UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 7 Determination of Price and Output by Firm Under Imperfect Competition (अपूर्ण प्रतियोगिता में फर्म द्वारा कीमत व उत्पादन का निर्धारण) are part of UP Board Solutions for Class 12 Economics. Here we have given UP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 7 Determination of Price and Output by Firm Under Imperfect Competition (अपूर्ण प्रतियोगिता में फर्म द्वारा कीमत व उत्पादन का निर्धारण).
BoardUP BoardTextbookNCERTClassClass 12SubjectEconomicsChapterChapter 7Chapter NameDetermination of Price and Output by Firm Under Imperfect Competition (अपूर्ण प्रतियोगिता में फर्म द्वारा कीमत व उत्पादन का निर्धारण)Number of Questions Solved28CategoryUP Board SolutionsUP Board Solutions for Class 12 Economics Chapter 7 Determination of Price and Output by Firm Under Imperfect Competition (अपूर्ण प्रतियोगिता में फर्म द्वारा कीमत व उत्पादन का निर्धारण)
विस्तृत उत्तरीय प्रश्न (6 अंक)
प्रश्न 1
अपूर्ण प्रतियोगिता में फर्म अल्पकाल व दीर्घकाल में उत्पादन व कीमत का निर्धारण | किस प्रकार करती है ? सचित्र व्याख्या कीजिए। [2008]
या
अपूर्ण बाजार में किसी फर्म की सामान्य लाभ, असामान्य लाभ तथा हानि की स्थिति में सन्तुलन को दर्शाने वाले चित्र बनाइए तथा व्याख्या कीजिए। [2006]
उत्तर:
अपूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत प्रत्येक उत्पादक अथवा विक्रेता का अपना अलग व स्वतन्त्र क्षेत्र होता है। अपने क्षेत्र में वह कुछ सीमा तक मनचाही कीमत प्राप्त कर सकता है। इसमें बाजार कई भागों में बँटा रहता है जिन पर विभिन्न विक्रेताओं का प्रभुत्व होता हैं। प्रत्येक विक्रेता का उद्देश्य एकाधिकारी की भाँति अधिकतम लाभ प्राप्त करना होता है।
अपूर्ण प्रतियोगिता में फर्म द्वारा कीमत व उत्पादन का निर्धारण
अपूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत कीमत निर्धारण में माँग और पूर्ति की शक्तियों का समुचित ध्यान रखा जाता है। इनमें कीमत-निर्धारण उस बिन्दु पर होता है जहाँ पर सीमान्त लागत तथा सीमान्त आय दोनों ही बराबर होती हैं।
अपूर्ण प्रतियोगिता में प्रत्येक फर्म अपने लाभ को अधिकतम करने के लिए उत्पादन में तब तक परिवर्तन करती रहेगी जब तक MC = MR नहीं हो जाता। यदि सीमान्त आय सीमान्त लागत से अधिक है तो फर्म अपने उत्पादन को बढ़ाकर लाभ को अधिकतम करेगी और यदि सीमान्त आय सीमान्त लागत से कम है तो फर्म अपने उत्पादन को कम करके लाभ को अधिकतम करेगी। अतः फर्म का सन्तुलन बिन्दु वहाँ निश्चित होगा जहाँ सीमान्त आय और सीमान्त लागत बराबर होती हैं। इस बिन्दु पर फर्म का लाभ अधिकतम होता है और उसमें विस्तार व संकुचन की प्रवृत्ति नहीं होती है।
