इसे सुनेंरोकेंकुंती महाराज पांडु की पत्नी थी। कुंती के विवाह के पश्चात 3 पुत्र हुए जिन्हें सारा संसार पांडव के नाम से जानता है, परंतु कुंती के विवाह के पूर्व सूर्य देव की आशीर्वाद से कर्ण नामक पुत्र भी हुआ जिसे संसार सूत पुत्र के नाम से जानता है।
शूरसेन ने कुंती भोज को क्या वचन दिया?
इसे सुनेंरोकेंसूर्य पुत्र कर्ण की मां कुंती को राजा कुंतीभोज ने गोद लिया था। शूरसेन ने कुंतीभोज को वचन दिया था कि उनके जो पहली संतान होगी, उसे कुंतिभोज को गोद दे देंगे। उसी के अनुसार राजा शूरसेन ने पृथा को, कुंतीभोज के लिए गोद दे दिया।
कुंती कितनी बहने थी?
इसे सुनेंरोकेंउनका असली नाम पृथा था। महाभारत का प्रसारण फिर से शुरू होने के बाद इससे जुड़े पात्रों की कहानी भी चर्चित हो गई हैं। एक ही एक कहानी है कुंती की। कुंती की कोई बहन नहीं अथवा भाई थे।
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पांडवों की बहन कौन थी?
इसे सुनेंरोकेंअर्जुन, दुशाला को अपनी बहन मानते थे। इसलिए वह अपनी बहन के पौत्र को जीवनदान देते हुए आगे की ओर चले गए थे। महाभारत में उल्लेख है कि दुर्योधन की माता गांधारी को महर्षि वेदव्यास ने 100 पुत्र होने का वरदान दिया था।
कुंती पिछले जन्म में कौन थी?
कर्णसंदर्भ ग्रंथ:महाभारतव्यवसाय:अंग देश के राजामुख्य शस्त्र:धनुषबाण , विजय धनुषराजवंश:पैतृक राजवंश पांडव लेकिन कुंती द्वारा जन्म के समय त्याग देना व कौरव युवराज दुर्योधन से घनिष्ठ मित्रता के चलते कौरव राजवंशी।पूर्व जन्म में अर्जुन कौन था?
इसे सुनेंरोकेंपौराणिक ग्रंथों के अनुसार, अर्जुन पूर्वजन्म में नारायण के जुड़वां भाई नर थे। नर और नारायण ने दंभोद्भवा नामक असुर का वध करने के लिए जन्म लिया था। दंभोद्भवा ने भगवान सूर्य की तपस्या करके उनसे एक हजार कवच का वरदान मांग लिया था।
कौन से ऋषि ने कुंती को देवता से संतान पाने का वरदान दिया था?
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इसे सुनेंरोकेंनागवंशी महाराज कुन्तिभोज ने कुन्ती को गोद लिया था। ये हस्तिनापुर के नरेश महाराज पांडु की पहली पत्नी थीं। कुंती का एक नाम पृथा भी था। कुंती को महर्षि दुर्वासा ने एक वरदान दिया था जिसमें कुंती किसी भी देवता का आवाहन कर सकती थी और उन देवताओं से संतान प्राप्त कर सकती थी।
कर्ण ने कुंती को क्या वचन दिया class 7?
इसे सुनेंरोकेंउत्तर – ऋषि दुर्वासा ने कुंती को वरदान दिया कि वह जिस भी देवता का ध्यान करेंगी, वह उनको अपने ही समान एक तेजस्वी पुत्र प्रदान करेंगें। उत्तर – कुंती ने सूर्य के संयोग से सूर्य के समान तेजस्वी और सुंदर बालक को जन्म दिया जो आगे चलकर कर्ण के नाम से विख्यात हुए।
कर्ण का जन्म एक सामान्य इंसानी जन्म नहीं था। उनकी माता कुंती ने एक बार दुर्वासा ऋषि की सेवा की थी जिससे प्रसन्न होकर उन्होंने वरदान में एक मन्त्र दिया था। उस मंत्र से कुंती ने सूर्य देव का आह्वान किया था और सूर्य देव और कुंती के मिलन से कर्ण का जन्म हुआ था।
इधर महल में कौरवों और पांडवों के बीच मनमुटाव आक्रामक रूप लेता जा रहा था, उधर काल एक नया अध्याय लिख रहा था। पांडवों की माता का एक और पुत्र था। कौन था वह और क्यों नहीं था वह अपने भाइयों के साथ?
