प्रश्न 3: बिना विचार, घटना और पात्रों के भी क्या कहानी लिखी जा सकती है। यशपाल के इस विचार से आप कहाँ तक सहमत हैं?
उत्तर: कहानी के लिए विचार, घटना और पात्र उतने ही जरूरी हैं, जितना की पेट भरने के लिए भोजन। मैं लेखक के इस विचार से सहमत नहीं हूँ। बहरहाल, मैं लेखक द्वारा किए गए कटाक्ष से जरूर सहमत हूँ कि जब केवल सूँघकर और देखकर पेट की तृप्ति हो सकती है तो फिर बिना विचार, घटना और पात्र के कहानी क्यों नहीं लिखी जा सकती है।
प्रश्न 4: आप इस निबंध को और क्या नाम देना चाहेंगे?
उत्तर: हवा में पकौड़े तलना
प्रश्न 5: नवाब साहब द्वारा खीरा खाने की तैयारी करने का एक चित्र प्रस्तुत किया गया है। इस पूरी प्रक्रिया को अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए।
उत्तर: नवाब साहब ने बड़े करीने से खीरों को तौलिये पर रखा। फिर उन्होंने अपनी जेब में से चाकू निकाला और खीरे के सिरे को काट दिया। फिर खीरे के सिरे को गोदकर उसे रगड़कर झाग निकाला। कई जगह इस प्रक्रिया को खीरे का बुखार निकालना कहते हैं। उसके बाद नवाब साहब ने खीरे के छिलके उतारे। फिर उन्होंने खीरे की पतली-पतली फाँकें काटीं और उन्हें तौलिये पर सजा दिया। उसके बाद उन फाँकों पर नमक-मिर्च छिड़का जिससे उनकी खीरा खाने की तैयारी पूरी हो गई।
प्रश्न 6: किन-किन चीजों का रसास्वादन करने के लिए आप किस प्रकार की तैयारी करते हैं?
उत्तर: मैं आम का रसास्वादन करने के लिए पहले आम को पानी से अच्छी तरह से धोता हूँ। फिर आम को दबाकर उसका दूध निकाल देता हूँ। उसके बाद आम चूसने के लायक बन जाता है। जलेबी के साथ अगर तीखी सब्जी हो तो इससे जलेबी का स्वाद बढ़ जाता है।
प्रश्न 7: खीरे के संबंध में नवाब साहब के व्यवहार को उनकी सनक कहा जा सकता है। आपने नवाबों की और भी सनकों और शौक के बारे में पढ़ा सुना होगा। किसी एक के बारे में लिखिए।
उत्तर: एक बार लखनऊ के एक नवाब मसनद के सहारे बैठकर शतरंज खेल रहे थे। तभी उन्हें खबर मिली कि अंग्रेजों की सेना ने आक्रमण कर दिया है। नवाब साहब ने अपने अर्दली को आवज लगाई ताकि वह आकर उन्हें जूते पहना दे। लेकिन अर्दली तो अपनी जान बचाकर भाग चुका था। फिर क्या था, नवाब साहब वहीं बैठे रहे। एक नवाब भला अपने हाथों से जूते कैसे पहन सकता था। अंग्रेजों के सैनिक आये और नवाब साहब को पकड़कर ले गए।
प्रश्न 8: क्या सनक का कोई सकारात्मक रूप हो सकता है? यदि हाँ तो ऐसी सनकों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर: यदि किसी व्यक्ति में लगन से काम करने की सनक हो तो इसका सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। हमने ऐसे कई वैज्ञानिकों के बारे में सुना है जो दिन रात प्रयोगशाला में काम करते थे। अपनी इसी सनक के कारण उन वैज्ञानिकों ने कई महत्वपूर्ण आविष्कार किए हैं।
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प्रिय मित्र! आपका उत्तर इस प्रकार है :- नवाब साहब के तरीके से उदरपूर्ति संभव नहीं है क्योंकि नवाब साहब खाने से अधिक महत्व अपनी झूठी शान को देते थे। इस तरीके को अपनाने में व्यक्ति को दिखावे की प्रवृति का अभ्यास करना होगा तभी वह खीरे को सूंघ कर भी उदरपूर्ति का अहसास पा सकता है।
