एकाग्रता (एक+अग्रता) का अर्थ है किसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिये अन्य बातों पर ध्यान (या प्रयास) न लगाते हुए एक ही चीज पर ध्यान (और प्रयास) केन्द्रित करना। तप और ब्रह्मचर्य अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण पाया जाता है। तप से पापों का नाश होता है, इंद्रियों को निर्बल करता है, चित्त को शुद्ध करता है, और इस प्रकार एकाग्रता की प्राप्ति में सहायक होता है। योगदर्शन में आत्मनियंत्रण तथा ध्यान के अभ्यास द्वारा एकाग्रता प्राप्त करने का उपाय बताया गया है।
महत्व[संपादित करें]
जीवन में एकाग्रता का बड़ा महत्व है, यदि कोई इसे अपने जीवन में ढाल ले तो किसी भी असम्भव कार्य को कर सकता हैं. कोलम्बस के सम्बन्ध में कहा जाता हैं कि उसने बीस वर्षों से नयें नयें स्थानो की खोज के लिए स्वयं को केन्द्रित कर लिया था. यही वजह है कि उनकी एकाग्रता ने विश्व के समक्ष नई दुनियां की खोज करने में सक्षम हो पाया. हमारे समाज में कई सफल लोगों के उदाहरण हमारे सामने है जिन्होंने जीवन में एकाग्रता के साथ कार्य करते हुए मुकाम हासिल किया हैं. हमें इसे अपने जीवन का उद्देश्य बना लेना चाहिए, तथा एक आदत के रूप में एकाग्रता को विकसित कर लेना चाहिए.इन्हें भी देखें[संपादित करें]
- ध्यान
- योग
- मौन
बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]
जीवन में एकाग्रता
एकाग्रता क्या है ? जीवन में एकाग्रता की क्या भूमिका है ? एकाग्रता से क्या – क्या प्राप्त करने में सहायता मिलती है । एकाग्रता के बिना व्यक्ति क्या नहीं पा सकता ? आइये जानें इन सभी सवालों का जवाब…
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एकाग्रता एक कला है , जिसके आते ही सफलता निश्चित हो जाती है । कर्म, भक्ति, ज्ञान, योग और सम्पूर्ण साधनों की सिद्धि का मूलमंत्र एकाग्रता है ।
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जीवन में एकाग्रता बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है और इसके इलावा हर क्षेत्र जैसे बिज़नस, जॉब, लौकिक पढ़ाई आदि । किसी भी कार्य में सफलता का आधार एकाग्रता होती है । एकाग्रता वास्तव में एक बहुत बड़ी तपस्या है , यह निरंतर अभ्यास से हासिल होती है ।
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पवित्रता के बिना एकाग्रता का कोई मूल्य नहीं है । तुम एकाग्रता द्वारा उस अनन्त शक्ति अटूट भण्डार के साथ मिल जाते हो, जिसमें इस ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति हुई है। अपनी अभिलाषाओं को वशीभूत कर लेने के बाद मन को जितनी देर तक चाहो एकाग्र किया जा सकता है ।
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साठ वर्ष के बूढ़े में उत्साह और सामर्थ्य नजर आ सकता है यदि उसका चित्त एकाग्र हो। ध्यान और समाधि एकाग्रता के बिना सम्भव नहीं। मन में एकाग्र शक्ति प्राप्त करने वाले मनुष्य संसार में किसी में किसी समय असफल नहीं होते। एकाग्र हुआ चित्त ही पूर्ण स्थिरता को प्राप्त होता है । सुखी का चित्त एकाग्र होता है ।
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अपनी अभिलाषाओं को वशीभूत कर लेने पर मन को जितनी देर तक चाहो एकाग्र किया जा सकता है। एकाग्रता से विनय प्राप्त होती है। एकाग्रता आवेश को पवित्र और शान्त कर देती है, विचारधारा को शक्तिशाली और कल्पना को स्पष्ट करती है।
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तुम्हारी विजयशक्ति है मन की एकाग्रता । यह शक्ति मनुष्य जीवन की समस्त ताकतों को समेटकर मानसिक क्रांति उत्पन्न करती है। अनिश्चितमना पुरुष भी मन को एकाग्र करके जब सामना करने को खड़ा होता है तो आपत्तियों का लहराता हुआ समुद्र भी दुबककर बैठ जाता है ।
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एकाग्रता सिद्धि का सर्वोत्तम उपाय है यह मन को व्यर्थ की उलझनों एवं समस्याओं से दूर रखना है । जिनसे अपने लक्ष्य का सीधा संबंध हो ऐसी ही बातों और विचारों तक सीमित रहा जाए। कुछ लोग घर, परिवार , मुहल्ले , समाज , देश आदि की व्यर्थ बातों में ही अपनी शक्ति गवां देते हैं ।
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ऐसी बातों में उलझने की वृत्ति निरर्थक उत्सुकता की वृत्ति कही जाती है । यह निरर्थक उत्सुकता की वृत्ति ही हमारी विचारधारा को संकीर्ण बनाती है और इसमें उलझने से मन अस्त – व्यस्त , छिन्न – भिन्न और चंचल ही बना रहता है ।
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जिसका चित्त एकाग्र नहीं है वह सुनकर भी कुछ नहीं समझता। संसार के प्रत्येक कार्य में विजय पाने के लिए एकाग्रचित् होना आवश्यक है । जो लोग चित्त को चारों ओर बिखेरकर काम करते हैं उन्हें सैंकड़ों वर्षों तक सफलता का मूल्य मालूम नहीं होता। इसलिए जीवन में एकाग्रता जरूरी हैं।
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जबरदस्त एकाग्रता के बिना कोई भी मनुष्य सूझ-बूझ वाला, आविष्कारक, दार्शनिक, लेखक, मौलिक कवि या शोधकर्ता नहीं हो सकता। विनय प्राप्त करने के लिए एकाग्रता की शरण लीजिए। सब धर्मों से महान् ईश्वरत्व वरण और इन्द्रियों की एकाग्रता है।
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