अपूर्ण प्रतियोगिता में फर्म की औसत आय व सीमान्त आय रेखाएँ एक माँग के रूप में बाएँ से दाएँ नीचे की ओर गिरती हुई होती हैं। इसका प्रमुख कारण यह है कि फर्म द्वारा एक रूप वस्तु का उत्पादन नहीं किया जाता। प्रत्येक फर्म यद्यपि एकाधिकारी नहीं होती, परन्तु एकाधिकारी प्रवृत्ति रखती है। प्रत्येक फर्म वस्तु की कीमत अपने ढंग से निर्धारित करती है। अपूर्ण प्रतियोगिता में फर्म उद्योग से कीमत ग्रहण नहीं करती है। अपूर्ण प्रतियोगिता में सीमान्त आय औसत आय से कम होती है। इसका मुख्य कारण यह है कि एक अतिरिक्त इकाई को बेचने के लिए फर्म को वस्तु की कीमत में थोड़ी-सी कमी करनी पड़ती है। इसलिए फर्म की औसत आय सीमान्त आय से अधिक होती है।
1. अपूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत अल्पकाल में मूल्य व उत्पादन-निर्धारण – अल्पकाल में यह सम्भव हो सकता है कि फर्म अपने उत्पादन का समायोजन माँग के अनुसार न कर सके। इसलिए अल्पकाल में फर्म की कीमत-निर्धारण की स्थिति माँग के अनुरूप होती है। यदि वस्तु की माँग अधिक होती है और वस्तु का निकट-स्थानापन्न नहीं होता तो फर्म वस्तु की कीमत ऊँची निर्धारित करने की स्थिति में होगी। इसके विपरीत, यदि वस्तु की माँग कम होती है तो मुल्य-निर्धारण नीची कीमत पर होगा। यदि माँग अत्यधिक कमजोर है तो कीमत और भी अधिक नीची निर्धारित होगी। इस प्रकार फर्म तीन स्थितियों में पायी जा सकती है
(अ) असामान्य लाभ या लाभ अर्जित करने की स्थिति,
(ब) शून्य लाभ या सामान्य लाभ प्राप्त करने की स्थिति तथा
(स) हानि की स्थिति।
उपर्युक्त तीनों स्थितियों की हम निम्नलिखित व्याख्या कर सकते हैं
(अ) असामान्य लाभ या लाभ अर्जित करने की स्थिति – यदि किसी फर्म द्वारा उत्पादित वस्तु की माँग बाजारों में अधिक है और उसकी स्थानापन्न वस्तुएँ नहीं हैं तो फर्म वस्तु की ऊंची कीमत निर्धारित करेगी। अल्पकाल में अपूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत फर्म असामान्य लाभ प्राप्त करने की स्थिति में होती है। ऐसी स्थिति में फर्म की औसत आय उसकी औसत लागत से अधिक होती है। कोई भी फर्म ऐसे बिन्दु पर सन्तुलन की स्थिति में होती हैं जहाँ पर सीमान्त लागते तथा सीमान्त आय बराबर होती हैं।
रेखाचित्र द्वारा प्रदर्शन – संलग्न चित्र में, OX-अक्ष पर उत्पादन MR की मात्रा तथा OY-अक्ष पर कीमत और लागत दिखायी गयी है। फर्म E बिन्दु पर सन्तुलन की स्थिति में है, क्योंकि इस बिन्दु पर फर्म की उत्पादन की मात्रा फर्म द्वारा असामान्य लाभ या सीमान्त आय और सीमान्त लागत (MR = MC) बराबर हैं। सन्तुलन लाभ की स्थिति उत्पादन OS तथा कीमत PO है।।
(ब) शून्य या सामान्य लाभ प्राप्त करने की स्थिति – फर्म में सामान्य लाभ की स्थिति उस समय होती है जब वस्तु की माँग कम होती है तथा फर्म ऊंची कीमत निश्चित करने की स्थिति में नहीं होती। ऐसी स्थिति में फर्म की औसत आय (AR) उसकी औसत लागत (AC) के बराबर होती है, जिसके कारण फर्म न तो लाभ प्राप्त करती है और न हानि ही अर्थात् फर्म सन्तुलन की स्थिति औसत आय में होती है।
