बच्चे कैसे पैदा होते हैं नॉर्मल डिलीवरी - bachche kaise paida hote hain normal dileevaree

In this article

  • नॉर्मल डिलीवरी क्या होती है?
  • नॉर्मल डिलीवरी किस तरह होती है?
  • प्री-लेबर चरण में क्‍या होता है और इसके क्‍या संकेत हैं?
  • प्रसव के पहले चरण में क्या होता है?
  • प्रसव के दूसरे चरण में क्या होता है?
  • प्रसव के तीसरे चरण में क्या होता है?
  • प्रसव के तीसरे चरण में चिकित्सकीय मदद की जरूरत कब पड़ती है?
  • नॉर्मल डिलीवरी में कितना दर्द होता है?
  • क्या नाॅर्मल डिलीवरी बिना दर्द के हो सकती है?
  • क्या मेरे पति लेबर रूम में मेरे साथ हो सकते हैं?
  • नॉर्मल डिलीवरी कराने के लिए क्या करना चाहिए?

प्रसव और शिशु के जन्म की प्रक्रिया तीन चरणों में पूरी होती है, मगर प्रसव की प्रबलता और अवधि हर महिला में अलग-अलग रहती है। इसकी शुरुआत हल्के, नियमित संकुचनों से होती है जो कि डिलीवरी के विभिन्न चरणों में और लंबे, ज्यादा प्रबल और बार-बार होने लगते हैं।  प्रसव के पहले और सबसे लंबे चरण में संकुचन आपकी ग्रीवा को खोलते हैं। दूसरे चरण में जोर लगाकर शिशु को प्रसव नलिका में नीचे की तरफ धकेला जाता है और फिर शिशु योनि के जरिये जन्म लेता है। प्रसव के तीसरे चरण में अपरा (प्लेसेंटा) की डिलीवरी होती है। हर महिला का प्रसव पीड़ा और शिशु को जन्म देने का अनुभव अलग होता है।

नॉर्मल डिलीवरी क्या होती है?

योनि के जरिये प्रसव (वेजाइनल डिलीवरी) को नॉर्मल डिलीवरी भी कहा जाता है। यह शिशु के जन्म का सबसे आम तरीका है।

नाॅर्मल डिलीवरी के दौरान आपकी ग्रीवा पतली होकर खुलती है। आपका गर्भाशय संकुचित होता है ताकि शिशु प्रसव नलिका में नीचे खिसक सके और योनि के जरिये जन्म ले सके।

सामान्यतः शिशु का जन्म नाॅर्मल डिलीवरी से ही कराया जाता है, मगर यदि आपकी गर्भावस्था या प्रसव के दौरान जटिलताएं हो तो सिजेरियन डिलीवरी करवाने की जरुरत पड़ सकती है।

नॉर्मल डिलीवरी किस तरह होती है?

प्रसव और शिशु के जन्म की प्रक्रिया के तीन चरण होते हैं,  मगर हर महिला के प्रसव की प्रबलता और अवधि अलग होती है।

  • पहला चरण। इस चरण के दौरान संकुचनों की वजह से धीरे-धीरे ग्रीवा (सर्विक्स) खुलने लगती है। ग्रीवा गर्भाशय की गर्दन को कहा जाता है। पहले चरण में शुरुआती प्रसव, सक्रिय प्रसव और ​परिवर्ती चरण शामिल हैं। 
  • दूसरा चरण। यह तब शुरु होता है जब ग्रीवा पूरी तरह विस्फारित हो चुकी होती है और शिशु के जन्म के साथ यह चरण समाप्त हो जाता है। इसे कई बार 'जोर लगाने वाला चरण' भी कहा जाता है।
  • तीसरा चरण। यह शिशु के जन्म के तुरंत बाद शुरु होता है और अपरा की डिलीवरी के साथ समाप्त हो जाता है।

एक और चरण भी है जिसे अंग्रेजी में प्रीलेबर या लेटेंट फेज कहा जाता है। यह चरण तब शुरु होता है जब आपका शरीर प्रसव के पहले चरण के लिए तैयार हो रहा होता है।

प्री-लेबर चरण में क्‍या होता है और इसके क्‍या संकेत हैं?

गर्भावस्था के दौरान आपकी ग्रीवा बंद होती है और इसमें श्लेम डाट (म्यूकस प्लग) लगा होता है, ताकि इनफेक्शन को दूर रखा जा सके। आपकी ग्रीवा लंबी और ठोस होती है, जिससे आपके गर्भाशय को मजबूत आधार मिलता है। साथ ही यह थोड़ी पीठ की तरफ (पोस्टीरियर पॉजिशन) होती है।

पूरे तरीके से प्रसव शुरु होने से पहले, आपकी ग्रीवा को कुछ बदलावों से गुजरना होता है। यह पीछे (पोस्टीरियर अवस्था) से आगे (एंटीरियर अवस्था) की तरफ आती है और इस दौरान यह मुलायम और छोटी होने लगेगी। ग्रीवा के मुलायम होने को अक्सर परिपक्व होना (राइपनिंग) कहा जाता है।

आप अपनी नाक पर हाथ रखकर इसे महसूस कीजिए: यह आपको ठोस और मांसल लगेगी। अब अपने होठों को छुएं और महसूस करें: ये आपको नरम और लचीले लगेंगे। ग्रीवा भी शुरुआत में आपकी नाक की तरह ठोस होती है और फिर आपकी होठों की तरह मुलायम और लचीली हो जाती है।

प्रीलेबर चरण में होने वाले इन बदलावों में कई घंटों, दिनों या हफ्तों तक का समय लग सकता है। आपको शायद इनके बारे में पता भी नहीं चले। या फिर हो सकता है कि आपको संकुचन महसूस हों, जिनकी प्रबलता अलग-अलग हो सकती है। इनकी वजह से आपकी नींद में खलल भी पड़ सकता है, जबकि प्रसव पूरी तरह शुरु होने में अभी और समय लगेगा।

प्रसव के पहले चरण में क्या होता है?

