भुखमरी के मामले में भारत की स्थिति गंभीर है. गुरुवार को जारी ग्लोबल हंगर इंडेक्स में ये बात सामने आई है.
दुनियाभर के विकासशील देशों में भुखमरी की समस्या पर इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट में भारत 119 देशों में से 100वें पायदान पर है.
भारत- बांग्लादेश और नेपाल जैसे देशों से भी पीछे है. रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में बाल कुपोषण से स्थिति और बिगड़ी है.
दरअसल हंगर इंडेक्स दिखाता है कि लोगों को खाने की चीज़ें कैसी और कितनी मिलती हैं.
फिर खाने की बर्बादी क्यों?
एक और जहां भारत भूख की गंभीर समस्या से जूझ रहा है, वहीं दूसरी और देश में बड़े पैमाने पर खाने की बर्बादी की जाती है.
खाने की बर्बादी भुखमरी का एक अहम कारण है. संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के मुताबिक भारत में 40 फ़ीसदी खाना बर्बाद हो जाता है. इन्हीं आंकड़ों में कहा गया है कि यह उतना खाना होता है जिसे पैसों में आंके तो यह 50 हज़ार करोड़ के आसपास पहुंचेगा.
आंकड़ों पर ना भी जाएं, तो भी हम रोज़ाना अपने आस-पास ढेर सारा खाना बर्बाद होते हुए देखते ही हैं. शादी, होटल, पारिवारिक और सामाजिक कार्यक्रमों, यहां तक की घरों में भी कितना खाना यू हीं फेंक दिया जाता है.
अगर ये खाना बचा लिया जाए और ज़रूरतमंदों तक पहुंचा दिया जाए तो कई लोगों का पेट भर सकता है.
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में खाने का पर्याप्त उत्पादन होता है, लेकिन ये खाना हर जरूरतमंद तक नहीं पहुंच पाता.
भूख से पीड़ित दुनिया की 25 फ़ीसदी आबादी भारत में रहती है. भारत में करीब साढ़े 19 करोड़ लोग कुपोषित हैं.
इसमें वो लोग भी हैं जिन्हें खाना नहीं मिल पाता और वो लोग भी हैं जिनके खाने में पोषण की कमी होती है.
कैसे रोकें खाने की बर्बादी?
खाने की बर्बादी रोकने के लिए हर इंसान को व्यक्तिगत रूप से ज़ागरुक होने की ज़रूरत है. जितना खाना है उतना ही लें. अगर घर में खाना बच जाता है तो अपने आस-पास किसी ज़रूरतमंद को दें.
शादी, पार्टी, होटल में भी ऐसा ही किया जा सकता है, वैसे कई संस्थाएं ऐसी हैं जो लोगों का बचा हुआ खाना एकत्रित करके उसे ज़रूरतमंद लोगों तक पहुंचाने का दावा करती हैं.
ऐसी ही एक संस्था रॉबिन हुड आर्मी को शुरू करने वाले संचित जैन बताते हैं कि दिल्ली की एक शादी में बचे खाने से कई बार पांच सौ से ढाई हज़ार लोगों का पेट भर जाता है.
संचित जैन खाने की चीज़ों की बर्बादी की वजह सप्लाई चेन का कमज़ोर होना बताते हैं. वो कहते हैं खेतों से अनाज निकलकर मंडी तक तो पहुंच जाता है, लेकिन भंडारण की सुविधाएँ अच्छी नहीं होने और समय पर आगे सप्लाई नहीं किए जाने की वजह से मंडियों में ही सड़ जाता है.
"सप्लाई चेन में खामी के चलते कई बार खाने की चीज़ों के दाम बढ़ जाते हैं."
रॉबिन हुड आर्मी का दावा है कि वे होटलों से एकत्रित किया हुआ खाना झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले लोगों तक पहुंचाते हैं.
वैसे सच्चाई यही है कि गैर-सरकारी संस्थाओं के अलावा सरकार भी कई बार खाने की बर्बादी पर चिंता जता चुकी है.
हाल ही में जब केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री हरसिमरत कौर बादल अमरीका गईं तो वहां उन्होंने भारत में खाने की बर्बादी रोकने को सरकार की प्राथमिकता बताया.
हालांकि आम लोगों की कोशिशों से भी तस्वीर बदल सकती है. इसी साल अगस्त महीने में चेन्नई की एक महिला ईसा फातिमा जैसमिन ने एक ऐसी कोशिश शुरू की है जिससे खाने की बर्बादी कम हो रही है और गरीबों का पेट भी भर रहा है.