रेखाचित्र द्वारा प्रदर्शन – संलग्न चित्र में, OX-अक्ष पर उत्पादन की मात्रा तथा OY-अक्ष पर कीमत व लागत दिखायी गयी है। फर्म E बिन्दु पर सन्तुलन की स्थिति में है, क्योंकि यहाँ पर उसकी सामान्य आय और सीमान्त लागत (MR = MC) बराबर हैं। फर्म को औसत आय : और औसत लागत भी बराबर (AR = AC) हैं। इसलिए फर्म केवल सामान्य लाभ अथवा शून्य लाभ प्राप्त कर रही है।
(स) हानि की स्थिति – जब वस्तु की माँग इतनी अधिक कम हो लाभ की स्थिति कि फर्म को अपनी वस्तु को विवश होकर कम कीमत पर बेचना पड़े हैं। तब फर्म हानि की स्थिति में होती है। इस स्थिति में फर्म की औसत आय औसत लागत से कम होती है। इसलिए फर्म हानि उठाती है।
रेखाचित्र द्वारा प्रदर्शन – संलग्न चित्र में, Ox-अक्ष पर उत्पादन तथा OY-अक्ष पर कीमत और लागत दिखायी गयी हैं। फर्म E। बिन्दु पर सन्तुलन की स्थिति में है, क्योंकि यहाँ पर उसकी सीमान्त हैं आय और सीमान्त लागत (MR = MC) बराबर हैं। क्योंकि फर्म की । औसत लागत उसकी औसत आय से अधिक है, इसलिए फर्म को हानि हो रही है।
2. अपूर्ण प्रतियोगिता में दीर्घकाल में कीमत व उत्पादन-निर्धारण – दीर्घकाल में फर्म स्थिर सन्तुलन की स्थिति में होती है। अतः दीर्घकाल में फर्म केवल सामान्य लाभ अर्जित करती है। यदि दीर्घकाल में कुछ फर्मे अथवा उद्योग असामान्य लाभ अर्जित करते हैं तो ऊँचे लाभ से आकर्षित होकर अन्य फर्ने उद्योग में प्रवेश करने लगती हैं, जिसके कारण उस वस्तु के निकट-स्थानापन्न का उत्पादन प्रारम्भ हो जाता है। लाभ गिरकर सामान्य स्तर पर आ जाता है। प्रतियोगिता के कारण असामान्य लाभ समाप्त हो जाएगा और प्रत्येक फर्म केवल सामान्य लाभ ही अर्जित करेगी।
रेखाचित्र द्वारा प्रदर्शन – संलग्न चित्र में, Ox-अक्ष पर उत्पादन ४ व बिक्री की मात्रा तथा OY-अक्ष पर कीमत दिखायी गयी है। इस चित्र में AR तथा MR क्रमशः औसत आय तथा सीमान्त आय वक्र हैं तथा AC और MC क्रमशः औसत लागत व सीमान्त लागत वक्र हैं। E फर्म का सन्तुलन बिन्दु है जिस पर सीमान्त आय और सीमान्त लागत है (MR = MC) बराबर हैं। OS सन्तुलन उत्पादन तथा ON कीमत है। फर्म – की औसत आय व सीमान्त लागत भी बराबर हैं। अत: फर्म को केवल सामान्य लाभ ही प्राप्त हो रहा है।
प्रश्न 2
अपूर्ण प्रतियोगिता को स्पष्ट कीजिए। इस प्रतियोगिता में अल्पकाल में मूल्य-निर्धारण कैसे होता है? [2007]
या
अपूर्ण प्रतियोगिता में अल्पकाल में फर्म के सन्तुलन की दशाओं का सचित्र वर्णन कीजिए। [2007]
या
अपूर्ण प्रतियोगिता में अल्पकाल में एक फर्म मूल्य तथा उत्पादन का निर्धारण किस प्रकार करती है? [2007 ]
उत्तर:
अपूर्ण प्रतियोगिता के अर्थ के लिए इसी अध्याय के लघु उत्तरीय प्रश्न संख्या 1 में अपूर्ण प्रतियोगिता का अर्थ तथा अपूर्ण प्रतियोगिता में अल्पकाल में मूल्य-निर्धारण के लिए विस्तृत उत्तरीय प्रश्न सं० 1 में ‘अपूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत अल्पकाल में मूल्य व उत्पादन-निर्धारण’ शीर्षक देखिए।
लघु उत्तरीय प्रश्न (4 अंक)
प्रश्न 1
अपूर्ण प्रतियोगिता से आप क्या समझते हैं ? अपूर्ण प्रतियोगिता की विशेषताओं की विवेचना कीजिए। [ 2011, 16]