प्रसव का पहला चरण तब शुरु होता है जब संकुचनों की वजह से धीरे-धीरे ग्रीवा खुलने लगती है।

यह चरण अक्सर सबसे लंबा होता है और इसे शुरुआती, सक्रिय और परिवर्ती चरणों में बांटा गया है।

पहला चरण: शुरुआती प्रसव

शुरुआती प्रसव के दौरान आपकी ग्रीवा खुलना और चौड़ा होना शुरु होती है। यह पहले बंद अवस्था से करीब 4 सें.मी. (1.6 इंच) तक विस्फारित हो जाती है।

आपको ऐसा होने का शायद पता नहीं चलेगा क्योंकि आपके गर्भाशय में बहुत ही हल्के संकुचन हो रहे होते हैं। ये आपको माहवारी के समय होने वाली हल्की ऐंठन या दर्द या फिर पीठदर्द जैसे महसूस हो सकते हैं। संभव है कि जब आपको लगे कि प्रसव शुरु हो गया है, तब तक आपकी ग्रीवा कई सेंटिमीटर तक विस्फारित हो गई हो। ऐसा खासतौर पर दूसरी बार मॉं बन रही महिलाओं के साथ होता है।

हालांकि, बहुत सी महिलाओं को निरंतर बढ़ते हुए और दर्दभरे संकुचन महसूस होते हैं। ये ब्रेक्सटन हिक्स संकुचनों से अलग होते हैं, जो कि बार-बार नहीं होते या इतने भी प्रबल नहीं होते।

आप 30 मिनट तक अपने संकुचनों की गणना करें, इससे आप नजर रख सकेंगी कि प्रसव किस तरह बढ़ रहा है। संकुचन के शुरु होने का समय नोट करें,​ फिर इसके समाप्त होने का समय नोट करें। इसके बाद अगला संकुचन शुरु होने का समय भी दर्ज करें और इस तरह लगातार समय नोट करती जाएं। आप इसे आसान बनाने के लिए फोन पर एप का या फिर किसी ऑनलाइन टूल का इस्तेमाल कर सकती हैं।

संकुचनों की बारंबारता (फ्रीक्वेंसी) का मतलब है कि ये कितनी बार आ रहे हैं यानि एक संकुचन के शुरु होने के बाद अगला संकुचन कितने समय में शुरु हो रहा है।

आपके प्रसव की अपनी अलग लय और गति होगी। अनुमानित तौर पर शुरुआती संकुचन सामान्यत: पांच मिनट से ज्यादा के अंतराल पर होते हैं और करीब 30 सैकंड लंबे होते हैं। जैसे-जैसे आप सक्रिय प्रसव के नजदीक पहुंचती हैं संकुचनों के बीच का अंतराल आमतौर पर कम होता जाता है, जबकि इनकी समयावधि और प्रबलता धीरे-धीरे बढ़ती जाती है।

शुरुआती प्रसव का सामना करने में मदद के लिए नीचे कुछ सुझाव दिए गए हैं:

  • अगर आप सक्षम महसूस करें, तो आसपास थोड़ा वॉक कर लें या हल्के गर्म पानी से नहा लें।
  • जितना ज्यादा हो सके, उतना आराम करें और कुछ सेहतमंद स्नैक्स खाएं। ऊर्जा प्रदान करने वाले कार्बोंहाइड्रेट से भरपूर आहार सबसे अच्छे हैं जैसे कि चावल, रोटी, परांठे, इडली, ब्रेड, आलू, पास्ता और किशमिश आदि।
  • ​जलनियोजित रहने के लिए पर्याप्त मात्रा में तरल पदार्थों का सेवन करें।
  • अगर आपको संकुचन मुश्किल लग रहे हों, तो आप मालिश करवा सकती हैं या रिलैक्सेशन तकनीकों को अजमाएं।
  • अपने लिए सबसे सुविधाजनक मुद्रा जानने के लिए प्रसव की विभिन्न मुद्राएं आजमा कर देखें।

शुरुआती प्रसव के बारे में पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता। कुछ महिलाओं में यह शुरु होता है और फिर बंद हो जाता है या कई दिनों तक अनियमित गति से चलता रहता है। वहीं, कुछ अन्य महिलाओं में ये आसानी से सक्रिय प्रसव में बदल जाता है। ऐसा बहुत ​सी बातों पर निर्भर करता है, जैसे कि आपके गर्भस्थ शिशु की अवस्था, आप कितनी रिलैक्स हैं और आपके संकुचनों की प्रबलता कितनी है।

दूसरा चरण: सक्रिय प्रसव

जैसे-जैसे आप सक्रिय प्रसव के चरण में प्रवेश करती हैं आपके संकुचन अब और ज्यादा लंबे और ज्यादा बार होने लगेंगे। आपकी ग्रीवा भी अब कम से कम 4सें.मी (1.6इंच) से लेकर पूरी तरह विस्फारित हो जाएगी, जो कि करीब 10 सें.मी. (3.9इंच) होता है।

