निम्नलिखित में से कौन-सा उस कृषि प्रणाली को दर्शाता है जिसमें एक ही फसल लंबे-चौड़े क्षेत्र में उगाई जाती है?
स्थानांतरी कृषि
बागवानी
रोपण कृषि
रोपण कृषि
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सरकार द्वारा किसानों के हित में किए गए संस्थागत सुधार कार्यक्रमों की सूची बनाएँ।
भारत में कृषि बहुत पहले से की जा रही है। कृषि के साधनों का तेजी से विकास होने के बाद भी आज भारत के बहुत बड़े भाग में किसान खेती के लिए मानसून और भूमि की प्राकृतिक उर्वकता पर निर्भर है।
भारत में बढ़ती जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है। ऐसे में पर्याप्त मात्रा में खाद्य उत्पादन की आवश्यकता है। इसलिए स्वतंत्रता के बाद सरकार द्वारा किसानों के हित में कई संस्थागत सुधार किये गए। इसमें खेतों की चकबंदी, सहकारिता और जमींदारी आदि को ख़त्म करने के कार्यक्रम थे। भारत की प्रथम पंचवर्षीय योजना में भूमि सुधार को प्रमुखता दी गई लेकिन भूमि के उत्तराधिकारियों विभाजन से कठनाई उत्पन्न हो गई।
हरित क्रांति और श्वेत क्रांति से भारतीय कृषि में सुधार तो हुआ परन्तु यह केवल कुछ चुने हुए क्षेत्रों तक ही सिमित रहा। इसलिए 1980 और 1990 के दशकों में अनेक भूमि विकास कार्यक्रम शुरू किए गए जो तकनीकी और संस्थागत सुधारों पर आधारित थे। सूखा, बाढ़, चक्रवात, आग तथा बीमारी के लिए फसल बीमा के प्रवाधान और किसानो को कम दर पर ऋण सुविधाएँ प्रदान करने के लिए ग्रामीण बैंको, सहकारी समितियों और बैंको की स्थापना आदि इस दिशा में उठाये गए कुछ महत्वपूर्ण कदम थे।
किसान क्रेडिट कार्ड, व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा आदि कुछ ऐसे अन्य कार्यक्रम थे, जो भारत सरकार ने किसानों के हित में शुरू किए है। इसके अतिरिक्त आकाशवाणी और दूरदर्शन पर किसानों के लिए मौसम की जानकारी के बुलेटिन और कृषि कार्यक्रम प्रसारित किए जाते है। न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा भी सरकार द्वारा की गई जिससे की किसान शोषण से बच सकें।
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दिन-प्रतिदिन कृषि के अंतर्गत भूमि कम हो रही है। क्या आप इसके परिणामों की कल्पना कर सकते हैं?
दिन-प्रतिदिन कृषि के अंतर्गत भूमि कम हो रही है। इसके निम्नलिखित परिणाम हो सकते हैं:
(i) भारत में खाद्य पदार्थ तथा उद्योगों के लिए कच्चे माल की कमी हो सकती है।
(ii) भारत को खाद्यान्नों का आयात करना पड़ेगा जिसके लिए विदेश मुद्रा देनी पड़ेगी।
(iii) गरीब किसान की हालत ओर नाज़ुक हो जाएगी और वह ऋण तले दब जायेगा।
(iv) देश में अकाल की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
(v) भारत बचत से घाटे की ओर आ सकता है।
(vi) भारत के आर्थिक स्तर में गिरावट हो सकती है।
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कृषि उत्पादन में वृद्धि सुनिश्चित करने के लिए सरकार द्वारा किए गए उपाय सुझाइए।
कृषि उत्पादन में वृद्धि सुनिश्चित करने के लिए सरकार द्वारा किए गए उपाय निम्नलिखित है-
(i) कृषि की दशा को बेहतर करने के लिए सरकार ने कृषि विश्वविद्यालय, पशु सेवाएँ, पशु जनन केंद्र, मौसम संबंधित जानकारी आदि को महत्व दिया।