या
अपूर्ण प्रतियोगी बाजार को परिभाषित कीजिए। [2012]
या
अपूर्ण प्रतियोगिता की मुख्य विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए। [2014]
उत्तर:
अपूर्ण प्रतियोगिता का अर्थ
वास्तविक जीवन में न तो पूर्ण प्रतियोगिता की दशाएँ पायी जाती हैं और न एकाधिकार की। प्रायः इन दोनों के बीच की अवस्थाएँ मिलती हैं, जिसे अपूर्ण प्रतियोगिता कहते हैं। अपूर्ण प्रतियोगिता से अभिप्राय पूर्ण प्रतियोगिता तथा एकाधिकार के बीच की किसी अवस्था से होता है। अपूर्ण प्रतियोगिता का स्वरूप अंशतः प्रतियोगिता तथा अंशतः एकाधिकारी होता है।
फेयर चाइल्ड के शब्दों में, “यदि बाजार उचित प्रकार से संगठित नहीं होता, यदि क्रेता और विक्रेता एक-दूसरे के सम्पर्क में आने में कठिनाई का अनुभव करते हैं और वे दूसरे के द्वारा क्रय की गयी वस्तुओं और उनके द्वारा दिये गये मूल्यों की तुलना करने में असमर्थ रहते हैं तो ऐसी स्थिति को अपूर्ण प्रतियोगिता कहते हैं।
जे० के० मेहता के शब्दों में, “यह बात भली-भाँति स्पष्ट हो गयी है कि विनिमय की प्रत्येक स्थिति वह स्थिति है जिसको आंशिक एकाधिकार की स्थिति कहते हैं और यदि आंशिक एकाधिकार को दूसरी ओर से देखा जाए तो यह अपूर्ण प्रतियोगिता की स्थिति है। प्रत्येक स्थिति में प्रतियोगिता तत्त्व तथा एकाधिकार तत्त्व दोनों का मिश्रण है।”
अपूर्ण प्रतियोगिता की विशेषताएँ
- अपूर्ण प्रतियोगिता में क्रेताओं, विक्रेताओं एवं फर्मों की संख्या पूर्ण प्रतियोगिता की अपेक्षा कम होती है।
- अपूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत प्रतियोगिता तो होती है, किन्तु वह इतनी अपूर्ण तथा दुर्बल होती है कि माँग और पूर्ति की शक्तियों को कार्य करने का पूर्ण अवसर नहीं मिलता।
- क्रेताओं और विक्रेताओं को बाजार की स्थिति का पूर्ण ज्ञान नहीं होता है। परिणामस्वरूप बाजार में कीमतें भिन्न-भिन्न होती हैं।
- प्रत्येक विक्रेता को कुछ सीमा तक अपनी वस्तु की मनचाही कीमत वसूल करने की स्वतन्त्रता रहती है।
- अपूर्ण प्रतियोगिता में वस्तु-विभेद होता है। प्रत्येक फर्म अपनी वस्तु की बाजार माँग में अलग पहचान बनाने का प्रयत्न करती है।
- अपूर्ण प्रतियोगिता में फर्मों को बाजार में प्रवेश करने व छोड़ने की पूर्ण स्वतन्त्रता होती है। अर्थात् बाजार में फर्मों का स्वतन्त्र प्रवेश व बहिर्गमन होता है।
- फर्म के माँग वक्र या औसत आगम वक्र (AR) का ढाल ऋणात्मक होता है और फर्म का सीमान्त आगम वक्र (MR) इसके औसत आगम वक्र से नीचा होता है।
- दीर्घकाल में वस्तु का मूल्य सीमान्त आगम (MR) तथा ओसत आगम (AR) के बराबर होता है।
- अपूर्ण प्रतियोगिता में वस्तु की बिक्री बढ़ाने हेतु विज्ञापन में प्रचार आदि का आश्रय लिया जाता है।
- व्यावहारिक जीवन में बाजार में अपूर्ण प्रतियोगिता की ही स्थिति पायी जाती है।
- अपूर्ण प्रतियोगिता में वस्तु का बाजार संगठित नहीं होता।
प्रश्न 2
अपूर्ण प्रतियोगिता क्या है ? इसके अन्तर्गत मूल्य-निर्धारण कैसे होता है ?