इस चरण पर संकुचन और ज्यादा प्रबल होते हैं। आमतौर पर ये संकुचन धीरे-धीरे शुरु होते हैं, प्रबलता के चरम पर पहुंचते हैं और फिर कमजोर पड़ जाते हैं। हो सकता है आप इन संकुचनों के दौरान बात भी न कर पाएं। आपको शायद रुककर सांस लेना या कराहना पड़े, विशेषतौर पर तब जब ये संकुचन लंबे होने लगें।

हो सकता है संकुचन हर तीन से चार मिनट में होने लगें और 60 से 90 सैकंड तक जारी रहें। इस तरह आपको संकुचनों के बीच आराम पाने का कम समय मिलेगा। हर 10 मिनट में आपको दो से पांच संकुचन महसूस हो सकते हैं। इन संकुचनों के बीच आप थोड़ी-बहुत बात कर सकेंगी, आसपास चल-फिर सकेंगी, तरल पदार्थ ले सकेंगी और अगले संकुचन के लिए खुद को तैयार कर सकेंगी।

जैसे-जैसे प्रसव और ज्यादा तेज होता जाता है, तो आप शायद पाएंगी कि संकुचनों के दौरान और इनके बीच के अंतराल में अब आपका ज्यादा ध्यान इन्हीं पर केंद्रित हो रहा है। अब शायद आपको भूख न लगे और आपको उल्टी जैसा या उल्टी हो सकती है। ऐसा इसलिए क्योंकि आपका शरीर पाचन तंत्र को साफ करता है, ताकि शिशु के जन्म पर ध्यान केंद्रित करने के लिए तैयार हो सके।

जब आपकी ग्रीवा 6सें.मी. तक खुल जाती है, तो आपके प्रसव में तेजी आ सकती है। मगर अब भी ग्रीवा को 10सें.मी. तक पूरी तरह खुलने में कई घंटे और लग सकते हैं।

यदि आपकी पानी की थैली अभी नहीं फटी है, तो डॉक्टर शायद इसे फाड़ने का निर्णय ले सकती हैं ताकि देख सकें कि इससे प्रसव में तेजी आती है या नहीं। ध्यान रखें कि पानी की थैली फटने के बाद आपके संकुचन और ज्यादा प्रबल हो जाएंगे।

सक्रिय प्रसव का सामना करने में मदद के लिए नीचे कुछ सुझाव दिए गए हैं

  • अब आपको संकुचन ऐसे महसूस होने लगेंगे जैसे की ये एक के बाद एक करके आते जा रहे हैं। अपने शरीर के संकेतों पर ध्यान दें। यह आपको क्या करने के लिए कह रहा है? क्या आप एक अलग मुद्रा में अधिक आरामदायक महसूस करेंगी? क्या आपको ऊर्जा पाने के लिए कुछ पीने या खाने की जरुरत है? क्या शौचालय जाने से आपको आराम मिलेगा?
  •  प्रसव के आगे बढ़ने के ​साथ-साथ आपका तेज आवाज में चिल्लाना या कराहना सामान्य है। रिलैक्सेशन तकनीक जैसे कि बर्थ बाल के इस्तेमाल से श्रोणि क्षेत्र को हिलाना या हिप्नोथैरेपी आपको शांत रहने और सांसों को नियंत्रित रखने में मदद कर सकती है। इस समय श्वसन व्यायाम और रिलैक्सेशन तकनीकें मददगार होती हैं। डॉक्टर, नर्सिंग स्टाफ या आपके पति इसमें आपकी मदद कर सकते हैं।
  • आप चाहें तो गर्म शावर ले सकती हैं या नहा सकती हैं, क्योंकि गर्म पानी प्रसवपीड़ा से राहत दिलाने में वाकई सहायता कर सकता है।
  • कभी-कभी महिलाएं प्रसव के ऐसे चरण पर पहुंच जाती हैं, जहां उनकी ग्रीवा विस्फारित होने की गति धीमी हो जाती है या फिर बंद ही हो जाती है। अगर आपकी डॉक्टर बताए कि आपके साथ भी यही स्थिति है, तो उनसे पूछें कि क्या आप अस्पताल के बरामदे में टहल सकती हैं। सीधे खड़े होने और चलने-फिरने से शिशु का सिर नीचे सीधे ग्रीवा में खिसक सकता है, जिससे विस्फारण में मदद मिल सकती है।
  • कभी-कभी खुल कर रोना भावनात्मक टेंशन को दूर कर देता है और आपको डर और चिंता से छुटकारा दिलाने में मदद करता है।
  • अगर आपको स्वयं सहायता तकनीकों से संकुचनों में आराम न मिल रहा हो, तो अपनी डॉक्टर से दर्द निवारकों के बारे में पूछें।
  • आप घबराए नहीं, याद रखें कि हर संकुचन आपको अपने शिशु से मिलने के और नजदीक ला रहा है।

तीसरा चरण: प्रसव का परिवर्ती चरण

परिववर्ती चरण (ट्रांज़िंशनल फेज़) तब होता है जब आप प्रसव के पहले चरण से दूसरे चरण में आती है, यानि कि जोर लगाने वाले चरण में। यह आमतौर पर तब शुरु होता है जब आपकी ग्रीवा करीब 8सें.मी. (3.5इंच) तक विस्फारित हो चुकी होती है और ग्रीवा के पूरी तरह विस्फारित (10 सें.मी.) हो जाने या पूरी तरह खुलने पर या फिर जोर लगाने की तीव्र इच्छा होने पर समाप्त होता है।

