आम तौर पर 'अखाड़ा' शब्द सुनते ही पहलवानी और कुश्ती का ध्यान आता है लेकिन साधु-संतों के कई अखाड़े हैं. कुंभ में उनके बीच ज़ोर-आज़माइश दिखती रही है, लेकिन धार्मिक वर्चस्व के लिए.
शाही सवारी, रथ, हाथी-घोड़े की सजावट, घंटा-बाजे, नागा-अखाड़ों के करतब और यहाँ तक कि तलवार और बंदूक तक का प्रदर्शन होता है.
अखाड़े एक तरह से हिंदू धर्म के मठ कहे जा सकते हैं.
शुरु में केवल चार प्रमुख अखाड़े थे, लेकिन वैचारिक मतभेद की वजह से उनका बंटवारा होता गया और आज 13 प्रमुख अखाड़े हैं.
अखाड़े अपनी-अपनी परंपराओं में शिष्यों को दीक्षित करते हैं और उन्हें उपाधि देते हैं
श्रद्धालु जहाँ पुण्य कमाने की इच्छा लिए संगम पर पहुँचते हैं, वहीं साधुओं का दावा है कि वे कुंभ पहुंचते हैं गंगा को निर्मल करने के लिए. उनका कहना है कि गंगा धरती पर आने को तैयार नहीं थीं, जब उन्होंने धरती को पवित्र किया, तब गंगा आईं.
माना जाता है कि आदि शंकराचार्य ने सदियों पहले बौद्ध धर्म के बढ़ते प्रसार को रोकने के लिए अखाड़ों की स्थापना की थी. कहा जाता है कि जो शास्त्र से नहीं माने, उन्हें शस्त्र से मनाया गया.
लेकिन कहीं इस बात के ऐतिहासिक साक्ष्य नहीं मिलते कि आदि शंकराचार्य ने अखाड़ों की शुरुआत की. आदि शंकराचार्य का जीवनकाल आठवीं और नवीं सदी में था, अखाड़ों की स्थापना के बारे में तरह-तरह की कहानियां और दावे हैं, लेकिन पुख्ता तौर पर कुछ कहना मुश्किल है.
आवाह्न अखाड़ा, अटल अखाड़ा, महानिर्वाणी अखाड़ा, आनंद अखाड़ा, निर्मोही अखाड़ा, दशनामी, निरंजनी और जूना अखाड़ों का भी कई सदियों का इतिहास है. सभी अखाड़ों के अपने-अपने विधि-विधान और नियम हैं.
मोटे तौर पर 13 अखाड़े तीन समूहों में बँटे हुए हैं- शैव अखाड़े जो शिव की भक्ति करते हैं, वैष्णव अखाड़े विष्णु के भक्तों के हैं और तीसरा संप्रदाय उदासीन पंथ कहलाता है. उदासीन पंथ के लोग गुरु नानक की वाणी से बहुत प्रेरित हैं, और पंचतत्व यानी धरती, अग्नि, वायु, जल और आकाश की उपासना करते हैं.
अखाड़े जहां खुद को हिंदू धर्म के रक्षक के तौर पर देखते हैं, उनमें अनेक बार आपस में हिंसक संघर्ष हुए हैं, यह संघर्ष अक्सर इस बात को लेकर होता है कि किसका तंबू कहाँ लगेगा, या कौन पहले स्नान करेगा.
1954 के कुंभ में मची भगदड़ के बाद, टकराव और अव्यवस्था को टालने के लिए अखाड़ा परिषद की स्थापना की गई, जिसमें सभी 13 मान्यता-प्राप्त अखाड़ों के दो-दो प्रतिनिधि होते हैं, और आपस में समन्वय का काम इसी परिषद के ज़रिए होता है.
देश भर में बहुत सारे बाबा-संत-महंत और धर्मगुरू ऐसे हैं जिन्हें अखाड़ा परिषद मान्यता नहीं देता, अखाड़ा परिषद फ़र्ज़ी बाबाओं और स्वयंभू शंकराचार्यों की सूची जारी की थी और उन्हें ढोंगी बताया था.
इन अखाड़ों का ठिकाना कई तीर्थों और शहरों में है लेकिन जहां कहीं भी कुंभ लगता है, वे एक साथ जुटते हैं.