या
अपूर्ण प्रतियोगिता क्या है? इसकी दशाओं का वर्णन कीजिए तथा इसके अन्तर्गत कीमत-निर्धारण को समझाइए।
उत्तर:
(संकेत – अपूर्ण प्रतियोगिता के अर्थ एवं दशाओं के लिए लघु उत्तरीय प्रश्न संख्या 1 का आरम्भिक भाग देखें। )
अपूर्ण प्रतियोगिता में कीमत या मूल्य-निर्धारण
अपूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत प्रत्येक उत्पादक अथवा विक्रेता का अपना अलग एवं स्वतन्त्र क्षेत्र होता है और वह अपने क्षेत्र में कुछ सीमा तक मनमानी कीमत वसूल कर सकता है। अपूर्ण प्रतियोगिता में प्रत्येक विक्रेता का उद्देश्य एकाधिकारी की भाँति ही अधिकतम लाभ प्राप्त करना होता है; अत: वस्तु की कीमत का निर्धारण ठीक उसी प्रकार होता है जिस प्रकार एकाधिकार की अवस्था में। | अपूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत कीमत का निर्धारण उस बिन्दु पर होता है जिस पर उत्पादन-इकाई की सीमान्त लागत तथा सीमान्त आय दोनों ही बराबर होती हैं। अपने लाभ को अधिकतम करने के लिए प्रत्येक उत्पादक उत्पादन को तब तक बढ़ाता रहता है जब तक कि उसकी सीमान्त आय सीमान्त लागत से अधिक रहती है, जब ये दोनों बराबर हो जाती हैं तो उसके बाद वह उत्पादन नहीं बढ़ाता। अपूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत विक्रेता कीमत का निर्धारण करते समय माँग और पूर्ति की शक्तियों का समुचित ध्यान रखता है; अत: अपूर्ण प्रतियोगिता की स्थिति में कीमत का निर्धारण माँग और पूर्ति दोनों की पारस्परिक क्रियाओं द्वारा होता है।
अपूर्ण प्रतियोगिता में उत्पादक का पूर्ति पर तो पूर्ण नियन्त्रण होता है, किन्तु माँग पर कोई प्रत्यक्ष नियन्त्रण नहीं होता; अतः अपूर्ण प्रतियोगिता में विक्रेता माँग की मूल्य सापेक्षता को ध्यान में रखकर कीमत का निर्धारण करता है। यदि वस्तु की मॉग मूल्ये सापेक्ष है तो विक्रेता उसकी कम कीमत निश्चित करेगा, क्योंकि मूल्य सापेक्ष वस्तुओं की कीमत में थोड़ी-सी भी कमी हो जाने पर उनकी माँग बहुत अधिक बढ़ जाती है; अत: कीमत कम निर्धारित होने के कारण यद्यपि प्रति इकाई लाभ तो कम हो जाता है, परन्तु माँग के बढ़ जाने के कारण कुल लाभ की मात्रा अधिक हो जाती है। इसके विपरीत, यदि वस्तु की माँग निरपेक्ष है तो कीमत में बहुत कमी होने पर भी उसकी माँग में विशेष वृद्धि नहीं होती और कीमत में वृद्धि होने पर माँग में कोई विशेष कमी नहीं होती।
अतः ऐसी वस्तुओं की कीमतें ऊँची ही निश्चित की जाती हैं, क्योंकि कीमतें चाहे कुछ भी हों, लोग उन्हें अवश्य खरीदेंगे। पूर्ति पक्ष के सम्बन्ध में यह विचार करना पड़ता है कि वस्तु के उत्पादन में प्रतिफल का कौन-सा नियम लागू हो रहा है ? यदि वस्तु का उत्पादन वृद्धिमान प्रतिफल नियम के अन्तर्गत हो रहा है तब वस्तु की कम कीमत निश्चित की जाएगी, इसके विपरीत, यदि उत्पादन ह्रासमान प्रतिफल नियम के अन्तर्गत हो रहा है तब वह वस्तु की कीमत जितनी अधिक वसूल कर सकता है, करेगा। आनुपातिक प्रतिफल नियम के अन्तर्गत उत्पादित वस्तु की कीमत उसकी माँग के अनुसार निर्धारित की जाएगी अर्थात् माँग के बढ़ने पर कीमत अधिक तथा माँग के घटने पर कम होगी। । संक्षेप में हम कह सकते हैं कि विक्रेता अपनी वस्तु की कीमत को निश्चित करते समय प्रत्येक कीमत पर अपने कुल लाभ का अनुमान लगाता है और वही कीमत निश्चित करता है जिस पर कि उसे अधिकतम कुल निवल लाभ अथवा आय प्राप्त होती हैं।
प्रश्न 3
पूर्ण एवं अपूर्ण प्रतियोगिता में अन्तर (भेद) कीजिए। इनमें से कौन व्यावहारिक है ? [2006,10,11]
या
पूर्ण एवं अपूर्ण प्रतियोगी बाजार की विशेषताओं की तुलना कीजिए। [2013]
उत्तर:
पूर्ण प्रतियोगिता तथा अपूर्ण प्रतियोगिता में अन्तर (भेद)
प्रश्न 4
अपर्ण प्रतिस्पर्धा में औसत वक्र तथा सीमान्त आय वक्र का रूप कैसा होता है ? इस प्रतिस्पर्धा में सन्तुलन बिन्दु कैसे निर्धारित किया जाता है ?
