प्रश्न 4: बदलू के मन में ऐसी कौन-सी व्यथा थी जो लेखक से छिपी न रह सकी।
उत्तर : मशीनी काँच की चूड़ियों का चलन बढ़ जाने से बदलू की लाख की चूड़ियाँ अब कोई न खरीदता था। इसी कारण उसका चूड़ियों का काम बंद हो गया। यही व्यथा थी जिसे बदलू लेखक के समक्ष छिपा न सका।
प्रश्न 5: मशीनी युग से बदलू के जीवन में क्या बदलाव आया?
उत्तर : बदलू एक मनिहार अर्थात् चूड़ियाँ बनाने वाला था। उसकी बनाई लाख की रंग-बिरंगी चूड़ियाँ इतनी प्रसिद्ध थीं कि उसके गाँव के साथ-साथ दूसरे गाँवों से भी स्त्रियाँ उसकी बनाई चूड़ियाँ लेने आती थीं। अचानक मशीनी युग आन से मशीन पर बनी काँच की चूड़ियाँ अधिक बिकने लगीं और बदलू की चूड़ियाँ सबने लेनी बंद कर दीं। ऐसा होने पर उसका पैतृक पेशा जाता रहा। उसे अपना काम ही बंद करना पड़ा। अब हरदम प्रसन्नचित्त रहने वाला बदलू मन ही मन व्यथित रहने लगा।
प्रश्न 1: बदलू को किसी बात से चिढ़ थी तो काँच की चूड़ियों से’ और बदलू स्वयं कहता है – जो सुंदरता काँच की चूड़ियों में होती है लाख में कहाँ संभव है?” ये पंक्तियाँ बदलू की दो प्रकार की मनोदशाओं को सामने लाती हैं। दूसरी पंक्ति में उसके मन की पीड़ा है। उसमें व्यंग्य भी है। हारे हुए मन से, या दुखी मन से अथवा व्यंग्य में बोले गए वाक्यों के अर्थ सामान्य नहीं होते। कुछ व्यंग्य वाक्यों को ध्यानपूर्वक समझकर एकत्र कीजिए और उनके भीतरी अर्थ की व्याख्या करके लिखिए।
उत्तर :
(1) बदलू ने मेरी दृष्टि देख ली और बोल पड़ा, यही आखिरी जोड़ा बनाया था ज़मींदार साहब की बेटी के विवाह पर, दस आने पैसे मुझको दे रहे थे। मैंने जोड़ा नहीं दिया। कहा, शहर से ले आओ।
इस कथन में उसके ज़मींदार पर व्यंग्य करना है। जिस बदलू
की चूड़ियों की धूम सारे गाँव में नहीं अपितु आस पास के गाँवों में भी थी, लोग शादी-विवाह पर उसको मुहँ माँगें मूल्य दिया करते थे, ज़मींदार उसे दस आने देकर सन्तुष्ट करना चाहते थे। दूसरा व्यंग्य उसने शहर पर किया है । ज़मींदार के द्वारा उसको सिर्फ़ दस आने देने पर उसने जमींदार को चूड़ियाँ शहर से लाने के लिए कह दिया क्योंकि शहर की चूड़ियों का मूल्य उसकी चूड़ियों से सहस्त्र गुना महँगा था।
(2) आजकल सब काम मशीन से होता है खेत भी मशीन से जोते जाते हैं और फिर जो सुंदरता काँच की चूड़ियों में होती है, लाख में
कहाँ संभव है?
यहाँ पर प्रथम व्यंग्य बदलू ने मशीनों पर किया है, दूसरा व्यंग्य काँच की चूड़ियों पर। उसके अनुसार अब तो खेतों का सारा काम मशीनों से हो जाता है। आदमियों की ज़रूरत क्या है और दूसरा काँच की चूड़ियों पर कि काँच की चूड़ियाँ दिखने में इतनी सुन्दर होती है कि लाख की चूड़ियाँ भी इनके आगे फीकी लगती हैं। अर्थात् सुन्दरता के आगे दूसरी वस्तु की गुणवत्ता का कोई मूल्य नहीं है।