लोकतंत्र से आप क्या समझते हैं लोकतंत्र की सफलता की आवश्यक शर्तें क्या है? - lokatantr se aap kya samajhate hain lokatantr kee saphalata kee aavashyak sharten kya hai?

B. A. I, Political Science I / 2020 

प्रश्न 13. प्रजातन्त्र की परिभाषा दीजिए तथा इसके गुण व दोषों का उल्लेख कीजिए।
 

अथवा '' लोकतन्त्र से आप क्या समझते हैं ? इसके गुण-दोषों की विवेचना कीजिए।

उत्तर

प्रजातन्त्र (लोकतंत्र) का अर्थ एवं परिभाषाएँ

'Democracy' (लोकतन्त्र) शब्द ग्रीक भाषा के दो शब्दों से बना है 'Demas'और 'Kratos' | 'Demas' का अर्थ है 'जनता' और 'Kratos'का अर्थ है 'शक्ति'। इस प्रकार 'Democracy'का अर्थ हुआ'जनता की शक्ति' । अतः लोकतन्त्र शासन वह शासन है जहाँ शासन की शक्तियाँ राजतन्त्र व कुलीन तन्त्र की भांति एक व्यक्ति या कुछ व्यक्तियों में निहित न होकर साधारण जनता में निहितहोती है

अब्राहम लिंकन ने कहा है, "प्रजातन्त्र शासन जनता का, जनता के लिए, जनता द्वारा संचालित शासन है।"

सीले के अनुसार, प्रजातन्त्र वह शासन प्रणाली है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति का भाग होता है।"

डायसी के अनुसार, "प्रजातन्त्र वह शासन प्रणाली है जिसमें शासन करने वाला समुदाय समस्त जनसंख्या का अपेक्षाकृत बड़ा भाग होता है।"

लॉर्ड ब्राइस के अनुसार, प्रजातन्त्र वह शासन प्रणाली है जिसमें शक्ति एक विशेष वर्ग या वर्गों में निहित न होकर समाज के मनुष्यों में निहित होती है।"

उपर्युक्त परिभाषाओं से यह निष्कर्ष निकलता है कि विभिन्न विद्वानों ने लोकतन्त्र की परिभाषा भिन्न-भिन्न अर्थों में की है । कुछ ने उसे शासन का प्रकार माना है, कुछ ने राज्य का प्रकार और कुछ ने समाज का प्रकार।

(1) शासन के प्रकार के रूप में लोकतन्त्र -

शासन के प्रकार के रूप में लोकतन्त्र का अभिप्राय उस शासन प्रणाली से है जिसमें जनता द्वारा प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से शासन का संचालन किया जाता है। इसमें शासन का संचालन यद्यपि सीमित व्यक्तियों द्वारा किया जाता है,लेकिन वे सीमित व्यक्ति समस्त जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं। उन्हें जनता का आम समर्थन प्राप्त होता है।

(2) राज्य के प्रकार के रूप में लोकतन्त्र -

इस सम्बन्ध में लोकतन्त्र का अभिप्राय एक ऐसे राज्य से है जिसमें राज्य की सम्प्रभुता जनता में निहित रहती है। समस्त राजनीतिक मामलों में जनता को सर्वोपरि स्थान दिया जाता है।

(3) समाज के प्रकार के रूप में लोकतन्त्र -

इसका अभिप्राय एक ऐसी समाज व्यवस्था है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति जाति, धर्म, वर्ग,सम्पत्ति आदि के भेदभाव के बिना समान रूप से अपने अधिकारों का उपयोग करता है । लोकतान्त्रिक समाज व्यक्ति की समानता के सिद्धान्त पर आधारित होता है।

उपर्युक्त परिभाषाओं की व्याख्या से लोकतन्त्र का निम्न स्वरूप स्पष्ट होता है

लोकतन्त्र उस शासन प्रणाली का नाम है जिसमें सम्प्रभुता का निवास जनता में होता है, जो अपने लिए प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रतिनिधि का चुनाव कर शासन चलाने की आज्ञा प्रदान करती है । इस शासन प्रणाली में सभी नागरिक समान समझे जाते हैं। सभी को शासन कार्यों में भाग लेने का अधिकार होता है।