उत्तर:
अपूर्ण प्रतिस्पर्धा में औसत आय वक्र तथा सीमान्त आय वक्र का रूप – अपूर्ण प्रतिस्पर्धा बाजार में औसत आय और सीमान्त आय रेखाएँ अलग-अलग होती हैं तथा बाएँ से दाएँ नीचे की ओर गिरती हुई होती हैं। अतः स्पष्ट है कि फर्म का उत्पादन बढ़ने पर 14औसत आय (AR) और सीमान्त आय (MR) दोनों ही गिरती हैं, किन्तु सीमान्त आय औसत आय की अपेक्षा तेजी से गिरती है। इसका कारण यह होता है कि विक्रेताओं की संख्या पूर्ण प्रतियोगिता की तुलना में अपेक्षाकृत कम होने से विक्रेता कीमत को प्रभावित कर सकने की स्थिति में होता है अर्थात् वे कीमत में कमी करके वस्तु की बिक्री को बढ़ा सकते हैं।
अपूर्ण प्रतिस्पर्धा में सन्तुलन बिन्दु का निर्धारण – अपूर्ण प्रतियोगिता की स्थिति में आय वक्र अपूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत कीमत-निर्धारण में माँग और पूर्ति की शक्तियों का समुचित ध्यान रखा जाता है। इनमें कीमत-निर्धारण उस बिन्दु पर होता है जहाँ पर सीमान्त लागत तथा सीमान्त आय दोनों ही बराबर होती हैं।
अपूर्ण प्रतियोगिता में प्रत्येक फर्म अपने लाभ को अधिकतम करने के लिए उत्पादन में जब तक परिवर्तन करती रहेगी तब तक MR = MC अर्थात् सीमान्त आय = सीमान्त लागत नहीं हो जाता। यदि सीमान्त आय, सीमान्त लागत से अधिक है तो फर्म अपने उत्पादन को बढ़ाकर लाभ को अधिकतम करेगी और यदि सीमान्त आय, सीमान्त लागत से उत्पादन की मात्रा कम है तो फर्म अपने उत्पादन को कम करके लाभ को फर्म द्वारा असामान्य लाभ की स्थिति अधिकतम करेगी। अतः फर्म को सन्तुलन बिन्दु वहाँ निश्चित होगा जहाँ सीमान्त आय और सीमान्त लागत बराबर होती हैं। इस बिन्दु पर फर्म का लाभ अधिकतम होता है और उससे विस्तार व संकुचन की प्रवृत्ति नहीं होती है।
प्रश्न 5
अपूर्ण प्रतियोगिता में एक फर्म के दीर्घकालीन साम्य को समझाइए। [2009]
उत्तर:
दीर्घकाल में अपूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत फर्म को केवल सामान्य लाभ ही प्राप्त होता है। इसके विपरीत पूर्ण प्रतियोगिता में लाभ अथवा हानि की स्थिति भी हो सकती है। यही कारण है कि दीर्घकाल में सामान्य लाभ प्राप्त करने की स्थिति पूर्ण प्रतियोगिता की अपेक्षा अपूर्ण प्रतियोगिता में पहले आती है।
संलग्न चित्र में,
E = सन्तुलन बिन्दु
LM = औसत आय
LM = औसत लागत
(… औसत लाभ = औसत आय)
अत: लाभ की मात्रा शून्य (सामान्य लाभ) है।
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न (2 अंक)
प्रश्न 1
नीचे दिये गये रेखाचित्र में दी गयी वक्र रेखाओं के नाम लिखिए तथा यह भी लिखिए कि वक्र रेखाओं की ऐसी प्रवृत्ति फर्म की हानि दर्शाती है अथवा लाभ।
उत्तर:
उपर्युक्त रेखाचित्र की स्थिति में फर्म लाभ की स्थिति को दर्शाती है।
प्रश्न 2
अपूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत फर्म को मात्र सामान्य लाभ दर्शाने वाले चित्र को अपनी उत्तर-पुस्तिका में विभिन्न वक्रों के नाम सहित बनाइए।
उत्तर:
फर्म द्वारा सामान्य लाभ का चित्र
निश्चित उत्तरीय प्रश्न (1 अंक)
प्रश्न 1
अपूर्ण प्रतियोगिता में सीमान्त आय का औसत आय से कम होने का क्या कारण है?