कर्ण कौन था?
बचपन में कुंती ने एक बार दुर्वासा ऋषि का बहुत अच्छे तरीके से अतिथि सत्कार किया था। इससे प्रसन्न होकर, दुर्वासा ने कुंती को एक मन्त्र दिया, जिसके द्वारा वो किसी भी देवता को बुला सकती थी। एक दिन कुंती के मन में उस मन्त्र को आजमाने का खयाल आया। वह बाहर निकली तो देखा कि सूर्य अपनी पूरी भव्यता में चमक रहे थे। उनकी भव्यता देखकर वह बोल पड़ी – ‘में चाहती हूं, कि सूर्य देव आ जाएं।’
सूर्य देव आए और कुंती गर्भवती हो गयी, और एक बालक का जन्म हुआ। वो सिर्फ चौदह साल की अविवाहित स्त्री थी। उसे समझ नहीं आया कि ऐसे में सामाजिक स्थितियों से कैसे निपटा जाएगा। उसने बच्चे को एक लकड़ी के डिब्बे में रख दिया, और बिना उस बच्चे के भविष्य के बारे में सोचे, उसे नदी में बहा दिया। उसे ऐसा करने में थोड़ी हिचकिचाहट हुई, पर वो कोई भी कार्य पक्के उद्देश्य से करती थी। एक बार वो अगर मन में ठान लेतीं, तो वो कुछ भी कर सकती थी। उसका हृदय करुणा-शून्य था।
अधिरथ को मिला नन्हा कर्ण
धृतराष्ट्र के महल में कम करने वाला सारथी, अधिरथ, उस समय नदी के किनारे पर ही मौजूद था। उसकी नजर इस सुंदर डिब्बे पर पड़ी तो उसने उसको खोलकर देखा। एक नन्हें से बच्चे को देख कर वो आनंदित हो उठा, क्योंकि उसकी कोई संतान नहीं थी। उसे लगा कि ये बच्चा भगवान की ओर से एक भेंट है। वो इस डिब्बे और बच्चे को अपनी पत्नी राधा के पास ले गया। दोनों आनंद विभोर हो गए। उस डिब्बे की सुंदरता को देखकर वे समझ गए कि ये बच्चा किसी साधारण परिवार का नहीं हो सकता।
एक महान धनुर्धर बनने की इच्छा के साथ कर्ण द्रोण के पास गया। पर द्रोण ने उसे स्वीकार नहीं किया, और उसे सूतपुत्र कहकर पुकारा। सूतपुत्र का अर्थ होता है एक सारथी का पुत्र। ऐसा करके द्रोण ने इस ओर इशारा किया कि वो नीची जाती का है। इस अपमान से कर्ण को बहुत ठेस पहुँची। भेदभाव और अपमान का बारबार सामना करने की वजह से एक सीधा-सच्चा इंसान एक अधम इंसान में बदल गया। जब भी कोई उसे सूतपुत्र कहता, तो उसकी अधमता इतनी ऊँची उठ जाती, जितनी कि उसकी प्रकृति में नहीं था। द्रोण द्वारा क्षत्रिय न होने के कारण अस्वीकार किये जाने पर, कर्ण ने परशुराम के पास जाने का फैसला किया। परशुराम युद्ध कलाओं के सबसे महान शिक्षक थे।