प्रजातन्त्र (लोकतन्त्र) के गुण

 प्रजातन्त्र (लोकतन्त्र) के प्रमुख गुण अग्रलिखित हैं

(1) जन-कल्याणकारी शासन -

प्रजातन्त्र शासन जन-कल्याणकारी है, क्योंकि परागे शासन सत्ता जनता या जनता के प्रतिनिधियों के हाथ में होती है और शासन जनता के लिए होता है। जनता के प्रतिनिधि अपने-अपने क्षेत्र की समस्याओं और भावश्यकताओं से पूर्ण रूप से अवगत होते हैं। अतः उनके समाधान के लिए वे यथासम्भव प्रयास करते हैं।

(2) उत्तरदायी शासन -

सर्वोत्तम शासन वह होता है जो अपने शासन सम्बन्धी कार्यों के लिए जनता के प्रति उत्तरदायी होता है । इस कसौटी पर प्रजातन्त्र खरा उतरता है, क्योंकि प्रजातन्त्र शासन में जनता के चुने हुए प्रतिनिधि जनता के प्रति उत्तरदायी होते हैं तथा कार्यपालिका के सदस्य विधायिका के प्रति उत्तरदायी होते हैं। विधायिका के सत्र में कार्यपालिका के सदस्यों से उनके शासन के विभागों के बारे में समय-समय पर प्रश्न पूछे जाते हैं, जिनका उत्तर देना उनके लिए आवश्यक होता है ।

(3) स्वतन्त्रता तथा समानता पर आधारित -

प्रजातन्त्र के आधार-स्तम्भ स्वतन्त्रता और समानता के सिद्धान्त हैं । इस शासन में व्यक्ति को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। प्रत्येक व्यक्ति को उसके विकास के लिए समान अवसर प्रदान किए जाते हैं। व्यक्तियों के मध्य किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाता है । प्रत्येक व्यक्ति को समान समझा जाता है, किसी का भी महत्त्व अन्य किसी से अधिक या कम नहीं समझा जाता है। सभी लोगों को स्वतन्त्रता के अधिकार का उपयोग करने का समान अधिकार प्राप्त होता है।

(4) जनता का नैतिक उत्थान -

इस शासन में नागरिकों का नैतिक उत्थान होता है। प्रजातन्त्र नागरिकों में राजनीतिक चेतना उत्पन्न कर कर्त्तव्यपालन, अनुशासन, उत्तरदायित्व निर्वहन, समाज-सेवा तथा देशभक्ति की शिक्षा प्रदान करता है। इस प्रकार यह नागरिकों के चरित्र का निर्माण करता है । जॉन स्टुअर्ट मिल के शब्दों में, "अन्य किसी भी शासन की अपेक्षा प्रजातन्त्र एक उत्तम तथा उच्च कोटि के राष्ट्रीय । चरित्र का विकास करता है।"

(5) राजनीतिक प्रशिक्षण -

प्रजातन्त्र नागरिकों में राजनीतिक जागृति उत्पन्न करता है। इस शासन में विभिन्न राजनीतिक अधिकारों द्वारा जनता को प्रत्यक्ष पा परोक्ष रूप से शासन में भाग लेने का अवसर प्राप्त होता है । इसके अतिरिक्त इस शासन के आधारभूत तत्त्व-विभिन्न राजनीतिक दल, निर्वाचन, निष्पक्ष समाचार-पत्र एवं आकाशवाणी, दूरदर्शन आदि नागरिकों को राजनीतिक प्रशिक्षण प्रदान करते हैं । इस सन्दर्भ में सी. डी. बर्स ने कहा है कि सभी शासन शिक्षा की एक पद्धति हैं, किन्तु सर्वोत्तम शासन स्वशासन है,जो लोकतन्त्र है।"

(6) देशभक्ति की भावना का विकास -

प्रजातन्त्र में नागरिकों को विभिन्न सामाजिक और राजनीतिक अधिकार प्राप्त होते हैं। नागरिकों को शासन में भाग लेने का अवसर प्राप्त होता है। शासन जनता के हित में कार्य करता है तथा उनके राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण करता है। अतः नागरिकों में राज्य और शासन के प्रति भक्ति भावना उत्पन्न होती है। इस प्रकार प्रजातन्त्र देशभक्ति की भावना का विकास करता है।

(7) कुशल शासन-

प्रजातन्त्र में शासन कार्यकुशल होता है। विभिन्न प्रतिभाओं के लोग निर्वाचन द्वारा चुनकर शासन में आते हैं। इसके अतिरिक्त शासन के प्रतिनिधियों में उत्तरदायित्व की भावना होती है। अतः वे कुशलता से शासन सम्बन्धी कार्य करते हैं । लोकतन्त्र के सम्बन्ध में,जैसा कि गार्नर ने कहा है, लोकप्रिय निर्वाचन, लोकप्रिय नियन्त्रण और लोकप्रिय उत्तरदायित्व की व्यवस्था के कारण दूसरी शासन व्यवस्था की अपेक्षा यह शासन अधिक कार्यकुशल होता है।"