उत्तर:
अपूर्ण प्रतियोगिता में सीमान्त आय का औसत आय से कम होने का मुख्य कारण यह है कि एक अतिरिक्त इकाई को बेचने के लिए फर्म को वस्तु की कीमत में थोड़ी-सी कमी करनी पड़ती है। इसलिए फर्म की औसत आय सीमान्त आय से अधिक होती है।
प्रश्न 2
अपूर्ण प्रतियोगिता में फर्म को कब हानि उठानी पड़ती है ?
उत्तर:
जब वस्तु की माँग इस सीमा तक कम हो जाती है कि फर्म को अपनी वस्तु को विवश होकर लागत से कम कीमत पर बेचना पड़े, तब फर्म हानि की स्थिति में होती है अर्थात् इस स्थिति में फर्म की औसत आय उसकी औसत लागत से कम होती है। इसलिए फर्म को हानि उठानी पड़ती है।
प्रश्न 3
अपूर्ण प्रतियोगिता की चार विशेषताएँ बताइए। [2006, 09]
या
अपूर्ण प्रतियोगिता की दो प्रमुख विशेषताएँ लिखिए। [2013, 15]
उत्तर:
- विक्रेताओं की अपेक्षाकृत कम संख्या,
- वस्तु-विभेद पाया जाना,
- बाजार का अपूर्ण ज्ञान,
- पूर्ण गतिशील न होना।
प्रश्न 4
अपूर्ण प्रतियोगिता की दशा में उत्पादक कब असामान्य लाभ प्राप्त करता है ?
उत्तर:
अपूर्ण प्रतियोगिता में उत्पादक केवल उस दशा में असामान्य लाभ प्राप्त करने की स्थिति में होता है जब उसकी औसत आय उसकी औसत लागत से अधिक हो।
प्रश्न 5:
अपूर्ण प्रतियोगिता में दीर्घकाल में वस्तु का मूल्य किस स्थिति में निर्धारित होता है ?
उत्तर:
अपूर्ण प्रतियोगिता में दीर्घकाल में वस्तु का मूल्य सीमान्त आय व सीमान्त लागत की सन्तुलन की स्थिति में निर्धारित होता है। यहाँ फर्म केवल सामान्य लाभ अर्थात् शून्य लाभ की स्थिति में होती है।
प्रश्न 6
अधिकतम बिक्री करने के लिए उत्पादक को क्या करना पड़ता है ?
उत्तर:
उत्पादक को वस्तुओं की अधिकतम बिक्री करने के लिए विज्ञापन व प्रचार आदि पर व्यय करना पड़ता है।
प्रश्न 7
अपूर्ण प्रतियोगिता का स्वरूप कैसा होता है ?
उत्तर:
अपूर्ण प्रतियोगिता का स्वरूप अंशत: पूर्ण प्रतियोगिता तथा अंशत: एकाधिकारी होता है।
प्रश्न 8
अपूर्ण प्रतियोगिता बाजार में औसत ओगम वक्र का ढाल किस प्रकार का होता है?