अब शायद संकुचनों की बारंबारता कम होगी, मगर ये और ज्यादा प्रबल और लंबे समय तक होंगें। कई बार ये दो लहरों में आते हैं। हर लहर चरम पर पहुंचेगी, फिर कमजोर पड़ जाएगी, मगर एक बार फिर से प्रबलता बढ़ेगी और फिर ये पूरी तरह कमजोर पड़ जाएगी।

परिवर्ती चरण से ठीक पहले या इसके दौरान पानी की थैली फटना काफी आम है। जब आपकी ग्रीवा पूरी तरह खुल जाती है, तो एक बार फिर योनि से बहुत सारा खून निकल सकता है।

महिलाओं का परिवर्ती चरण का अनुभव अलग होता है। यह बहुत ज्यादा प्रबल और असहनीय हो सकता है। आप पाएंगी कि आपका पूरा ध्यान केवल प्रसव की तरफ है और कुछ असंगत सी मांग कर रही हैं। हो सकता है आप कराहें, चिल्लाए और अधीर महसूस करें या फिर बहुत डरी और घबराई हुई हों। कुछ महिलाएं कंपकंपी और मिचली महसूस करती हैं, वहीं कुछ महिलाओं को ऐसा कुछ महसूस नहीं होता।

अच्छी बात यह है कि कई बार परिवर्ती चरण के अंत में ठहराव सा आ जाता है, जब संकुचन भी रुक जाते हैं। आप और आपका शिशु इस समय जोर लगाने का चरण शुरु होने से पहले थोड़ा आराम कर सकते हैं।

परिवर्ती चरण का सामना करने में मदद के लिए नीचे कुछ सुझाव दिए गए हैं:

  • ट्रांज़िशन चरण का आपका अनुभव कैसा भी हो, मगर ध्यान केंद्रित रखना अच्छा रहता है। यह आपके बर्थ पार्टनर का मदद करने का समय होता है, वे इस समय आपकी श्वसन तकनीकों पर ध्यान देने में मदद कर सकते हैं।
  • जहां तक संभव हो, अपने श्वसन की लय बनाए रखें। यानि कि नाक के जरिए अंदर सांस ले और मुंह के जरिए धीरे से बाहर छोड़िए।
  • यदि आप चिल्लाना, कराहना और खूब शोर करना चाहती हैं, तो कीजिए!
  • इस बात की चिंता न करें कि अन्य लोग आपके बारे में क्या सोचेंगे। डॉक्टर और नर्सिंग स्टाफ महिलाओं को प्रसव की स्थिति में देखने के आदि होते हैं। साथ ही अस्पताल में आपके जैसी स्थिति वाली बहुत सी महिलाएं हो सकती है।
  • संकुचनों के बीच में ज्यादातर वक्त आराम करें।

प्रसव के दूसरे चरण में क्या होता है?

प्रसव के दूसरे चरण में आप जोर लगाकर गर्भस्थ शिशु को नीचे और योनि (प्रसव नलिका) से बाहर की तरफ धकेलेंगी और पहली बार उससे मिलेंगी।

जब आपकी ग्रीवा पूरी तरह​ यानि 10से.मी. (3.9 इंच) विस्फारित हो चुकी होती है, तो आप पाएंगी कि कुछ क्षणों के लिए संकुचन रुक गए हैं या इतने हल्के हैं कि आपको महसूस नहीं हो रहे। हो सके तो इस समय आप थोड़ा आराम करें। यही वो समय है जब आपका शिशु नीचे की तरफ खिसक जाता है और घूमकर जन्म लेने की अवस्था में आ जाता है।

जब शिशु नीचे की ओर खिसकता है, तो आपको बहुत प्रबल संकुचन महसूस होने शुरु होंगे, साथ ही आपको जोर लगाने की तीव्र इच्छा महसूस होगी। बेहतर है कि ऐसी इच्छा महसूस होने से पहले आप जोर लगाने का प्रयास न करें क्योंकि इस चरण से पहले जोर लगाने से कुछ खास फायदा नहीं होगा, बल्कि आप थक जरुर जाएंगी।

डॉक्टर नजर रखेंगी कि आपका प्रसव किस तरह बढ़ रहा है और आपके शिशु की स्थिति कैसी है। वे आपको बताएंगी कि जोर लगाने का सही समय कब है।

आपको अपने श्रोणि क्षेत्र में नीचे की तरफ शिशु के सिर का दबाव महसूस होगा। हर संकुचन के साथ आपको शायद दो या तीन बार जोर लगाने की तीव्र इच्छा होगी, जो कि हर बार पांच से सात सैकंड तक रहेगी।

अपने शरीर के संकेतों पर ध्यान दें और तीव्र इच्छा होने पर जोर लगाएं। जोर लगाते हुए अपने श्रोणि क्षेत्र को थोड़ा ढीला छोड़ें ताकि आपके शिशु के आसपास की मांसपेशियों में खिंचाव हो सके।

बेहतर है कि आप जोर लगाते वक्त बीच-बीच में अपनी सांस रोकने की बजाय सांसें लेती रहें। कुछ महिलाएं जोर लगाते समय कराहने या जोर से चिल्लाने लगती हैं, वहीं कुछ यह शांति से करती हैं। इसमें कुछ भी गलत या सही नहीं है, आपको जिसमें सबसे ज्यादा आराम मिले, आप वह करें।

हर बार जोर लगाने से आपका शिशु श्रोणि से नीचे खिसकता जाएगा, मगर शायद संकुचन के अंत में वह शायद फिर से थोड़ा उपर खिसक जाएगा। आप निराश न हों। ऐसा होना सामान्य है और इससे आपके पेल्विक फ्लोर की मांसपेशियों को धीरे-धीरे फैलने का समय मिल जाता है। यदि आपका शिशु धीरे-धीरे नीचे की तरफ खिसक रहा है, तो इसका मतलब है कि आप सही कर रही हैं।