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Solution : नवाब साहब अपनी नवाबी का दिखावा कर रहे थे। नवाब साहब की नवाबी पर व्यंग्य किया गया है उन्होंने खीरे को पहले धोया, सुखाया, छीला और फिर फाँकों में काटकर सूंघकर खिड़की से बाहर फेंक दिया इससे उनके दिखावटी पूर्ण जीवन का पता चलता है कि वे खीरे को अपदार्थ और तुच्छ समझते हैं। इस प्रकार नवाबों का वास्तविकता से बेखबर होना दर्शाया गया है।
लखनवी अंदाज 2010-20? इसमें लखनवी अंदाज पाठ से cbse बोर्ड परीक्षा के 12 वर्ष में पूछे गए प्रश्न और उत्तर सरल भाषा में दिए गए हैं । सी.बी.एस.ई. बोर्ड परीक्षा में 2010 से 2020 तक ‘पाठ- लखनवी अंदाज- यशपाल’ से पूछे गए प्रश्न और उनके उत्तर- उत्तर-लेखक ने जब गाड़ी के सेकण्ड क्लास के डिब्बे में प्रवेश किया, तो नवाब साहब पालथी मारकर एक बर्थ पर बैठे हुए थे। लेखक का उस डिब्बे में सहसा प्रवेश करना उन्हें अच्छा नहीं लगा। उनके चेहरे पर असंतोष का भाव झलक रहा था। वे
अनमने भाव से खिड़की के बाहर झाँकते रहे और उन्हें न देखने का नाटकीय प्रदर्शन करते रहे। उन्होंने किसी भी तरह से लेखक के प्रति कोई रूचि नहीं दिखाई। ऐसे हाव-भावों को देखकर लगता था कि वे लेखक से बातचीत करने के उत्सुक नहीं हैं। प्रश्न-2.‘लखनवी अंदाज’ पाठ के नवाब साहब के विषय में पढ़कर आपके मन में कैसे व्यक्ति का चित्र उभरता है? उत्तर-‘लखनवी अंदाज’ पाठ के नवाब साहब के विषय में पढ़कर
एक ऐसे व्यक्ति का चित्र उभरकर सामने आता है जो पतनशील सामंती वर्ग का प्रतिनिधि है। वास्तविकता से बेखबर, बनावटी जीवन जीने का आदी है। नफासत, नजाकत और प्रदर्शन-प्रिय है। नवाब साहब वास्तव में पतनशील सामंती वर्ग के जीते – जागते उदाहरण हैं। नवाब साहब खीरा खाने के लिए तैयारी करते हैं। खीरा काटकर उस पर नमक मिर्च लगाते हैं, किन्तु बिना खाए ही केवल सूँघकर रसास्वाद कर खिड़की से बाहर फेंक देते हैं। वास्तव में इसके द्वारा वे अपनी नवाबी रईसी का गर्व अनुभव करते हैं और साथ इसका प्रदर्शन भी करते हैं। नवाब साहब का
व्यक्तित्व एक ऐसे व्यक्ति का व्यक्तित्व है जो बनावटी जीवन शैली का अभ्यस्त है। उत्तर-‘लखनवी अंदाज’ पाठ में भी नवाब साहब की खानदानी तहजीब, नफासत और नजाकत का उदाहरण मिलता है। नवाब साहब की खानदानी तहजीब उस समय नजर आती है जब वह बहुत ही अदब के साथ लेखक को संबोधित करते हुए कहते
हैं-‘आदाब–अर्ज, जनाब, खीरे का शौक फरमाएंगे’। यहाँ उनकी विनम्रतापूर्वक आग्रह की प्रवृत्ति भी नजर आती है। नवाब साहब खीरा खाने के लिए बहुत की यत्नपूर्वक तैयारी करते हैं। खीरों को धोना, पोंछना, सावधानी से छीलकर फाँके सही से तौलिये पर सजाना-उनकी नफासत का बेहतरीन उदाहरण है। खीरों को बिना खाए सूँघकर रसास्वादन कर खिड़की से बाहर फेंकना और फिर लेट जाना-इस प्रक्रिया में उनकी नवाबी नजाकत दिखाई देती है। उत्तर-‘लखनवी अंदाज’ पाठ में नवाब साहब के क्रियाकलापों से हमें उनकी सच्चाई से बेखबर बनावटी