इमेज स्रोत, FACEBOOK/THE PUBLIC FOUNDATION
उन्होंने चेन्नई के बेसेंट नगर में एक 'कम्युनिटी फ्रिज़' लगवाया है. इस फ्रिज़ में आस पास के आम लोग और होटल के कर्मचारी बचा हुआ खाना लाकर रखते हैं. जिसका इस्तेमाल ज़रूरतमंद लोग अपनी भूख मिटाने के लिए करते हैं.
हालांकि ऐसी कोशिशों का दायरा सीमित जगह तक ही देखने को मिल पाता है. अगर सभी जगहों पर बचे हुए खाने का समुचित प्रबंध हो तो करोड़ों लोगों का पेट भर सकता है.
वैश्विक भुखमरी सूचकांक के आंकड़ों से स्पष्ट है कि भारत में भुखमरी और कुपोषण को खत्म करना अब एक बहुत बड़ी चुनौती बन चुकी है। दुर्भाग्य की बात है कि भारत में भुखमरी और कुपोषण की समस्या को खत्म करने को लेकर कोई सकारात्मक प्रयास नहीं हुए हैं।
‘जिस देश का बचपन भूखा है, उस देश की जवानी क्या होगी’।
भूख को दिखाता यह शेर हमें भारत की मौजूदा भुखमरी परिदृश्य की असली तस्वीर बखूबी बयां कर हमें सोचने पर मजबूर करता है। भारत देश की एक बहुत बड़ी आबादी गरीबी रेखा के नीचे अपना जीवन बसर कर रही है और उसके लिए रोटी, कपड़ा और मकान की व्यवस्था करना सरकार के सामने बहुत बड़ी चुनौती है।
भुखमरी के मामले में भारत की स्थिति बहुत ही गंभीर, शर्मनाक और चिंताजनक है। अक्टूबर 2019 को जारी ग्लोबल हंगर इंडेक्स में फिर से भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि को धब्बा लगा है। वैश्विक भुखमरी सूचकांक 2019 में कुल 117 देशों को शामिल किया गया, जिसमें भारत 102वें पायदान पर है। वैश्विक भुखमरी सूचकांक 2019 में चीन 25वें, पाकिस्तान 94, बांग्लादेश 88वें, नेपाल 73वें, म्यांमार 69वें और श्रीलंका 66 वें पायदान पर है। हैरानी से भी बड़ी शर्म की बात ये है कि ग्लोबल हंगर इंडेक्स (जीएचआई) 2019 के मुताबिक भारत दक्षिण एशिया में अपने पड़ोसियों- पाकिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका से पीछे है।
ग्लोबल हंगर इंडेक्स, यानि पीयर-रिव्यूड वार्षिक रिपोर्ट है, जिसे आयरलैंड की कन्सर्न वर्ल्डवाइड तथा जर्मनी की वेल्थुंगरहिल्फे ने संयुक्त रूप से प्रकाशित किया है। इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट ने ‘ग्लोबल हंगर इंडेक्स’ की शुरुआत साल 2006 में की थी। वेल्ट हंगरलाइफ नाम की एक जर्मन संस्था ने साल 2006 में पहली बार ‘ग्लोबल हंगर इंडेक्स’ जारी किया था।
इसे भी पढ़ें: पड़ोसियों के पास संसाधन कम हैं मगर भुखमरी से बेहतर तरीके से निपट रहे
वैश्विक भुखमरी सूचकांक में दुनिया के 117 देशों में इस साल भारत का स्कोर 30.3 है जो इसे ‘सीरियस हंगर कैटेगरी’ में लाता है। हैरानी की बात यह है कि 117 देशों में भारत 102वें स्थान पर है और पाकिस्तान 94वें स्थान पर। वैश्विक भुखमरी सूचकांक 2019 की रिपोर्ट में बताया गया है कि नेपाल (73), श्रीलंका (66), बांग्लादेश (88), म्यामां (69) और पाकिस्तान (94) जैसे भारत के पड़ोसी देश भी ‘गंभीर’ भुखमरी की श्रेणी में हैं लेकिन उन्होंने भारत से बेहतर प्रदर्शन किया है।
वैश्विक भुखमरी सूचकांक में जितने कम प्वॉइंट्स होते हैं वह उस देश के ठीक हालात की ओर इशारा करते हैं। ‘ग्लोबल हंगर इंडेक्स’ में भुखमरी की स्थिति दिखाने के लिए पांच श्रेणियां बनाई गई हैं- 0 से 9.9 मध्यम, 10.0 से 19.9 मध्यम, 20.0 से 34.9 गंभीर, 35.0 से 49.9 भयावह और 50.0 को अति भयावह। वैश्विक भुखमरी सूचकांक में अंक की चार संकेतकों के आधार पर गणना की जाती है- अल्पपोषण, बच्चों के कद के हिसाब से कम वजन होना, बच्चों का वजन के हिसाब से कद कम होना और बाल मृत्युदर।