जब आपके शिशु का सिर श्रोणि में काफी नीचे की तरफ आ जाता है, तो आपको शायद गर्म और चुभन वाली अनुभूती होगी। ऐसा तब होता है जब आपकी योनि का मुख शिशु के सिर के आस पास से चौड़ा होना शुरु हो जाता है। इसे अंग्रेजी में 'क्राउनिंग' कहा जाता है।

डॉक्टर आपको बताएंगी कि वे आपके शिशु का सिर कब देख पा रही हैं। वे शायद आपको जोर लगाना बंद करने और धीमी-धीमी, छोटी सांसें लेने के लिए कह सकती है। इससे आपको दो या तीन संकुचनों तक जोर लगाने की इच्छा को रोकने में मदद मिल सकती है। इससे आपके शिशु का जन्म आराम से और धीरे से हो सके।

इस तरीके से जोर लगाने से आपके मूलाधार क्षेत्र (पेरिनियम) को बहुत ज्यादा फटने से बचाया जा सकता है। पेरिनियम आपकी योनि और गुदा के बीच के क्षेत्र को कहा जाता है। आपकी डॉक्टर पेरिनियम में एक सर्जिकल चीरा (एपिसियोटमी) लगा सकती है। इससे शिशु के बाहर निकलते समय आपकी योनि और चौड़ी हो जाती है जिससे वह आसानी से बाहर आ सकता है।

सबसे पहले आपके शिशु का सिर बाहर आएगा, बशर्ते वह ब्रीच स्थिति (सिर ऊपर और नितंब नीचे) में न हो। अगले संकुचन के साथ शिशु के कंधे और बाकी शरीर बाहर आएगा। अक्सर इसके साथ एमनियोटिक द्रव भी तेजी से बहकर बाहर आ जाता है और कई बार थोड़ा खून भी आ जाता है।

यदि आप पहले भी शिशु को जन्म दे चुकी हैं, तो दूसरे चरण में शायद पांच से 10 मिनट ही लगें। हालांकि, यदि यह आपका पहला शिशु है तो दूसरा चरण कई घंटों तक जारी रह सकता है। यदि आपके शिशु को अपनी अवस्था बदलनी हो ताकि उसके सिर का सबसे छोटा व्यास बाहर की तरफ निकले, तो दूसरा चरण और लंबा भी चल सकता है।

इस चरण का सामना करने में मदद के लिए नीचे कुछ सुझाव दिए गए हैं:

  • आपकी डॉक्टर आपको शिशु के जन्म के लिए सबसे उचित अवस्था बता सकती हैं। आप जितना ज्यादा सीधी अवस्था में रहेगी जोर लगाना उतना ही आसान होगा क्योंकि गुरुत्व बल और खुला श्रोणि क्षेत्र शिशु को नीचे की तरफ आने में मदद करते हैं।
  • ​यदि आपने दर्द निवारण के लिए एपिड्यूरल लिया है, तो आपको जोर लगाने की इच्छा महसूस नहीं होगी। यदि ऐसा हो, तो डॉक्टर आपको बताएंगी कि आपको कब जोर लगाना है और कितनी देर तक।
  • नर्स और यहां ​तक की अस्पताल में आया भी प्रसव के संकुचनों के दौरान महिला को और ज्यादा जोर लगाने के लिए प्रोत्साहित करती हैं। कई बार हो सकता है आपको लगे कि वे आप पर चिल्ला रही हैं। आप ऐसा बिल्कुल भी न समझें कि आप सही ढंग से जोर नहीं लगा रही हैं। वे आप पर इसलिए चिल्ला रही होती हैं, ताकि आप दबाव में आकार और ज्यादा जोर लगाएं।
  • कई बार डॉक्टर भी प्रसव के दौरान महिला की जांघों या पीठ पर थपथपाकर और ज्यादा जोर लगाने के लिए कहती हैं। यदि आपको यह अच्छा न लगे तो डॉक्टर को यह बता दें। आप अपने शिशु को जन्म दे रही हैं, इसलिए आपको जिस तरह से आराम महसूस हो वह करें।

प्रसव के तीसरे चरण में क्या होता है?

प्रसव का तीसरा चरण डिलवरी का अंतिम और सबसे छोटा चरण होता है। यह शिशु के जन्म के बाद शुरु होता है और प्लेसेंटा व इससे जुड़ी पानी की खाली थैली (मैम्ब्रेन) बाहर निकलने पर खत्म होता है। प्रसव के इस चरण में कुछ रक्तस्त्राव होना सामान्य है।

शिशु के जन्म के बाद आपके पास कुछ मिनटों का समय होगा जब आप आराम कर सकें और अपने शिशु को देख सकें, इसके बाद संकुचन फिर से शुरु होंगे। आपको संकुचनों का पता चलेगा मगर दोबारा शुरु होने पर ये प्रबल नहीं होंगे, क्योंकि आपका गर्भाशय अब संकुचित होने लगता है। प्लेसेंटा की डिलीवरी से पहले आपको केवल कुछ ही संकुचन महसूस होंगे।

अपरा और इसके साथ जुड़ी हुई झिल्लियां गर्भाशय की दीवार से हटकर इसमें नीचे की तरफ आ जाएंगी और फिर योनि में खिसक जाएंगी। ऐसा होने पर आपको फिर से जोर लगाने की इच्छा महसूस होगी।

अपरा की डिलीवरी प्राकृतिक तौर पर स्वतः हो सकती है या फिर इसमें चिकित्सकीय मदद की जरूरत पड़ सकती है। इसे अंग्रेजी में मैनेज्ड थर्ड स्टेज कहा जाता है।

प्रसव के तीसरे चरण में चिकित्सकीय मदद की जरूरत कब पड़ती है?

