जब भारत ने हॉकी में मेडल जीता है।
6. पहलवान बजरंग पूनिया: पूनिया ने पुरुषों के फ्री स्टाइल 65 किलो वर्ग कुश्ती स्पर्धा का ब्रॉन्ज मेडल जीतते हुए इतिहास रच दिया। उन्होंने कजाखस्तान के डाउलेट नियाजबेकोव को 8-0 से एकतरफा हराया। इसके साथ ही भारत के पदकों की संख्या 6 हो गई है, जो लंदन ओलिंपिक-2012 के कराबर है।