हिन्दू मुस्लिम शादी कैसे करे 2022 - hindoo muslim shaadee kaise kare 2022

Principles of Mohammedan Law के आर्टिकल-195 के मुताबिक याचिकाकर्ता मुस्लिम लड़की शादी के लिए योग्य है। सिर्फ इस बात से कि याचिकाकर्ता ने अपने परिवार की मर्जी के खिलाफ जाकर शादी कर ली है, उन्हें संविधान से मिले मूलभूत अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता।

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'मुस्लिम कानून में यौवन और प्रौढ़ता एक ही चीजें'
याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि मुस्लिम कानून के मुताबिक यौवन और प्रौढ़ता एक ही चीजें हैं। इसके मुताबिक माना जाता है कि 15 साल की उम्र में प्रौढ़ता हासिल हो जाती है। वकील ने बहस के दौरान यह भी कहा कि जो भी मुस्लिम लड़का या लड़की यौवन हासिल कर लेते हैं वे किसी से भी शादी के लिए आजाद हैं। उनके परिवार को इसमें दखल देने का कोई हक नहीं है।

मुस्लिम पर्सनल कानून के मुताबिक यौवन और प्रौढ़ता एक ही चीजें हैं। इसके मुताबिक माना जाता है कि 15 साल की उम्र में प्रौढ़ता हासिल हो जाती है।

बेंगलुरु. हिंदू लड़के और मुस्लिम लड़की की शादी पर कर्नाटक हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा है कि पुलिस का जो काम है वह केवल वही करे लेकिन किसी के वैवाहिक जीवन में दखलंदाजी से बचे। कोर्ट ने राज्य सरकार से भी कहा है कि वह इंटर रिलीजियस मैरिज करने वाले कपल्स को सुरक्षा प्रदान करे।


मंगलुरू में 19 साल की कॉलेज स्टूडेंट इन्शा खलील और कंडक्टर भरतराज गुम्पी (24) ने पिछले साल लव मैरिज की थी। बेटी द्वारा दूसरे धर्म में शादी किए जाने से नाराज इन्शा के पिता ने भरतराज और उसके तीन दोस्तों के खिलाफ बेटी के अपहरण और जबरिया शादी कराने का केस दर्ज करा दिया। पिछले साल नवंबर में इन्शा और भरतराज ने स्थानीय न्यूज पेपर्स में ऐड देकर अपनी शादी की घोषणा की। इन्शा ने शादी के बाद अपना नाम भी बदल लिया। केस दर्ज होने के बाद पुलिस लगातार इस कपल को परेशान कर रही थी। इन्शा के पिता ने हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की थी।

हाईकोर्ट की पुलिस को फटकार-राज्य सरकार को नसीहत


इन्शा के पिता की याचिका को खारिज करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि जब भी इस तरह की शादियां होती हैं तो अपहरण और फुसलाने के केस दर्ज कराए जाते हैं और आमतौर पर ये झूठे होते हैं। कोर्ट ने ये भी कहा कि पुलिस को अपने पॉवर का गलत इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। हाईकोर्ट ने कहा कि पुलिस केवल वही काम करे जो उसको सौंपा गया है वह किसी को परेशान न करे। अदालत ने राज्य सरकार को भी नसीहत देते हुए कहा कि इस तरह के मामलों में कपल्स को सुरक्षा दी जानी चाहिए। दरअसल, हाईकोर्ट में याचिका खारिज हो जाने के बाद इन्शा के पिता ने पुलिस में भरतराज और उसके दोस्तों के खिलाफ अपहरण का केस दर्ज करा दिया था और भरतराज ने हाईकोर्ट में इसके खिलाफ अपील की थी। हाईकोर्ट पुलिस के रवैये से नाराज था।


भरतराज की अपील पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट के जज ए.एन. देवगौड़ा ने कहा कि पुलिस की जांच केवल दिखावा ही नहीं यह जनता के पैसे और हमारे समय की बर्बादी भी है। हाईकोर्ट ने कहा कि इन्शा और भरतराज ने मर्जी से शादी की है और दोनों ही बालिग हैं। अदालत ने इन्शा के वकील की दलीलों को खारिज करते हुए भरतराज-इन्शा और दोस्तों को झूठे आरोपों में फंसाने की कोशिश कर रही है।

अहमदाबाद, जागरण संवाददाता। गुजरात धर्म स्वतंत्रता कानून के बाद अंतर धार्मिक विवाह को लेकर कानूनी तौर पर संभावनाएं क्षीण नजर आती थी लेकिन स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत हुई एक अंतर धार्मिक विवाह के मामले में हाईकोर्ट ने लड़की की कस्टडी उसके पति को सौंपने का निर्देश दिया।

गुजरात में एक मुस्लिम युवक तथा हिंदू युवती ने स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत विवाह कर साथ रहने लगे तो लड़की के पिता ने लड़के पर अपनी पुत्री के अपहरण व जबरन शादी के आरोप लगाते हुए पुलिस शिकायत दर्ज कराई। पुलिस ने कॉल डिटेल के आधार पर इन दोनों को तलाश लिया तथा लड़की को पहले नारी संरक्षण गृह में भेजा गया तथा बाद में पुलिस की ही पहल पर उसे पिता के सुपुर्द कर दिया गया। लड़की सुरेंद्रनगर जिले के रामपुर गांव की रहने वाली है तथा उसने अहमदाबाद के एक मुस्लिम युवक से प्रेम संबंध के बाद स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत विवाह कर लिया था। लड़के ने एडवोकेट रफीक लोखंडवाला के जरिए गुजरात उच्च न्यायालय में हेबियस कार्पस के तहत एक याचिका दाखिल की तथा पत्नी को उसके हवाले करने की मांग की।