प्रसव का प्राकृतिक तीसरा चरण

अगर आपकी गर्भावस्था और प्रसव के दौरान सब सही रहा है तो डाॅक्टर शायद तीसरे चरण को प्राकृतिक तौर पर स्वतः होने देंगे। इसका मतलब है बिना किसी दवा की मदद के अपरा अपने आप बाहर आ जाएगी।

शिशु के जन्म के बाद डाॅक्टर इंतजार करेंगी कि गर्भनाल अपरा से आॅक्सीजन युक्त रक्त शिशु तक पहुंचाना बंद करे। इसके बाद वे गर्भनाल पर चिमटी लगा देंगी। इसके बाद डॉक्टर अपरा और झिल्लियों की जांच करेंगी ताकि सुनिश्चित हो सके कि गर्भ में अंदर कुछ बाकी नहीं बचा है।

प्रसव के तीसरे चरण में चिकित्सकीय मदद की जरूरत

डाॅक्टर प्रसव का तीसरा चरण चिकित्यकीय मदद से करवाना चाहेंगी अगर आपकी गर्भावस्था या प्रसव के दौरान निम्नांकित जटिलताएं हुई हैंः

  • आपके गर्भ में जुड़वा शिशु हैं, पाॅलिहाइड्रेमनियोस या ऐसी कोई अन्य स्थिति है जिससे गर्भाशय सामान्य से ज्यादा फैल रहा है।  
  • गर्भावस्था या डिलीवरी के दौरान बहुत ज्यादा रक्तस्त्राव।
  • अपरा नीचे की तरफ स्थिति होना
  • एनीमिया
  • प्रेरित प्रसव या बहुत लंब या बहुत जल्दी प्रसव होना
  • उपकरणों की सहायता से या फिर सिजेरियन डिलीवरी से  शिशु का जन्म होना।
  • रिटेन्ड प्लेसेंटा (अपरा या झिल्लियों का कुछ हिस्सा या पूरा ही गर्भ में रह जाना) का इतिहास रहा है।

चिकित्सकीय हस्तक्षेप से प्रसव के तीसरे चरण के लिए जब शिशु के कंधे योनि से बाहर आते हैं तभी डाॅक्टर आपकी जांघ में  एक हाॅर्मोन इंजेक्शन लगाएंगी। कई बार यह इंजेक्शन शिशु के जन्म के तुंरत बाद गर्भनाल को क्लेंप करने और काटने से पहले लगाया जाता है। यह इंजेक्शन आपके गर्भाशय में प्रबल संकुचन पैदा करता है, जिससे प्लेसेंटा हटकर बाहर आ जाती है और बाद में रक्तवाहिकाएं अपने आप सील हो जाती है।

चिकित्सकीय मदद से होने वाले तीसरे चरण में आपको जोर लगाने की जरुरत नहीं होती है, अगर आप चाहे तो ऐसा कर सकती हैं। जब गर्भाशय संकुचित होने लगता है तो डाॅक्टर श्रोणि से ऊपर आपके पेट को एक हाथ हुए हल्के से गर्भनाल को खींचेंगी। इससे अपरा आसानी से बाहर निकल जाती है।

बहुत से अस्पतालों में प्रसव का तीसरा चरण चिकित्सकीय मदद से ही करवाया जाता है। वे इसे मानक प्रक्रिया के तौर पर किया जाता है क्योंकिः

  • प्राकृतिक और चिकित्सकीय हस्तक्षेप से होने वाले तीसरे चरण में आमतौर पर बराबर ही समय लगता है। शिशु के जन्म के बाद प्लेसेंटा की डिलीवरी होने में करीब 10 मिनट का समय लगता है। हालांकि कुछ महिलाओं में प्राकृतिक रूप से होन वाले तीसरे चरण में एक घंटे तक का समय भी लग सकता है।  
  •  चिकित्सकीय मदद से हो रहे तीसरे चरण में शिशु के जन्म के तुरंत बाद भारी प्रसव होने का खतरा कम रहता है।
  • डिलीवरी के बाद आपको एनीमिया होने का खतरा कम रहता है। 

चिकित्सकीय  हस्तक्षेप से होने वाले तीसरे चरण का मुख्य नुकसान यही है कि रक्त वाहिकाओं को संकुचत करने और संकुचनों को प्रेरित करने के लिए जो दवा इस्तेमाल होती है उसके साइड इफेक्ट होते हैं। इनसे निम्न समस्याएं हो सकती हैंरू

  • हाई ब्लड प्रेशर
  • मिचली और उल्टी
  • प्रबल संकुचन
  • दर्द निवारक लेने की अत्याधिक जरूरत

इन साइड इफेक्ट की वजह से बहुत से डाॅक्टर  संकुचन प्रेरित करने के लिए केवल एक दवा ऑक्सीटॉसिन का इस्तेमाल करते हैं। हालांकि, रक्तस्त्राव कम करने में ऑक्सीटॉसिन इतनी प्रभावी नहीं है।

अगर आपका प्रसव का तीसरा चरण सामान्य से ज्यादा लंबा चला तो आपको भारी रक्तस्त्राव होने का काफी खतरा रहता है। डाॅक्टर आपका रिटेन्ड प्लेसेंटा के लिए उपचार करेंगे, यदिः