जीवन-शैली का परिचय प्राप्त होता है। नवाब साहब द्वारा अकेले में खीरा खाने का प्रबंधक करना और लेखक के आ जाने पर उन खीरों को सूँघकर खिड़की से बाहर फेंककर नवाबी रईसी का गर्व अनुभव करना इसी दिखावे का प्रतीक है। आज की बदलती परिस्तिथियों में ये दिखावटी और बनावटी जीवन शैली में निर्वाह संभव नहीं क्योंकि बनावटी और दिखावटी जीवन प्रगति और प्रेरणा का आधार नहीं हो सकता है। ऐसे में जीवन में न आनंद हैं, न वास्तविकता और न ही जीवंतता। सरल सहज गतिशील जीवन ही आज के समय की माँग है। आज के भौतिकवादी जीवन में रिश्तों
में मधुरता बनाए रखने के लिए इस आडम्बरयुक्त होना अत्यंत आवश्यक है। प्रश्न-5.नवाब साहब ने बहुत ही यत्न से खीरा काटा, नमक-मिर्च बुरका, अंततः सूँघकर ही खिड़की से बाहर फेंक दिया। उन्होंने ऐसा क्यों किया होगा? उत्तर-नवाब हमेशा से एक विशेष प्रकार की नफासत और नजाकत के लिए मशहूर हैं। इसलिए वे सामान्य समाज के तरीकों को न अपनाकर नए-नए तरीके
खोजते हैं, जिनसे उनका नवाबपन प्रकट हो सके। पाठ में नवाब साहब तरीके से खीरा खाने की तैयारी करते हैं। लेखक को अपने सामने देखकर उन्हें अपनी नवाबी दिखाने का अवसर मिल गया था। वह खीरा काटकर उस पर नमक – मिर्च लगाते हैं, किन्तु बिना खाए ही केवल सूँघकर रसास्वादन कर खिड़की से बाहर फेंक देते हैं और फिर इस प्रकार लेट जाते हैं, जैसे- इस सारी प्रक्रिया में बहुत थक गए हों, वास्तव में ऐसा करके वह लेखक के मन पर अपनी नवाबी की धाक जमाना चाहते थे। उत्तर-नवाब साहब सीट पर बहुत ही सुविधा में पालथी मार कर बैठे थे। उनके सामने दो ताजे-चिकने खीरे तौलिये पर रखे थे। उन्होंने खीरों के नीचे रखे तौलिये को झाड़कर सामने बिछाया। सीट के नीचे से लोटा उठाकर दोनों खीरों को खिड़की से बाहर धोया और तौलिए से पोंछ लिया। जेब से चाकू निकाला। दोनों खीरों के सिर काटे और उन्हें गोदकर झाग निकाला। फिर खीरों को बहुत ही एतियात से छीलकर फाँकों को करीने से तौलिए पर
सजाते गए। इसके पश्चात नवाब साहब ने बहुत ही करीने से खीरे की फाँकों पर जीरा मिला नमक और लाल मिर्च की सुर्खी बुरक दी। इस प्रक्रिया में उनका मुख खीरे के रसास्वाद की कल्पना से प्लावित हो रहा था। उत्तर-लेखक की गाड़ी छूट रही थी अतः वे सेकण्ड क्लास के एक छोटे डिब्बे को खली समझकर, जरा
दौड़कर उसमें चढ़ गए। सामने एक बर्थ पर लखनऊ की नवाबी नस्ल के एक सफ़ेद कपड़े पहने सज्जन बहुत सुविधा से पालथी मारकर बैठे हुए थे। लेखक के इस प्रकार सहसा आ जाने से उन सज्जन की आँखों में एकांत चिंतन में रुकावट का असंतोष दिखाई दिया। नवाब साहब ने लेखक की संगति के लिए उत्साह नहीं दिखाया। क्योंकि शायद उन्होंने अकेले यात्रा कर सकने के अनुमान में किफ़ायत के विचार से सेकण्ड क्लास का टिकट ख़रीदा होगा और लेखक का डिब्बे में प्रवेश करने से उनकी एकांत स्थिति में विघ्न पड़ गया होगा। इतना ही नहीं उनके हाव-भावों से महसूस