(8) क्रान्तियों की कम सम्भावना -

 क्रान्तियाँ वहाँ होती हैं जहाँ शासन जनहित की उपेक्षा करके स्वार्थ साधन में लग जाता है । प्रजातन्त्र में शासन जनता के हित में होता है। इस शासन में जनता के प्रतिनिधि शासक होते हैं और ये जनता के प्रति उत्तरदायी होते हैं। यदि वे अपने उत्तरदायित्व को पूरा नहीं करते हैं, तो जनता को अधिकार होता है कि वह संवैधानिक तरीके से उन प्रतिनिधियों को अगले निर्वाचन में पदच्युत कर दे । अतः प्रजातन्त्र में क्रान्तियों की सम्भावना कम रहती है।

प्रजातन्त्र (लोकतन्त्र) के दोष

 प्रजातन्त्र (लोकतन्त्र) के विरोधी इस शासन के निम्नलिखित दोष मानते हैं

(1) अयोग्यता का शासन-

टेलीरैण्ड (Tellyrand),लुडोविसी (Ludovici),(Carlyle) तथा लेकी (Lecky) आदि विचारकों ने प्रजातन्त्र को अयोग्य व्यक्तियों का शासन' कहा है। इन विचारकों का मत है कि शासन सत्ता सर्वमान्य व्यक्तियों के हाथों में सौंप देना अयोग्य व्यक्तियों के शासन को स्थापित करना है। यूनानी विचारक प्लेटो ने भी प्रजातन्त्र को अज्ञानियों का शासन' कहा है । अरस्तू का भी मत है कि शासन की क्षमता कुछ विशिष्ट व्यक्तियों में ही होती है।

(2) एक व्यक्ति एक मत का सिद्धान्त गलत-

आलोचकों के अनुसार प्रजातन्त्र में एक व्यक्ति एक मत' का सिद्धान्त गलत है। यह गुण के स्थान पर संख्या पर अधिक बल देता है । इस सिद्धान्त के अनुसार एक विद्वान् और एक मूर्ख का मूल्य बराबर हो जाता है।

(3) उग्र दलबन्दी

प्रतिनिध्यात्मक प्रजातन्त्र शासन में अनेक दल निर्वाचन में भाग लेते हैं। उनमें से पूर्ण बहुमत वाला दल शासन का संचालन करता है तथा अन्यदल विरोधी पक्ष के रूप में कार्य करते हैं। प्रत्येक दल में इतनी उग्र दलीय भावना उत्पन्न हो जाती है कि दल के हित के समक्ष राष्ट्र तथा जनता का हित उपेक्षित हो जाता है। ये दल निर्वाचन में बहुमत प्राप्त करने के लिए अनैतिक साधनों का सहारा लेते हैं, जिससे गलत जनमत तैयार होता है और वास्तविक प्रजातान्त्रिक शासन की व्यवस्था असम्भव हो जाती है।

(4) व्ययशील शासन -

प्रजातन्त्र शासन अन्य शासन प्रणालियों की तुलना में अधिक व्ययशील है। इसमें प्रतिनिधियों के निर्वाचन तथा विधायकों व मन्त्रियों के पेतन, भत्ते आदि में राष्ट्र की अधिक धनराशि व्यय हो जाती है। इस शासन में सार्वजनिक नीतियों के निर्धारण तथा कानूनों के निर्माण में जटिल संसदीय परम्पराओं . के पालन के कारण अधिक समय लगता है।

(5) अस्थायी शासन-

लोकतन्त्र में समय-समय पर हुए निर्वाचनों में राजनीतिक दलों के बहुमत बदलते रहते हैं। अतः सरकारें अस्थायी होती हैं। एक सरकार के बदलने पर प्रायः उसकी सारी नीतियाँ बदल जाती हैं और पुनः नये रूप से नई नीतियाँ तैयार होती हैं। इस प्रकार लोकतन्त्र में शासन अस्थायी होता है, जिससे समाज का अहित होता है।

(6) बहुमत दल का अधिनायकत्व -

प्रजातन्त्र में बहुमत दल का शासन होता है। " अपने बहुमत के बल पर शासकीय दल अनेक जनहित विरोधी तथा जन-आकांक्षाओं के विपरीत भी कार्य करता है । इस प्रकार प्रजातन्त्र में बहुमत दल का अधिनायकत्व स्थापित हो जाता है।