उत्तर:
अपूर्ण प्रतियोगिता की दशा में औसत आगम वक्र बाएँ से दाएँ नीचे की ओर गिरता हुआ होता है।
प्रश्न 9
अपूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत कीमत-निर्धारण किस प्रकार होता है ?
उत्तर:
अपूर्ण प्रतियोगिता के अन्तर्गत कीमत-निर्धारण में माँग एवं पूर्ति की शक्तियों का समुचित ध्यान रखा जाता है। इस प्रकार कीमत-निर्धारण उस बिन्दु पर होता है जहाँ पर सीमान्त लागत तथा सीमान्त आय दोनों ही बराबर हों।
प्रश्न 10
अपूर्ण प्रतियोगिता में सीमान्त आगम रेखा का ढाल कैसा होता है ?
उत्तर:
अपूर्ण प्रतियोगिता में सीमान्त आगम रेखा का ढाल बाएँ से दाएँ नीचे की ओर होता है।
बहुविकल्पीय प्रश्न (1 अंक)
प्रश्न 1
अपूर्ण प्रतियोगिता है
(क) काल्पनिक
(ख) व्यावहारिक
(ग) काल्पनिक-व्यावहारिक
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ख) व्यावहारिक।
प्रश्न 2
अपूर्ण प्रतियोगिता में औसत और सीमान्त आगम के वक्र गिरते हुए होते हैं [2010]
(क) नीचे की ओर
(ख) ऊपर की ओर
(ग) बीच में
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(क) नीचे की ओर।।
प्रश्न 3
अपूर्ण प्रतियोगिता की दशा में दीर्घकाल में विक्रेता केवल प्राप्त करता है
(क) हानि :
(ख) सामान्य लाभ
(ग) अधिकतम लाभ
(घ) शून्य लाभ
उत्तर:
(ख) सामान्य लाभ।
प्रश्न 4
अपूर्ण प्रतियोगिता में विक्रेताओं की संख्या होती है
(क) शून्य
(ख) कम
(ग) अधिक
(घ) ये सभी
उत्तर:
(ख) कम।
प्रश्न 5
अपूर्ण प्रतियोगिता में प्रत्येक फर्म अपने लाभ को अधिकतम करने के लिए उत्पादन में परिवर्तन करती रहती है, जब तक
(क) सीमान्त लागत = सीमान्त आय
(ख) सीमान्त आय, सीमान्त लागत से अधिक
(ग) सीमान्त आय, सीमान्त लागत से कम
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(क) सीमान्त लागत = सीमान्त आय।
प्रश्न 6
वस्तु (उत्पाद) विभेद’ एक आधारभूत विशेषता है [2012, 13]
या
वस्तु-विभेद किस बाजार में पाया जाता है? [2015]
(क) पूर्ण प्रतियोगिता की
(ख) अपूर्ण प्रतियोगिता की
(ग) एकाधिकार की
(घ) इनमें से किसी की नहीं
उत्तर:
(ख) अपूर्ण प्रतियोगिता की।
प्रश्न 7
किसी फर्म के अधिकतम लाभ के लिए प्रथम आवश्यकता है
(क) सीमान्त आगम = औसत आगम
(ख) सीमान्त लागत = औसत लागत
(ग) सीमान्त लागते = सीमान्त आगम
(घ) औसत लागत = औसत आगम।
उत्तर:
(ग) सीमान्त लागत = सीमान्त आगम।
प्रश्न 8
कोई फर्म सन्तुलन की स्थिति प्राप्त करती है जब [2013]
(क) सीमान्त आगम एवं सीमान्त लागत बराबर हों।
(ख) सीमान्त आगम सीमान्त लागत से अधिक हो।
(ग) सीमान्त आगम सीमान्त लागत से कम हो।
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(क) सीमान्त आगम एवं सीमान्त लागत बराबर हों।।
प्रश्न 9
अपूर्ण प्रतियोगिता में फर्म की औसत आय रेखा होती है [2010]
(क) गिरती हुई रेखा
(ख) उठती हुई रेखा
(ग) क्षैतिज रेखो।
(घ) ऊर्ध्व रेखा।
उत्तर:
(क) गिरती हुई रेखा।
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