हो रहा था कि वे लेखक से बातचीत करने के लिए तनकि भी उत्सुक नहीं है। उत्तर-नवाब साहब ने खीरे की फाँकों पर नमक-मिर्च छिड़का, सूँघा और फिर एक-एक कर सभी फाँकों को खिड़की से बाहर फेंक दिया। इसके पश्चात् गर्व से गुलाबी आँखों द्वारा लेखक की तरफ देखा। वह अपनी इस प्रक्रिया के द्वारा लेखक को अपना खानदानी
रईसीपन दर्शाना चाहते थे। वे यह भी बताना चाहते थे कि नवाब लोग खीरे जैसी साधारण वस्तु को इसी तरह से खाते हैं। जबकि इन सबके मूल में उनका दिखावे से परिपूर्ण व्यवहार ही सामने आया। उत्तर-लेखक जब सेकण्ड क्लास के डिब्बे में चढ़े, तो उन्होंने एक बर्थ पर नवाबी अंदाज में एक सफेदपोश सज्जन को पालथी मारे बैठे
देखा। उनके आगे दो चिकने खीरे रखे हुए थे। लेखक का सहसा डिब्बे में प्रवेश कर जाना नवाब साहब को अच्छा नहीं लगा। उन्होंने लेखक के प्रति कोई रूचि नहीं दिखाई। लेखक ने भी उनका परिचय प्राप्त करने का प्रयास नहीं किया। क्योंकि उन्हें यह लगा कि नवाब साहब शायद लेखक अकेले ही सफर करना चाहते थे और न ही यह चाहते थे कि कोई उन्हें सेकण्ड क्लास में सफ़र करते देखे। ऐसी स्थिति में उन्हें खीरा खाने में भी संकोच का अनुभव हो रहा होगा। अचानक नवाब साहब ने लेखक को खीरे का शौक फरमाने को कहा। लेखक को नवाब साहब का यह सहसा भाव
परिवर्तन अच्छा नहीं लगा क्योंकि वे शायद अपना नवाबी व्यवहार दर्शाना चाहते थे। जबकि वास्तविकता में उनका यह व्यवहार नवाबी संस्कृति का दिखावटीपन ओढ़े हुए था। उत्तर-‘लखनवी अंदाज’ पाठ में लेखक ने नवाब साहब के माध्यम से नवाबी परंपरा की झूठी आन-बान पर व्यंग्य किया है जो वास्तविकता से बेखबर एक बनावटी जीवन शैली के आदी
हैं। आज के समय में भी नवाब साहब के रूप में ऐसी परजीवी संस्कृति को देखा जा सकता है। नवाब साहब का खीरे मात्र को सूँघकर पेट भर जाना, उसे बिना खाए खिड़की से फेंक देना-उनकी बनावटी रईसी को दर्शाता है। उनका सेकण्ड क्लास में यात्रा करना उस समय को प्रमाणित करता है कि नवाब साहब की नवाबी ठसक तो नहीं रही, परन्तु फिर भी वे अपने हाव-भाव और क्रिया-कलापों से झूठी शान दिखाते हैं, जिसका कोई महत्व नहीं है। उत्तर-लेखक ने जब सेकण्ड क्लास के डिब्बे में प्रवेश किया तब उन्होंने एक बर्थ पर नवाबी वेशभूषा पहने हुए एक व्यक्ति को पालथी मारे बैठे देखा। उन्हें डिब्बे में प्रवेश करते देख नवाब साहब की आँखों में असंतोष का भाव दिखाई दिया। ऐसा लगा जैसे लेखक के वहाँ आ जाने से उनके एकान्त में बाधा उपस्थित हो गई है। नवाब साहब ने लेखक से कोई बात नहीं की अपितु कुछ देर तक
खिड़की के बाहर देखने का नाटक करते रहे। नवाब साहब के हाव-भावों से लेखक को ऐसा महसूस हुआ कि वे उनसे बात करने के लिए कतई उत्सुक नहीं हैं। वे असुविधा एवं संकोच का अनुभव कर रहे थे। उत्तर-‘लखनवी