(7) संकट के समय अनुपयुक्त -

आपात स्थिति का दृढ़ता के साथ सामना करने के लिए एकता तथा शीघ्र निर्णय की आवश्यकता होती है। प्रजातन्त्र में संसदीय परम्पराओं के अनुसार निर्णय लेने में अधिक समय लगता है। अनेक विषयों पर विचार वैमनस्य भी रहता है। अतः संकट के समय यह शासन पद्धति अनुपयुक्त सिद्ध होती है।

(8) अकुशल शासन -

 प्रजातन्त्र में शासन अकुशल होता है। इसमें नये-नये व्यक्ति शासन में आते रहते हैं, जो शासन संचालन में अनभिज्ञ होते हैं। अतः वे कुशलतापूर्वक शासन कार्यों का सम्पादन नहीं कर पाते हैं । सर हेनरी मेन ने प्रजातन्त्र को 'बुद्धिहीन तथा अकुशल व्यक्तियों का शासन' कहा है।

(9) नैतिक मूल्यों की उपेक्षा-

प्रजातन्त्र में नैतिक मूल्या की उपेक्षा होती है। निर्वाचन के समय सच्चाई और ईमानदारी के स्थान पर भ्रष्ट व अनौतक तरीकों और धन के माध्यम से मतों को खरीदकर विजयी होना अधिक महत्त्वपूर्ण समझा जाता है।निर्वाचन में प्राय: अधिकांश प्रत्याशी नैतिकता की उपेक्षा करके येन-केन प्रकारेण विजयी होने का प्रयास करते हैं। अतः प्रजातन्त्र अनैतिकता को जन्म देता है।

(10) बौद्धिक तथा सांस्कृतिक प्रगति का विरोधी -

प्रजातन्त्र नागरिकों की बौद्धिक तथा सांस्कृतिक प्रगति का विरोधी होता है। इसमें साहित्य, कला, विज्ञान तथा अन्य बौद्धिक प्रवृत्तियों की अभिवृद्धि नहीं होती है । इस शासन में शासकीय तथा विरोधी, सभी राजनीतिक दल अपनी शक्ति मजबूत करने के लिए गन्दी राजनीति में पड़े रहते हैं। उनके पास नागरिकों के बौद्धिक तथा सांस्कृतिक विकास के लिए कार्य करने का समय नहीं रह जाता। इसलिए सर हेनरी मेन, लेकी तथा ट्रीटस्की आदि विचारकों का मत है कि प्रजातन्त्र बौद्धिक तथा सांस्कृतिक प्रगति के प्रतिकूल है।

लोकतंत्र से आप क्या समझते हैं लोकतंत्र क्यों आवश्यक है?

लोकतंत्र एक प्रकार का शासन व्यवस्था है, जिसमे सभी व्यक्ति को समान अधिकार होता हैं। एक अच्छा लोकतंत्र वह है जिसमे राजनीतिक और सामाजिक न्याय के साथ-साथ आर्थिक न्याय की व्यवस्था भी है। देश में यह शासन प्रणाली लोगो को सामाजिक, राजनीतिक तथा धार्मिक स्वतंत्रता प्रदान करती हैं।

लोकतंत्र के सफल संचालन के लिए क्या आवश्यकता है?

Solution. लोकतंत्र के सफल संचालन के लिए सतर्क लोगों का होना आवश्यक है क्योंकि सतर्कता नागरिकों के अधिकारों और दैनिक जीवन को प्रभावित करने वाली सरकारी नीतियों के बारे में जागरूकता पैदा करती है। जागरूकता नीतियों के कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दों पर चर्चा और बहस की ओर ले जाती है।

भारतीय लोकतंत्र से आप क्या समझते हैं?

लोकतंत्र, सरकार की एक प्रणाली है जो नागरिकों को वोट देने और मतदाताओं को अपनी पसंद की विधायिका का चुनाव करने की अनुमति देती है। इसके तीन मुख्य अंग हैं: कार्यपालिका, विधायिका, न्यायपालिका।

लोकतंत्र में चुनाव की क्या आवश्यकता है?

चुनाव के द्वारा ही आधुनिक लोकतंत्रों के लोग विधायिका (और कभी-कभी न्यायपालिका एवं कार्यपालिका) के विभिन्न पदों पर आसीन होने के लिये व्यक्तियों को चुनते हैं। चुनाव के द्वारा ही क्षेत्रीय एवं स्थानीय निकायों के लिये भी व्यक्तियों का चुनाव होता है।

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