  • आपके प्राकृतिक तौर पर होने वाले तीसरे चरण में एक घंटे से भी ज्यादा का समय लगा
  • चिकित्सकीय हस्तक्षेप से होने वाले तीसरे चरण में 30 मिनट से ज्यादा का समय लगा
  • रक्तस्त्राव शुरू होते होते बहुत ज्यादा बढ़ जाए

आप चिंता न करें, आपके स्वास्थ्य और स्थिति को देखते हुए डाॅक्टर उचित निर्णय लेंगी।

इस चरण का सामना करने में मदद के लिए नीचे कुछ सुझाव दिए गए हैं:

शिशु के जन्म की प्रक्रिया पूरी होने के बाद आपको कमजोरी और कंपन सा महसूस हो सकता है। ऐसा आपके शरीर में एड्रेनलाइन की मौजूदगी और डिलीवरी के तुरंत बाद शरीर जो व्यवस्था करता है, उस वजह से होता है।

मानसिक तौर पर भी आप अभी कई तरह की भावनाओं से अभिभूत महसूस कर रही होंगी: उत्साह, डर, गर्व, विश्वास न कर पाना, उत्तेजना आदि, साथ ही आप चैन की सांस ले सकेंगी कि सारी प्रक्रियाएं अब समाप्त हो गई हैं और आपका शिशु आपकी गोद में आ गया है!

  • तीसरी अवस्था के बारे में आपको बामुश्किल ही पता चलेगा, क्योंकि आपका ध्यान अब शायद अपने शिशु की ओर हो गया होगा। कुछ अस्पताल नवजात शिशु को तुरंत माँ के हाथ में सौंप देते हैं। शिशु को त्वचा से त्वचा के संपर्क में रखें। इससे ऑक्सीटॉसिन को बढ़ावा मिलता है, यह वह हॉर्मोन है जो आपके गर्भाशय को संकुचित होने और अपरा व झिल्लियों को अलग होने में मदद करता है।
  • यदि आप शिशु को स्तनपान करवाना चाहें तो जितना जल्दी हो सके इसकी शुरुआत करें। इससे भी ऑक्सीटॉसिन को बढ़ावा मिलता है। यदि आपका शिशु ज्यादा रूचि नहीं दिखा रहा, तो चिंता नहीं करें। अगर वह आपको सिर्फ छू रहा है और नाक छुआ रहा है, तो यह भी स्तनपान के लिए तैयार होने में आपकी मदद करेगा।
  • जिन महिलाओं का प्रसव लंबा रहा या उन्होंने दर्द कम करने कि दवाई पेथीडाइन ली थी, तो उन्हें अपने शिशु की ओर ध्यान दे पाना कठिन लगता है। अगर आप काफी थकावट महसूस कर रही हों, तो स्वयं को कुछ समय दें। थोड़ा आराम करने के बाद आप अपने शिशु को देखने व दुलार करने के लिए ज्यादा तैयार होंगी।
  • अपने नवजात शिशु को खूब निहारें, लाड करें, हाथों और पैरों की अंगुलियां गिनें। उसे अपने शरीर के करीब छाती पर थामकर रखें, विशेषतः त्वचा से त्वचा को चिपकाकर।
  • आप और आपके पति अपने नन्हें शिशु के साथ के इस खास समय को एक दूसरे के साथ बिताना चाहेंगे। अपने नन्हें के साथ पहली तस्वीरें लेने का यह एकदम सही समय है!

नॉर्मल डिलीवरी में कितना दर्द होता है?

साथ ही, हर महिला का प्रसव का अनुभव अलग होता है और वे अपने तरीके से प्रसव पीड़ा का सामना करती हैं। कुछ महिलाओं का कहना है कि यह उनके जीवन की सबसे मुश्किल घड़ी थी। वहीं कुछ अन्य मानती हैं कि यह उतना कठिन भी नहीं था।

यह बहुत जरूरी है कि आप डिलीवरी के हर चरण पर अपनी डाॅक्टर की बात ध्यान से सुनें ताकि वे आपकी मदद कर सकें। प्रसव के दौरान जरुरत पड़ने पर डाॅक्टर उचित दर्द निवारक दवा भी देंगी।

प्रसव पीड़ा का सामना करने के इन उपायों को देखें, ये आपकी डिलीवरी को थोड़ा आसान बनाने में मदद कर सकते हैं।

क्या नाॅर्मल डिलीवरी बिना दर्द के हो सकती है?

बहुत से अस्पताल या नर्सिंग होम दर्दरहित प्रसव के बारे में प्रचार करते हैं। इसका मतलब यह है कि वे आपको एपिड्यूरल देंगे, जो कि दर्द से राहत का एक प्रभावी विकल्प है। और इससे दर्द काफी हद तक कम हो जाता है।

यह सच है कि जब तक एपिड्यूरल का असर रहता है, आपको संकुचन महसूस नहीं होंगे और कुछ महिलाएं तो प्रसव की प्रक्रिया के बीच सो भी जाती हैं, और जोर लगाने के समय उन्हें जगा दिया जाता है।

बहरहाल, यह प्रक्रिया पूरी तरह द​र्द रहित नहीं है, क्योंकि:

  • एपिड्यूरल आमतौर पर प्रसव शुरु होने के बाद ही दिया जाता है, इसलिए आपको शुरुआती संकुचन महसूस होंगे, हालांकि ये इतने प्रबल नहीं होंगे।
  • एपिड्यूरल रीढ़ की हड्डी में एक नलिका डालकर दिया जाता है। इंजेक्शन दिए जाने के समय आपको असहजता महसूस हो सकती है।

इन असहजताओं के बावजूद, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि एपिड्यूरल आपके शिशु के जन्म के अनुभव को काफी खुशनुमा बना सकता है। एपिड्यूरल लेने से प्रसव के सबसे प्रबल संकुचन व दर्द आपको महसूस नहीं होते।

क्या मेरे पति लेबर रूम में मेरे साथ हो सकते हैं?

