जम्मू-कश्मीर को लेकर धारा 370 असरहीन हो चुकी है. इसके खंड एक को छोड़कर सभी प्रावधानों को सरकार ने हटा दिया है. केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने सोमवार को संसद में इसकी जानकारी दी. इसके साथ ही गृहमंत्री ने सोमवार को राज्यसभा में जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन बिल पेश कर दिया, जिसके तहत पूर्ण राज्य का दर्जा खत्म कर इसे 2 केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया गया. इस बड़े और ऐतिहासिक कदम के बाद अब इस बात की संभावना बनती दिख रही है कि जम्मू-कश्मीर को एक गैर मुस्लिम मुख्यमंत्री मिल सकता है.
वर्तमान व्यवस्था के आधार पर देखें तो 87 सदस्यीय विधानसभा में कश्मीर घाटी से 46, जम्मू क्षेत्र से 37 सीट और लद्दाख क्षेत्र से 4 सीटें आती हैं. इसके अलावा विधानसभा में राज्यपाल के पास यह अधिकार है कि अगर उसे लगता है कि सदन में महिलाओं को पर्याप्त प्रतिनिधित्व हासिल नहीं है तो वह 2 महिलाओं को नॉमिनेट कर सकता है.
चूंकि विधानसभा में कश्मीर घाटी में अन्य क्षेत्रों से ज्यादा सीटें हैं, इस लिहाज से कश्मीर क्षेत्र में जीत हासिल करने वाली पार्टी के सत्ता पर आसीन होने की संभावना काफी रहती है.
बदल जाएगा नक्शा
जम्मू एवं कश्मीर पुनर्गठन बिल 2019 राज्यसभा में पास हो चुका है और अब इसे लोकसभा में पास होना है. केंद्र शासित प्रदेश के रूप में देश के नक्शे पर आने वाले लद्दाख क्षेत्र के तहत 2 अहम और बेहद चर्चित जिले करगिल और लेह शामिल हो जाएंगे.
जबकि पुनर्गठन के बाद केंद्र शासित प्रदेश के रूप में नक्शे पर आने वाले जम्मू-कश्मीर में लेह और लद्दाख को छोड़कर शेष जिले आ जाएंगे.
फिलहाल जम्मू क्षेत्र में हिंदू बहुल आबादी रहती है तो कश्मीर क्षेत्र में मुस्लिम बहुल आबादी, जबकि लद्दाख क्षेत्र में रहने वाली बहुतायत आबादी बौद्ध समुदाय की है. राज्य की कुल आबादी का 68.31% (85,67,485) मुस्लिम और 28.44 फीसदी (35,66,674) हिंदू हैं. इनके अलावा सिख 1.87 फीसदी (2,34,848), बौद्ध 0.90 फीसदी (1,12,584), ईसाई 0.28 फीसदी (35,631) और जैन 0.02 फीसदी (2,490) हैं. हालांकि 20,082 लोग किसी धर्म को नहीं मानते हैं.
जम्मू में 37.19 फीसदी हिंदू
क्षेत्रवार विभाजित करके देखें तो जम्मू में 61.19 फीसदी आबादी मुसलमानों की है जबकि यहां पर 37.19 फीसदी आबादी हिंदुओं की है. इसके अलावा 1.41 फीसदी सिख समाज के लोग रहते हैं. वहीं कश्मीर में 93.48 फीसदी आबादी मुसलमानों की है तो 4.95 फीसदी आबादी हिंदुओं की है.
नए कानून बनने की स्थिति में जम्मू-कश्मीर से राज्य का दर्जा छीन जाएगा और केंद्र शासित प्रदेश की स्थिति में रहेगा, लेकिन वहां पर विधानसभा बरकरार रहेगी. नई सूरत बनने की स्थिति में वहां पर परिसीमन आयोग का गठन होगा और नई सीटों का निर्धारण किया जाएगा. सरकार ने विधानसभा क्षेत्रों के परिसीमन का प्रस्ताव भी कर दिया है.
22 में से 4 जिले (कठुआ, जम्मू, सांबा और उधमपुर) हिंदू बहुल जिले हैं जबकि लेह में बौद्ध समाज के लोग रहते हैं, इनके अलावा शेष 17 जिलों में मुस्लिम बहुल आबादी रहती है.
गुर्जर और बकरवाल की बड़ी भूमिका
गुर्जर और बकरवाल जम्मू-कश्मीर की तीसरी सबसे बड़ी आबादी हैं. 2011 की जनगणना के आधार पर राज्य की कुल आबादी का 11.9 फीसदी हिस्सा रहता है. घाटी के बाद जम्मू में सबसे ज्यादा गुर्जर और बकरवाल की आबादी रहती है. गुर्जर और बकरवाल भेड़ और बकरियां पालते हैं.
इन दोनों समुदायों में बड़ी संख्या इस्लाम धर्म को मानती है और पहाड़ पर रहती है, लेकिन इस समुदाय के बीच घाटी के प्रमुख दलों पीडीपी और नेशनल कॉन्फ्रेंस को लेकर कोई खास उत्साह नहीं माना जाता, ऐसे में माना जा सकता है कि परिसीमन के बाद नई व्यवस्था बनने की सूरत में यह समुदाय किसी अन्य दलों को अपना समर्थन करे.