हिन्दू संत धारा में नागा साधुओं का राष्ट्र और धर्म की रक्षा हेतु अहम योगदान रहा है। कालांतर में ये साधु योद्धा होते हैं। हालांकि आज युद्ध नहीं होते ऐसे में उक्त साधुओं की दिनचर्या में भी फर्क पड़ा है। समय के साथ सब कुछ बदलता रहता है, लेकिन एक बात है जो नहीं बदलती और वह यह कि नागा साधु बनने के लिए कड़ी प्रक्रिया से गुजरना होता है जो कि किसी सैनिक की ट्रेनिंग की तरह होती है। आओ जानते हैं नागा साधुओ के बारे में वह सबकुछ जो जाना जा सकता है मात्र दो पेज में।
1. अर्द्धकुंभ, महाकुंभ और सिंहस्थ के दौरान नागा साधु बनाए जाने की प्रक्रिया शुरू होती है। संत समाज के 13 अखाड़ों में से 7 अखाड़े ही नागा बनाते हैं। ये हैं- जूना, महानिर्वाणी, निरंजनी, अटल, अग्नि, आनंद और आवाहन अखाड़ा।
2. नागा साधु बनने के लिए सर्वप्रथम ब्रह्मचर्य की दीक्षा दी जाती है। दीक्षा के बाद अखाड़े में शामिल होकर व्यक्ति 3 साल अपने गुरुओं की सेवा करता है। वहां उसे धर्म, दर्शन और कर्मकांड आदि को समझना होता है। इस परीक्षा को पास करने के बाद महापुरुष बनाने की दीक्षा प्रारंभ होती है।
3. कुंभ के दौरान उसे अगली प्रक्रिया में संन्यासी से महापुरुष बनाया जाता है जिसकी तैयारी किसी सेना में शामिल होने जैसी होती है। कुंभ में पहले उसका मुंडन करके नदी में 108 डुबकी लगवाई जाती है, इसके बाद वह अखाड़े के 5 संन्यासियों को अपना गुरु बनाता है।
4. महापुरुष बन जाने के बाद उन्हें अवधूत बनाए जाने की तैयारी शुरू होती है। अवधूत बनाने के लिए उस साधु का जनेऊ संस्कार करते हैं और उसके बाद उसे संन्यासी जीवन की शपथ दिलवाई जाती है। शपथ के बाद उसका पिंडदान करवाया जाता है। इसके बाद बारी आती है दंडी संस्कार की और फिर होता है पूरी रात 'ॐ नम: शिवाय' का जाप।
5. जाप करने के बाद भोर होते ही व्यक्ति को अखाड़े ले जाकर उससे विजया हवन करवाया जाता है और फिर गंगा में 108 डुबकियों का स्नान होता है। डुबकियां लगवाने के बाद अखाड़े के ध्वज के नीचे दंडी त्याग करवाया जाता है। इस संपूर्ण प्रक्रिया को 'बिजवान' कहा जाता है।
6. अंतिम परीक्षा दिगम्बर और फिर श्रीदिगम्बर की होती है। दिगम्बर नागा एक लंगोटी धारण कर सकता है, लेकिन श्रीदिगम्बर को बिना कपड़े के रहना होता है। श्रीदिगम्बर नागा की इन्द्री तोड़ दी जाती है।
सिंहस्थ में नागा साधुओं की लोकप्रियता है। संन्यासी संप्रदाय से जुड़े साधुओं का संसार और गृहस्थ जीवन से कोई लेना-देना नहीं होता। गृहस्थ जीवन जितना कठिन होता है उससे सौ गुना ज्यादा कठिन नागाओं का जीवन है।
यहां प्रस्तुत है नागा से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी
1. नागा अभिवादन मंत्र : ॐ नमो नारायण।
2. नागा का ईश्वर : शिव के भक्त नागा साधु शिव के अलावा किसी को भी नहीं मानते।3. नागा वस्तुएं : त्रिशूल, डमरू, रुद्राक्ष, तलवार, शंख, कुंडल, कमंडल, कड़ा, चिमटा, कमरबंध या कोपीन, चिलम, धुनी के अलावा भभूत आदि।4. नागा का कार्य : गुरु की सेवा, आश्रम का कार्य, प्रार्थना, तपस्या और योग क्रियाएं करना।