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गौरतलब है कि अगस्त 2021 में ही गुजरात सरकार की ओर से पारित धार्मिक स्वतंत्रता संशोधन कानून लागू हो गया था जिसके चलते अंतर धार्मिक विवाह काफी मुश्किल तथा कानूनी पेचीदगियों से भरा हो गया था। एडवोकेट लोखंडवाला ने गुजरात उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल कर लड़के को उसकी पत्नी सुपुर्द करने की मांग रखी।

दरअसल अधिवक्ता लोखंडवाला ने अदालत को बताया कि स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत यह विवाह संपन्न हुआ है तथा इसमें लड़का अथवा लड़की की ओर से धर्म परिवर्तन का कोई प्रावधान नहीं है। ऐसे में न्यायाधीश सोनिया गोकाणी ने एक मानवीय दृष्टिकोण दिखाते हुए इस मामले की सुनवाई की तथा अपने फैसले में लड़की को उसके पति को सुपुर्द करने का निर्णय सुनाया। लंबी कानूनी जद्दोजहद के बाद अहमदाबाद की युवक को उसकी पत्नी कीकस्टडी मिली। लड़की का परिवार तथा पुलिस लगातार इस विवाह को गैरकानूनी बताते हुए पिता को ही लड़की की कस्टडी देने की मांग करते रहे लेकिन विभिन्न कानूनी पहलुओं को देखते हुए हाईकोर्ट ने इस मामले में लड़की की मर्जी तथा लड़की के बयानों को ही महत्व देते हुए अपना यह फैसला सुनाया।

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अदालत ने कई स्तर पर इस बात की भी ताकीज की कहीं लड़की किसी के दबाव में तो नहीं है तथा विवाह के बाद किसी भी पक्ष की ओर से उसे किसी तरह का प्रलोभन अथवा भाई से प्रेरित तो नहीं किया गया है। गुजरात धर्म स्वतंत्र कानून के अस्तित्व में आने के बाद अपने आप में यह पहला मामला है जिसमें उच्च न्यायालय की ओर से एक हिंदू युवती की कस्टडी उसके मुस्लिम पति को सौंपने का आदेश जारी किया गया।

लड़की के पिता के वकील जतिन सोनी ने अपने मुवक्किल की इच्छा के अनुसार लड़की की  कस्टडी पिता अथवा पुलिस को दिलाने का भरपूर प्रयास किया लेकिन उच्च न्यायालय नेलड़की के बयान व उसकी इच्छा को ध्यान में रखते हुए यह फैसला दिया। लड़की ने उच्च शिक्षा का हवाला भी दिया तथा अपने पति के साथ रहने में ही अपनी खुशी जताई जिसके बाद हाईकोर्ट में उसकी मरजी को ही सर्वोपरि मानते हुए यह फैसला सुनाया।

हिन्दू मुस्लिम शादी कैसे करे?

सबसे पहले लड़के की उम्र 21 साल और लड़की की उम्र 18 साल होनी चाहिए। कोर्ट मैरिज के लिए, आपको एक फॉर्म भरना होगा और विवाह के स्थानीय सब-रजिस्ट्रार के पास जमा करना होगा और विशेष विवाह अधिनियम के तहत एक-दूसरे से शादी करनी होगी। शादी करने का इरादा करने से एक महीने पहले आपको यह फॉर्म जमा करना होगा।

मुसलमान की शादी कैसे करते हैं?

इस्लामी कानून के अनुसार, विवाह के लिए दूल्हा-दुल्हन के अलावा काज़ी तथा गवाह (दो पुरुष या चार स्त्री गवाह) होना आवश्यक हैै। निकाह की शुरुआत मेहर की रकम को तय करने से शुरू होती है, लड़की के पिता या गार्जियन एक वली चुनते हैं जो मेहर की रकम लड़के वाले से बात कर तय करते हैं

कितने मुस्लिम हिंदू बने?

इसमें 96.63 करोड़ हिंदू और 17.22 करोड़ मुस्लिम हैं. भारत की कुल आबादी में 79.8% हिंदू और 14.2% मुस्लिम हैं. इनके बाद ईसाई 2.78 करोड़ (2.3%) और सिख 2.08 करोड़ (1.7%) हैं.

हिंदू और मुस्लिम विवाह में क्या अंतर है?

उत्तर- हिन्दू विवाह और मुस्लिम विवाह में निम्न अन्तर हैं- (1) हिन्दुओं में विवाह एक धार्मिक संस्कार है, जबकि मुसलमानों में विवाह को एक सामाजिक समझौता माना जाता है । (2) हिन्दू विवाह एक स्थायी सम्बन्ध है जिसे तोड़ना हिन्दू संस्कृति के विरुद्ध समझा जाता है। इसी कारण परम्परागत हिन्दू विधवा पुनर्विवाह को अच्छा नहीं समझते।

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