परिसीमन होने की स्थिति में जम्मू में विधानसभा सीटों की संख्या बढ़ सकती है, तो नई व्यवस्था और देश का एक कानून चलने की सूरत में गुर्जर और बकरवाल की स्थिति मजबूत हो सकती है और कई विधानसभा क्षेत्रों में निर्णायक वोटर की भूमिका में आ सकते हैं.
जम्मू-कश्मीर में अब केंद्र शासित प्रदेश के रूप में विधानसभा चुनाव लड़ा जाएगा. परिसीमन के बाद जम्मू में सीटें बढ़ जाएंगी जबकि नई व्यवस्था के बाद कई राजनीतिक दल कश्मीर में भी जाकर चुनाव लड़ सकते हैं. ऐसे में माना जा सकता है कि वो दिन दूर नहीं जब मुस्लिम बहुल जम्मू-कश्मीर में कोई गैर-मुस्लिम समाज का नेता मुख्यमंत्री बने.
प्रतीकात्मक तस्वीर - फोटो : ANI
मोदी सरकार ने सोमवार को जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद-370 को खत्म कर दिया। इसके तुरंत बाद राजनीतिक, सैन्य एवं कूटनीतिक विशेषज्ञों के बयान आने लगे। किसी ने इस फैसले के पीछे आतंकवाद को सबसे बड़ा कारण बताया तो कोई इसे राजनीतिक मुद्दा कहा।
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि अनुच्छेद 370 को खत्म करने के पीछे मुख्य मंशा जम्मू-कश्मीर में जनसंख्या असंतुलन को सुधारना है। 2011 की जनगणना के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर में हिंदू आबादी करीब 36 लाख है, जबकि मुस्लिमों की संख्या 86 लाख।
पिछले सप्ताह दिल्ली में हुई भाजपा कोर समिति की बैठक में शामिल जम्मू-कश्मीर राज्य इकाई के नेता का कहना है कि राज्य का संपूर्ण विकास 370 के चलते नहीं हो सका है। यह किसी से छिपा नहीं है कि घाटी में आतंकवाद को कौन समर्थन दे रहा है।
अलगाववादी नेता क्या करते हैं, यह भी किसी भी छिपा नहीं है। जांच एजेंसियों की रिपोर्ट से पता चलता है कि सीमा पार के आतंकी संगठनों की मदद कौन करता है। पत्थरबाजों को भड़काने का काम कौन कर रहा है। एक ही धर्म के लोगों को नौकरियों में वरीयता मिलती है। यह सब हिंदू-मुस्लिमों के जनसंख्या असंतुलन का नतीजा है।
जनगणना 2011 के अनुसार जम्मू-कश्मीर में विभिन्न समुदायों की आबादी
क्षेत्र | हिंदू | मुस्लिम | सिख | इसाई | बौद्ध |
जम्मू | 3364618 | 1799232 | 176635 | 22512 | 3093 |
कश्मीर घाटी | 168833 | 6640957 | 55950 | 11857 | 730 |
लद्दाख | 33223 | 127396 | 2263 | 1262 | 108761 |
इनके अलावा जम्मू-कश्मीर में जैन समुदाय के करीब चार हजार लोग रहते हैं। साथ ही 25 हजार से ज्यादा कुछ ऐसे लोग भी हैं, जिनके धर्म का उल्लेख नहीं है।
11 लाख लोगों को अभी तक नहीं मिली है नागरिकता
रक्षा विशेषज्ञ कमर आगा कहते हैं, धारा-370 खत्म होने से जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद पर नकेल कसने में मदद मिलेगी। साथ ही घाटी का विकास पहले से कहीं ज्यादा तेजी के साथ होगा। नए लोगों को वहां जाने का मौका मिलेगा। ऐसा नहीं है कि कश्मीर में रहने वाले सभी लोगों का एक समान विकास हुआ है।
गुर्जर और पहाड़ी जैसे कई समुदाय, जो विकास रेखा से अभी तक दूर रहे हैं, वे आज खुश हैं। करीब 11 लाख लोग वहां पर ऐसे हैं, जिन्हें राज्य की नागरिकता नहीं मिल सकी है। यह अलग बात है कि वे लोग कई दशकों से वहां पर रह रहे हैं।
धारा 370 खत्म होने के बाद अब इन लोगों को वहां की नागरिकता मिल जाएगी। सीमा के आसपास सुरक्षा बलों के रिटायर लोगों को बसाया जा सकता है। पंडितों की वापसी का रास्ता भी अब प्रशस्त हो जाएगा। कमर आगा ने कहा, जम्मू-कश्मीर के चार-पांच जिलों को छोड़
दें तो बाकी जगह के लोगों का अनुच्छेद-370 खत्म करने के लिए केंद्र सरकार को समर्थन रहा है।