अंदाज’पाठ में खीरे के संबंध में नवाब साहब के व्यवहार को उनकी सनक कहा जा सकता है। सनक का सकारात्मक रूप भी हो सकता है। सनक को पूर्ण आत्मविश्वास के साथ किसी काम को करने की लगन या धुन के साथ जोड़ा जा सकता है। इतिहास में ऐसी सनकों के अनगिनत उदाहरण मिलते हैं, जैसे- स्वामी विवेकानंद को ज्ञान प्राप्त करने की सनक, महात्मा बुद्ध को जीवन का सत्य खोजने की सनक, चाणक्य को नंद वंश का समूल विनाश करने की सनक, भगत सिंह को देश पर मर-मिटने की सनक महात्मा गाँधी को देश आजाद कराने की सनक आदि। ये ऐसे उदाहरण हैं जो उसके
सकारात्मक पक्ष को पुष्ट करते हैं।पाठ- लखनवी अंदाज- यशपाल
2010
प्रश्न-1.‘लखनवी अंदाज’ पाठ के नवाब साहब के किन हावभावों से लगता है कि वे बातचीत के लिए उत्सुक नहीं हैं?
प्रश्न-3.‘लखनवी अंदाज’ पाठ के नवाब साहब में खानदानी तहजीब, नफासत और नजाकत के क्या सबूत दिखाई दिए? पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए।
लखनवी अंदाज
summary//hindibharti.in/lakhanvi-andaaz-summary/
प्रश्न-4.‘लखनवी अंदाज’ पाठ के नवाब साहब के क्रियाकलाप से हमें उनकी जिस जीवन-शैली का परिचय प्राप्त होता है, क्या आज की बदलती परिस्थतियों में उसका निर्वाह संभव है? तर्क सहित उत्तर दीजिए।
2011
प्रश्न-6.नवाब
साहब द्वारा खीरे की तैयारी करने का शब्द चित्र प्रस्तुत कीजिए।
प्रश्न-7.ट्रेन के डिब्बे में नवाब साहब ने लेखक की संगति के लिए उत्साह क्यों नहीं दिखाया होगा?
2012
प्रश्न-8.नवाब साहब ने गर्व गुलाबी आँखों द्वारा लेखक की तरफ क्यों देखा?
प्रश्न-9.नवाब साहब का कैसा भाव-परिवर्तन लेखक को अच्छा नहीं लगा और क्यों? ‘लखनवी अंदाज’ पाठ के आधार पर लिखिए।
प्रश्न-10.‘लखनवी अंदाज’ पाठ में नवाब साहब के माध्यम से नवाबी परम्परा पर व्यंग्य है। स्पष्ट कीजिए।
2013
प्रश्न-11.लेखक
को नवाब साहब के किन हाव-भावों से महसूस हुआ है कि वे उनसे बातचीत करने के लिए तनकि भी उत्सुक नहीं हैं?
2014
प्रश्न-12.‘लखनवी अंदाज’पाठ में नवाब साहब की एक सनक का वर्णन किया गया है। क्या सनक का कोई सकारात्मक रूप हो सकता है? यदि हाँ तो ऐसी सनकों का वर्णन कीजिए।
2015
प्रश्न-13.“बिना विचार, घटना और पात्रों के भी क्या कहानी लिखी जा सकती है”। यशपाल जी के इस विचार से आप कहाँ तक सहमत हैं?
उत्तर- हम लेखक के इस विचार से बिलकुल भी सहमत नहीं है कि बिना विचार, घटना और पात्रों के कहानी लिखी जा सकती है। विचार, घटना तथा पात्र किसी भी कहानी के लिए उसका प्राण तत्व होते हैं। उस कहानी की कथावस्तु और कोई भी कथावस्तु निश्चित रूप से विचार अथवा घटना पर आधारित होती है, जिसे पात्रों के माध्यम से अभिव्यक्ति किया जा सकता है। ये पात्र व घटनाएँ काल्पनिक भी हो सकती हैं और वास्तविक भी, किन्तु इनके आभाव में कहानी के स्वरुप की कल्पना करना असंभव है। लेखक ने भी यह बात व्यंग्य रूप में ही कही है क्योंकि ऐसा नहीं हो सकता कि बिना विचार, घटना और पात्रों के कहानी लिखी जा सके।
2016
प्रश्न-14.नवाब साहब द्वारा खीरा खाने के तरीके से क्या उदरपूर्ति संभव है? यदि नहीं, तो इस तरीके को अपनाने में व्यक्ति को किस प्रवृत्ति का आभास होता है?
