भारत-बांग्लादेश संयुक्त नदी आयोग
- 19 Dec 2019
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प्रीलिम्स के लिये
फेनी नदी विवाद, फेनी नदी की भौगोलिक स्थिति
मेन्स के लिये
भारत-बांग्लादेश संबंधों में नदी जल विवाद
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत-बांग्लादेश के बीच होने वाली संयुक्त नदी आयोग (Joint River Commission- JRC) की बैठक को बांग्लादेश द्वारा निरस्त कर दिया गया। यह बैठक भारत बांग्लादेश सीमा पर स्थित फेनी नदी के जल के बँटवारे से संबंधित थी।
मुख्य बिंदु:
- भारत और बांग्लादेश आपस में 54 नदियाँ साझा करते हैं। ध्यातव्य है कि इस विषय पर एक द्विपक्षीय संयुक्त नदी आयोग (JRC) है जो दोनों देशों के मध्य स्थित नदियों से परस्पर लाभ प्राप्त करने तथा समय-समय पर नदी संबंधी मुद्दों पर चर्चा करने के लिये बैठकें करता है।
- अक्तूबर 2019 में दोनों देशों के मध्य JRC की बैठक हुई जिसमें दोनों देशों के जल संसाधन सचिव शामिल हुए। इसके माध्यम से दोनों देशों के बीच स्थित सात नदियों- मनु, मुहुरी, खोवाई, गुमटी, धरला, दूधकुमार तथा फेनी के जल संबंधी आँकड़े एकत्रित करने और जल-साझेदारी से संबंधित समझौतों पर सहमति हुई।
- नवंबर, 2019 में दोनों देशों के मध्य एक समझौता हुआ था। इसके तहत भारत फेनी नदी के 1.82 क्यूसेक (क्यूबिक फीट प्रति सेकंड) जल को त्रिपुरा के सबरूम शहर में पेय जल मुहैया कराने के लिये प्रयोग में ला सकता है।
- उपरोक्त समझौतों को अंतिम रूप देने के उद्देश्य से 18 दिसंबर 2019 को दोनों देशों के मध्य JRC की बैठक होना तय किया गया था।
फेनी नदी विवाद
(Feni River Dispute):
- यह नदी भारत बांग्लादेश की सीमा पर स्थित है। इसका उद्गम दक्षिणी त्रिपुरा ज़िले में स्थित है।
- यह नदी त्रिपुरा के सबरूम शहर से होते हुए बांग्लादेश में प्रवेश करती है तथा बंगाल की खाड़ी में गिरती है।
- इस नदी के जल के बँटवारे का विवाद काफी समय से लंबित है। वर्ष 1958 में इसके लिये नई दिल्ली में सचिव स्तर की बैठक हुई थी।
- बांग्लादेश की तरफ से यह आरोप लगाया जाता है कि फेनी नदी का पानी काफी समय से भारत की ओर से पंपों द्वारा निकला जाता है।
- सबरूम त्रिपुरा के दक्षिणी किनारे पर स्थित एक शहर है। यह शहर पेयजल की समस्या से ग्रस्त है तथा इस क्षेत्र के भू-जल में लौह तत्त्व अत्यधिक मात्रा में मौजूद है।
- त्रिपुरा के जल संसाधन विभाग के अनुसार, बांग्लादेश द्वारा आपत्ति व्यक्त किये जाने के बाद फेनी नदी से जुड़ी 14 परियोजनाएँ वर्ष 2003 से ही रुकी हुई हैं जिसके कारण इस क्षेत्र के गाँवों में सिंचाई प्रभावित हो रही है।
संयुक्त नदी आयोग
(Joint River Commission-JRC):
- इस आयोग की स्थापना वर्ष 1972 में इंडो-बांग्लादेश शांति संधि के तहत दोनों देशों के मध्य स्थित नदियों के जल के बँटवारे हेतु की गई थी।
- इसका उद्देश्य था कि परस्पर सहयोग द्वारा दोनों देशों के मध्य पड़ने वाली नदियों के जल का अधिकतम उपयोग किया जा सके।
- JRC के प्रमुख दोनों देशों के जल संसाधन मंत्री होते हैं।
स्रोत: द हिंदू
बांग्लादेश में करीब 400 नदियां हैं और यहां के विशेषज्ञों की मानें तो देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था नदियों पर ही निर्भर है. भारत की तरह ही बांग्लादेश भी कृषि उत्पादन पर बहुत हद तक निर्भर है. वहीं 54 नदियां ऐसी हैं जो पड़ोसी देश भारत के साथ हैं.
भारत और बांग्लादेश के बीच 54 नदियां हैं और गंगा सबसे अहम है.
