Jagannath Rath yatra 2022: पूरी के जगन्नाथ धाम को धरती का बैकुंठ माना जाता है. जो भगवान विष्णु के अवतार जगन्नाथ जी, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की लीला भूमि है. हर साल आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को विश्व प्रसिद्धि जगन्नाथ रथ यात्रा निकाली जाती है. इस साल 1 जुलाई 2022 से रथ यात्रा की शुरुआत हो रही है. भगवान जगन्नाथ के साथ बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र रथ पर सवार होकर नगर भ्रमण को निकलेंगे.
जगन्नाथ मंदिर के कई रहस्य है जिन्हें आज तक कोई सुलझा नहीं पाया. मान्यता है कि यहां विराजमान भगवान जगन्नाथ की मूर्ति में आज भी श्रीकृष्ण का हृदय धड़कता है. आइए जानते हैं क्या है इसके पीछे का रहस्य और 12 साल में जगन्नाथ जी की मूर्ति बदलते समय क्यों बांध दी जाती है पुजारी की आंखों पर पट्टी.
भगवान श्रीकृष्ण के हृदय का रहस्
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान श्रीविष्णु ने द्वापर युग में श्रीकृष्ण के रूप में जन्म लिया था. श्रीकृष्ण ने क्योंकि मानव रूप में जन्म लिया था इसलिए प्रकृति के नियम अनुसार उनकी मृत्यु निश्चित थी. जब श्रीकृष्ण ने देहत्याग दी तब पांडवों ने उनका अंतिम संस्कार किया. इस दौरान एक आश्चर्यजनक घटना हुई कान्हा का पूरा शरीर पंचत्व में विलीन हो गया लेकिन उनका हृदय धड़कता रहा.
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मूर्तियां बदलते वक्त बरती जाती है ये सावधानियां
मान्यता है कि आज भी जगन्नाथ जी की मूर्ति में श्रीकृष्ण का दिल सुरक्षित है. भगवान के इस हृदय अंश को ब्रह्म पदार्थ कहा जाता है. मंदिर की परंपरा के अनुसार जब हर 12 साल में मंदिर की मूर्ति बदली जाती हैं तो ऐसे में इस ब्रह्म पदार्थ को पुरानी मूर्ति से निकालकर नई मूर्ति में स्थापित कर दिया जाता है. इस दौरान कई कड़े नियम अपनाए जाते हैं.
जब नई मूर्तियां स्थापित होती हैं तो मंदिर के आसपास अंधेरा कर दिया जाता है.साथ ही जो पुजारी ये कार्य करता है उसकी आंखों में पट्टी बंधी होती है और हाथों में कपड़ा लपेट दिया जाता है. कहते हैं कि इस रस्म को जिसने देख लिया उसकी मृत्यु हो जाती है.
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तमाम अटकलों के बीच ओडिशा के पुरी में भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा शुहू हो गई है. हालांकि, इतिहास में यह पहला मौका है जब श्रद्धालु नहीं पहुंच रहे हैं. पुरी के जगन्नाथ जी की सेवा में तैनात सैकड़ों भक्तों में एक अनिल गोच्छिकर भी हैं. वह मंदिर के पुजारी हैं.
अनिल गोच्छिकर मंदिर के पुजारी होने के साथ-साथ एक बॉडी बिल्डर भी हैं. उन्हें कोई भी देककर बाहुबली ही कहेगा. उनका शरीर फौलादी लगता है. इसमें वह पुजारी की वेश-भूषा में आकर्षण का केंद्र ही रहते हैं.
कहा जाता है कि अनिल गोच्छिकर का परिवार कई पीढ़ियों से प्रभु जगन्नाथ की पूजा कर रहा है. इनके वंश के लोगों को प्रभु जगन्नाथ का अंगरक्षक कहलाना पसंद है. ये भी कहा जाता है कि मंदिर में पुराने काल में समय-समय पर आक्रमण हुए हैं. ऐसे समय में इन्हीं के परिवार के लोगों ने मंदिर के विग्रहों की सुरक्षा की है.
बता दें कि जगन्नाथपुरी मंदिर पर अबतक 17 बार आक्रमण हो चुके हैं. हर बार यहां के पुजारियों ने अपनी जान पर खेलकर विग्रहों को छिपाकर इनकी रक्षा की है. अनिल इन्हीं पुजारियों की वंश परंपरा के हैं. अनिक के परिवार की पहचान यूं तो प्रभु जगन्नाथ के अंगरक्षक के रूप में भी है. लेकिन, मंदिर के सेवायतों की व्यवस्था के बीच उन्हें प्रतिहारी सेवायत के नाम से जाना जाता है.
7 बार रह चुके हैं मिटर ओडिशा
अनिल 7 बार मिस्टर ओडिशा रह चुके हैं. वह बॉडीबिल्डिंग की दूसरी कई प्रतियोगिताओं में भी चैंपियन रह चुके हैं. नेशनल चैंपियनशिप में भी उन्हें दो बार गोल्ड और सिल्वर मेडल मिल चुका है. यही नहीं साल 2016 में इंटरनेशनल चैंपियनशिप में भी उन्हें गोल्ड मैडल मिला था. इसके अलावा नेशनल चैंपियनशिप 2017 में गोल्ड, 2018 में सिल्वर और फिर 2019 में गोल्ड मिला.
पुजारी अनिल का कहना है कि उनका परिवार कई पीढ़ियों से भगवान जगन्नाथ की सेवा में लगा हुआ है. जब-जब मुगलों या किसी अन्य ने मंदिर पर आक्रमण किया, उनके पूर्वजों ने विग्रह को श्रीमंदिर से निकालकर उनकी रक्षा की. भगवान जगन्नाथ की मूर्ति काफी भारी होती है. ऐसे में उन्हें उठाने के लिए ताकतवर होना होता है.
परिवार की रही है परंपरा
ऐसे में उनके परिवार की परंपरा रही है कि वे प्रभू की सेवा के लिए ताकतवर होने की कोशिश करते हैं. वे नियमित अखाड़ा जाते हैं. वहां वह कसरत करते हैं और लक्ष्य सिर्फ एक रखते हैं कि प्रभू की सेवा करनी है. इसे देखते हुए अनिल भी अखाड़े से लेकर जिम तक जाते हैं, जिसकी वजह से वह एक बॉडीबिल्डर बन गए हैं.
रथयात्रा के दौरान अनिल रथ के साथ-साथ चलते हैं. वह रथ को लाने और ले जाने के कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. वह मंदिर में नियमित गराबडु़ सेवा भी करते हैं. इसे प्रभु के स्नान की सेवा कहा जाता है. वहां परंपरा है कि प्रभु जगन्नाथ के स्नान के समय बड़द्वार यानी अंगरक्षक ही पानी देते हैं. उनके पास मंदिर ट्रेजरी वैन की जिम्मेदारी भी है.
अनिल गोच्छिकर कहते हैं, वह पूरी तरह से शाकाहारी हैं. वह अपनी दिनचर्या के हिसाब से अपना खान-पान रखते हैं. नियमित व्यायाम करते हैं. नाश्ते में अंकुरित मूंग, नारियल, चावल, पनीर, मशरूम, दूध, दही, फल, सोयाबीन और सलाद का सेवन करते रहते हैं. इसके अलावा वह नियमित रूप से जिम भी जाते हैं.