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फसल / नागार्जुन
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एक की नहीं,
दो की नहीं,
ढेर सारी नदियों के पानी का जादू:
एक के नहीं,
दो के नहीं,
लाख-लाख कोटि-कोटि हाथों के स्पर्श की गरिमा:
एक की नहीं,
दो की नहीं,
हज़ार-हज़ार खेतों की मिट्टी का
गुण धर्म:
फसल क्या है?
और तो कुछ नहीं है वह
नदियों के पानी का जादू है वह
हाथों के स्पर्श की महिमा है
भूरी-काली-संदली मिट्टी का गुण धर्म है
रूपांतर है सूरज की किरणों का
सिमटा हुआ संकोच है हवा की थिरकन का!
फसल कविता के रचयिता कौन है?
इन पंक्तियों के रचयिता हिंदी के जनवादी कवि 'नागार्जुन' है। इस कविता में कवि ने यह बताया है कि प्रकृति और मानव के सहयोग से ही फसलों का सृजन होता है।
फसल किसकी रचना है?
Solution : फसल . सुप्रसिद्ध कवि नागार्जुन द्वारा रचित गंभीर भावों को प्रकट करती हुई एक प्रभावपूर्ण कविता है। इसमें ग्रामीण धरती की महक भी है और मिटटी की सृजन - शक्ति की गरिमा भी कविता को पढ़ते ही खेतों में लहलहाती हुई फसल का सुंदर नैसर्गिक दृश्य आँखों के सामने छा जाता है।
फसल कविता द्वारा कवि क्या संदेश देना चाहता है?
फसल कविता संदेश देती है कि हमें सबके महत्व को समझना चाहिए। किसी एक काम के पीछे केवल एक व्यक्ति नहीं होता है। उसके पीछे अनेक व्यक्तियों का श्रम होता है। अतः हम चाहिए कि हमें प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से सबके श्रम को सराहना चाहिए।
नागार्जुन के अनुसार फसल क्या है?
कवि नागार्जुन के अनुसार फसल क्या है ? Solution : कवि के अनुसार फसलें पानी, मिट्टी, धूप, हवा और मानव-श्रम के मेल से बनी हैं। इनमें सभी नदियों के पानी का जादू समाया हुआ है। सभी प्रकार की मिट्टियों का गुण-धर्म निहित है।