उत्तर-नवाब साहब द्वारा खीरा खाने के तरीके से उदरपूर्ति(पेट भरना) नहीं है। नवाब साहब द्वारा खीरे का मानसिक या मनोवैज्ञानिक स्तर पर सेवन किया गया, शारीरिक या भौतिक स्तर पर नहीं। उदरपूर्ति तब तक संभव नहीं है, जब तक वस्तु खाने का सामान का यथार्थ में सेवन न किया जाए और वह व्यक्ति के पेट में न पहुँचे। नवाब साहब वास्तव में यह दिलवाना चाहते थे कि वे इतने बड़े खानदानी रईस हैं कि खीरे जैसी तुच्छ खाने की वस्तु उनके उदर में जाने लायक नहीं है। वे तो केवल उसका ही सुगंध लेना चाहते हैं। इसके अलावा, वे अपनी रईसी का झूठा प्रदर्शन करके यह जताना चाहते थे कि उनका पेट तो के सुगंध मात्र से ही भर जाता है। उन्होंने तो लेखक के सामने डकार लेकर इस बात का प्रमाण देने की भी कोशिश की। इन सबसे उनके अहंकारी स्वभाव तथा प्रदर्शन या दिखावापन की भावना का पता चलता है।
प्रश्न-15.नवाब साहब द्वारा सेकण्ड क्लास में यात्रा करने के क्या-क्या कारण हो सकते हैं?
उत्तर-नवाब साहब द्वारा सेकण्ड क्लास में यात्रा करने के कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित हो सकते हैं-
1-संभवता वे भीड़ से राहत पाने के लिए शांति एवं एकांत चाहते हों। क्योंकि प्रथम क्लास अधिक महँगा पड़ता होगा, इसलिए वे सेकण्ड क्लास में यात्रा कर रहे हों।
2-लोगों की भीड़ से बचना और अधिक महँगा टिकट न खरीद पाना-इन दोनों के बीच का मार्ग है, सेकण्ड क्लास में यात्रा करना। संभवतः यही कारण रहा हो।
2017, 18
इस सत्र में लखनवी अंदाज से कोई प्रश्न नहीं पूछा गया था।
2019
प्रश्न-16.खीरा काटने में नवाब साहब की विशेषज्ञता का चित्रण अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर-नवाब साहब ने सबसे पहले दोनों खीरों को धोया और तौलिये से पोछा। उसके बाद दोनों खीरों के चाकू से सिर काटकर-गोदा और झाग निकाला। खीरों की फाँकें काटकर तौलिए पर सजाकर उस पर जीरा मिला नमक-मिर्च बुरका आदि।
प्रश्न-17.‘लखनवी अंदाज’ पाठ के आधार पर बताइए कि लेखक ने यात्रा करने के लिए सेकण्ड क्लास का टिकट क्यों ख़रीदा।
उत्तर-लेखक ने यात्रा करने के लिए सेकण्ड क्लास का टिकट निम्न कारण से ख़रीदा-
1-लेखक को अधिक दूरी की यात्रा नहीं करनी थी।
2-भीड़ से बचने के लिए।
3-एकांत में नई कहानी के संबंध में सोचने के लिए।
4-खिड़की के पास बैठकर बाहर के दृश्यों का आनंद लेने के लिए।
प्रश्न-18.नवाब साहब ने खीरा खाने की पूरी तैयारी की और उसके बाद उसे बिना खाए फेंक दिया। इस नवाबी व्यवहार पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर-नवाब साहब खीरा तो वास्तव में खाने लिए लाए थे लेकिन अपनी नवाबी का दिखावा कर रहे थे। उन्होंने खीरा को पहले धोया, सुखाने के बाद छीलकर और उसकी फाँकें काटकर तौलिया पर सजाकर नमक डालकर उसे सूँघकर खिड़की से बाहर फेक दिया। उसके ऐसा करने से दिखावटी जीवन का पता चलता है। वह खीरे को अपदार्थ और तुच्छ समझते हैं।
प्रश्न-19.‘लखनवी अंदाज’ के पात्र नवाब साहब के व्यवहार पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर- नवाब साहब के व्यवहार पर मेरे विचार इस प्रकार हैं-
1-नवाब साहब के व्यवहार में तहजीब, नजाकत और दिखावापन झलकता है।
2-वह स्वयं को दूसरों से अधिक समझदार दिखाना चाहता है।
3-खीरे को सूँघकर स्वाद लेना हास्यास्पद लगता है।
4- वे अपनी दिखावटी जीवन शैली पर गर्व का अनुभव करते हैं।
2020
प्रश्न-20.नवाब साहब द्वारा लेखक से बातचीत उत्सुकता न दिखाने पर लेखक ने क्या किया?