वैश्विक भुखमरी सूचकांक के आंकड़ों से स्पष्ट है कि भारत में भुखमरी और कुपोषण को खत्म करना अब एक बहुत बड़ी चुनौती बन चुकी है। दुर्भाग्य की बात है कि भारत में भुखमरी और कुपोषण की समस्या को खत्म करने को लेकर कोई सकारात्मक प्रयास नहीं हुए हैं। देश में भुखमरी और कुपोषण से मुक्ति के लिए यूं तो हर साल करोड़ों, अरबों रूपए खर्च होने के बाद भी समस्या अपने भयावह रूप में बनी हुई है।
भारत में आज भी करोड़ों की संख्या में ऐसे लोग हैं, जिनके लिए दो वकत पेट भर भोजन जुटा पाना एक चुनौती से काम नहीं है। मेरा मानना है कि देश में योजनाएं खूब बनती हैं, लेकिन उनका उचित कार्यान्वयन नहीं हो पाता। सरकारी योजनाओं की हकीकत यह है कि समाज के वास्तविक जरूरतमंदों तक योजनाओं की पहुंच आज भी नहीं है।
‘द स्टेट ऑफ द वर्ल्डस चिल्ड्रन 2019’ में यूनाइटेड नेशन्स चिल्ड्रेंस फंड (यूनिसेफ) ने कहा कि इस आयु वर्ग में हर दूसरा बच्चा किसी न किसी रूप में कुपोषण से प्रभावित है। भारत में पांच वर्ष से कम आयु के बच्चों में 69 फीसद मौतों का कारण कुपोषण है। अकेले 2018 में 8,82,000 बच्चों की मौत कुपोषण की वजह से हुई है।
एक तरफ देश के नेता बार-बार कह रहे हैं कि भारत 2024 तक 5 ट्रिलियन यानि 5 हजार अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था की और अग्रसर है वहीं दूसरी तरफ भारत की कैसी विडंबना है कि आजादी के सात दशक बाद भी देश में करोड़ों लोगों को दो वक्त की रोटी नहीं मिल रही है।
उल्लेखनीय है कि संयुक्त राष्ट्र के भोजन व कृषि संगठन की रिपोर्ट ‘दुनिया में खाद्य सुरक्षा और पोषण की स्थिति- 2019’ के अनुसार, दुनियाभर में सबसे ज्यादा 14.5 प्रतिशत यानि 19.44 करोड़ कुपोषित भारत में हैं। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की रिपोर्ट के हिसाब से भारत में पैदा होने वाला 40 प्रतिशत भोजन व्यर्थ हो जाता है, यह मात्रा ब्रिटेन में हर साल उपयोग होने वाले भोजन के बराबर है। संयुक्त राष्ट्र के भोजन व कृषि संगठन की रिपोर्ट कहती है कि भारत में करोड़ों लोग हैं जिन्हें दो वक्त का भोजन नसीब नहीं है, इनमें से ज्यादातर को भूखे ही सो जाना पड़ता है।
यह बहुत ही विचारणीय और चिंतनीय है कि भारत की भुखमरी पर नवीनतम आंकड़े चिंता पैदा करते हैं कि तमाम योजनाओं के बावजूद देश में भुखमरी और कुपोषण की स्थिति पर लगाम नहीं लगायी जा सकी है।
वैश्विक भूख सूचकांक (जीएचआई) के आंकड़ों पर नजर डालें तो मोदी सरकार भुखमरी दूर करने में मनमोहन सरकार से भी फिसड्डी साबित हुई है। मनमोहन सिंह के शासनकाल में ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2014 में 77 देशों की रैंकिंग में भारत 55वें स्थान पर था, तो वहीं 2019 में मोदी सरकार के शासनकाल में वैश्विक भूख सूचकांक में भारत का स्थान बढ़कर 102 पर हो गया है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत साल 2015 में 80वें स्थान पर, साल 2016 में 97वें स्थान पर, साल 2017 में 100वें स्थान पर और साल 2018 में 103वें स्थान पर था इसलिए बिना देर करे मौजूदा सरकार की पहली प्राथमिकता भुखमरी और कुपोषण से निपटने की होनी चाहिए। भुखमरी और कुपोषण एक ऐसा कड़वा सच है, जिससे निपटे बिना विकास की कल्पना बेमानी है।
-युद्धवीर सिंह लांबा
(लेखक अकिडो कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, बहादुरगढ़ जिला झज्जर, हरियाणा में रजिस्ट्रार के पद पर कार्यरत हैं।)