यह आपकी डॉक्टर और उस अस्पताल पर निर्भर करता है जहां आपकी डिलीवरी होगी।

कुछ डॉक्टर और अस्पतालों में होने वाले पिता को डिलीवरी की प्रक्रिया में शामिल करते हैं, मगर इसके ​कुछ नियम और प्रतिबंध हो सकते हैं।

कुछ जगहों पर पति को प्रसव और शिशु के जन्म की पूरी प्रक्रिया के दौरान पत्नी के साथ रहने की अनुमति होती है। वहीं कुछ अन्य जगहों पर सक्रिय प्रसव शुरु होने पर पति को बाहर जाने के लिए कह दिया जाता है।

कुछ अस्पतालों या नर्सिंग होम में लेबर रूम में केवल एक महिला बर्थ पार्टनर को साथ रहने की अनुमति होती है।

अस्पताल की नीति जानने के लिए अच्छा है कि आप डॉक्टर से पहले ही इस बारे में पता कर लें।

नॉर्मल डिलीवरी कराने के लिए क्या करना चाहिए?

पूरे विश्वास से यह कह पाना असंभव है कि आपकी डिलीवरी नाॅर्मल होगी या सिजेरियन। फिर भी कुछ ऐसे उपाय है जिन्हें आजमाकर आप नाॅर्मल डिलीवरी होने की संभावनाओं को बढ़ा सकती हैंः

  • प्रसवपूर्व अच्छी देखभाल रखें और ऐसी डाॅक्टर का चयन करें जिनके साथ आप सहज महसूस करें। कोई भी प्रसवपूर्व चेकअप, टेस्ट या स्कैन न चूकें।
  • पौष्टिक आहार खाने और जलनियोजित रहने पर ध्यान दें। गैर सेहतमंद भोजनों से बचें और कैफीन के सेवन को कम करें।
  • गर्भावस्था में कोशिश करें कि आपका वजन स्वस्थ रेंज में बढ़े। बहुत ज्यादा वजन बढ़ने या बहुत कम वजन होने से जटिलताएं उत्पन्न हो सकती हैं।
  • सक्रिय एवं क्रियाशील रहें, उचित व्यायाम से अपनी ताकत बढ़ाएं। श्रोणि क्षेत्र की मांसपेशियों को मजबूत करने के लिए केगल व्यायाम करें।
  • सुनिश्चित करें कि आप पर्याप्त नींद लें और आराम करें। आप योग स्ट्रेचिंग और गहन श्वसन व्यायाम आजमा सकती हैं।
  • प्रसव, डिलीवरी और नवजात शिशु की देखभाल के लिए आप एंटेनेटल कक्षाओं में भी शामिल हो सकती हैं। स्वस्थ गर्भावस्था और शिशु के बारे में जानकारी प्राप्त करें।

इस सबके बावजूद, जरूरी यह है कि आप नाॅर्मल डिलीवरी के बारे में ज्यादा न सोचें। प्रसव अप्रत्याशित होता है और कई बार आपके और शिशु के लिए सिजेरियन डिलीवरी से जन्म करवाना सबसे सुरक्षित विकल्प होता है।

Read about: Labour and birth (normal delivery)

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लड़कियों की नॉर्मल डिलीवरी कैसे होती है?

योनि के जरिये प्रसव (वेजाइनल डिलीवरी) को नॉर्मल डिलीवरी भी कहा जाता है। यह शिशु के जन्म का सबसे आम तरीका है। नाॅर्मल डिलीवरी के दौरान आपकी ग्रीवा पतली होकर खुलती है। आपका गर्भाशय संकुचित होता है ताकि शिशु प्रसव नलिका में नीचे खिसक सके और योनि के जरिये जन्म ले सके।

नॉर्मल डिलीवरी में कितना दर्द होता है?

डॉक्टर्स और साइंटिस्ट के अनुसार एक बच्चे को जन्म देते समय महिला को बीस हड्डियों के एक साथ टूटने जितना दर्द होता है। महिलाओं को 57 डेल (दर्द नापने की इकाई) होने वाले इस दर्द की तुलना में पुरुषों की सिर्फ 45 डेल तक दर्द सहने की क्षमता है। इससे ज्यादा दर्द होने पर पुरुष की मौत संभव है।

बच्चा कहाँ से बाहर आता है?

या फिर हम कह सकते हैं कि, बच्चा पेट से निकलता है। बच्चा कहां से पैदा होता है इसका सरल भाषा में जवाब दे तो, बच्चा योनि मार्ग से पैदा होता है और बच्चा पेट से पैदा होता है।

बिना दर्द के नार्मल डिलीवरी कैसे होती है?

आसान और सेफ है पेनलेस डिलीवरी : आनंदिता अस्पताल के निदेशक डा. रवि आनंद ने बताया कि नार्मल डिलीवरी की असहनीय वेदना से निजात दिलाने के लिए कमर के निचले भाग में स्थित रीढ़ की हड्डियों के बीच निश्चेतना की सूई दी जाती है। इससे लेबर-पेन बिल्कुल नहीं होता परंतु प्रसव की प्रक्रिया अपनी सामान्य गति से चलती रहती है।

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