उत्तर-नवाब साहब के सामने की बर्थ पर बैठकर उन्हें अनदेखा किया और कोई महत्व नहीं दिया। न ही उनमें कोई रूचि दिखाई।
प्रश्न-21.नवाब साहब किस वर्ग के प्रतीक हैं? उनके प्रति आपकी राय क्या है? लखनवी अंदाज पाठ के आधार पर लिखिए।
उत्तर-नवाब साहब दिखावे का जीवन जीने वाले व्यक्ति हैं, जो सामंती वर्ग का प्रतीक है। आज भी हमारे समाज में ऐसे लोग हैं, जो दिखावे के सुख के लिए हँसी के पात्र बन जाते हैं। मेरी दृष्टि में ऐसा करना उचित नहीं है।
प्रश्न-22.‘लखनवी अंदाज’ के लेखक ने नवाब साहब के सामने बैठ आँखें क्यों चुरा ली?
उत्तर- लेखक ने नवाब साहब के सामने बैठकर आँखें निम्न कारणों से चुरा लीं-
1-नवाब साहब ने संगति के लिए उत्साह नहीं दिखाया।
2-आत्म सम्मान बचाने के लिए।
प्रश्न-23.नवाब साहब की नवाबी प्रकृति को स्पष्ट करते हुए लिखिए कि उन्होंने ने खीरा खाना उचित क्यों नहीं समझा?
उत्तर-नवाब साहब ने निम्न कारणों से खीरा खाना उचित नहीं समझा-
1-डिब्बे में लेखक के प्रवेश पर असंतोष।
2-लेखक के सामने खीरे जैसी साधारण वस्तु को खाने में संकोच
3-खीरे को खिड़की से बाहर फेक देना।
4-दिखावे की प्रवृत्ति।
5-मिथ्या का अभिमान।
6-इससे उनकी नवाबी को ठेस पहुँचती है।
प्रश्न-24.“पतनशील सामंती समाज झूठी शान के लिए जीता है”- लखनवी अंदाज पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-लखनवी अंदाज के नवाब साहब दिखावे का जीवन जीते हैं, जिसके निम्न कारण हैं-
1-संगति के लिए उत्साह का आभाव।
2-नवाब साहब द्वारा खीरे की तैयारी।
3-स्वाद लेने का विचित्र ढंग।
4-खीरे को झूठी शान के लिए फेकना।
प्रश्न-25.‘लखनवी अंदाज’ रचना में नवाब साहब की सनक को आप कहाँ तक उचित ठहराएँगे? क्यों?
उत्तर- सनक हमेशा सही नहीं होती है। अगर सनक किसी अच्छे काम के लिए हो, तब तो वह अच्छी है। अन्यथा वह सनक अनुचित मानी जाएगी। नवाब साहब की सनक सामंती वर्ग का प्रतीक है। वह सनक किसी अच्छे काम को प्रेरित नहीं कर सकता है। मेरी दृष्टि में नवाब साहब की सनक उचित नहीं है।
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धन्यवाद!
डॉ. अजीत भारती (www.hindibharti.in)