बांग्लादेश अपनी आजादी के 50 साल पूरे होने का जश्न मना रहा है और 26 मार्च को उत्सव में शामिल होने के लिए भारत से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी देश पहुंचने वाले हैं. भारत और बांग्लादेश के बीच आपसी सहयोग का इतिहास बहुत पुराना है. दोनों देश राजनीतिक, सांस्कृतिक और सैन्य मोर्चे पर एक साथ हैं.
कुछ मसले ऐसे भी हैं जिन्हें लेकर हमेशा विवाद रहता है और ऐसा ही एक मसला है गंगा के पानी के बंटवारे का. भारत और बांग्लादेश के बीच गंगा के पानी के बंटवारे को लेकर एक संधि है जो साल 2026 में खत्म हो जाएगी. जानिए इस पूरे समझौते के बारे में.
1996 में हुआ था समझौता
भारत और बांग्लादेश के बीच सन् 1996 में गंगा जल संधि हुई थी. इस संधि का मकसद दोनों देशों के बीच उस तनाव को होने से रोकना था जो पानी से जुड़ा था. तत्कालीन भारतीय पीएम एचडी देवेगौड़ा और शेख हसीना ने उस समय इस समझौते पर साइन किए थे.
पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले में फरक्का बैराज है. इस बांध में जनवरी से मई तक पानी का बहाव कम रहता है. इस समझौते के तहत इस बांध में पानी का बहाव सुनिश्चित करना था.
जो संधि दोनों देशों के बीच हुई उसके तहत अगर पानी की उपलब्धता 75,000 क्यूसेक बढ़ती है तो भारत के पास 40,000 क्यूसेक पानी लेने का अधिकार है. अगर फरक्का बांध में 70,000 क्यूसेक से कम पानी है तो फिर बहाव को दोनों देशों के बीच बांटा जाएगा.
जबकि अगर बहाव 70,000 से 75,000 क्यूसेक तक रहता है तो फिर बांग्लादेश को 35,000 क्यूसेक पानी दिया जाएगा. इस समझौते की अवधि 30 साल की है.
बांग्लादेश लगाता है भारत पर आरोप
बांग्लादेश में इस समझौते का हमेशा से विरोध होता आया है. कई लोगों का मानना है कि समझौता भारत के पक्ष में है. साल 2017 में जब हसीना भारत दौरे पर आई थीं तो उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि जो भी समझौते भारत के साथ हुए हैं वो सभी बांग्लादेश के हित में है.
दो बड़ी नदियां गंगा और ब्रह्मपुत्र, भारत से बहते हुए बंगाल की खाड़ी में जाकर गिरती हैं. इन दोनों ही नदियों को बांग्लादेश की जीवन रेखा करार दिया जाता है. इन नदियों से निकलने वाली छोटी-छोटी नदियां देश के औद्योगिक विकास में सहायक मानी जाती हैं.
भारत की 54 नदियां बांग्लादेश में
बांग्लादेश में करीब 400 नदियां हैं और यहां के विशेषज्ञों की मानें तो देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था नदियों पर ही निर्भर है. भारत की तरह ही बांग्लादेश भी कृषि उत्पादन पर बहुत हद तक निर्भर है. वहीं 54 नदियां ऐसी हैं जो पड़ोसी देश भारत के साथ हैं.
इसमें से सिर्फ एक नदी ही ऐसी है जिसकी धारा ऊपर की तरफ बढ़ती है जबकि 53 नदियां दक्षिण दिशा में भारत से बहती हुई आती हैं. बांग्लादेश नेशनल रीवर कंजरवेशन कमीशन की मानें तो ऐसे मं भारत के पास पानी के बहाव को रोकने के सभी संसाधन मौजूद हैं.
गंगा, बांग्लादेश के लिए भी अहम
गंगा को बांग्लादेश के लिए पानी का एक अहम स्त्रोत माना जाता है. बांग्लादेश के उत्तर और उत्तर पश्चिम क्षेत्र में बहने वाली नदियों के जल बहाव को बरकरार रखने के लिए गंगा का पानी सहायक होता है. बांग्लादेश की तरफ से कई बार ये दावा किया गया है कि पड़ोसी भारत संधि की शर्तों को बदलने की कोशिशें कर रहा है.
भारत जो दुनिया की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था है, वह दक्षिण एशिया में भी बड़ी पकड़ रखता है. बांग्लादेश में विशेषज्ञ अक्सर भारत पर आरोप लगाते हैं कि वो उनके देश की चिंताओं को नजरअंदाज कर रहा है. फिलहाल देखना होगा कि इस संधि का भविष्य क्या होता है और इस पर बरकरार तनाव कैसे दूर होगा.
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