(ii) भारतीय
खाद्य निगम किसानों से सीधे अनाज खरीदता है।
(iii) सरकार द्वारा किसानो को आर्थिक सहायता दी जाती है तथा रासायनिक खाद, बीज आदि उपलब्ध कराए जाते है।
(iv) कृषि के आधुनिकरण के लिए सरकार ने 'भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद' की स्थापना की है।
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चावल की खेती के लिए उपयुक्त भौगोलिक परिस्थितियों का वर्णन करें।
चावल भारत के अधिकांश लोगों का खाद्यान्न है। भारत चीन के बाद दूसरा सबसे बड़ा चावल उत्पादक देश है। चावल एक खरीफ़ की फसल है जिसे उगाने के लिए (25o सेल्सियस के ऊपर) और अधिक आद्रता (100 सेमी. से अधिक वर्षा) की आवश्यकता होती है। ऐसे क्षेत्र जहाँ वर्षा कम होती है, वहाँ चावल सिंचाई की सहायता से उगाया जाता है। चावल उत्तर और उत्तरी-पूर्वी मैदानों, तटीय क्षेत्रों और डेल्टाई प्रदेशों में उगाया जाता है। नहरों के जल और नलकूपों की सघनता के कारण हरियाणा, पंजाब, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान के कुछ कम वर्षा वाले क्षेत्रों में भी चावल की फसल उगाना संभव हो पाया है।
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भारतीय कृषि पर वैश्वीकरण के प्रभाव पर टिप्पणी लिखें।
वैश्वीकरण की स्थिति उपनिवेशिक काल में भी मौजूद थी। उन्नीसवीं शताब्दी में यूरोपीय जब भारत आए, उस समय भारतीय मसालें विश्व के विभिन्न देशो में निर्यात किए जाते थे तथा दक्षिण भारत के किसानों को प्रोत्साहित किया जाता था कि वे इन फसलों को उगाए। गरम मसाले आज भी निर्यात की जाने वाली प्रमुख वस्तु है। भारतीय किसान अपने लिए खाद्यान्न नहीं उगा सकते थे। बिहार के किसानों को नील खेती करने के लिए मजबूर किया जाता था। 1917 में चंपारन आंदोलन भी इसी लिए हुआ था।
1990 के बाद वैश्वीकरण का युग आया और भारतीय किसानों के सामने नई चुनौतियां खड़ी हुई। जिसने आर्थिक परिवेश को ही बदल दिया चाय, कपास, चावल, कॉफी, जूट और मसालें मुख्य उत्पादन थे। परन्तु फिर भी भारतीय कृषि विश्व के विकसित देशों से स्पर्धा करने में असमर्थ है क्योंकि उन देशों में कृषि को अत्यधिक सहायिकी की जाती है।
उच्च उत्पाद वाली किस्मों के बीज रसायनिक खाद और कीटनाशक, सिंचाई सुविधायें फसलों के उत्पादन के लिये आधारभूत सुविधायें है। पिछले दशकों में भारतीय कृषि में काफी परिवर्तन हुए है। 1960 में उत्पाद वाली किस्मों के बीजों में सबसे अधिक परिवर्तन हुआ। इससे कई गुना निवेश साधनों और बाज़ार आदि की सुविधाओं में बढ़ गया। इससे कृषि उत्पादन तो बढ़ा परन्तु इसके साथ ही बाज़ारों में खाद्यान्न की आपूर्ति बढ़ी। हरित क्रांति के बाद श्वेत क्रांति, पीली और नीली क्रांति आई जिससे दूध, तिलहन और मछली उत्पादन में बढ़ोतरी हुई।
1990 के दशक में कृषि व्यापार के कुछ नियमो में ढील दी गई जो 1991 के बाद भी लागू रही। इसके बाद उदारीकरण के अंतर्गत अनेक सुधार हुए। अब केवल कुछ उत्पादों जैसे कपास, प्याज आदि को छोड़कर सभी कृषि उत्पादों का निर्यात हो रहा है।
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